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कई बच्चे सोते हुए नींद में बड़बड़ाते हैं। उनका बड़बड़ाना सुनकर माता-पिता को चिंता होने लगती है कि ऐसा उनके बच्चे के साथ क्यों हो रहा है। इस बारे में चर्चा करने के लिए विशेषज्ञों से बात करने की आवश्कता पड़ सकती है। उन्हीं विशेषज्ञों द्वारा नींद में बोलने की समस्या को ठीक करने के लिए सुझाए गए तरीकों की जानकारी लेकर आया है मॉमजंक्शन। इस लेख में बच्चों के नींद में बोलने के कारण, लक्षण, बचाव के टिप्स और इलाज की जानकारी दी गई है।
लेख की शुरुआत नींद में बोलना क्या है, इससे करते हैं।
स्लीप टॉकिंग या नींद में बोलना क्या है?
स्लीप टॉकिंग कुछ और नहीं, बल्कि नींद संबंधी विकार है। इस समस्या में बच्चे रात में सोते समय बोलते हैं। इसको सोम्निलोक्यू (Somniloquy) के नाम से भी जाना जाता है (1)। यह विकार पैरासोम्निया (Parasomnia) नामक नींद संबंधित बीमारी के कारण भी हो सकता है (2)।
एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) पर प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, नींद में बात करने की समस्या काफी आम है। बचपन में इससे जूझने वालों में यह शिकायत उम्र बढ़ने के बाद भी रह सकती है (3)। माना जाता है कि बच्चा नींद में सपने से जुड़ी बातें बोलता है या फिर उन बातों को जो उसके दिमाग में बैठी होती हैं (4)।
आइए, अब जानते हैं कि बच्चे नींद में क्यों बात करते हैं।
बच्चे अपनी नींद में क्यों बात करते हैं? | Bachon Ke Neend Mein Bolne Ka Karan
बच्चों के नींद में बोलने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनके बारे में हम आगे बता रहे हैं (2) :
- तंत्रिका संबंधी विकार
- किसी तरह का दर्द
- जेनेटिक्स यानी आनुवंशिकता
- चिंता
- दवाइयां
- हृदय रोग
- फेफड़े की बीमारी
अब हम बच्चों के नींद में बात करने के चरण व लक्षण बता रहे हैं।
बच्चों के नींद की बात करने के चरण और लक्षण
नींद में बात करने के कुछ विशेष लक्षण नहीं होते हैं। इसका सबसे बड़ा संकेत नींद में बड़बड़ाना और बोलना ही है। बच्चा जब गहरी नींद में होता है, तो उसके बोलने की आवाज करहाने जैसी अस्पष्ट सुनाई देती है। अब आगे हम बच्चों के नींद में बात करने के चरण बता रहे हैं (1):
- स्टेज 1 और 2 – इन चरणों के दौरान नींद में बात करने वाले बच्चे 3 और 4 स्टेज की तरह गहरी नींद में नहीं होते। इस समय नींद में की जाने वाली बातें पूरी तरह स्पष्ट होती हैं, जिन्हें आसानी से समझा जा सकता है।
- स्टेज 3 और 4 – इस समय बच्चा गहरी नींद में होता है, जिस कारण उसकी बातों को ठीक से समझना मुश्किल होता है। बच्चे की बातें करहाने जैसी और अस्पष्ट होती हैं।
नींद में बात करने की गंभीरता इस बात पर भी निर्भर करती है कि यह हफ्ते और महीने में कितनी बार होता है (1):
- माइल्ड – इस स्टेज में नींद में बात करने की समस्या महीने में एक बार हो सकती है।
- मॉडरेट – इस चरण में नींद में बात करने की शिकायत सप्ताह में एक से अधिक बार हो सकती है, लेकिन हर रात ऐसा नहीं होता। दूसरे कमरे में सो रहे व्यक्ति की नींद में भी ज्यादा बाधा नहीं पड़ती है।
- सीवियर – इस दौरान बच्चा रोज नींद में बात करता है, जिसकी वजह से बगल में या पास के कमरे में सोने वाले की नींद टूट सकती है।
नींद में बात करने की शिकायत को समय के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है, जो कुछ इस तरह है (5):
- एक्यूट – इस श्रेणी में आने वाले बच्चों को नींद में बात करने की समस्या एक महीने या उससे कम समय तक हो सकती है।
- सबएक्यूट – इस प्रकार के नींद में बात करने की समस्या एक महीने से अधिक, लेकिन एक वर्ष से कम समय तक रहती है।
- क्रोनिक – यह स्थिति एक वर्ष से अधिक समय तक बनी रह सकती है।
आगे हम बच्चों के नींद में बात करने से जुड़ी परेशानियों के बारे में बता रहे हैं।
बच्चों के नींद में बोलने से होने वाली परेशानियां
बच्चों के नींद में बात करने से उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होती है। हां, उसके साथ या उस कमरे में सो रहे दूसरे व्यक्ति की नींद खुल सकती है। बच्चे के निरंतर बड़बड़ाने के कारण बगल के कमरे में सोने वाले की भी नींद टूट सकती है और फिर दोबारा सोने में भी बाधा उत्पन्न हो सकती है।
अब जानते हैं कि बच्चों के नींद में बात करने की समस्या के लिए किस तरह के इलाज किए सकते हैं।
बच्चों की नींद में बोलने की बीमारी का इलाज
बच्चों को नींद में बात करने से रोकने का कोई सटीक इलाज नहीं है और न ही इसके लिए किसी प्रकार की उपचार की आवश्यकता पड़ती है (3)। हां, अगर बच्चे के नींद में बात करने की वजह से ठीक तरीके से सो नहीं पा रहे हैं, तो नीचे बताए तरीकों को अपना सकता है।
- बच्चा जहां सो रहा है, वहां न सोएं।
- बच्चे के कमरे का दरवाजा बंद रखें, ताकि बगल के कमरे में ज्यादा आवाज न आए।
- रात में बच्चे के बोलने की आवाज सुनाई न दें, इसके लिए सोते समय ईयर प्लग लगा सकते हैं।
आगे हम बच्चों के नींद में बात करने से जुड़े कुछ जरूरी टिप्स दे रहे हैं।
बच्चों के नींद में बात करना बंद करने के 10 टिप्स | Bachoo Ka Neend Me Bolna Kaise Roke
बच्चों के नींद में बात करना बंद कराने के लिए कुछ टिप्स को अपनाया जा सकता है, जिनमें ये शामिल हैं:
- बच्चों के सोने का टाइम टेबल बनाएं। सोने के समय का नियमित रूप से पालन करें। उन्हें दिन हो या रात एक नियमित समय पर ही सुलाएं (2)।
- इस बात का ध्यान रखें कि बच्चों को पर्याप्त नींद मिले और जब वह सो रहा हो तब शोर होने न दें।
- बच्चे के बिस्तर को साफ और कमरे के तापमान को सामान्य रखें।
- बिस्तर के पास तेज रोशनी वाली लाइट लगाने से बचें।
- बच्चों के सोने से पहले उन्हें वसा युक्त और मसालेदार खाद्य पदार्थ देने से बचें। ऐसे खाद्य पदार्थ जल्दी नहीं पचते हैं, जो नींद में रुकावट का कारण बन सकते हैं (6)।
- बच्चे के कमरे में सुबह अच्छी रोशनी और रात में पर्याप्त अंधेरा होना चाहिए।
- इस बात का खास ध्यान रखें कि बच्चा रोजाना पर्याप्त शारीरिक गतिविधि जैसे साइकिल चलाना, तैरना और अन्य खेल जरूर खेले। ऐसे करने से बच्चे की नींद की गुणवत्ता बढ़ सकती है (7)।
- बच्चों को रात में कैफीन युक्त खाद्य पदार्थ देने पर नींद संबंधित समस्या हो सकती है और स्लीप टॉकिंग भी एक प्रकार का नींद संबंधी समस्या है (2)।
- बच्चे को आरामदायक कपड़ों में ही सुलाएं।
- बच्चों से खुलकर बातें करें। ऐसा करने से उनके दिमाग में ऐसी कोई बात बैठी नहीं रहेगी, जिसे वो नींद में बोलें।
सोते समय बड़बड़ाना किसी तरह की गंभीर समस्या नहीं होती है, पर यह किसी समस्या का लक्षण हो सकता है। इसलिए, बचपन में नींद में बोलने की समस्या को ध्यान में रखकर सही कदम उठाए जाएं, तो इसे ठीक किया जा सकता है। वहीं, इस परेशानी को कम करने के लिए लेख में बताए गए तरीके को बच्चों पर अपना सकते हैं।
References
2. Sleep Disorders By Medlineplus
3. Sleep talking By NCBI
4. Sleep talking: A viable access to mental processes during sleep By NCBI
5. Sleep talking: A viable access to mental processes during sleep By Elsevier
6. Effects of Diet on Sleep Quality By NCBI
7. Brief Report: Influence of Physical Activity on Sleep Quality in Children with Autism By NCBI
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