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बच्चे बीमारियों की चपेट में अक्सर जल्दी आ जाते हैं। एक ऐसी ही बीमारी रूबेला भी है, जिसे जर्मन खसरा भी कहा जाता है। इससे बचाव के लिए जागरूकता और सतर्कता दोनों जरूरी है। रूबेला क्या है और यह बच्चों को कैसे प्रभावित करता है, जानने के लिए मॉमजंक्शन के इस आर्टिकल को पढ़ें। यहां बच्चों को रूबेला वायरस कैसे संक्रमित करता है और बच्चों को रूबेला से कैसे बचाया जा सकता है, जैसे तमाम सवालों के जवाब आपको मिलेंगे।

लेख में सबसे पहले जानते हैं कि रूबेला वायरस बच्चों को होता है या नहीं।

क्या बच्चों को रूबेला वायरस हो सकता है? | Rubella Kya Hai In Hindi

हां, बच्चों को रूबेला वायरस हो सकता है। यह बच्चों में होने वाले संक्रामक वायरल इंफेक्शन में से एक है। इसके लक्षण भी लगभग खसरे जैसे ही दिखते हैं, लेकिन इसे फैलने के लिए जिम्मेदार वायरस खसरा वायरस से अलग होते हैं (1)। यह संक्रमित बच्चे के खांसने और छींकने से फैलता है। इसमें हल्का बुखार और शरीर पर लाल दाने (रैशेज) उभर आते हैं। कुछ मामलों में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते, लेकिन फिर भी यह संक्रमण उससे दूसरों तक फैल सकता है (2)

आगे पढ़िए कि बच्चों में रूबेला संक्रमण के कारण क्या-क्या होते हैं।

बच्चों में रूबेला संक्रमण के कारण | Bachoo Me Rubella Hone Ke Karan

रूबेला होने का सबसे बड़ा कारण इसका वायरस ही है। रूबेला वायरस को काफी संक्रामक कहा जाता है। आगे जानिए कि यह वायरस किस तरह से एक बच्चे से दूसरे तक पहुंचता है (2) (3)

  • छींकने या खांसने से
  • रूबेला वायरस के सीधे संपर्क में आने से
  • हवा के माध्यम से
  • संक्रमित के कफ से
  • संक्रमित व्यक्ति द्वारा छुए गए सतह को छूने पर
  • यह वायरस गर्भवती महिला से उसके अजन्मे बच्चे को भी हो सकता है

आर्टिकल के अगले भाग में जानते हैं कि बच्चों में रूबेला के क्या-क्या लक्षण नजर आ सकते हैं।

बच्चों में रूबेला (खसरा) के लक्षण | Bachoo Me Rubella Symptoms In Hindi

बच्चों में इसके लक्षणों को पहचानना थोड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि बच्चों में रूबेला के लक्षण हल्के होते हैं। रेड रैशेज इसका पहला लक्षण हो सकता है, जो ज्यादातर चेहरे से शुरू होकर पूरे शरीर में फैलता है। ये रैशेज तीन दिन तक रहते हैं। इसके अलावा, बच्चों में नीचे बताए गए लक्षण भी नजर आ सकते हैं (4):

  • हल्का बुखार होना
  • बच्चों में सिरदर्द
  • बच्चों की नाक बहना
  • बच्चों में खांसी की शिकायत होना
  • आंखों में सूजन या लाल होना
  • लिम्फ नोड्स (प्रतिरक्षा प्रणाली से संबंधित ग्रंथि) का बढ़ना या सूजन

आगे जानिए कि बच्चों में रूबेला का पता लगाने के लिए क्या-क्या परीक्षण किए जाते हैं।

बच्चों में रूबेला होने पर परीक्षण

रूबेला संक्रमण के कारण होने वाले रैशेज अन्य वायरल इंफेक्शन की वजह से होने वाले रैशेज जैसे ही दिखते हैं। इसी वजह से डॉक्टर रूबेला संक्रमण के निदान के लिए लैब टेस्ट की सलाह देते हैं ।

बल्ड टेस्ट : इस परीक्षण में रूबेला का पता लगाने के लिए ब्लड सैंपल लिया जाता है, जो रक्त में रूबेला से लड़ने वाले एंटीबॉडीज की मौजूदगी का पता लगाते हैं। साथ ही इस टेस्ट के जरिए शरीर में मौजूद इंफेक्शन की भी पहचान हो सकती है (5)

आरटी पीसीआर टेस्ट:  इसमें रूबेला वायरस का पता लगाने के लिए गले से कण या टिश्यू सैंपल लिए जाते हैं। इस टेस्ट से रूबेला वायरस के बारे में जल्दी पता लगाने में मदद मिल सकती है (6)

आइए, अब जानते हैं बच्चों को रूबेला से क्या-क्या परेशानियां हो सकती हैं।

बच्चों में रूबेला से होने वाली परेशानियां

बहुत कम मामलों में रूबेला बच्चों में गंभीर समस्याएं पैदा करता है, जिसमें मस्तिष्क में संक्रमण और रक्तस्राव शामिल हैं। हां, अगर बच्चे को मां के गर्भ में ही रूबेला हो जाता है, तो उसे कुछ इस प्रकार की परेशानियां हो सकती हैं (5) (7) :

  • हृदय रोग
  • दृष्टि से जुड़ी समस्याएं
  • हार्ट डैमेज
  • बौद्धिक अक्षमता
  • लिवर डैमेज
  • स्प्लीन (पेट के बाईं ओर स्थित अंग, जो रक्त को स्टोर, फिल्टर करता है) का डैमेज होना

चलिए, जानते हैं बच्चों को रूबेला से किस तरह बचा जा सकता है।

बच्चों को रूबेला से कैसे बचाएं?

रूबेला से बच्चों को बचाने का बस एक ही तरीका है और वो है एमएमआर वैक्सीन। इस वैक्सीन की मदद से बच्चों को रूबेला वायरस से बचाया जा सकता है (8)। यह बीमारी एक से दूसरे में जल्दी फैलती है। इसी वजह से इस संक्रामक बीमारी की चपेट में आने वाले बच्चों को 7 दिन तक स्कूल और घर से बाहर नहीं भेजना चाहिए (9)

यहां हम आपको रूबेला से बचाव के लिए लगाए जाने वाले टीके की जानकारी दे रहे हैं।

रूबेला बीमारी के लिए टीकाकरण

रूबेला संक्रमण से बचाव के लिए एमएमआर (MMR) वैक्सीन दी जाती है। सीडीसी के अनुसार, इसका पहला टीकाकरण 12 से 15 महीने की उम्र में करवाना चाहिए। दूसरा टीका 4 से 6 साल की उम्र में लगवाया जाता है। एमएमआर वैक्सीन को सुरक्षित और प्रभावी बताया जाता है (8)

बस यह वैक्सीन गर्भवतियों को लगाने की सलाह नहीं दी जाती है (10)। इसके अलावा, जिन लोगों को जिलेटिन से जानलेवा एलर्जिक रिएक्शन होता है या जिन्हें एमएमआर वैक्सीन की पहली डोज से रिएक्शन हुआ है, उन्हें भी यह वैक्सीन नहीं देना चाहिए (11)

हम आगे बता रहे हैं कि बच्चों को रूबेला होने पर डॉक्टर से कब संपर्क करना चाहिए।

डॉक्टर के पास कब जाएं?

यदि बच्चा किसी रूबेला संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आया है या उसमें रूबेला संक्रमण के कोई लक्षण दिखते हैं, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।

आगे जानिए कि रूबेला होने पर बच्चों का इलाज किस तरह से किया जाता है।

बच्चों में रूबेला बीमारी का उपचार कैसे किया जाता है?

रूबेला के इलाज के लिए कोई दवा नहीं है। बच्चों में इसके लक्षण मामूली होते हैं। आमतौर पर रूबेला संक्रमण के उपचार की कोई जरूरत नहीं होती है। इसमें डॉक्टर संक्रमित को अकेले रहने और बेड रेस्ट करने की सलाह देते हैं। साथ ही बच्चे की स्थिति को देखते हुए विशेषज्ञ बुखार को कम करने की दवा भी दे सकते हैं (12)

स्क्रॉल करके पढ़ें रूबेला वैक्सीन लगाने से क्या-क्या साइड इफेक्ट्स नजर आ सकते हैं।

बच्चों में रूबेला वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स

सीडीसी के अनुसार, रूबेला वैक्सीन का इस्तेमाल सुरक्षित है। हां, कुछ बच्चों में रूबेला वैक्सीन के निम्न साइड इफेक्ट्स नजर आ सकते हैं (13):

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

क्या एमएमआर टीकाकरण से ऑटिज्म बीमारी हो सकती है?

एनसीबीआई की वेबसाइट पर उपलब्ध एक शोध के अनुसार, एमएमआर वैक्सीन का बच्चों में ऑटिज्म से कोई संबंध नहीं है (14)

खसरे से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के कितने समय बाद लक्षण दिखते हैं?

खसरे से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के 14 से 21 दिनों के बीच हल्का बुखार और रैशेज जैसे लक्षण दिख सकते हैं (15)

क्या एमएमआर टीकाकरण सुरक्षित है?

हां, एमएमआर वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित और रूबेला से बचाव में असरदार है। इसे लगाने से बस कुछ मामूली साइड इफेक्ट्स, जैसे – बुखार, हल्के रैशेज आदि दिख सकते हैं (13)

बच्चों में रूबेला संबंधित जरूरी जानकारी आपको इस आर्टिकल के माध्यम से हासिल हो गई होगी। बच्चों को समय रहते इसका टीका लगाकर उन्हें इससे बचाया जा सकता है। अगर किसी कारण आप ऐसा नहीं कर पाए हैं और बच्चों में रूबेला के लक्षण दिखने लगे हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें, क्योंकि किसी भी बीमारी का वक्त रहते इलाज करना जरूरी है। आप रूबेला संबंधित इस लेख को अपने दोस्तों संग साझा करके उन्हें जागरूक करें और बच्चों को इस बीमारी से बचाने में अपना योगदान दें।

References

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