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शिशु के जन्म के बाद से ही माता-पिता की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। इस दौरान शिशु के स्वास्थ्य और टीकाकरण के साथ ही उसकी पर्याप्त नींद का भी ख्याल रखना होता है। इन सबमें रात को रोते हुए शिशु को शांत कराने की जिम्मेदारी चुनौतीपूर्ण होती है। यूं तो शिशुओं का रोना काफी आम है (1)। लेकिन, रात में बच्चों का रोना माता-पिता को चिंता में डाल देता है। ऐसे में शिशु रात में क्यों रोते हैं, जानने के लिए मॉमजंक्शन के इस आर्टिकल को पढ़ें। यहां बच्चों के रात में रोने से जुड़ी पूरी जानकारी दी गई है।

लेख के पहले भाग में पढ़िए कि बच्चे रात में आखिर क्यों रोते हैं।

रात में बच्चे क्यों रोते हैं ? | Why Baby Cry At Night In Hindi

शिशु के रात में रोने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं (2) :

  • दिन में सोना – शिशु जब दिन के समय ज्यादा देर तक सोता है, तो उसकी नींद रात में खुल सकती है। बीच रात में नींद खुलने के बाद दोबारा नींद न आना रोने का एक कारण हो सकता है।
  • भूख लगना – शिशु के रात में रोने का एक कारण भूख लगना भी हो सकता है। दरअसल, शिशु को शुरुआती कुछ महीने में बार-बार दूध पिलाने पड़ता है, क्योंकि उनका पेट छोटा होता है। ऐसे में वो रात के समय भूख लगने के कारण रोना शुरू कर सकते हैं (3)
  • दर्द या असुविधा महसूस होना – कई बार शिशु को पेट में दर्द या असुविधा महसूस होती है, जिस वजह से वो रात में रो सकता है। ऐसा अधिकतर बच्चों के पेट में गैस बनाने की वजह से होता है। इस स्थिति में शिशुओं को डकार करवाने की जरूरत होती है। इससे उन्हें राहत मिल सकती है और उनका रोना शांत हो सकता है।
  • डायपर के गीला होने पर – अगर शिशु डायपर गीला कर देता है, तो भी वो रात के समय गीलेपन के कारण रोना शुरू कर सकता है। ऐसे में शिशु को नया डायपर पहनाएं, जिससे कि उसे आरामदायक नींद मिल सके।
  • डर – रात के अंधेरे में शिशुओं को पालने में अकेले सुलाने से उन्हें डर और अंधेरे से खतरा महसूस हो सकता है। इस दौरान नींद खुलने पर मां को पास न पाकर भी बच्चे रो सकते हैं (4)
  • ठंड या गर्मी महसूस होने पर – कई बार शिशु के रोने का कारण कमरे के तापमान में परिवर्तन होना भी होता है। शिशु के कमरे का तापमान सामान्य होना चाहिए। अधिक ठंड या गर्म होने पर शिशु को असुविधा महसूस होती है, जिससे वो रात में रो सकते हैं।
  • दांत आने पर – शिशु के दांत निकलने यानी टीथिंग के समय मसूड़ों में दर्द और सूजन होने के कारण भी वो रात को सोते समय रो सकता है (5)
  • कॉलिक के कारण – अगर किसी शिशु को कॉलिक की समस्या है, तो भी वो रात के समय रोना शुरू कर सकता है। इस समय शिशु सामान्य से ज्यादा रोता है (6)

आइए, जानते हैं कि बच्चों का कितने समय तक रोना सामान्य है।

बच्चों का कितनी देर तक रोना ठीक है?

बताया जाता है कि बच्चों का दिन में 1 से 3 घंटे तक रोना सामान्य है (2)। हां, अगर शिशु को किसी तरह की शारीरिक समस्या है, तो वो इससे भी ज्यादा समय तक रो सकता है। ऐसी स्थिति में शिशु को डॉक्टर को दिखाना बेहतर होगा।

आगे जानिए कि बच्चे पूरी रात सोने में कब सक्षम होते हैं।

आपका बच्चा पूरी रात सोने में कब सक्षम होगा?

शिशु के जन्म के बाद शुरुआती दो महीने तक उन्हें रात में ज्यादा भूख लगती है, जिसके कारण वो रात में उठ जाते हैं। इस समय उन्हें रात में भी हर तीन घंटे में दूध पिलाना पड़ सकता है। जब शिशु चार महीने का हो जाता है, तो रात में एक बार दूध पिलाने की जरूरत पड़ती है (3)। होते-होते जब शिशु पांच महीने से ऊपर का होता है, तो वो सोने से पहले दूध पीने के बाद पूरी रात उसे भूख नहीं लगती। ऐसे में कहा जा सकता है कि शिशु छह महीने के होने पर पूरी तरह सोने में सक्षम हो जाते हैं (7)

आंकड़ों पर गौर करें, तो 90 प्रतिशत शिशु में छह महीने की उम्र के बाद रात में नींद टूटने की समस्या कम होती और नींद की गुणवत्ता बढ़ती जाती है। साथ ही शिशुओं की नींद से जुड़े अध्ययन से पता चलता है कि 20 से 30 प्रतिशत तक शिशु अपने जीवन के पहले 2 वर्षों में रात में जागने व नींद टूटने का अनुभव करते हैं (8)

चलिए, अब जान लेते हैं कि बच्चों के रात में रोने पर उन्हें किस तरह शांत कराना चाहिए।

बच्चा रात को रोता है तो उसे कैसे शांत करें?

अगर बच्चे रात में रोते हैं, तो उसे शांत करने के लिए कुछ तरीके अपना सकते हैं। इन तरीकों में ये शामिल हैं।

  • शिशु के रात में रोने पर उसे शांत करने के लिए अच्छी सी लोरी गा सकते हैं।
  • अगर कमरे में अंधेरा है, तो लाइट जलाने के बाद शिशु को गोद में उठाकर सहलाते हुए सुलाने की कोशिश कर सकती हैं।
  • बच्चे के रात में रोने का कारण जानकर उसे ठीक करने का उपाय ढूंढे। जैसे – उसे गर्मी लग रही है, तो हल्का पंखा चला दें।
  • शिशु का रोना शांत करने के लिए उन्हें स्तनपान करा सकते हैं। दरअसल, उनके रोने की एक वजह भूख भी हो सकती है।
  • शिशु को चुप करने के लिए कमरे से बहार ले जाएं और थोड़ी देर बच्चे को खुले में टहला लें। इससे शिशु शांत हो सकता है।
  • शिशु को शांत करने के लिए थपकी दे सकते हैं। इससे शिशु को नींद जल्दी आ सकती है।

अब हम बच्चों को रोता हुआ छोड़ने पर क्या हो सकता है, इसकी जानकारी देंगे।

बच्चों को रोता हुआ छोड़ने पर क्या होगा?

अगर बच्चा रोता है, तो उसे अकेला न छोड़ें। दरअसल, इस दौरान अगर शिशु जरूरत से ज्यादा रोता है, तो उसके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है। साथ ही वो खुद को अकेला महसूस कर सकता है। इससे शिशु में बिहेवियरल यानी बर्ताव संबंधी और भावनात्मक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं (9)

इस लेख के अगले हिस्से में हम शिशु की बेहतर नींद के लिए कुछ ट्रेनिंग के बारे में बता रहे हैं।

शिशु के लिए नींद का प्रशिक्षण

नींद का प्रशिक्षण यानी ट्रेनिंग ऐसी विधि है, जिससे शिशु को खुद से सोना में मदद मिलती है। जब यह प्रशिक्षण पूरा हो जाता है, तो शिशु पूरी रात सो सकता है। ज्यादातर शिशु इस नींद की कला को आसानी से सीख जाते हैं, लेकिन कुछ बच्चों को इसे सीखने में समय लग सकता है।

इस नींद के प्रशिक्षण को दो प्रकार में विभाजित किया गया है, जिसमें पहला नियंत्रित रुदन पद्धति व दूसरा आंसू रहित प्रशिक्षण है। इनके लाभ और हानि के बारे में जानने के बाद ही माता-पिता को सही पद्धति का चयन करना चाहिए। यह चयन शिशु की उम्र पर भी निर्भर करता है। साथ ही इन ट्रेनिंग का कोई सटीक फॉर्मूला भी नहीं होता है। हर बच्चे के अनुसार इनमें कुछ बदलाव करके यह ट्रेनिंग बच्चों को दी जा सकती है। इसके लिए शिशु विशेषज्ञ से संपर्क करना जरूरी है (10)

आगे बढ़ते हुए जानते हैं कि फरबर पद्धति क्या होता है।

जोर से रोना/ रोना बंद करना / फरबर पद्धति क्या है?

डॉ. रिचर्ड फरबर नामक चिकित्सक द्वारा उल्लेखित इस पद्धति के अनुसार शिशु को शुरुआत में थोड़ी देर रोने देना और फिर बाद में शांत करने के बारे में बताया गया है। यह पद्धति छह माह या उससे अधिक उम्र के बच्चों के लिए अपनाई जा सकती है (11)। शिशु को सुलाने की फरबर पद्धति कुछ इस प्रकार है (4)

  • शिशु को सबसे पहले पालने में सुलाए।
  • ध्यान दें कि शिशु को जिस कमरे में सुलाया है वहां किसी तरह का शोर न हो।
  • उसके सोने के कुछ देर बाद कमरे से चले जाएं या अपना काम करने लगें।
  • यदि शिशु गोद में सोया है, तो उसके सोने के बाद 5 मिनट तक इंतजार करें। फिर उसे बिस्तर पर लिटाएं।
  • अगर लगता है कि बच्चा ठीक से नहीं सोया है, तो उसे धीमी आवाज में लोरी सुना सकते हैं। जैसे ही वो सो जाए, कमरे की रोशनी कम कर दें।
  • थोड़ी-थोड़ी देर में शिशु के कमरे में हल्के पाव से जाकर देखें कि कहीं वो जाग तो नहीं गया है।
  • अगर बच्चा जागकर रोने लगता है, तो तुरंत उसके पास न जाएं।
  • कुछ मिनट इंतजार करके उसे दूर से ही देखें।
  • फिर उसके थोड़ा पास जाएं, लेकिन उसे गोद में न उठाएं।
  • दूर से ही उससे बातें कर सकते हैं या फिर उसे सहला सकते हैं।
  • ऐसा होते-होते कुछ हफ्तों में बच्चे में रात में जगने के बाद खुद सोने की आदत पड़ सकती है।

आगे पढ़ते है कि रोते हुए बच्चों से दूरी बढ़ाने की तकनीक क्या है।

रोते हुए बच्चे से क्रमवार दूरी बढ़ाने की तकनीक

रात में रोते हुए बच्चे को शांत कराने की एक तकनीक क्रमवार तरीके से दूरी बढ़ाना भी हो सकती है। यह प्रक्रिया शिशु को फिर से सुलाने में प्रभावी साबित हो सकती है। इस प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से करने ही बेहतर माना जाता है, जो कुछ इस प्रकार है।

  • शुरुआत में शिशु जब तक सो नहीं आता है, तब तक उनके साथ कमरे में रहें।
  • जब शिशु गहरी नींद में सो जाए, तब धीरे-धीरे कमरे से बाहर चले जाएं।
  • अगर शिशु आपको बाहर जाते देख लेता है, तो उसके पास वापस जाएं और उसके पास बैठ जाए या गोद में उठा लें। ऐसा शुरुआत के कुछ दिनों तक करना पड़ सकता है।
  • फिर उसे पालना में झूलाते हुए सुलाए और जब वो सो जाए, तो कमरे से निकलकर अपना काम कर सकते हैं।
  • यदि शिशु रात में उठ जाता है, तो उसके पालने को झुला दें। इससे उसे फिर से नींद आ जाएगी।
  • रोजाना इस प्रक्रिया को करते हुए बच्चे के पालने से दूरी बढ़ाते रहें। जैसे – पहले दिन पालने के करीब रहें, दूसरे दिन आधे हाथ की दूसरी पर, तीसरे दिन एक हाथ की दूरी पर।
  • यह दूरी धीरे-धीरे कमरे के दरवाजे तक पहुंचनी चाहिए। दूरी बनाए रखते हुए पालने को झुलाने के लिए किसी रस्सी का इस्तेमाल कर सकती हैं, जिसे खींचकर पालना हिला सकते हैं।
  • बस ध्यान रखें कि आप कमरे से ज्यादा दूर न जाएं। इससे शिशु के उठते ही उसके रोने की आवाज आप तक पहुंच जाएगी।
  • इस तकनीक को पांच से छह महीने की उम्र से नीचे के शिशु पर न आजमाएं।
  • अगर लगे कि इससे फायदा नहीं हो रहा है, तो इसे बंद कर दें।

अब हम बताने जा रहे हैं कि बच्चे रात में बुरे सपने के कारण रोते हैं या नहीं।

क्या बच्चों का रात में रोना बुरे सपने के कारण होता है?

जी हां, शिशुओं के रात में रोने का एक कारण बुरा सपना भी हो सकता है। सिर्फ बच्चा रोता नहीं, बल्कि चिल्लाना, सपने में बड़बड़ाना और हाथ-पैर मारने जैसी चीजें भी कर सकता है (12) (13)। अगर कभी भी लगे कि बच्चा रात में बुरे सपने देखने के कारण रो रहा है, तो इस बारे में शिशु विशेषज्ञ से एक बार बात जरूर करें।

इस आर्टिकल के अंतिम भाग में हम बच्चों के रोने के लिए डॉक्टर से कब सलाह लेनी चाहिए, इसकी जानकारी दे रहे हैं।

डॉक्टर से कब परामर्श करें

बच्चों के सामान्य रूप से रोने पर डॉक्टर को दिखाने की आवश्यकता नहीं होती है। हां, अगर बच्चे में रोने से जुड़ी नीचे बताई जा रही बातें नजर आती हैं, तो डॉक्टर को सम्पर्क करें।

  • शिशु का लगातार घंटों तक रोना और उसके कारण का पता नहीं चल पाने पर डॉक्टर से सहायता लें (2)
  • शिशु के अधिक रोने के साथ ही उसे बुखार हो, तो विशेषज्ञ की मदद लें (2)
  • अगर शिशु रोने के साथ ही उल्टी भी करता है, तो चाइल्ड एक्सपर्ट को दिखाएं।

कोई भी माता पिता अपने बच्चे को अधिक समय तक रोते हुए नहीं देख सकते हैं। ऐसे में रात में घंटों तक बच्चों का रोना उन्हें डॉक्टर के पास ले जाता है। ऐसे में अगर शिशु आधी रात को रोता है, तो ऊपर बताए गए तरीके को अपनाकर शांत करा सकते हैं। अगर शिशु घंटे भर बीतने के बाद भी शांत नहीं होता है, तो तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क करें।

References

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