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स्वस्थ शरीर के लिए पौष्टिक और संतुलित आहार जरूरी है। ये आहार शरीर में जरूरी पोषक तत्वों की पूर्ति करते हैं और बीमारियों के जोखिम से बचाते हैं। ऐसे में जब बात बच्चों की हो, तो खानपान से जुड़ी बातों का ध्यान रखना और जरूरी हो जाता है। साथ ही इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक है कि बच्चों को दिए जाने वाले खाद्य पदार्थ से हासिल होने वाले पोषक तत्व संतुलित मात्रा में हों, क्योंकि पोषक तत्वों की कमी या अधिकता बच्चों के संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है, जिससे कुपोषण की समस्या पैदा हो सकती है। वहीं, बच्चों में बढ़ते वजन या मोटापा कुपोषण का जोखिम कारक भी बन सकता है, जिस पर वक्त रहते ध्यान देना जरूरी। यही वजह है कि मॉमजंक्शन के इस लेख में हम बच्चों में कुपोषण, कुपोषित बच्चे के लक्षण और कुपोषण की रोकथाम के उपाय बता रहे हैं, ताकि बच्चों में कुपोषण के प्रति लोगों को जागरूक कर इसे समय रहते बढ़ने से रोका जा सके।
तो आइए, सबसे पहले हम बच्चों में कुपोषण क्या है, इस सवाल का जवाब हासिल कर लेते हैं।
बच्चों में कुपोषण किसे कहते हैं? | Child Malnutrition Meaning In Hindi
बच्चों के बेहतर विकास और पोषण के लिए कुछ जरूरी पोषक तत्व जैसे:- कैल्शियम, पोटेशियम, फाइबर, लिनोलेइक एसिड के साथ प्रोटीन और विटामिन की जरूरत होती है (1)। वहीं, जब इन पोषक तत्वों की जरूरत से अधिक कमी या अधिकता हो जाती हैं, तो बच्चों के विकास की प्रक्रिया प्रभावित होती है। ऐसे में पोषक तत्वों की कमी बच्चों की लंबाई और वजन के विकास को बाधित कर सकती है। वहीं, इन पोषक तत्वों की अधिकता बच्चों के असंतुलित विकास (जैसे :- अधिक वजन या मोटापा) को बढ़ावा दे सकती है (2)। यह दोनों ही स्थितियां बच्चों में कुपोषण की श्रेणी में गिनी जाती हैं।
लेख के अगले भाग में अब हम आपको बच्चों में कुपोषण के प्रकार के बारे में बताएंगे।
बच्चों में कुपोषण के कितने प्रकार हैं?
बच्चों में कुपोषण के मुख्य पांच प्रकार हैं, जिनके बारे में हम यहां विस्तृत जानकारी देने जा रहे हैं (3)।
- स्टनिंग : स्टनिंग एक ऐसी समस्या है, जिसमें बच्चे में सामान्य रूप से जो शारीरिक वजन और लंबाई में विकास होना चाहिए, वह नहीं हो पाता है। इस समस्या के परिणाम अचानक से सामने नहीं आते बल्कि बच्चे में यह धीरे-धीरे अपने प्रभाव को दर्शाती है। बताया जाता है कि गर्भधारण के बाद से जो माताएं अपने खान-पान पर विशेष ध्यान नहीं देती हैं, तो यह प्रक्रिया भ्रूण विकास के दौरान ही होने वाले बच्चे को प्रभावित करने लगती है। वहीं, यह बच्चे के दो साल तक होते-होते अपने प्रभाव को पूरी तरह से प्रदर्शित करती है (4)। यही वजह है कि इसे बच्चे में लम्बे समय से चली आ रही जरूरी पोषक तत्वों की कमी के रूप में देखा जाता है (5)।
- वास्टिंग : यह एक ऐसी समस्या है, जो खासकर किसी इन्फेक्शन या बीमारी (जैसे :- मलेरिया और डायरिया) होने की स्थिति में होती है। ऐसे में बच्चे में अचानक से जरूरी पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है। इस कारण उनका सामान्य विकास (जैसे वजन) बाधित हो जाता है (3)। यह समस्या बच्चे में अचानक से होने वाली पोषक तत्वों की कमी के कारण पैदा होती है (5)।
- क्वाशिओरकोर : यह एक ऐसी गंभीर समस्या है, जो प्रोटीन और ऊर्जा की अत्यधिक कमी के कारण पैदा होती है। इसमें इंसान की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है और शारीरिक विकास ठीक तरह से नहीं हो पाता है। इसके अलावा, शरीर में सूजन की समस्या भी हो सकती है।आहार में हाई कार्बोहाइड्रेट और कम प्रोटीन युक्त खाद्य को शामिल करने के कारण यह स्थिति पैदा हो सकती है (6)।
- मरास्मस : क्वाशिओरकोर की ही तरह मरास्मस भी प्रोटीन और ऊर्जा की अत्यधिक कमी के कारण पैदा होती है। यह समस्या तब पैदा होती है, जब आवश्यक कैलोरी की पूर्ती न होने के कारण टिशू और मांसपेशियां ठीक प्रकार से विकसित नहीं हो पाती हैं (6)।
- माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी : विटामिन ए, मल्टीविटामिन, फोलिक एसिड, जिंक, कॉपर और आयरन जैसे कई जरूरी पोषक तत्वों की कमी के कारण भी बच्चों में कुपोषण की समस्या देखी जाती है। इस पोषक तत्वों से युक्त खाद्य या सप्लीमेंट की सहायता से इस समस्या को ठीक करने में मदद मिल सकती है (7)।
लेख के अगले भाग में अब हम भारत में कुपोषण से पीड़ित बच्चों के आंकड़ों के बारे में बात करेंगे।
भारत में कितने बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं?
साल 2015-16 में किए गए एक सर्वे के आधार पर भारत में जिलेवार करीब 7 से लेकर 65 प्रतिशत तक बच्चे कुपोषण का शिकार पाए गए हैं (8)।
आइए, अब हम बच्चों में कुपोषण के दिखने वाले लक्षणों के बारे में भी जानकारी हासिल कर लेते हैं।
बच्चों में कुपोषण के लक्षण | कुपोषित बच्चे के लक्षण
वैसे तो सामान्य रूप से कुपोषण के कोई भी लक्षण नजर नहीं आते, लेकिन स्थिति गंभीर होने पर मुख्य लक्षण के तौर पर थकान, चक्कर आना और वजन कम होना जैसी स्थिति दिखाई दे सकती हैं (9)। इसके अलावा, कुपोषण के अन्य लक्षण हैं, जो कुछ इस प्रकार हो सकते हैं (3):
- त्वचा पर खुजली और जलन की समस्या।
- हृदय का ठीक से काम न करना।
- लटकी और बेजान त्वचा।
- पेट से संबंधित संक्रमण।
- सूजन की समस्या।
- श्वसन तंत्र से संबंधित संक्रमण।
- कमजोर प्रतिरोधक क्षमता।
- चिड़चिड़ापन।
लेख के अगले भाग में अब हम कुपोषण के कुछ आम कारण और उनके समाधान के बारे में जानकारी हासिल करेंगे।
भारत में कुपोषण की समस्या के कारण व समाधान
लेख के इस भाग में हम भारत में कुपोषण के कुछ सामान्य कारण और जिनके समाधान संभव हैं, उन्हें जानने का प्रयास करेंगे।
1. गरीबी:
भारत में गरीबी को कुपोषण का एक मुख्य कारण माना गया है। एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) पर प्रकाशित एक शोध में इस बात का साफ जिक्र मिलता है कि गरीबी के कारण लोग न तो अपने खान-पान का खास ख्याल रख पाते हैं और न ही स्वछता का। इस कारण उनमें पोषक तत्वों की कमी के साथ ही कई तरह के संक्रमण होने का जोखिम भी अधिक रहता है। इस कारण उनमें कुपोषण होने की आशंका प्रबल रहती है (3)।
2. लड़का और लड़की के बीच भेदभाव:
भारत में आज भी कई जगहों पर लड़का और लड़की के बीच भेदभाव किया जाता है। यही वजह है कि माता-पिता लड़कियों के खान-पान और पोषण पर विशेष ध्यान नहीं देते। ऐसे में वह लड़कियां धीरे-धीरे कुपोषण का शिकार हो जाती हैं। वहीं, भविष्य में जब यह लड़कियों युवा होकर गर्भधारण करती हैं, तो होने वाली संतान में भी कुपोषण की आशंकाएं प्रबल होती हैं (3)। ऐसे में इस भेदभाव को मिटाकर इस कारण को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
3. कम उम्र में मां बनना:
कम उम्र में मां बनना भी कुपोषण का एक अहम कारण साबित हो सकता है (3)। दरअसल कम उम्र के कारण लड़कियों का शारीरिक विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता। इस स्थिति में उन्हें खुद के विकास के लिए अधिक से अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। ऐसे में गर्भधारण करना और उसके लिए जरूरी उचित आहार शैली का पालन करने में वे असमर्थ रहती हैं। वजह यह भी है कि उन्हें सबसे पहले अपने बुजुर्गों का साथ नहीं मिलता। वहीं, दूसरी ओर उन्हें पोषण और गर्भावस्था के लिए जरूरी संतुलित आहार और स्वच्छता के प्रति सही जानकारी भी नहीं होती है। ऐसे में जरूरी है कि कुपोषण के भारत में व्याप्त इस अहम कारण को दूर करने के लिए लड़कियों की शादी पूर्ण व्यस्क (21 साल की उम्र) होने के बाद ही कराई जाए। वहीं दो गर्भधारण के बीच अगर ज्यादा वक्त का अंतर न हो तब भी कुपोषण की समस्या हो सकती है।
4. स्तनपान का अभाव:
स्तनपान के अभाव की स्थिति में भी बच्चों में कुपोषण की स्थिति पैदा हो सकती है। कई महिलाएं ऐसी होती हैं, जिनमें पोषक तत्वों की कमी के कारण दुग्ध का उत्पादन उचित मात्रा में नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में वह अपने बच्चों को ठीक से स्तनपान नहीं करा पाती हैं। वहीं, बहुत सी महिलाएं ज्ञान की कमी के कारण जानबूझ कर बच्चों को अन्य खाद्य पदार्थों की आदत लगाने के लिए स्तनपान नहीं करा पाती या दूध के अन्य विकल्प तलाशती हैं (3)। चूंकि जन्म के बाद छह माह तक बच्चे को सभी जरूरी पोषक तत्व माता के दूध से ही हासिल होते हैं, इसलिए भारत में कुपोषण के अहम कारणों में यह वजह भी शामिल है। जन्म के बाद करीब छह माह तक नियमित रूप से बच्चे को केवल स्तनपान कराकर कुपोषण की इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
5. ज्ञान की कमी:
कई बार ज्ञान की कमी भी बच्चों में कुपोषण का मुख्य कारण बन जाती है (3)। दरअसल, छह माह तक बच्चे को दूध पिलाना और मां का पहला गाढ़ा पीला दूध पिलाना बच्चे के स्वास्थ्य और पोषण के लिए अहम माना जाता है। वहीं, देखा जाता है कि ज्ञान के अभाव में कई महिलाएं पहले गाढ़े दूध को गंदा या बेकार समझ कर निकाल कर फेंक देती हैं। वहीं, छह माह का हो जाने के बाद बच्चे को दूध के अलावा अन्य ठोस आहार से अवगत कराने के मामले में भी ज्ञान की कमी के कारण कई महिलाएं बच्चों को कम पोषक खाद्य खिलाना शुरू कर देते हैं। इस कारण धीरे-धीरे बच्चे में पोषक तत्वों की कमी होने लगती हैं और बच्चे के कुपोषण का शिकार होने का जोखिम बढ़ जाता है। ऐसे में प्रसव के बाद बच्चे के पोषण और खान-पान से जुड़ी डॉक्टरी सलाह लेकर इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
6. पोषक आहार की कमी:
पोषक आहार की कमी भी कुपोषण का एक मुख्य कारण है, जिसकी मुख्य वजह गरीबी को माना जाता है। इसके बारे में आपको लेख में आपको पहले ही बताया जा चुका है। यहां हम जरूरी और पौष्टिक भोजन की बात कर रहे हैं, जो बच्चे अक्सर स्वाद रहित होने के कारण नहीं खाते और ज्ञान की कमी के कारण उनके माता-पिता बच्चों को इन्हें बच्चों को देने पर जोर नहीं दे पाते (3)। वहीं, जंक फूड के कारण न सिर्फ मोटापे का जोखिम बढ़ता है, बल्कि इनमें सही पोषक तत्व (माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी) न होने के कारण कुपोषण का जोखिम भी पैदा हो जाता है। ऐसे में जरूरी है कि बच्चों को जंक फूड और फास्ट फूड से दूर रखने और उन्हें पोषक आहार को स्वादिष्ट बनाकर परोसने का प्रयास करें ताकि कम आहार लेने के बावजूद बच्चों को उचित पोषक तत्व हासिल हो सकें।
7. खराब स्वच्छता के कारण कुपोषण:
खराब स्वच्छता भी कुपोषण का एक अहम कारण मानी जाती है। विशेषज्ञों के मुताबिक स्वच्छता का ध्यान न रखने की स्थिति में कई तरह की घातक और संक्रामक बीमारियां बच्चों को आसानी से शिकार बना लेती हैं। इन बीमारियों के चलते बच्चों में कुपोषण की शिकायत हो जाती है (3)। बता दें शौच के बाद ठीक से हाथों की साफ-सफाई न करना, खुले में शौच और गंदा पानी पीने जैसी कुछ स्थितियां अस्वच्छता को बढ़ावा देती हैं। इन आदतों में सुधार कर कुपोषण के इस कारण को कम करने में मदद मिल सकती है।
8. गंदा पर्यावरण:
गंदा पर्यावरण भी कुपोषण का एक अहम कारण माना जाता है (3)। भारत में नालों के किनारे झुग्गियों में बसर करने वालों की कमी नहीं है। वहीं, कई गरीब बच्चे आजीविका कमाने के लिए कांच या चमड़ा के कारखानों में काम करते हैं। इन कारखानों या नालों से निकलने वाले जहरीले रसायन बच्चों को बीमार बनाने के लिए काफी हैं। ऐसे में इन बच्चों में कुपोषण का जोखिम सामान्य के मुकाबले काफी अधिक बढ़ जाता है।
9. धर्म से संबंधित भी है कुपोषण:
कुपोषण का एक अहम कारण धर्म से संबंधित भी है। इंडियन जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन के एक अध्ययन में इस बात का स्पष्ट जिक्र मिलता है। अध्ययन में माना गया है कि अलग-अलग धर्मों में गर्म और ठंडी तासीर का हवाला देकर सर्दी, जुकाम, बुखार की स्थिति में कुछ जरूरी और आवश्यक खाद्य के सेवन पर रोक लगा दी जाती है। इस कारण बच्चों को पूर्ण पोषण नहीं मिल पाता और उनमें कुपोषण की समस्या का जोखिम बढ़ जाता है (10)। इसके अलावा, अन्य मत यह भी है कि नॉन वेजिटेरियन या वीगन डाइट का पालन करने वाले परिवार मांस, मछली, अंडा और दुग्ध उत्पादों का सेवन नहीं करते। ऐसे में प्रोटीन के साथ कई अन्य जरूरी तत्वों का अहम स्रोत होने के कारण उनमें इन तत्वों की कमी पाई जाती है। चूंकि अनाज से उन्हें उतनी अधिक मात्रा में यह तत्व हासिल नहीं हो पाते। ऐसे में यह धर्म आधारित कुपोषण का एक बड़ा कारण माना जा सकता है।
लेख के अगले भाग में अब हम कुछ अन्य कारण बताएंगे, जो विकसित देशों में भी कुपोषण का कारण हो सकते हैं।
कुछ अन्य कारण जो विकसित देशों में भी है कुपोषण की वजह
1. मानसिक स्वास्थ्य ले जाता है कुपोषण की ओर:
विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसे बच्चे जिनके साथ दुराचार या अशिष्ट व्यवहार होता है, उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। ऐसी स्थिति में वे ठीक से खाना-पीना नहीं खा पाते है। नतीजतन ऐसे बच्चे में भविष्य में कुपोषण होने की आशंका अधिक हो जाती है (11)। कुपोषण के इस जोखिम को दूर करने के लिए जरूरी है कि बच्चों से प्यार से ही बातचीत की जाएं और उन्हें समझाने का प्रयास किया जाए। साथ ही प्रत्येक माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों पर छोटी-छोटी बात पर हाथ उठाने की अपनी आदत को नियंत्रण में रखें।
2. पाचन विकार भी है कुपोषण का कारण:
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इन्फेक्शन (जैसे :- डायरिया की समस्या) की स्थिति बच्चों में होना आम है। इस समस्या पर ध्यान न देने की स्थिति में बच्चों में कुपोषण की समस्या का जोखिम बढ़ सकता है (12)। चूंकि इस समस्या में बच्चों की पाचन क्रिया प्रभावित होती है और लिए जाने वाले खाद्य से पोषक तत्वों का अवशोषण नहीं हो पाता है। ऐसे में पाचन संबंधित इस विकार को भी कुपोषण का एक अहम कारण माना गया है। इसलिए, ऐसी स्थिति पैदा होने पर बिना देर किए डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए।
3. शराब के कारण पोषण की कमी:
शराब के अधिक सेवन से लिवर कमजोर होता है और लिवर के कमजोर होने के कारण पाचन क्रिया प्रभावित होती है। इस कारण व्यक्ति धीरे-धीरे कुपोषण का शिकार हो जाता है (13)। यही वजह है कि गर्भावस्था में शराब का सेवन करने वाली महिलाओं के भ्रूण का विकास भी प्रभावित होता है। साथ ही उसमें जरूरी पोषक तत्वों की आपूर्ति नहीं हो पाती है (14)। इस कारण ऐसी माताओं के बच्चों में भविष्य में कुपोषण होने की आशंका प्रबल रहती है। वहीं एनसीबीआई के एक शोध में माना गया है कि ऐसे माता- पिता, जो बचपन में अपने बच्चों को थोड़ी-थोड़ी शराब सिप करा देते हैं, उनके बच्चे कम उम्र में ही शराब पीने लगते हैं (15)। इस कारण भी बच्चों में कुपोषण का जोखिम बढ़ जाता है।
4. जीवनशैली से जुड़ा कुपोषण:
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इनवायरमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ के एक शोध में जिक्र मिलता है कि व्यक्ति की जीवन शैली शरीर में पोषक तत्वों के अवशोषण से संबंधित है (16)। ऐसे में संतुलित आहार, समय पर भोजन, सही समय पर सोना और जागना जैसी आदतों का पालन न करने वाले बच्चों में कुपोषण की आशंका अधिक रहती है। कुपोषण के इस कारण को दूर करने के लिए जरूरी है कि प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों की नियमित दिनचर्या का विशेष ध्यान रखें।
लेख के अगले भाग में अब हम आपको बच्चों में कुपोषण के निदान के बारे में जानकारी देंगे।
बच्चों में कुपोषण की जांच कैसे की जाती है?
निम्न बिंदुओं के माध्यम से आप बच्चों में कुपोषण के निदान के बारे में अच्छे से समझ सकते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं (17) (18)
(3)।
- सबसे पहले तो डॉक्टर बच्चे की भौतिक जांच (अत्यधिक वजन या अत्यधिक कम वजन) के माध्यम से बच्चे में कुपोषण का पता लगा सकता है।
- न्यूट्रिशन स्क्रीनिंग टूल की मदद से डॉक्टर बच्चों में कुपोषण के मामले में मुख्य रूप से औसत वजन और ऊंचाई के माध्यम से इसका पता लगाने का प्रयास करते हैं।
- वहीं, न्यूट्रिशन स्क्रीनिंग टूल की मदद से डॉक्टर बच्चे के हाथ के ऊपरी हिस्से की औसत मोटाई की जांच भी कर सकते हैं। इसमें छह माह से 5 साल तक के बच्चों के हाथ के ऊपरी हिस्से की मोटाई करीब 115 मिमी से कम होना गंभीर कुपोषण का इशारा देती है।
- वहीं, कुछ विशेष स्थितियों में कुपोषण के मुख्य कारण का पता लगाने के लिए डॉक्टर खून संबंधी जांच करने की भी सलाह दे सकते हैं। इसमें शरीर में मौजूद पोषक तत्वों की स्थिति का अंदाजा लगाया जाता है।
लेख के अगले भाग में अब हम बच्चे पर पड़ने वाले कुपोषण के प्रभाव के बारे में जानेंगे।
कुपोषण का बच्चों पर क्या असर होता है?
निम्न बिंदुओं के माध्यम से हम कुपोषण से बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जान सकते हैं (19)।
- बच्चों का शारीरिक विकास ठीक से नहीं हो पाता है।
- बच्चों का मानसिक विकास प्रभावित होता है, जिस कारण उनके सोचने-समझने की क्षमता कमजोर हो जाती है। साथ ही उनमें सीखने और याद रखने की क्षमता अन्य के मुकाबले कम रह जाती है।
- प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है।
- संक्रमण की चपेट में आसानी से आ सकते हैं।
- कुपोषण की गंभीर अवस्था होने पर बच्चों में परजीवी संक्रमण का जोखिम भी अधिक रहता है।
लेख के अगले भाग में अब हम बच्चों में कुपोषण के उपचार के बारे में जानकारी हासिल करेंगे।
बच्चों में कुपोषण का इलाज कैसे करें?
बच्चों में कुपोषण के उपचार को निम्न बिंदुओं के माध्यम से बेहतर तरीके से समझा जा सकता है (17)।
- जिन पोषक तत्वों की कमी है, डॉक्टर उन पोषक तत्वों से युक्त आहार या सप्लीमेंट लेने की सलाह दे सकता है।
- वहीं, आवश्यकता पड़ने पर डॉक्टर कुपोषण के लक्षणों में सुधार के लिए कुछ दवाएं या इलाज का सुझाव दे सकता है।
- वहीं, कुपोषण के कारण अगर कोई गंभीर समस्या है, तो उस समस्या विशेष का इलाज कर कुपोषण की स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है।
- वहीं, घरेलू विकल्प के तौर पर एक संतुलित आहार देकर इस समस्या को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
लेख के अगले भाग में अब हम आपको बच्चों में कुपोषण के रोकथाम के उपाय बताएंगे।
बच्चों को कुपोषण से किस प्रकार बचाया जाए? | कुपोषण की रोकथाम के उपाय
बच्चों में कुपोषण की रोकथाम के उपाय निम्न प्रकार से हैं (1):
- करीब एक साल की उम्र तक बच्चों को अधिक से अधिक स्तनपान कराएं और फलों के रस के साथ फैट, शुगर और सोडियम की अधिक मात्रा युक्त खाद्य का सेवन सीमित करें। ध्यान रहे बच्चे को छह महीने तक सिर्फ मां के दूध का ही सेवन कराना है।
- अगर किसी कारणवश मां दूध पिला पाने में असमर्थ हो रही है, तो इस स्थिति में बच्चों को फार्मूला मिल्क का सेवन कराएं। हालांकि, इस बारे में डॉक्टरी परामर्श लेना भी जरूरी है, ताकि बच्चे को सही तरीके से फार्मूला मिल्क देने के बारे में माता-पिता को पूरी जानकारी मिल सके। ।
- वहीं, अनाज का सेवन करने वाले बच्चों को सुनिश्चित करें कि लिए जाने वाले खाद्य से उन्हें उचित मात्रा में ऊर्जा, विटामिन्स और मिनरल्स हासिल हों।
- इसके साथ ही माता-पिता को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा शारीरिक रूप से सक्रिय हो।
लेख के अगले भाग में हम कुपोषण के कारण बच्चों में होने वाली कुछ जटिलताओं के बारे में बात करेंगे।
बच्चों में कुपोषण की जटिलताएं
बच्चों में कुपोषण की जटिलताओं के रूप में निम्न स्थितियां देखी जा सकती हैं (17) –
- शारीरिक या मानसिक अपंगता।
- लगातार बीमार रहना।
- अत्याधिक गंभीर अवस्था होने पर मृत्यु।
लेख के अगले भाग में अब हम बच्चों में पोषण संबंधी आवश्यकताओं के बारे में जानेंगे।
बच्चों में पोषण संबंधी जरूरतें क्या हैं? | Nutritional Requirements Of Children
बच्चों की पोषण संबंधी आवश्यकता की बात की जाए तो प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट के साथ बच्चों को विटामिन ए, सी, ई, डी की जरूरत होती है। वहीं, उनके आहार में कैल्शियम, पोटेशियम, फाइबर और लिनोलेइक और अल्फा लिनोलेइक एसिड युक्त खाद्य शामिल होने चाहिए (1)। इसके लिए डॉक्टर बच्चों को संतुलित आहार के तौर पर निम्न खाद्य लेने की सलाह देते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं (20):
- विभिन्न प्रकार के फल और सब्जियां।
- साबुत अनाज।
- फैट फ्री या कम फैट वाले डेयरी प्रोडक्ट।
- प्रोटीन युक्त खाद्य।
- ऑयल्स।
बच्चों का खाने में नखरे दिखाना उन्हें कुपोषित बना सकता है? लेख के अगले भाग में हम इस सवाल का जवाब जानेंगे।
बच्चों का ठीक से न खाना क्या उन्हें कुपोषित बना सकता है?
बच्चों का खाने में नखरे दिखाना उन्हें कुपोषित बना सकता है, यह बात केवल एक मिथक मात्र है। अधिक भोजन करना बच्चों के पोषित होने का पर्याय नहीं है। जरूरी है कि बच्चे जितना भी खाएं वह पोषक तत्वों से भरपूर हो। ऐसे में इस बात का विशेष ध्यान प्रत्येक माता-पिता को रखना चाहिए।
कुपोषण क्या है और कुपोषण क्यों होता है, इस बारे में तो अब आप अच्छे से समझ गए होंगे। ऐसे में जरूरत है, तो अपने बच्चे की सक्रियता के साथ उसके शारीरिक और मानसिक विकास पर नजर रखने की ताकि बच्चे को कुपोषण के जोखिम से दूर रखा जा सके। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि बच्चे को शुरुआत से ही संतुलित आहार दिया जाए। वहीं, जन्म के बाद पहले छह महीने सिर्फ मां के दूध का ही सेवन कराया जाए। वहीं, छह माह का पूरा हो जाने के बाद भी करीब साल भर तक ठोस आहार के साथ बच्चे को अधिक से अधिक मां के दूध का ही सेवन कराना चाहिए। इन सब चीजों का ध्यान रखकर बच्चे को कुपोषण के जोखिम से बचाया जा सकता है।
References
1. Nutritional Considerations for Infants and Children By Ncbi
2. Definition and measurement of child malnutrition By Ncbi
3. Severe childhood malnutrition By Ncbi
4. Stunting in a nutshell By Who
5. The Use of Stunting and Wasting as Indicators for Food Insecurity and Poverty By Edu
6. Marasmus By Ncbi
7. Management of Severe and Moderate Acute Malnutrition in Children By Ncbi
8. Socio-economic inequality in malnutrition among children in India: an analysis of 640 districts from National Family Health Survey (2015–16) By Ncbi
9. Malnutrition By Medlineplus
10. Beliefs Regarding Diet During Childhood Illness By Ncbi
11. Long-Term Consequences of Child Abuse and Neglect By Childwelfare
12. Malnutrition and Gastrointestinal and Respiratory Infections in Children: A Public Health Problem By Ncbi
13. Relationships Between Nutrition, Alcohol Use, and Liver Disease By Nih
14. The Effects of Alcohol and Drugs of Abuse on Maternal Nutritional Profile during Pregnancy By Ncbi
15. Children’s Introduction to Alcohol Use: Sips and Tastes By Ncbi
16. Long-Lasting Effects of Undernutrition By Ncbi
17. Malnutrition By Medlineplus
18. Nutritional Screening Tools among Hospitalized Children: from Past and to Present By Ncbi
19. Malnutrition and Psychological Development. By Eric
20. Childhood Nutrition Facts By Cdc
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