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कहते हैं बच्चे मन के सच्चे होते हैं, लेकिन उनकी लड़ाई-झगड़े की आदत माता-पिता के लिए सिरदर्द बन जाती है। कुछ बच्चे अपनी शरारती हरकतों के कारण लड़ाई में उलझ जाते हैं, तो कुछ बचपन से ही लड़ाई-झगड़ा करने में आगे होते हैं। अगर आप भी बच्चे की लड़ाई-झगड़े की आदत से परेशान हैं और इसे खत्म करने के तरीके ढूंढ रहे हैं, तो मॉमजंक्शन का यह लेख पढ़ें। यहां बच्चों का लड़ाई-झगड़ा रोकने के उपाय बताए गए हैं। साथ ही बच्चे लड़ाई-झगड़ा क्यों करते हैं और इस मामले में विशेषज्ञ से कब सलाह लेनी चाहिए, इसकी भी जानकारी दी गई है।

बच्चों का गुस्सा शांत करने के उपाय जानने से पहले बच्चे के लड़ने का कारण समझें।

बच्चे आपस में लड़ाई क्यों करते हैं?

बच्चे आपस में लड़ाई क्यों करते हैं, यह समझने के बाद ही उनकी इस आदत को कम किया जा सकता है। इसके पीछे के कारणों का उल्लेख नीचे विस्तार से किया गया है।

1. माता-पिता का ध्यान पाने के लिए

बच्चों के आपस में लड़ने की एक वजह माता-पिता का ध्यान अपनी ओर खींचना भी माना जाता है। ऐसा नहीं है कि माता-पिता अपने बच्चों की तरफ ध्यान नहीं देते हैं, लेकिन अलग-अलग मामलों में बच्चे उनका पूरा ध्यान पाने के लिए लड़ते हैं। इसी उद्देश्य से वो छोटी सी बात का बड़ा मुद्दा बनाकर लड़ाई शुरू कर सकते हैं (1)

2. माता-पिता का व्यवहार

माता-पिता का व्यवहार भी बच्चे के लड़ाई-झगड़े का कारण बन सकता है। एक रिसर्च में बताया गया है कि बच्चे पर चिल्लाना, डांटना, धमकी देना, पिटाई करना इन सबका बुरा प्रभाव पड़ता है। बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए भी कई बार माता-पिता इस तरह का रवैया अपना लेते हैं। ऐसा करना बिल्कुल गलत है। अध्ययनों से भी इसकी पुष्टि होती है कि बच्चों के साथ गलत तरीके से व्यवहार करने से वो झगड़ालू बन सकते हैं (2)

3. खुद को बेहतर साबित करना

बच्चे अपने माता-पिता के सामने खुद को बेहतर साबित करने के लिए भी छोटी-छोटी बातों में उलझकर लड़ाई कर सकते हैं। कई बार खुद को बेहतर साबित करने की कोशिश में वो अपने भाई-बहन को ही प्रतिद्वंदी मान लेते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, 5 वर्ष तक की आयु के 40 लाख बच्चे अपने ही भाई-बहन को अपनी प्रतिस्पर्धा मानते हैं। इससे उनके बीच ईर्ष्या पैदा होती है और लड़ाई-झगड़ा भी होते रहते है (3)। यही नहीं, भाई या बहन के सामने खुद को श्रेष्ठ साबित करने और अपने बड़े होने का रौब दिखाने के लिए भी बच्चे लड़ाई कर सकते हैं (1)

4. माता-पिता से कम प्यार मिलने का वहम

हर बच्चे अपने माता-पिता का ज्यादा से ज्यादा स्नेह पाना चाहता है, लेकिन उसे जैसे ही लगने लगता है कि उसे अपने भाई-बहन के मुकाबले कम प्यार मिल रहा है, तो वो उनसे लड़ सकता है। कई बार माता-पिता होशियार और पढ़ाई-लिखाई में मन लगाने वाले बच्चे से दूसरे बच्चे की तुलना कर देते हैं। इससे भी उसके मन में यह बात बैठ जाती है कि मां-बाप से उसे कम प्यार मिल रहा है। इन सबसे बच्चे का व्यवहार धीरे-धीरे झगड़ालू बन सकता है। इसके लिए माता-पिता को बच्चे को समझाने चाहिए कि वो सबसे बराबर प्यार करते हैं और तुलनात्मक व्यवहार को बिल्कुल बंद कर देना चाहिए (3)

5. रिश्ते की गुणवत्ता में कमी

रिसर्च के अनुसार, जिन बच्चों के रिश्ते में गुणवत्ता की कमी होती है, उनमें लड़ाई झगड़ा अधिक होता है। कहा जाता है कि बचपन से ही जिन भाई-बहनों में अधिक प्यार होता है उनके बीच लड़ाई कम या बिल्कुल नहीं होती है (4)। इस आधार पर कहा जा सकता है कि रिश्ते की गुणवत्ता अच्छी न होने पर बच्चे झगड़ालू हो सकते हैं। ऐसे में माता-पिता को बच्चों के रिश्ते की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में काम करना जरूरी है।

6. उम्र और रुचि अलग होना

दो बच्चों का रुझान अलग-अलग चीजों में है, तो उस वजह से भी उनमें लड़ाई हो सकती है। बताया जाता है कि बच्चों की उम्र और लिंग में अंतर होने के कारण उनमें इस तरह का मतभेद हो सकता है।

7. बच्चे का विकासात्मक चरण और वैचारिक मतभेद

बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास तेजी से होता है। इसके कारण उनकी सोचने-समझने और बातों को लेकर दी जाने वाली प्रतिक्रिया में बदलाव होता है। जब दोनों बच्चे की सोच और समझ आपस में टकराते हैं, तो उनमें लड़ाई-झगड़ा होने की आशंका और बढ़ जाती है। इस दौरान जब एक बच्चा कुछ करता है, तो दूसरा उस बात पर आपत्ति जता सकता है, क्योंकि दोनों की सोच और समझ उस बात को लेकर अलग होती है।

8. कौशल की कमी

कौशल यानी स्किल की कमी भी बच्चों के झगड़ने का एक कारण हो सकता है। अगर बच्चे के मन में यह भाव उत्पन्न होने लगता है कि वो दूसरों के मुकाबले कम है, तो उसका व्यवहार चिड़चिड़ा हो सकता है। इस व्यवहार के कारण वो लड़ाई-झगड़े कर सकता है। ऐसे में माता-पिता का दायित्व बनता है कि वो बच्चे को बताएं कि हर कोई अपने आप में स्पेशल होता है। किसी में एक स्किल होता है, तो किसी में कोई दूसरा स्किल। खुद को दूसरों से कम समझने की बिल्कुल जरूरत नहीं है।

आगे बढ़ते हैं और बताते हैं बच्चों के झगड़े में माता-पिता कब और कैसे दखलंदाजी करें।

बच्चों के झगड़े में माता पिता को दखलंदाजी कब करनी चाहिए व कब नहीं करनी चाहिए?

हर बार बच्चों के झगड़े में माता-पिता का दखलंदाजी करना उचित नहीं होता है। हां, कुछ स्थितियों में माता-पिता का बीच-बचाव करना जरूरी हो जाता है। अगर माता-पिता को लगता है कि बच्चे का झगड़ा आक्रामक हो रहा है, जिसमें उन्हें शारीरिक चोट लग सकती है, तो बीच-बचाव करें या उन्हें एक दूसरे से कुछ देर के लिए दूर कर दें (4)

साथ ही हर बार अगर एक बच्चा लड़ कर खुद को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश कर रहा है, तो दखलंदाजी जरूर करें। बस किसी भी स्थिति में एक बच्चे का पक्ष एकदम नहीं लेना चाहिए। उनसे लड़ाई का कारण पूछें और उन्हें खुद ही मामला सुलझाने दें। बातें करने से और शांति से एक-दूसरे की बात करने से कई बच्चों की लड़ाई सुलझ जाती है और उनमें आपसी सहमति बनने की आशंका भी बढ़ सकती है (4)

अब जानें कि माता-पिता बच्चों की लड़ाई कैसे खत्म कर सकते हैं।

माता-पिता के लिए बच्चों की लड़ाई खत्म करने के 10 टिप्स

अक्सर माता-पिता यह सोचते हैं कि बच्चों का लड़ाई-झगड़ा कैसे रोकें। इसके लिए यहां 10 टिप्स बताए गए हैं। इन टिप्स की मदद से बच्चों के लड़ाई-झगड़े को शांत करने में मदद मिल सकती है।

1. अपनी बात को रखने का तरीका सिखाएं

जब भी बच्चा लड़ाई करें, तो उससे खुलकर बात करें। उसे प्रेरित करें कि वह निष्पक्ष रूप से लड़ाई के मुद्दे पर बात करे और बुनियादी वजह को समझें। उसे बताएं कि बिना चिल्लाए और बिना आवाज ऊंची किए भी अपनी बात रखी जा सकती है। साथ ही यह भी समझाएं कि लड़ाई करने से स्थिति संभलती नहीं, बल्कि और बिगड़ जाती है।

2. सकारात्मक व्यवहार की प्रशंसा करें

जब भी बच्चा किसी लड़ाई या बहस से बचते हुए उस स्थिति को अच्छी तरीके से संभाले, तो उसके इस सकारात्मक व्यवहार की प्रशंसा जरूर करें। इससे बच्चे के अच्छे व्यवहार को बढ़ावा मिलेगा और वह भविष्य में ऐसी किसी भी स्थिति से निपटने के लिए सकारात्मक रवैया ही अपनाएगा।

3. खुद भी सकारात्मक रहें

अक्सर बच्चे अपने माता-पिता का व्यवहार ही अपनाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि माता-पिता भी हर बात को लेकर सकारात्मक रवैया अपनाएं। अगर आप चाहते हैं कि बच्चा लड़ाई न करें, तो जरूरी है कि माता-पिता भी बच्चे के सामने कभी लड़ाई-झगड़ा न करें (6)। यदि बच्चा माता-पिता को आक्रामक तरीके से व्यवहार करता देखेगा, तो उसका स्वभाव भी आक्रामक हो सकता है।

4. मध्यस्थता

बच्चे को भविष्य में लड़ाई-झगड़े से रोकने के लिए मध्यस्थता भी एक तरीका हो सकता है। जी हां, दोनों के बीच हो रही बहस व झगड़े के कारण के बारे में बातचीत करें। दोनों की बातों को सुनने के बाद उन्हें लड़ाई के विषय पर एक-दूसरे का नजरिए समझाएं और उस पर चर्चा करें। इसी को मध्यस्थता कहते हैं और इससे कई सारे मामले सुलझ जाते हैं। अगर किसी तरह की गलतफहमी होती है, तो वो भी दूर हो जाती है। एनसीबीआई के एक अध्ययन में भी इस बात का जिक्र मिलता है कि जिन माता-पिता को लड़ाई की मध्यस्थता की ट्रेनिंग दी गई थी, उनके बच्चों में दूसरे बच्चों की तुलना में लड़ाई के मामले कम पाए गए (7)

5. खुद के रवैये पर भी गौर करें

अगर माता-पिता बच्चे की किसी गलती पर चिल्लाते हैं या उसे कठोर सजा देते हैं, तो उन्हें इस तरह के रवैये का आंकलन करना चाहिए। अक्सर माता-पिता बच्चे को सुधारने के लिए सजा दे देते हैं, लेकिन बार-बार ऐसा करने या डांटने से बच्चे के मन में बुरा प्रभाव पड़ सकता है (8)। इससे वो खुद को अकेला समझ कर लड़ाई-झगड़े के साथ ही असामाजिक गतिविधियों का हिस्सा बन सकते हैं।

6. सभी के साथ एक जैसा व्यावहार करें

बच्चे का झगड़ा चाहे उसके दोस्त के साथ हो या भाई-बहन के साथ, माता-पिता को किसी एक का पक्ष लेने से बचना चाहिए। उन्हें किसी भी बच्चे को लड़ाई में सही और गलत का दर्जा नहीं देना चाहिए। हमेशा इस तरह से दोनों को समझाएं कि उन्हें लगे कि गलती दोनों की थी या दोनों ही अपनी-अपनी जगह पर कुछ हद तक ठीक थे। इससे उन्हें यह समझने में भी मदद मिलेगी कि सभी बातों को लेकर हर किसी का अलग-अलग नजरिया हो सकता है।

7. हर बार बीच-बचाव न करें

अक्सर बच्चों के आपसी झगड़े कुछ ही देर में खत्म हो जाते हैं। इसमें माता-पिता को बीच-बचाव करने की आवश्यकता नहीं होती है। हर बार बच्चों के लड़ाई-झगड़े में शामिल हो जाएंगे, तो वो हमेशा मदद की आस लगाए बैठेंगे और खुद से अपनी परेशानी नहीं सुलझाएंगे। साथ ही किसी एक बच्चे के मन में यह भाव आ सकता है कि हर बार मेरे भाई या बहन का ही बचाव माता-पिता करते हैं। इससे बच्चे के मन में दूसरे के प्रति ईर्ष्या का भाव जन्म ले सकता है और लड़ाई-झगड़े के मामले भी बढ़ सकते हैं (4)

8. लड़ाई के मुद्दों को कम करें

लड़ाई-झगड़े के मुद्दे को ही खत्म करना भी बच्चों को लड़ने से रोकने का एक अच्छा तरीका है। अगर दो बच्चे किसी एक बैग के लिए लड़ रहे हैं, तो दोनों को एक जैसा बैग दिला दीजिए या फिर दूसरे बच्चे को मन लें कि वो उस बैग का इस्तेमाल ही न करे। ऐसा करने से लड़ाई का मुद्दा ही खत्म हो जाएगा। अब मान लीजिए कि घर में कोई ऐसा खिलौना है जिसकी वजह से बच्चे आपस में लड़ते हैं, तो बेहतर होगा कि उस खिलौने को बच्चों की पहुंच से दूर रखा जाए। इसी तरह अगर किसी बात को सुनकर या किसी तरह की प्रतिक्रिया पर बच्चा आक्रामक व्यवहार करता है, तो उस स्थिति को पनपने न दें।

9. प्यार और अपनेपन की कमी न होने दें

बच्चे के नकारात्मक व्यवहार को बदलने में माता-पिता का प्यार और अपनापन भी खास भूमिका निभा सकता है। कभी भी अपने बच्चे को यह एहसास न होने दें कि आप उसे उसके भाई-बहनों के मुकाबले कम या ज्यादा प्यार करते हैं। सभी बच्चों के साथ एक जैसा ही व्यवहार रखें और उन्हें बताएं कि आप उनके साथ हर परिस्थिति में खड़े रहेंगे। यही नहीं, बच्चे को बताएं कि जिस तरह आप उसका हरदम साथ देते हैं, वैसे ही उसे अपने भाई-बहन का भी साथ देना चाहिए।

10. दूसरों की बात समझना सिखाएं

बच्चे को दूसरों की बातों को सुनना और उनके नजरिए को समझना सिखाएं। उन्हें बताएं कि बातों को कभी भी प्रतिक्रिया देने के लिए नहीं सुनना चाहिए, बल्कि बात को समझकर जवाब देने या न देना का फैसला लेना सही होता है। उन्हें बताएं कि हमेशा अपनी ही बात ऊपर रखकर उसे साबित करने के लिए लड़ने-झगड़ने के बजाय बात को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए।

लेख के इस भाग में बच्चे को लड़ने से रोकने के कुछ अन्य तरीकों के बारे में पढ़ें।

बच्चों में लड़ाई को होने से कैसे रोकें?

बच्चों को लड़ाई करने से रोकने के लिए माता-पिता और अभिभावक कुछ अन्य तरीके भी अपना सकते हैं। इसके लिए उन्हें कई बार कुछ सख्त नियम बनाने की भी आवश्यकता पड़ सकती है। इन सभी बातों के बारे में आगे विस्तार से जानिए।

1. स्वीकार्य और अस्वीकार्य व्यवहार के बारे में समझाएं

बच्चे शरारतें नहीं करेंगे तो कौन करेगा, लेकिन उन्हें स्वीकार्य व्यवहार और अस्वीकार्य व्यवहार के बारे में समझाएं। बेहतर होगा कुछ नियम ही बना लें। उन्हें बताएं कि किसी को गाली देना, लड़ाई-झगड़ा करना, चिल्लाना, बुरे-बुरे नाम रखना, ये सब गलत और अस्वीकार्य व्यवहार है। साथ ही यह भी समझाएं कि दरवाजा मारना, गुस्सा दिखाने के लिए बर्तन पटकना, हाथ में जो भी आए उसे सामने वाले पर फेंकना और किसी पर हाथ उठाना भी गलत है। ऐसा व्यवहार करने पर उन्हें किस तरह का दंड मिलेगा, यह भी निर्धारित करें।

2. समझाएं कि हर चीज में बराबरी सही नहीं

बच्चे को बताएं कि कभी-कभी एक बच्चे की तुलना में दूसरे बच्चे पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है। उदाहरण देकर उन्हें समझाएं कि अगर भाई-बहन छोटा है, उसे बुखार आ जाए या वो किसी चीज में कमजोर है, तो उस पर ज्यादा गौर करना जरूरी है। ऐसी स्थिति में बराबरी करना सही नहीं है, यह उसे बताएं।

3. बच्चों को एक बराबर समय दें

अक्सर माता-पिता व्यस्त जीवनशैली के कारण बच्चों को ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं, जिसके प्रति उन्हें सजग होना चाहिए। साथ ही अपने सभी बच्चों को बराबर समय दें। मान लेते हैं कि एक बच्चा आपके साथ पार्क जाना चाहता है और दूसरा कमरे में पढ़ाई करना चाह रहा है, तो आप एक के साथ पहले पार्क जाएं और वहां से लौटने के बाद पढ़ाई कर रहे बच्चे के साथ समय बिताएं।

4. खिलौनों का सही बंटवारा करें

अगर घर में दो बच्चे हैं और दोनों ही खिलौने से खेलना पसंद करते हैं, तो दोनों को ऐसे खिलौने दें, जिससे वो एक साथ मिलकर खेल सकें। उन्हें अलग-अलग तरीके के खेल और खिलौने पसंद हैं, तो दोनों को उनकी चाहत के हिसाब से एक-एक खिलौना दे दें।

5. बात करने के लिए समय निर्धारित करें

बच्चों की समस्याएं काफी बढ़ रही हैं और वो रोज लड़ते-झगड़ते हैं, तो उनकी परेशानी सुनने का एक समय निर्धारित कर लें। हफ्ते में एक दिन या फिर रोजाना कुछ देर उनसे आपसी बहस के बारे में चर्चा करें। इस दौरान घर के नियम और दूसरे दिशा निर्देश दें। इससे बच्चे की परेशानी समझने और उनके बीच हो रहे झगड़े के कारण का पता लगाने में मदद मिलेगी। साथ ही इस दौरान बच्चे की जरूरतें और इच्छाओं को जानने में भी मदद मिलेगी, जिसके बारे में कई बच्चे खुलकर बात नहीं कर पाते।

6. उन्हें घुमाने ले जाएं

बच्चे अक्सर लड़ते हैं, तो हो सकता है कि उनके रिश्ते में गुणवत्ता की कमी हो (4)। इसके लिए उन्हें साथ घुमाने ले जाएं। इससे उनके रिश्ते में सुधार हो सकता है। वो पूरे परिवार के साथ आपस में समय बिताएंगे, तो हो सकता है कि उन्हें एक-दूसरे को अच्छे से समझने में मदद मिले।

अंत में जानिए कि कब माता-पिता को बच्चों के लड़ाई-झगड़े को लेकर विशेषज्ञ की आवश्यकता पड़ती है।

स्पेशलिस्ट की मदद कब लें

लेख में बताए गए उपायों और माता-पिता द्वारा उठाए गए उचित कदमों के बाद भी बच्चा का व्यवहार आक्रामक बना रहता है, तो बाल मनोविशेषज्ञ, बड़े-बुजुर्गों व अनुभवी दोस्त और बच्चों के शिक्षकों की भी मदद ली जा सकती हैं। इसके अलावा, इन परिस्थितियों में भी स्पेशलिस्ट की सलाह लेना आवश्यक हो जाता है।

  • बच्चों की लड़ाई से घर का माहौल खराब होना
  • बच्चे का या घर के किसी अन्य सदस्य का भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित होना
  • घर के किसी इंसान को शारीरिक नुकसान का खतरा होना

उम्मीद करते हैं कि इस लेख में बताए गए बच्चों को कंट्रोल करने के उपाय कारगर साबित होंगे। एक बात का ध्यान रखें कि बच्चों की लड़ाई खत्म करने के लिए सबसे जरूरी है कि माता-पिता खुद को शांत रखें। परिवार के सदस्यों का रवैया बच्चे के व्यवहार पर काफी अहम प्रभाव डालता है। साथ ही लेख में बताए गए लड़ाई-झगड़ा कम करने के उपाय और टिप्स अपनाकर भी आप उन्हें लड़ाई-झगड़े से रोक सकते हैं। बस इसके परिणामों के लिए थोड़ा सब्र रखना होगा। हां, अगर बच्चा काफी ज्यादा लड़ाई-झगड़ा कर रहा है, तो विशेषज्ञ की मदद लेने में संकोच न करें।

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