अगर आप अपने शिशु के साथ सफर पर जा रही हैं तो ये सलाह आपके काम आएगी

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दुनिया की भागदौड़ और शोर-शराबे से खुद को दूर करने का मेरा पसंदीदा तरीका लंबे सफर पर निकलना है। मैं जब भी तनाव में होती हूं, तो कुछ दिन के लिए किसी अनजान शहर की सैर पर निकल जाती हूं या फिर वाइल्ड सफारी का मजा लेती हूं। यही कारण है कि मेरी ये आदत अभी तक कायम है।

फिर मेरी लाइफ में एक समय वो भी आया, जब मैं अपना 30वां जन्मदिन मना रही है थी और प्रेगनेंट भी थी। इसके ठीक 9 महीने बाद एक प्यारी और नन्ही-सी जान मेरी गोद में खेल रही थी। मेरी बेटी की मासूमियत ने मेरा दिल जीत लिया था। मां बनने के बाद मैं अपनी बेटी की देखभाल में इस कदर खो गई थी कि ट्रेवलिंग करना मेरे लिए गुजरे जमाने की बात हो गई थी।

दिनभर में मैं मुश्किल से 4 घंटे ही सो पाती थी। बार-बार बेबी के डायपर बदलना और उसे भूख लगने पर दूध पिलाने जैसे काम करते-करते मैं थकने लगी थी। इन सब चीजों की वजह से जब भी मैं ये कहती हूं कि मुझे मां बनकर काफी अच्छा लग रहा है, तो ये शब्द मुझे अंदर से लगभग तोड़ देते थे। मैं इन सब कामों से ब्रेक लेकर नए सफर पर जाना चाहती थी, लेकिन ऐसा संभव नहीं था, क्योंकि छोटे बच्चे के साथ ऐसे सफर पर जाना मुश्किल है।

मेरा सबसे खराब सफर

आखिरकार, मैंने पास के ही शहर में रहने वाली अपनी दोस्त से मिलने का फैसला किया। मेरे पति, जो मुझे इन तमाम परेशानियों से जूझते हुए देख रहे थे, उन्होंने भी मेरे इस फैसले का सपोर्ट किया। बस फिर क्या था, मैंने अपना बैग (और अपनी बेटी का डायपर बैग) पैक किया और अपनी नन्ही-सी ट्रेवल पार्टनर के साथ निकल पड़ी एक और नए सफर पर। मेरी दोस्त का शहर सिर्फ 2 घंटे की दूरी पर था, तो मैंने बस से जाने का निर्णय लिया। मैंने सोचा कि बस हर थोड़ी देर में रुकती है, तो मुझे बार-बार अपनी बच्ची का डायपर बदलने और उसे दूध पिलाने में आसानी रहेगी।

हमारा सफर अभी शुरू ही हुआ था कि मुझे कुछ गड़बड़ का अहसास हुआ। मेरी बेटी चिड़चिड़ी-सी हो रही थी। मुझे इस बात तो समझने में ज्यादा देर नहीं लगी कि उसने पॉटी करके अपना डायपर गंदा कर दिया है। मैंने तुरंत बस कंडक्टर से अगले बस स्टॉप पर गाड़ी रोकने को कहा। जब बस रुकी, तो मैं उतर कर वहां बने एक वॉशरूम में गई, लेकिन वहां तो बच्चों का डायपर बदलने की कोई सुविधा ही नहीं थी। मैंने किसी तरह वहां एक जगह प्लास्टिक शीट बिछाकर अपनी बेबी को लेटाया, लेकिन जगह आरामदायक न होने के कारण वह लगातार रो रही थी। साथ ही उसने पूरी शीट भी गंदी कर दी थी और चाहते हुए भी मैं उस शीट को फेंक नहीं सकती थी, क्योंकि मेरे पास सिर्फ यही एक शीट थी। मैंने किसी तरह उसे एक दूसरे बैग में रखा और फिर से बस में चढ़ गई।

हालांकि, अब मुझे आगे के सफर के लिए डायपर की जरूरत महसूस नहीं हो रही थी, लेकिन फिर मैं चिंतित थी। मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि सफर के दौरान डाइपर बदलना इतना मुश्किल भरा होगा। साथ ही मुझे इस बात का भी डर सता रहा था कि प्लास्टिक शीट पर मौजूद कीटाणुओं से मेरी बेटी को किसी तरह की एलर्जी या बीमारी न हो जाए। दिमाग में चल रहे इन तमाम ख्यालों के साथ मैं अपने दोस्त के घर पहुंच गई। जब मैंने उसे अपनी समस्या के बारे में बताया, तो उसने मुझसे बस एक ही सवाल पूछा कि मैं ‘डिस्पोजेबल, डायपर चेंजिंग मैट्स’ का इस्तेमाल क्यों नहीं करती? फिर उसने मुझे टेड्डी चेंजिंग मैट्स के बारे में बताया, जो वह खुद यूज कर रही थी। उसने मुझे वापसी की यात्रा के दौरान इसे इस्तेमाल करने के लिए मना लिया और उसने जिस तरीके से इसकी खूबियां बताईं, तो मैं भी न नहीं कह सकी।

छोटे-से बदलाव ने मेरे सफर को बनाया यादगार

Small changes made my journey memorable pinit button
Image: IStock

अगले दिन जब मैं घर वापस आने के लिए पैकिंग कर रही थी, तभी मुझे ‘टेडी डायपर चेंजिंग मैट’ के बारे में याद आया। मैंने तुरंत नॉर्मल प्लास्टिक शीट को हटाकर ‘टेडी डायपर चेंजिंग मैट’ को अपने बैग में रखा। यकीन मानिए, इस बदलाव का मेरे सफर पर बहुत बड़ा फर्क पड़ा। जो सफर दोस्त के घर जाते समय डरावने सपने जैसा लग रहा था, वहीं घर लौटते समय यादगार बन गया। वापसी के दौरान मुझे फिर से अपनी बच्ची का डायपर बदलने की जरूरत महसूस हुई। मैं रास्ते में बेबी का डायपर बदलने एक ढाबे पर रुकी, लेकिन इस बार मेरे साथ ‘टेडी मैट’ था। मैंने पैकेट से एक टेडी मैट निकाला और उसे बिछाकर बेबी को उस पर लेटा दिया। आपको जानकार हैरानी होगी कि टेडी मैट की वाटर प्रूफ बैक शीट की वजह से मेरी बेटी को न तो गीलेपन का अहसास हुआ और न ही उसे गंदगी से जूझना पड़ा। टेडी मैट ने इन दोनों ही समस्याओं से मेरी बेटी को बचा लिया, जबकि पिछली बार मुझे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। साथ ही मेरी नन्ही-सी जान का रो-रो कर बुरा हाल हो गया था।

इसकी सिर्फ और सिर्फ एक वजह थी, ‘टेडी डायपर चेंजिंग मैट’। अपने खास सॉफ्ट और स्पंजी डिजायन के कारण यह मेरी बच्ची को किसी गद्दे की तरह महसूस हो रहा था। सही मायने में ऐसा मैट के क्रिस क्रास डिजायन और उसकी नमी सोखने की क्षमता के कारण हुआ था।

सबसे अच्छी बात यह रही कि यात्रा के इस अनुभव के बाद मैंने कभी सामान्य मैट की ओर रुख नहीं किया। खास यह था कि यह मैट डिस्पोजल थे, जिसे एक बार यूज करके डस्टबिन में फेंका जा सकता है। साथ ही मुझे इसके इस्तेमाल से अब अपनी बच्चे के स्वास्थ्य और होने वाली एलर्जी की भी कोई चिंता नहीं है। कारण यह है कि इस मैट के अंदर हाइपोएलर्जेनिक फॉर्मूला और एंटीबैक्टीरियल लेयर लगाई गई है, जो बच्चे को किसी भी प्रकार के बैक्टीरियल इन्फेक्शन या एलर्जी से बचाने का काम करती है। इसलिए, मुझे अब अपनी बेटी के साथ किसी भी यात्रा पर जाने में कोई मुश्किल महसूस नहीं होती।

ये सब छह महीने पहले की बात है। वहीं, अब मैं इन मैट को हर जगह अपने साथ लेकर जाती हूं। सफर के दौरान इन्हें अपने साथ रखना इतना आसान है कि मैंने इन मैट के साथ इमरजेंसी किट तैयार की हैं, जो हमेशा हमारी कार में और स्ट्रोलर में रहती है। अब मैं अपनी बेटी के साथ बहुत ही आराम से ट्रेवल करती हूं और मुझे कोई चिंता भी नहीं होती है। यही वक्त है जब मेरे और मेरी बेटी के बीच का रिश्ता और गहरा होगा। वहीं, मेरी बेटी के शुरुआती अनुभव अच्छे नहीं रहे थे, क्योंकि हमारे पास ये मैट नहीं थे। मैं समझ सकती हूं कि मेरी तरह दूसरी नई माएं भी इस तरह की चुनौतियों से जूझ रही होंगी। ऐसे में अगर मेरा अनुभव उन्हें लाभ पहुंचा पाए, तो मेरा यह आर्टिकल लिखना सफल हो जाएगा। जिनके लिए घूमना पैशन है, लेकिन पहली बार मां बनने के बाद बेबी के साथ बाहर निकलने से घबरा रही हैं, तो मेरी उनको सलाह है कि अपने साथ इन मैट्स को रखना न भूलें। इससे न सिर्फ आपका सफर सुखदायक होगा, बल्कि अपने बेबी के साथ रिश्ते और गहरे होंगे।
हैप्पी मदरहुड!

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