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देश ही नहीं, बल्कि आज पूरे विश्व में योग को सराहा और अपनाया जा रहा है। कई वैज्ञानिक शोध में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि विभिन्न प्रकार के योगासनों के अभ्यास से कई शारीरिक समस्याओं में राहत पाई जा सकती है (1)। खैर यह तो है सामान्य बात, लेकिन अगर पूछें कि योग का आधार क्या है, तो इस बारे में कम ही लोग जानते होंगे। ऐसे में योग के आधार को गहराई से समझने के लिए अष्टांग योग उत्तम विकल्प हो सकता है। यही वजह है कि स्टाइलक्रेज के इस लेख में हमने अष्टांग योग करने के फायदे के साथ इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं को समझाने की कोशिश की है। साथ ही पाठक इस बात का भी ध्यान रखें कि नियमित योग वैकल्पिक रूप से शारीरिक समस्याओं से बचाव और उनके लक्षणों को कुछ हद तक कम करने में मदद कर सकता है। किसी भी समस्या के पूर्ण इलाज के लिए डॉक्टरी परामर्श अत्यंत आवश्यक है।
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लेख में हम अष्टांग योग के विषय में विस्तार बताएंगे। आइए, उससे पहले संक्षेप में जान लें कि यह है क्या।
अष्टांग योग क्या है – What is Ashtanga Yoga in hindi
अष्टांग योग अन्य योगों से भिन्न है। वजह यह है कि यह एक शारीरिक योग नहीं, बल्कि एक तरह की कर्म साधना है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस साधना को सिद्ध कर ले, वह जीवन के असल सार को समझ लेता है। यही वजह है कि योग को समझाने के लिए योग पिता महर्षि पतंजलि ने करीब 200 ईसा पूर्व अष्टांग योग सूत्र की रचना की थी। सूत्र इसलिए, क्योंकि जिस प्रकार गणित के सूत्रों के आधार पर बड़े से बड़े सवाल को हल किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार यह अष्टांग योग सूत्र जीवन के संपूर्ण सार को समझने में मदद करता है। इस सूत्र को ही मुख्य आठ अंग यानी चरणों में विभाजित किया गया है, जिनसे जुड़ी जानकारी लेख में आगे विस्तार से मिलेगी (2)।
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आइए, लेख के अगले भाग में हम अष्टांग योग के अंग के विषय में थोड़ी जानकारी हासिल कर लेते हैं।
अष्टांग योग के अंग – Limbs of Ashtanga Yoga in Hindi
अष्टांग योग में शामिल आठ अंग कुछ इस प्रकार हैं ।
- यम
- नियम
- आसन
- प्राणायाम
- प्रत्याहार
- धारणा
- ध्यान
- समाधि
महर्षि पतंजलि के अनुसार, अष्टांग योग के अंग कर्म योग से समाधि पाने का मार्ग हैं। इन आठ अंगों में शामिल यम, नियंत्रण से जुड़ा है। वहीं, नियम, जीवन के उन नियमों से जुड़ा है, जो सांसारिक जीवन के मोह से मुक्त करने में मदद करते हैं। वहीं, इसमें शामिल आसन, शरीर की मुद्रा से जुड़ा है। वहीं, प्राणायाम, सांसों को नियंत्रित करने से जुड़ा है। इसके अलावा, प्रत्याहार का मतलब है ध्यान को बाधित करने वाली आवाज, गंध, स्पर्श आदि के प्रति ध्यान को हटाना।
वहीं, इसमें शामिल धारणा, एकाग्रता से संबंधित है। वहीं, इनमें शामिल सातवां अंग ध्यान है, जब एकाग्रता किसी भी चीज से बाधित नहीं होती है। अंत में बात आती है समाधि की। समाधि को योग में शून्य भी कहा गया है, जिसका अर्थ है, कुछ भी बाकी न रह जाना यानी समाधि को प्राप्त कर व्यक्ति संपूर्ण अष्टांग योग को सिद्ध कर लेता है। यही है अष्टांग योग के अंग का सार।
वहीं, अष्टांग योग में शामिल इन अंगों को कुछ उप अंगों में बांटा गया, जो साधक को संयम, पालन, शारीरिक अनुशासन, सांस नियम, इंद्रिय अंगों पर संयम, चिंतन व मनन को जीवन में शामिल कर समाधि को प्राप्त करने की प्रक्रिया को समझाते हैं। आसान भाषा में इसे अष्टांग योग को करने का तरीका भी कहा जा सकता है, जिसके बारे में हम लेख के आगे के भाग में विस्तार से बताएंगे।
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आगे हम अष्टांग योग करने का तरीका भी बताएंगे, लेकिन उससे पहले अष्टांग योग करने के फायदे जान लेते हैं।
अष्टांग योग करने के फायदे – Benefits of Ashtanga Yoga in hindi
अष्टांग योग के लाभ शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में हासिल किए जा सकते हैं। इन फायदों के बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है :
1. शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखे
अष्टांग योग के सभी चरणों का पालन कर शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रहने में मदद मिल सकती है। विषय से जुड़े एक शोध में माना गया कि अष्टांग योग में शामिल योगाभ्यास मांसपेशियों की मजबूती, शरीर में लचीलापन, श्वसन क्रिया में सुधार, हृदय कार्य क्षमता को बढ़ावा और नींद की समस्या में सुधार कर सकते हैं। साथ ही जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का काम भी कर सकते हैं (1)। इस आधार पर यह माना जा सकता है कि अष्टांग योग के लाभ शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मददगार साबित हो सकते हैं।
2. डायबिटीज को नियंत्रित करने में मददगार
डायबिटीज की समस्या में भी अष्टांग योग के लाभ पाए जा सकते हैं। जर्नल ऑफ डायबिटीज रिसर्च द्वारा किए गए एक शोध में माना गया कि योग के विभिन्न आसनों के प्रयोग से ब्लड ग्लूकोज के स्तर को कम किया जा सकता है। इससे डायबिटीज की समस्या के जोखिमों को कम करने में मदद मिल सकती है। वहीं, हम ऊपर बता चुके हैं कि अष्टांग योग में आसन को भी अंग के रूप में शामिल किया गया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि अन्य शारीरिक आसनों के साथ ही अष्टांग योग भी डायबिटीज की समस्या से राहत दिलाने में मददगार साबित हो सकता है (3)।
3. मानसिक विकारों को करे दूर
अष्टांग योग में शामिल आसन और प्राणायाम की प्रक्रिया मन को शांत रखने में मदद कर सकती हैं। साथ ही ये चिंता, अवसाद और तनाव को दूर करने में मदद कर सकता है। मन की ये तीनों स्थितियां व्यक्ति के मस्तिष्क से संबंधित है, इसलिए यह माना जा सकता है कि इन तीनों स्थितियों को नियंत्रित कर मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में अष्टांग योग के लाभ पाए जा सकते हैं (1)।
नीचे मुख्य जानकारी है
अष्टांग योग करने के फायदे जानने के बाद अब हम इसे करने की प्रक्रिया समझाने जा रहे हैं।
अष्टांग योग करने का तरीका – Steps to do Ashtanga Yoga in Hindi
अष्टांग योग करने के लिए इसके अंगों के साथ-साथ उनमें शामिल उप अंगों को समझना बहुत जरूरी है, तभी संपूर्ण अष्टांग योग को जीवन में समाहित किया जा सकता है। आइए, अष्टांग योग सूत्र में शामिल सभी अंगों और उप अंगों के माध्यम से इसके प्रत्येक चरण को बारीकी से समझते हैं।
1. यम :
यम के पांच उप अंग हैं, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। इन पांच उप अंगों को स्वयं के जीवन में समाहित करना ही अष्टांग योग का पहला चरण है। आइए, इन्हें जीवन में कैसे शामिल करना है, इसे थोड़ा विस्तार से समझ लेते हैं :
अहिंसा : यहां अहिंसा का अर्थ केवल शारीरिक हिंसा नहीं है। अष्टांग योग के इस अंग में साधक को अपने विचारों और शब्दों से भी हिंसा भाव को निकालना होता है। अर्थ यह हुआ कि मन में किसी के भी प्रति बुरे विचार नहीं आने चाहिए।
- सत्य : इस उप अंग में मनुष्य को सत्य धर्म का पालन करना होता है यानी मन, कर्म और वचन से केवल सत्य को जीवन में जगह देने वाला व्यक्ति ही इस उप अंग को पार कर पाएगा।
- अस्तेय : अस्तेय का अर्थ है चोरी का त्याग करना। इस उप अंग को अपनाने के लिए व्यक्ति को किसी के भी धन, वस्तु या संपत्ति के प्रति लालच का भाव त्यागना होता है।
- ब्रह्मचर्य : आमतौर पर लोग ब्रह्मचर्य का अर्थ शारीरिक संबंधों से जोड़ कर निकालते हैं, लेकिन यहां प्राकृतिक इन्द्रियों को वश में करने की बात कही जा रही हैं। जैसे:- खाना, पीना, मनोरंजन में समय बिताना, आरामदायक बिस्तर जैसी चीजों का मोह त्यागना।
- अपरिग्रह : अपरिग्रह का अर्थ होता है, त्याग करने वाला। इसलिए, यम के इस अंतिम उप अंग के माध्यम से साधक को लोभ और मोह (जरूरत से अधिक धन व संपत्ति जमा करने की चाहत) जैसे विकारों को दूर करने का सलाह दी जाती है।
इसका अर्थ यह हुआ कि जो यम के इन पांच उप अंगों को अपने जीवन में समाहित कर पाएगा, वहीं अष्टांग योग के पहले चरण यानी यम अंग को पार कर पाएगा।
2. नियम :
यम को साधने के बाद बारी आती है, नियम की। इसके भी पांच उप अंग हैं, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान। इन नियमों को जीवन में समाहित कर अष्टांग योग के दूसरे चरण को पार किया जा सकता है। आइए, इनका भी विस्तृत अर्थ समझ लेते हैं।
- शौच : यहां शौच का अर्थ तन, मन, अन्न, वस्त्र और स्थान की शुद्धि से हैं।
- संतोष : इसका अर्थ है, बिना फल या परिणाम की इच्छा के सदैव अपना कर्म करते रहना।
- तप : यहां तप का अर्थ तपस्या नहीं, बल्कि अपने कर्म को किसी भी परिस्थिति में पूरी ईमानदारी से पालन करना है।
- स्वाध्याय : स्वाध्याय का अर्थ है, मन में झांकना यानी विपरीत स्थितियों में खड़े रहने के लिए आत्मचिंतन करना।
- ईश्वर प्रणिधान : ईश्वर प्रणिधान का अर्थ है, भगवान पर विश्वास रखना। यह उप अंग बताता है कि किसी भी परिस्थिति में ईश्वर के प्रति श्रद्धा भाव को कभी भी मन से नहीं निकालना चाहिए।
इस तरह यम और नियम का पालन कर एक साधक अष्टांग योग के दूसरे चरण को पार कर पाएगा।
3. आसन :
वैसे तो शारीरिक विकारों को दूर करने के लिए कई योग है, लेकिन अष्टांग योग में आसन का अर्थ है बिना हिले-डुले एक स्थिति में आराम से बैठना। इसे स्थिर सुखमय आसन भी कहा जाता है। नियमित रूप से कुछ देर इस आसन में बैठने से मन तो शांत होता ही हैं, साथ ही शरीर में ऊर्जा भी संचित रहती है। वहीं, यह आसन अष्टांग योग के दूसरे अंग नियम में शामिल स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को गहराई से समझने की शक्ति पैदा करता है।
4. प्राणायाम :
प्राणायाम का अर्थ होता है, प्राण ऊर्जा यानी सांस लेने की प्रक्रिया को विस्तार देना। अष्टांग योग के इस अंग में साधक अपनी प्राण ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए ऐसे योगाभ्यास करता है, जिसमें सांस लेने की प्रक्रिया पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित किया जाता है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम और कपालभाति प्राणायाम कुछ ऐसी ही योग क्रियाएं हैं। इनका नियमित अभ्यास करने से साधक में प्राण ऊर्जा को नियंत्रित करने की क्षमता विकसित हो सकती है।
5. प्रत्याहार :
प्रत्याहार का अर्थ है रोकना या वापस लेना। अष्टांग योग में इन्द्रियों के कारण खर्च होने वाली अनावश्यक ऊर्जा के नियंत्रण पर जोर दिया गया है। अर्थ यह हुआ कि बोलना, सुनना, खाना, देखना और महसूस करना जैसी क्रियाएं संतुलित अवस्था में रहें। इन क्रियाओं के माध्यम से शरीर की अनावश्यक ऊर्जा नष्ट न हो।
6. धारणा :
प्रत्याहार के बाद बात आती है धारणा की। अगर कोई साधक अष्टांग योग के पांच अंगों को साध लेता है, तो उसमें ऊर्जा एकत्रित करने का तो गुण पैदा हो जाता है। अब इस ऊर्जा को खर्च कैसे करना है, यह धारणा पर ही निर्भर करता है। इसलिए, जरूरी है कि मनुष्य हमेशा वर्तमान में जिए और संतुष्ट रहे। साथ ही ईश्वर पर विश्वास रखे कि अगर वह सही है, तो उसके साथ कुछ गलत नहीं हो सकता। यही धारणा एक साधक को अपनी ऊर्जा को संचित रखने और उसे कैसे खर्च करना है, इस पर विचार करने की क्षमता देगी।
7. ध्यान :
जैसा कि हमने ऊपर बताया कि प्रत्याहार के माध्यम से ऊर्जा को नियंत्रित किया जा सकता है। वहीं, धारणा में बदलाव कर इस ऊर्जा को शरीर में एकत्रित करने का बल मिलता है। ऐसे में जब अष्टांग योग के ये दोनों अंग एक व्यक्ति साध लेता है, तो ध्यान की स्थिति स्वयं ही आ जाती है। जिस प्रकार नींद आती है, लाई नहीं जा सकती। ठीक वैसे ही प्रत्याहार और धारणा को साधने के बाद ध्यान स्वयं ही लग जाता है। फलस्वरूप, मन, मस्तिष्क और व्यक्तित्व के सारे विकार दूर हो जाते हैं, कुछ भी बाकी नहीं रह जाता।
8. समाधि :
अंत में है समाधि यानी शून्य। जब एक साधक ध्यान को साध लेता है, तो फिर कुछ भी बाकी नहीं रह जाता है। बस एक ही भाव मन में रहता है कि सभी मनुष्य उस एक ईश्वर की संतान हैं, जिसे लोग भगवान, अल्लाह व गॉड आदि कहकर पुकारते हैं।
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चलिए, लेख के अगले भाग में हम अष्टांग योग से जुड़ी सावधानियों के बारे में जानकारी हासिल करेंगे।
अष्टांग योग के लिए कुछ सावधानियां – Precautions for Ashtanga Yoga In Hindi
जैसा कि हम लेख में पहले ही बता चुके हैं कि अष्टांग योग कोई योगासन नहीं, बल्कि योग का एक आधार है, जिसमें कर्म योग के माध्यम से ज्ञान योग जागृत होता है। फलस्वरूप, अंत में समाधि की प्राप्ति होती है, इसलिए अष्टांग योग साधना एक दिन का कार्य नहीं है। इसके सभी चरणों को साधने में कई महीने या वर्ष लग सकते हैं। इसलिए, अष्टांग योग करने से पूर्व इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- अष्टांग योग के प्रत्येक चरण को पार करने के लिए सावधानी और लगन से प्रयास करें।
- चरणबद्ध तरीके से ही आगे बढ़ें। एक चरण सिद्ध होने से पूर्व अगले चरण पर जाने का प्रयास न करें।
- मन को सहज रखें और खुद पर विश्वास करें कि अष्टांग योग के सभी अंगों को साधा जा सकता है।
- इसमें शामिल आसनों को सुबह खाली पेट ही करें।
दोस्तों, योग कई प्रकार के होते हैं, जिसके माध्यम से न सिर्फ स्वस्थ रहा जा सकता है, बल्कि इससे असीम शांति की प्राप्ति भी की जा सकती है। ऐसे में लेख को अच्छे से पढ़ने के बाद यह तो समझ ही गए होंगे कि अष्टांग योग कोई योगासन नहीं, बल्कि एक योग सूत्र है। इस सूत्र में शामिल आठ अंगों का चरणबद्ध तरीके से पालन करना ही इसे करने की प्रक्रिया है। हालांकि, अन्य योगासनों की तरह अष्टांग योग को साधना आसान नहीं। फिर भी अगर दृढ़ निश्चय कर लिया जाए, तो कोई भी व्यक्ति अष्टांग योग को साध सकता है। इससे अष्टांग योग के लाभ तो हासिल होंगे ही, साथ ही व्यक्तित्व भी निखरेगा।
अब हम अष्टांग योग से जुड़े कुछ सवालों के जवाब देने जा रहे हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल :
अष्टांग योग किसके लिए अच्छा है?
मानसिक और शारीरिक समस्या (मधुमेह, हृदय रोग या श्वसन संबधी समस्या) से जूझ रहे व्यक्ति के लिए अष्टांग योग अच्छा हो सकता है (1)। वहीं, गंभीर शारीरिक समस्या से जूझ रहे लोग डॉक्टरी परामर्श और योग गुरु के देखरेख में ही इसे करें।
मुझे अष्टांग योग कब करना चाहिए?
योग गुरु की देखरेख में रोजाना सुबह अष्टांग योग का अभ्यास किया जा सकता है।
क्या अष्टांग योग खतरनाक है?
जी नहीं, इसे सावधानी के साथ किया जाए, तो इससे कोई खतरा नहीं होता है। फिर भी सावधानी के लिए किसी योग गुरु की देखरेख में ही इसे करें। वहीं, अगर आप किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं, तो इसे करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
क्या अष्टांग सबसे कठिन योग है?
जी हां, अष्टांग योग एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें धैर्य और विश्वास की जरूरत होती है। हड़बड़ी में इस योग के लाभ नहीं उठाए जा सकते हैं।
References
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- Exploring the therapeutic effects of yoga and its ability to increase quality of life
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3193654/ - Ashtanga Yoga for Psychological Well-being: Initial Effectiveness Study
https://www.researchgate.net/publication/316553546_Ashtanga_Yoga_for_Psychological_Well-being_Initial_Effectiveness_Study - Yoga for Adults with Type 2 Diabetes: A Systematic Review of Controlled Trials
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4691612/
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