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राह चलते आपने अक्सर कुछ ऐसे लोगों को देखा होगा, जो शरीर के किसी अंग में खराबी के कारण विकलांगता का शिकार हो चुके होते हैं। ऐसा उनके साथ किसी दुर्घटना का शिकार होने के कारण होता है या फिर उनमें यह स्थिति बचपन से होती है। बचपन से होने वाली इसी समस्या को पोलियो कहा जा सकता है। कई बार विकलांगता का कारण भी पोलियो ही होता है। एक समय में भारत के अंदर इस बीमारी ने कई मासूमों को अपना शिकार बनाया था। वहीं, अब केंद्र सरकार भारत को पोलियो मुक्त राष्ट्र घोषित कर चुकी है। मॉमजंक्शन के इस विशेष लेख में हम आपको पोलियो से जुड़े कई तथ्यों के बारे में जानकारी देंगे।
शुरुआत हम पोलियो के परिचय से करते हैं।
पोलियो क्या है?
पोलियो एक ऐसी बीमारी है, जिसे संक्रामक बीमारियों की श्रेणी में रखा गया है। पोलियोमाइलाइटिस (Poliomyelitis) या पोलियो नामक बीमारी पोलियो वायरस के कारण होती है। पोलियो शरीर को अपंग बना देने वाली एक घातक संक्रामक बीमारी है। पोलियो का यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे को हो सकता है। पोलियो वायरस पीड़ित के मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड (Spinal Cord) को प्रभावित कर सकता है, जिससे लकवा का जोखिम भी बढ़ सकता है। इस स्थिति में शरीर के कुछ हिस्सों को अलग भी नहीं किया जा सकता है (1)।
लेख के अगले भाग में हम भारत में पोलियो की स्थिति के बारे में बताएंगे।
क्या भारत में पोलियो आम है?
नहीं, मौजूदा आंकड़ों पर अगर नजर डालें, तो यह स्थिति साफ हो जाती है कि वर्तमान समय में पोलियो के मामले लगभग खत्म हो चुके हैं। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि एक वैज्ञानिक रिपोर्ट के आधार पर यह बताया गया है कि पोलियो के सबसे ज्यादा मामले 1985 में देखे गए, जब पोलियो से ग्रसित लोगों की संख्या 1.50 लाख हजार थी। इसकी रोकथाम के लिए उठाए गए कदम के कारण 2011 में पोलियो का केवल एक मामला सामने आया था। इसके बाद से आज तक भारत में पोलियो के मामले देखने को नहीं मिले हैं (2)। वहीं, हम जानकारी दे दें कि 27 मार्च 2014 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत को पोलियो मुक्त देश घोषित किया, क्योंकि पांच वर्षों तक वाइल्ड पोलियो के कोई मामले सामने नहीं आए।
लेख के इस भाग में आपको बताया जा रहा है कि भारत में पल्स पोलियो कार्यक्रम कब शुरू किया गया था।
भारत में पल्स पोलियो कार्यक्रम कब शुरू किया गया था?
विश्व में पोलियो की बढ़ती हुई घटनाओं को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सन 1988 में पोलियो को खत्म करने के लिए विश्व स्तरीय पहल की। इसमें भारत भी शामिल था। इसके बाद पोलियो को जड़ से खत्म करने के लिए 1995 में भारत के द्वारा पल्स पोलियो कार्यक्रम (पीपीआई कार्यक्रम) की शुरुआत की गई। पल्स पोलियो कार्यक्रम के तहत पांच साल से कम उम्र के सभी बच्चों को, पोलियो के खत्म होने तक हर साल दिसंबर और जनवरी माह में ओरल तरीके से पोलियो की खुराक पिलाने की शुरुआत की गई (2)।
आइए, अब जानते हैं कि पोलियो पल्स इम्यूनाइजेशन बच्चों के लिए किस प्रकार जरूरी है।
पोलियो पल्स इम्यूनाइजेशन बच्चों के लिए महत्वपूर्ण क्यों हैं?
पोलियो वैक्सीन शरीर में पोलियो वायरस को निष्क्रिय करके उसके खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है। पोलियो वैक्सीन के टीकाकरण के बाद यह भविष्य में होने वाले पोलियो के संक्रमण के खतरे को खत्म कर देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 1988 में टीकाकरण के बाद से दुनिया भर में पोलियो के मामलों की संख्या में 99% से अधिक कमी आई है। इसके कारण लगभग 1.6 करोड़ लोगों की जान बचाई जा सकी (3)। इसलिए, आप 5 वर्ष या उससे कम के शिशु को पोलियो का टीका जरूर लगवाएं, ताकि उन्हें पोलियो के खतरे से सुरक्षित रखा जा सके और पोलियो वायरस को भी फैलने से रोका जा सके।
लेख के अगले भाग में हम ओपीवी/आईपीवी कार्यक्रम की बात करेंगे।
बच्चों को ओपीवी/आईपीवी की खुराक कैसे और कब-कब दी जानी चाहिए?
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि ओपीवी (OPV) और आईपीवी (IPV) किस प्रकार कार्य करते हैं। दरअसल ओपीवी को ओरल पोलियो वैक्सीन कहा जाता है, जबकि आईपीवी को इनएक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन कहा जाता है (4)। आईपीवी बच्चों को टाइप 1, टाइप 2 और टाइप 3 पोलियो वायरस से बचाने का काम करता है। वहीं, ओपीवी केवल टाइप 1 और टाइप 2 पोलियो वायरस से ही बच्चों को बचाने का काम करता है। यही वजह है कि ओपीवी के साथ आईपीवी की खुराक को जरूरी माना गया है। अब नीचे दी गई तालिका के माध्यम से समझिए कि ओपीवी और आईपीवी की खुराक कैसे और कब-कब दी जानी चाहिए (5)।
खुराक का नाम | कैसे दिया जाता | कब (किस उम्र में) | कितनी मात्रा में |
---|---|---|---|
ओपीवी | ओरल रूप में | जन्म के समय शिशु को पोलियो की जीरो डोज दी जाती है। फिर, छठे सप्ताह, 10वें सप्ताह और 14वें सप्ताह में, (5 साल की उम्र तक दिया जा सकता है।) | एक बार में केवल 2 बूंद |
आईपीवी (fIPV) | इंजेक्शन के जरिए | छठे व 14वें सप्ताह में | एक बार में केवल 0.1 एमएल |
आइए, अब पोलियो होने पर नजर आने वाले लक्षणों की बात कर लेते हैं।
पोलियो वायरस बच्चों को कैसे प्रभावित करता है?
पोलियो वायरस मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। पोलियो वायरस मांसपेशियों को कमजोर बना देता है, जिससे लकवा होने का जोखिम बढ़ जाता है। यह स्पाइनल कॉर्ड को भी प्रभावित करता है। पोलियो के लक्षण को इस प्रकार समझा जा सकता है (6)।
- बुखार
- सिरदर्द होना
- मांसपेशियों में कमजोरी
- थकावट महसूस होना
- मतली (Nausea) और उल्टी
इसके अतिरिक्त 1-2% संक्रमण की स्थिति में यह देखा गया कि मांसपेशियों, गर्दन में दर्द और पीठ में अकड़न बनी रहती है। वहीं, पोलियो के एक प्रतिशत से भी कम मामलों में लकवा (Paralysis) भी हो सकता है।
आर्टिकल के इस अहम हिस्से में शहर-वार पल्स पोलियो ड्रॉप डेट्स की जानकारी दे रहे हैं।
भारत में महत्वपूर्ण शहर-वार पल्स पोलियो ड्रॉप डेट्स 2019
भारत में 2019 को पोलियो पिलाने की तारीख मुख्य रूप से 16 जून और 15 सितंबर को ‘पोलियो रविवार’ के रूप में रखी गई थी (7)। इसके अतिरिक्त 2019 में महत्वपूर्ण शहरवार पल्स पोलियो ड्रॉप्स डेट्स कुछ इस प्रकार हैं :
शहर | पोलियो डेट |
---|---|
दिल्ली | 10 मार्च, 2019 |
मुंबई | 10 मार्च, 2019 |
बेंगलुरु | 10 मार्च, 2019 |
हैदराबाद | 10 मार्च, 2019 |
चेन्नई | 10 मार्च, 2019 |
गुरुग्राम (गुणगांव) | 15 सितंबर, 2019 |
नोएडा | 10 मार्च, 2019 |
चंडीगढ़ | 15-17 सितंबर, 2019 |
पुणे | 10 मार्च, 2019 |
कोलकाता | 10 मार्च, 2019 |
लेख के अगले भाग में आप यह जानेंगे कि अभियान के दौरान पोलियो की दवाई लेने से भूलने पर क्या करें।
क्या करें अगर अभियान के दौरान शिशु को पोलियो की खुराक देना भूल जाएं?
कभी-कभी किसी कारणवश ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, लेकिन आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। अगर आप अभियान के दौरान अपने बच्चे को पोलियो की खुराक पिलाने से छूट जाएं, तो अपने नजदीकी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जाकर पोलियो की खुराक पिला सकते हैं।
पल्स पोलियो टीकाकरण के बारे में अन्य जानकारी के लिए पढ़ते रहें यह आर्टिकल।
क्या यह पल्स पोलियो प्रतिरक्षण का अंतिम वर्ष है?
नहीं, पल्स पोलियो टीकाकरण का यह अंतिम वर्ष नहीं है, क्योंकि पोलियो अभी भी अफगानिस्तान, नाइजीरिया और पाकिस्तान में बना हुआ है। यह संक्रमण के जरिए भारत में प्रवेश कर सकता है। यही वजह है कि आशंकित खतरे से निपटने के लिए अभी भी पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान को चलाया जा रहा है, ताकि भविष्य में दोबारा पोलियो की चपेट आने से भारत बचा रहे (8)। यही कारण है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के द्वारा भारत के विभिन्न हिस्सों के लिए पल्स पोलियो अभियान-2019 को शुरू किया गया है (9)।
आइए, अब जानते हैं कि किसे पोलियो वैक्सीन का टीका नहीं लगना चाहिए।
किसे पोलियो वैक्सीन का टीकाकरण नहीं लगाना चाहिए?
पोलियो वैक्सीन का टीकाकरण निम्न लोगों को नहीं लगना चाहिए (10) :
- उन व्यस्क लोगों को पोलियो वैक्सीन की जरूरत नहीं है, जिनका बचपन में टीकाकरण हो चुका है।
- अगर किसी को आईपीवी के टीके के बाद जानलेवा एलर्जी देखने को मिलती है या इस टीके के किसी हिस्से से कोई भी गंभीर एलर्जी होती है, तो ऐसे लोगों को टीका नहीं लगने की सलाह दी जा सकती है। इस स्थिति में एक बार डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
- अगर आप गंभीर रूप से बीमार हैं, तो उसका तब तक टीकाकरण नहीं करवाना चाहिए, जब तक कि वह ठीक नहीं हो जाए। इस स्थिति में एक बार चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।
इस लेख में अभी आपने पढ़ा कि पल्स पोलियो की केवल दो बूंद से अपने बच्चे को आप पोलियो के संक्रमण से दूर रख सकते हैं। इसके अतिरिक्त यदि आप किसी ऐसे देश की यात्रा पर जा रहे हैं, जहां पोलियो का संक्रमण फैला हुआ है, तो एक बार डॉक्टर से जरुर मिलें। यदि आपने बचपन में अपने बच्चों को कभी भी पोलियो का टीकाकरण नहीं करवाया है, तो आप अपने बच्चों को पोलियो का टीकाकरण कभी भी करवा सकते हैं। उम्मीद है इस लेख में दी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
References
2. Pulse Polio By Archive India
3. Poliomyelitis By WHO
4. Polio and the Introduction of IPV By WHO
5. National Immunization Schedule (NIS) for Infants, Children and Pregnant Women By Ministry of Health & Family Welfare
6. Poliomyelitis By Department of Health
7. Introductory Note on Pulse Polio Programme with Proposed newer initiatives-An Appraisal By National Health Portal
8. पल्स पोलियो By Archive India
9. President launches countrywide Pulse Polio Programme for 2019 By Press Information Bureau
10. Polio VIS By Centre of Disease Control and Prevention
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