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हाई ब्लड प्रेशर एक गंभीर समस्या है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। खासकर बच्चों के मामले में, क्योंकि अक्सर बच्चों में इसके लक्षण जल्दी सामने नहीं आते हैं। इसलिए इसे लेकर सचेत रहने की अधिक आवश्यकता है। यही कारण है कि मॉमजंक्शन के इस लेख में हम बच्चों में उच्च रक्तचाप की समस्या के बारे में चर्चा करने वाले हैं। साथ ही यहां हम बच्चों में ब्लड प्रेशर को मापने का तरीका और उससे बचाव के बारे में भी जानकारी देंगे। तो बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर से जुड़ी ज्यादा से ज्यादा जानकारी के लिए लेख को अंत तक पढ़ें।

तो चलिए सबसे पहले जान लेते हैं, बच्चों में उच्च रक्तचाप क्या होता है।

बच्चों में उच्च रक्तचाप क्या होता है?

अगर आसान शब्दों में उच्च रक्तचाप को समझें तो धमनियों में जब खून का दबाव बढ़ता है तो हृदय को सामान्य गति से अधिक काम करना पड़ता है। इस कारण प्रेशर बढ़ जाता है, जिसे हाई ब्लड प्रेशर यानी उच्च रक्तचाप कहा जाता है। इसे हाइपरटेंशन के नाम से भी जाना जाता है (1)

लेख में अब हम बताएंगे कि बच्चों में हाइ ब्लड प्रेशर की समस्या कितनी आम है।

बच्चों में हाइ ब्लड प्रेशर की समस्या कितनी आम है?

बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या आम मानी जाती है (2)। एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की साइट पर मौजूद रिसर्च के मुताबिक, 2004 में किए गए अध्ययनों में यह पाया गया कि 2 से 4 प्रतिशत तक बच्चे उच्च रक्तचाप की समस्या से प्रभावित होते हैं (3)

लेख के इस हिस्से में हम बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर के लक्षणों को जानेंगे।

बच्चों में उच्च रक्तचाप होने के लक्षण

एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित शोध के मुताबिक, प्राथमिक उच्च रक्तचाप के लक्षण बच्चों में हल्के या फिर न के बराबर दिख सकते हैं। ऐसे में ये हल्के-फुल्के लक्षण क्या हो सकते हैं, उसकी जानकारी हम नीचे दे रहे हैं। तो बच्चों में यहां हाई ब्लड प्रेशर के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं (4) (5):

  • सिरदर्द होना
  • उल्टी या मतली होना।
  • व्यवहार में बदलाव।
  • सांस लेने में तकलीफ।
  • नाक से खून आना
  • इसके अलावा अगर बच्चा स्कूल जाता है तो वहां खराब प्रदर्शन कर सकता है।

उच्च रक्तचाप के लक्षणों को जानने के बाद अब लेख के इस भाग में हम इसके कारणों को जानेंगे।

बच्चों में उच्च रक्तचाप होने के कारण

बच्चों में उच्च रक्तचाप होने के कई कारण हो सकते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं (1)

  • हार्मोन के स्तर में होने वाले बदलाव को बच्चों में उच्च रक्तचाप का कारण माना जा सकता है।
  • इसके अलावा, नर्वस सिस्टम, हृदय और रक्त वाहिकाओं से जुड़ी समस्याएं भी हाई ब्लड प्रेशर का कारण बन सकती हैं।
  • वहीं, बच्चों में किडनी से जुड़ी समस्याएं उच्च रक्तचाप का जोखिम पैदा कर सकता है।

कई मामलों में उच्च रक्तचाप का कोई कारण नहीं पाया जाता है। जिसे प्राइमरी (Primary Hypertension) उच्च रक्तचाप के नाम से जाना जाता है। हालांकि, कुछ अन्य कारक भी हैं जो बच्चों में उच्च रक्तचाप के जोखिम को बढ़ा सकते हैं-

वहीं, उच्च रक्तचाप की समस्या कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं या दवाओं के कारण भी हो सकती है। इसे सेकेंडरी हाइपरटेंशन (Secondary Hypertension) कहते हैं। इसके कारण कुछ इस प्रकार हैं (1)

चलिए अब समझते हैं कि ब्लड प्रेशर को कैसे मापा जा सकता है।

बच्चों में ब्लड प्रेशर का मापन कैसे किया जाता है?

रक्तचाप की रीडिंग दो संख्याओं में की जाती है। इसके माप को 120/80 के रूप में लिखा जाता है। इनमें से एक या दोनों संख्याएं बहुत अधिक हो सकती है (1)

  • पहली संख्या (120) सिस्टोलिक रक्तचाप (Systolic blood pressure) है।
  • दूसरी संख्या (80) डायस्टोलिक दबाव (Diastolic pressure) है।

13 साल की आयु तक के बच्चों में उच्च रक्तचाप को मापने का तरीका वयस्कों की तुलना में अलग होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चे की उम्र बढ़ने के साथ-साथ रक्तचाप में बदलाव को सामान्य माना जाता है। एक बच्चे के रक्तचाप की संख्या की तुलना उसी आयु, कद और जेंडर के अन्य बच्चों से की जा सकती है।

बच्चों और किशोरों में उच्च रक्तचाप का वर्गीकरण कुछ इस प्रकार किया गया है (6)

उम्र सिस्टोलिक  डायस्टोलिक 
नवजात शिशु60–9020–60
शिशु (एक साल से कम उम्र)87–10553–66
बच्चा (2 से 3 साल की उम्र)      95–10553–66
प्रीस्कूलर (3 से 5 साल की उम्र)95–11056–70
स्कूल जाने वाले बच्चे (6 से 12 साल की उम्र)      97–11257–71
किशोर (13 साल से अधिक की उम्र)    112–12866–80

अब बारी है उच्च रक्तचाप के निदान के बारे में जानने की।

बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर के निदान

ज्यादातर मामलों में, हाई ब्लड प्रेशर का पता रक्तचाप की जांच के बाद ही चल पाता है। रिसर्च की मानें तो 3 साल की उम्र होने के बाद बच्चे का हर साल ब्लड प्रेशर मापा जाना चाहिए। बीपी के सही माप के लिए उन्हें बीपी कफ पहनाकर मापा जाता है। अगर किसी बच्चे का रक्तचाप बढ़ा हुआ है, तो डॉक्टर उसका रक्तचाप दो बार माप सकते हैं और फिर औसत निकाल कर बता सकते हैं (1)

इसके अलावा कुछ अन्य तरीके भी हैं, जिसकी मदद से बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का निदान किया जा सकता है (1)

  • डॉक्टर बच्चे के उच्च रक्तचाप के निदान से पहले कई बार उसके रक्तचाप को माप सकते हैं।
  • डॉक्टर परिवार का इतिहास पूछ सकते हैं, जैसे परिवार में किसी को हाई ब्लड प्रेशर की समस्या तो नहीं। इसके अलावा बच्चे की नींद की आदतों बारे में पूछ सकते हैं, जैसे- बच्चा सोते वक्त खर्राटे तो नहीं लेता या उसे स्लीप एपनिया की समस्या तो नहीं है।
  • डॉक्टर हाई ब्लड प्रेशर से जुड़े जोखिम कारकों और बच्चे की डाइट के बारे में भी जानकारी ले सकते हैं।
  • हाई ब्लड प्रेशर के निदान के लिए डॉक्टर बच्चे का शारीरिक परीक्षण भी कर सकते हैं। ऐसा वो यह जानने के लिए कर सकते हैं कि बच्चे के स्वास्थ्य में क्या बदलाव हो रहे हैं, कहीं बच्चे में हृदय रोग के लक्षण या आंखों से जुड़ी समस्या तो नहीं है।

कुछ अन्य टेस्ट के माध्यम से भी उच्च रक्तचाप का निदान किया जा सकता है (1)– 

  • ब्लड और यूरिन टेस्ट।
  • ब्लड शुगर टेस्ट।
  • इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram-हृदय की स्थिति का पता लगाने के लिए एक प्रकार का टेस्ट)।
  • किडनी का अल्ट्रासाउंड।
  • स्लीप एपनिया का पता लगाने के लिए नींद की आदतों से जुड़े टेस्ट।

इसके अलावा, नीचे बताए गए समस्या से जूझ रहे बच्चों का भी समय-समय पर रक्तचाप का माप लिया जाना चाहिए:

  • जिन्हें मोटापे की समस्या है।
  • अगर किसी बच्चे को रक्तचाप की दवा का सेवन कराया जा रहा हो।
  • जिन्हें किडनी की बीमारी है।
  • अगर किसी बच्चे को हृदय और रक्त वाहिकाओं की समस्या है।
  • जिन्हें डायबिटीज की समस्या है।

उच्च रक्तचाप के निदान के बाद इससे होने वाले खतरों के बारे में भी जानना जरूरी है।

बच्चों में उच्च रक्तचाप से होने वाले खतरे

अगर वक्त रहते बच्चे के रक्तचाप पर ध्यान न दिया गया तो इससे बच्चों में कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। उच्च रक्तचाप से बच्चों में होने वाली जटिलताएं कुछ इस प्रकार हैं (1):

  • स्ट्रोक का खतरा।
  • दिल का दौरा पड़ने का जोखिम।
  • हार्ट फेल्यॉर यानी हृदय का काम न करना।
  • किडनी की बीमारी।

लेख के इस हिस्से में हाई ब्लड प्रेशर का इलाज जानिए।

बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का इलाज

हाई ब्लड प्रेशर के उपचार का मुख्य लक्ष्य होता है उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करना, ताकि बच्चे में इसके कारण होने वाली जटिलताओं का खतरा कम हो सके। चलिए अब जान लेते हैं, बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का इलाज (1)

  • अगर किसी बच्चे को उच्च रक्तचाप की समस्या है तो डॉक्टर इलाज के रूप में सबसे पहले जीवनशैली में बदलाव की सलाह दे सकते हैं।
  • इसके अलावा अगर बढ़ते वजन के कारण उच्च रक्तचाप की समस्या हो रही है। तो ऐसे में बढ़े हुए वजन को नियंत्रित करके भी रक्तचाप कम करने में मदद मिल सकती है।
  • बढ़ते वजन को नियंत्रित करने के लिए डैश (DASH Diet) आहार का पालन कर सकते हैं। जैसे- कम नमक, बिना चर्बी वाले मांस, साबुत अनाज और कम या फिर बिना फैट वाले डेयरी खाद्य पदार्थ।
  • चीनी युक्त पेय या खाद्य पदार्थों से परहेज कर के भी वजन को बढ़ने से रोका जा सकता है।
  • इसके अलावा, रोजाना 30 से 60 मिनट बच्चों को व्यायाम कराने की सलाह भी दी जा सकती है। इससे भी मोटापे को नियंत्रित करने में और हाई ब्लड प्रेशर के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • वहीं, टीवी का प्रभाव भी बच्चों पर पड़ सकता है, इसलिए माता-पिता को बच्चे के स्क्रीन टाइम को कम करने की सलाह दी जा सकती है।
  • रक्तचाप नियंत्रित रहे इसके लिए बच्चे की नींद पूरी होनी भी जरूरी है।
  • अगर हाई ब्लड प्रेशर की समस्या किसी अन्य बीमारी के कारण है, तो उस बीमारी को ठीक करने की दवा भी डॉक्टर दे सकते हैं।

डॉक्टर 6 महीने के बाद एक बार फिर से बच्चे के रक्तचाप की जांच करेगा। अगर वह फिर भी अधिक रहता है तो डॉक्टर बच्चे के बांह या पैर से दोबारा रक्तचाप की जांच कर सकते हैं। इसके बाद 12 महीनों के अंतराल पर दोबारा से रक्तचाप की जांच की जाएगी। यदि तब भी रक्तचाप उच्च रहता है, तो डॉक्टर 24 से 48 घंटों तक लगातार बच्चे के रक्तचाप की निगरानी कर सकते हैं। इसे एंब्यूलेटरी ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग (Ambulatory blood pressure monitoring) कहते हैं। वहीं, कुछ स्थितियों में बच्चे को दिल या किडनी के डॉक्टर से दिखाने की आवश्यकता भी हो सकती है (1)

इस दौरान कुछ अन्य परीक्षण भी किए जा सकते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं:

  • उच्च कोलेस्ट्रॉल स्तर की जांच।
  • मधुमेह की जांच।
  • हृदय रोग की पुष्टि के लिए इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram) या इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (Electrocardiogram) जैसे परीक्षण।
  • किडनी की बीमारी के जांच के लिए बेसिक मेटाबॉलिक पैनल (Basic metabolic panel – एक प्रकार का ब्लड टेस्ट) और किडनी का अल्ट्रासाउंड।

वहीं, अगर जीवन शैली में बदलाव के बाद भी उच्च रक्तचाप में कमी नहीं आती है, तो ऐसी स्थिती में बच्चे को दवा देने की आवश्यकता हो सकती है। बच्चों के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली रक्तचाप की दवाएं कुछ इस प्रकार हैं (1):

  • एंजियोटेंशिन-कन्वर्टिंग एंजाइम अवरोधक (हाई बीपी के लिए उपयोग की जाने वाली दवा का वर्ग)
  • एंजियोटेंसिन रिसेप्टर ब्लॉकर्स (उच्च रक्तचाप के उपचार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाई)
  • बीटा-ब्लॉकर्स (रक्तचाप को नियंत्रित करने वाली दवा)
  • कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स (एंटी-हाइपरटेंशन दवा)
  • ड्यूरेटिक्स (मूत्रवर्धक दवा)

बता दें कि बच्चों में हाई बीपी के इलाज के लिए डॉक्टर पहले घर पर ही बच्चे के रक्तचाप की निगरानी का सुझाव दे सकते हैं। इससे यह पता लगाने में आसानी हो जाती है कि रक्तचाप को कम करने में जीवनशैली में बदलाव करना या दवाइयों का उपयोग असरदार हो रहा है या नहीं। वहीं, हम यह स्पष्ट कर दें कि बच्चे को उच्च रक्तचाप की दवा बिना डॉक्टरी परामर्श के बिल्कुल भी न दें।

चलिए अब जरा बच्चों में मोटापा और हाई ब्लड प्रेशर के संबंध को समझते हैं।

बच्चों में मोटापा और हाई ब्लड प्रेशर

बच्चों में उच्च रक्तचाप का सीधा संबंध मोटापे से माना जा सकता है। जैसा कि हमने लेख में बताया कि बच्चों में हाई बीपी का एक मुख्य कारण अधिक वजन या मोटापा भी हो सकता है (1)। वहीं, एनसीबीआई की साइट पर प्रकाशित शोध के अनुसार, 2-19 वर्ष के लगभग 17 प्रतिशत बच्चे मोटापे से ग्रसित होते हैं। वहीं, मोटापे से ग्रस्त बच्चों में न सिर्फ हाई ब्लड प्रेशर का जोखिम होता है, बल्कि हृदय रोग का खतरा भी काफी बढ़ जाता है (7)। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चों में बढ़ते वजन की समस्या कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम पैदा कर सकता है।

अब बारी है हाई ब्लड प्रेशर से बचाव के बारे में जानने की।

बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर से बचाव

उच्च रक्तचाप से बचाव के लिए बच्चों के लाइफ स्टाइल में बदलाव करना जरूरी है। इसके अलावा कुछ अन्य बातें भी हैं, जिसका पालन करके हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से बचा जा सकता है (1) (8)

  • बच्चों से प्रतिदिन थोड़ी देर व्यायाम या शारीरिक गतिविधियां जरूर कराएं।
  • बच्चों के खाने में नमक का इस्तेमाल कम मात्रा में करें।
  • वजन को नियंत्रित रखें।
  • बच्चों को डिप्रेशन या तनाव से दूर रखें।
  • उनके आहार में बदलाव करें, उन्हें स्वस्थ डाइट दें। उनके आहार में ज्यादा से ज्यादा फल, हरी सब्जियां, साबुत अनाज और कम वसा वाले या बिना वसा वाले डेयरी खाद्य पदार्थों को शामिल करें।
  • मीठे खाद्य या पेय पदार्थों से बच्चे को दूर रखें।
  • बच्चों की नींद का ख्याल रखें। बीपी की समस्या को दूर रखने के लिए नींद पूरी होनी जरूरी है।
  • बच्चे को टीवी के सामने ज्यादा समय न बिताने दें और न ही ज्यादा देर तक लगातार बैठने दें।

लेख के अंत में जानेंगे कि हाई बीपी के लिए डॉक्टर से कब परामर्श लेना चाहिए।

डॉक्टर से कब परामर्श करें

जैसा कि हमने लेख में बताया कि रक्तचाप के इलाज के लिए डॉक्टर बच्चे की घर पर ही निगरानी का सुझाव दे सकते हैं। अगर इस दौरान सभी बातों का ख्याल रखने के बावजूद भी बच्चे का रक्तचाप अधिक रहता है तो बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए (1)। इसके अलावा, बच्चे में अगर लगातार ऊपर बताया गया कोई भी लक्षण दिखे, तो डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

1. यदि हाई ब्लड प्रेशर को अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, तो क्या उच्च रक्तचाप की समस्या बढ़ बदतर हो सकती है?

एनसीबीआई की साइट पर प्रकाशित शोध के मुताबिक, अगर हाई बीपी को अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, तो उच्च रक्तचाप कई वर्षों तक बना रह सकता है। साथ हाई यह कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम भी पैदा कर सकता है (2)

2. क्या मेरे बच्चे के बड़े होने पर भी उसे उच्च रक्तचाप होगा?

बच्चे के बड़े होने के बाद उसे उच्च रक्तचाप होगा या नहीं यह उसके जीवन शैली पर निर्भर करता है। वहीं एनसीबीआई की साइट पर मौजूद रिसर्च से जानकारी मिलती है कि समय से पहले पैदा हुए बच्चों और आईयूजीआर (IUGR) यानी लो बर्थ वेट वाले बच्चों पर रक्तचाप को लेकर विशेष निगरानी की जरूरत हो सकती है (9)

3. यदि मेरा बच्चा उच्च रक्तचाप के लिए दवा ले रहा है, तो क्या उसे इसे जीवन भर इसका सेवन करना पड़ेगा?

अगर कोई बच्चा उच्च रक्तचाप की दवा ले रहा है, तो उसे वह जीवन भर इसका सेवन करना पड़े लेना यह जरूरी नहीं है। दवा बंद होने या स्थिति का इलाज होने पर उच्च रक्तचाप सामान्य हो सकता है (1)। ऐसे में बेहतर है बच्चे की स्थिति को ध्यान में रखते हुए दवा बंद करना है या नहीं, इस बारे में डॉक्टर से सलाह ली जाए।

बच्चों में उच्च रक्तचाप की समस्या जितनी आम है उतनी ही गंभीर भी है। इसलिए समय रहते इस पर काबू पाना जरूरी है। हाई ब्लड प्रेशर से बचाव के लिए सबसे अहम है, सही जीवन शैली और स्वस्थ आहार। इसके अलावा लेख में बताए गए उपायों को ध्यान में रखकर बच्चे को हाई बीपी की समस्या से दूर रखा जा सकता है। अगर इन सबके बावजूद भी बच्चे का रक्तचाप अधिक हो रहा हो तो बिना देर किए उसे डॉक्टर के पास ले जाएं। अब हम उम्मीद करते हैं, कि लेख में साझा की गई जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित होगी। बच्चों और गर्भावस्था से जुड़े इस तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए मॉमजंक्शन की वेबसाइट विजिट करते रहें।

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