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जन्म के बाद से ही बच्चों को अतिरिक्त सुरक्षा व देखभाल की जरूरत होती है। कारण यह है कि प्रसव के बाद भी बच्चे का शरीर पूर्ण रूप से विकसित नहीं होता। वयस्कों और किशोरों के मुकाबले उनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर रहती है। ऐसे में उन्हें बैक्टीरियल और वायरल इंफेक्शन होने का खतरा बना रहता है। इन्हीं इंफेक्शन में से एक है रोटावायरस। बच्चों में डायरिया की समस्या के लिए मुख्य रूप से यह वायरस जिम्मेदार माना जाता है। ऐसे में कई माताएं सामान्य डायरिया और रोटावायरस इंफेक्शन के बीच फर्क नहीं कर पाती हैं। विषय की इसी गंभीरता को देखते हुए हम मॉमजंक्शन के इस लेख में रोटावायरस से जुड़े कारण, लक्षण और इलाज से संबंधित कई जरूरी जानकारियां दे रहे हैं। साथ ही लेख में हम इस समस्या से बचाव संबंधी कुछ उपाय भी बताएंगे।
विषय से जुड़ी अन्य जरूरी जानकारियां हासिल करने से पहले आइए हम रोटावायरस क्या है, थोड़ा इस बारे में जान लेते हैं।
रोटावायरस क्या है?
रोटावायरस एक प्रकार का वायरस इंफेक्शन है, जो इंसान की आंतों को अपना शिकार बनाता है। इस वायरस की वजह से रोगी को गैस्ट्रोएंटेराइटिस रोग (आंतों का इंफेक्शन) होता है (1)। इस समस्या में रोगी भोजन से मिलने वाले जरूरी पोषक तत्वों को ठीक से ग्रहण नहीं कर पाता। नतीजतन, इस वायरस की चपेट में आने पर रोगी बेजान-सा महसूस करने लगता है। यह वायरस मुख्य रूप से बच्चों को अधिक प्रभावित करता है (2)।
लेख के अगले भाग में हम रोटावायरस से प्रभावित होने वाले बच्चों के सामान्य आंकड़ों के बारे में बात करेंगे।
बच्चों में रोटावायरस संक्रमण होना कितना आम है?
विशेषज्ञों के मुताबिक, सामान्य तौर पर अधिकतर बच्चे जन्म से लेकर पांच साल की उम्र के बीच करीब एक बार रोटावायरस इंफेक्शन की चपेट में आ सकते हैं (1)। वहीं, अगर आंकड़ों की बात करें, तो इसे हम भारत और अमेरिका में किए गए शोध के हिसाब से ज्यादा बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।
भारत में किए गए शोध के अनुसार रोटावायरस से ग्रस्त होने वाले बच्चों के अनुमानित आंकड़े (3)।
बच्चों की उम्र | प्रतिशत |
---|---|
0-6 महीने | 14.28% |
6-10 महीने | 25.4% |
11-15 महीने | 24.7% |
16-20 महीने | 23.9% |
अमेरिका में किए गए शोध के आधार पर रोटावायरस से ग्रस्त होने वाले बच्चों के आंकड़े (4)।
- अमेरिका की स्थिति पर नजर डालें, तो यहां तीन महीने से 35 महीनों के बीच के बच्चों में रोटावायरस से ग्रस्त होने की आशंका सबसे अधिक होती है।
- जन्म से पांच साल की उम्र तक करीब 95 प्रतिशत बच्चे इस वायरस का शिकार होते हैं।
- चार लाख से अधिक बच्चे इस वायरस के कारण डॉक्टर के पास पहुंचते हैं।
- करीब दो लाख बच्चे गंभीर रूप से इस वायरस से ग्रस्त होते हैं।
- 55 से 70 हजार की संख्या में बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है।
- वहीं, सालाना 20 से 60 की संख्या में बच्चों की मौत भी हो सकती है।
रोटावायरस से ग्रस्त होने वाले बच्चों के आंकड़ों को जानने के बाद अब हम इसके फैलने के कारणों पर नजर डालेंगे।
शिशुओं में रोटावायरस कैसे फैलता है?
रोटावायरस मुंह के जरिए पेट में जाकर आंतों को प्रभावित करता है। अब इसके मुंह तक पहुंचने के कई कारण हो सकते हैं। आइए, उन कारणों पर डालते हैं एक नजर (5)।
- संक्रमित व्यक्ति के मल त्याग करने के बाद हाथों को साफ न रखने के कारण। दरअसल, अगर कोई रोटावायरस संक्रमित रोगी अपने हाथों को साफ नहीं रखता और बच्चों को संक्रमित हाथों से छूता है, तो वायरस बच्चे को संक्रमित कर सकता है।
- संक्रमित खिलौने या किसी वस्तु को छूने से भी यह वायरस फैल सकता है। जब रोटावायरस से संक्रमित व्यक्ति गंदे हाथों से किसी वस्तु को छूता है, तो वायरस के कुछ अंश उस वस्तु पर छूट जाते हैं। ऐसे में जब बच्चा उस वस्तु को छूकर अपना हाथ मुंह तक ले जाता है, तो वह संक्रमित हो सकता है।
- संक्रमित खाना खाने से भी बच्चे में यह वायरस फैल सकता है। दरअसल, रोटावायरस से ग्रस्त बच्चे की साफ-सफाई का ध्यान न रखने की स्थिति में जब वह किसी खाद्य पदार्थ को छूता है, तो वायरस के कुछ अंश भोजन में भी आ जाते हैं। ऐसे संक्रमित भोजन को जब कोई दूसरा खाता है, तो वह आसानी से इस वायरस की चपेट में आ सकता है।
रोटावायरस के फैलने के कारण जानने के बाद अब हम इसके जोखिम कारकों को जानने का प्रयास करेंगे।
रोटावायरस संक्रमण के जोखिम कारक
रोटावायरस संक्रमण के जोखिम कारक कुछ इस प्रकार हैं।
- उम्र- लेख में ऊपर बताया गया है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों में रोटावायरस इंफेक्शन होने की आशंका अधिक रहती हैं। वहीं, जन्म के बाद के कुछ महीनों में बच्चों में इस वायरस के संक्रमण की आशंकाएं और प्रबल हो जाती हैं। साथ ही जन्म से लेकर पहले छह महीने में इसके होने का जोखिम उच्चतम स्तर पर रहता है (6)।
- मौसम- बताया जाता है कि सर्दी और बसंत ऋतु (जनवरी से जून तक) में रोटावायरस इंफेक्शन का खतरा अधिक रहता है (1)।
- साफ-सफाई का न होना- दूषित हाथों, खाद्य पदार्थ या पानी से यह संक्रमण फैलता है। ऐसे में जरूरी है कि परिवार में सभी लोग खुद के साथ बच्चे की साफ-सफाई का खास ख्याल रखें (6)।
- भीड़भाड़ वाली जगह पर- जैसा कि आप जान ही चुके हैं कि रोटावायरस दूषित हाथों व खाद्य पदार्थ या पानी से फैलता है (6)। इसलिए, भीड़भाड़ वाली जगह, जहां आपका बच्चा अपना अधिकांश समय गुजारता है, (जैसे:- प्ले ग्रुप या डे-बोर्डिंग) वहां संक्रमण के फैलने की आशंका बढ़ जाती है।
लेख के अगले भाग में हम रोटावायरस इंफेक्शन के कुछ लक्षणों के बारे में बता रहे हैं।
रोटावायरस संक्रमण के लक्षण
रोटावायरस इंफेक्शन होने पर आपको कुछ इस प्रकार के लक्षण देखने को मिल सकते हैं (4)।
- बार-बार पानी जैसा मल आना (वाटरी डायरिया)।
- पानी की कमी (डिहाइड्रेशन)।
- तेज बुखार आना।
- बार-बार उल्टी आना।
- पेट दर्द या पेट में मरोड़ होना।
रोटावायरस के लक्षणों को जानने के बाद अब हम इस संक्रमण के कारण होने वाली जटिलताओं के बारे में बताएंगे।
रोटावायरस संक्रमण से होने वाली जटिलताएं
कुछ मामलों में रोटावायरस संक्रमण के कारण निम्न जटिलताएं भी देखने को मिल सकती हैं। आइए, इनके बारे में भी थोड़ा जान लेते हैं (4)।
- गंभीर दस्त की समस्या
- पानी की कमी की समस्या का बने रहना (डिहाइड्रेशन)।
- इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन।
- मेटाबॉलिक एसिडोसिस की समस्या (पाचन में सहायक अम्लों की अधिकता)।
- किडनी और लिवर से संबंधित जटिल समस्याएं।
आइए, अब रोटावायरस इंफेक्शन के लिए किए जाने वाले टेस्ट के बारे में भी जान लेते हैं।
रोटावायरस इंफेक्शन का निदान
रोटावायरस के निदान के लिए डॉक्टर संक्रमित बच्चे के मल की जांच कराने की सलाह देते हैं, जिससे इस बात की पुष्टि की जा सके कि बच्चा वाकई में वायरस से ही ग्रस्त है। इसके लिए बच्चे के मल को लैब टेस्टिंग के लिए ले जाया जाता है। लैब में विशेषज्ञ मल की जांच कर रोटावायरस के अंश हासिल करने की कोशिश करते हैं (4)।
लेख के इस अहम भाग में हम इस बीमारी के इलाज के बारे में बता रहे हैं।
रोटावायरस इंफेक्शन का इलाज
फिलहाल, रोटावायरस इंफेक्शन का कोई भी इलाज उपलब्ध नहीं है। इसके उपचार के लिए केवल बचाव संबंधी उपायों को अपनाया जाता है। इसलिए, डॉक्टर संक्रमित बच्चे को अधिक से अधिक पानी पिलाने की सलाह देते हैं, ताकि डिहाइड्रेशन की समस्या से बचाव किया जा सके। वहीं, गंभीर स्थिति में डिहाइड्रेशन की समस्या से बचाव के लिए इंट्रावेनस यानी आईवी विधि (सुई की सहायता से पानी और अन्य जरूरी तत्वों की पूर्ति करने की प्रक्रिया) के लिए अस्पताल में भर्ती करने की सलाह दी जाती है (1)।
लेख के अगले भाग में हम रोटावायरस संक्रमित बच्चे की देखभाल संबंधी जानकारी दे रहे हैं।
रोटावायरस इंफेक्शन से पीड़ित बच्चों की घर में देखभाल कैसे करें?
रोटावायरस इंफेक्शन से बचाव के लिए आप निम्न बातों को ध्यान में रखते हुए संक्रमित बच्चे की देखभाल कर सकते हैं (1) (7)।
- छह महीने से छोटे बच्चों में पानी की कमी मां के दूध से ही पूरी हो जाती है। इसलिए, उसे थोड़ी-थोड़ी देर पर स्तनपान कराते रहना चाहिए।
- रोटा वायरस इंफेक्शन से संक्रमित बच्चे को जिंक सप्लीमेंट देने की आवश्यकता होती है।
- डॉक्टरी सलाह पर छह महीने से बड़े संक्रमित बच्चों को चीनी और नमक की थोड़ी-थोड़ी मात्रा पानी में मिलाकर कुछ-कुछ समय के अंतराल पर देना लाभकारी हो सकता है।
- वहीं, डॉक्टरी सलाह पर ओआरएस घोल का उपयोग भी किया जा सकता है।
- समस्या गंभीर होने की स्थिति में आईवी विधि के लिए अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए।
- सोडा, सपोर्ट ड्रिंक और फ्रूट जूस नहीं देना चाहिए, यह डायरिया की समस्या को बढ़ा सकते हैं।
- अगर बच्चा ठोस आहार लेता है, तो उसे नियमित भोजन कराना चाहिए। ध्यान रखें कि भोजन कराते समय बच्चे के साथ जबरदस्ती न करें।
देखभाल संबंधी जानकारी हासिल करने के बाद अब हम रोटावायरस इंफेक्शन की समयावधि के बारे में जानेंगे।
रोटावायरस इंफेक्शन बच्चों में कब तक रहता है?
रोटावायरस इंफेक्शन के गंभीर लक्षण (उल्टी और दस्त) करीब तीन से आठ दिन तक बने रह सकते हैं, लेकिन यह कहना थोड़ा मुश्किल हो सकता है कि यह वायरस कितने दिन तक बच्चे के शरीर में रहेगा। इस विषय में डॉक्टरी परामर्श लेना ज्यादा उचित रहेगा। साथ ही संक्रमण के दौरान देखभाल संबंधी उपरोक्त बताए गए सभी उपायों को अपनाते रहें (1)।
लेख के अगले भाग में हम रोटावायरस इंफेक्शन से बचाव संबंधी उपायों के बारे में बताएंगे।
शिशुओं को रोटावायरस इंफेक्शन से कैसे बचाएं?
बचाव संबंधी कुछ उपायों को अपना कर आप अपने बच्चे को रोटावायरस इंफेक्शन से दूर रख सकते हैं (8)।
- जन्म के बाद बच्चे को रोटावायरस से बचाव संबंधी टीका जरूर लगवाएं। रोटावायरस वैक्सीन 6 सप्ताह से 8 वर्ष की आयु तक दिया जाता है।
- इस समस्या की गंभीरता को देखते हुए कई देशों में इस टीके को मुख्य रूप से सरकारी टीकाकरण चार्ट में प्राथमिकता दी गई है।
- फलों को अच्छे से धोकर खाने के लिए इस्तेमाल में लाएं।
- सब्जियों को धोकर और अच्छे से पकाकर ही सेवन के लिए इस्तेमाल में लाएं।
- मल त्याग के बाद अपने और बच्चों के हाथों को साफ करने पर विशेष ध्यान दें।
- छोटे बच्चों को छूने से पहले अपने हाथों को अच्छे से धोएं।
संक्रमित बच्चे को डॉक्टर के पास कब ले जाना चाहिए? इस सवाल का जवाब आपको लेख के अगले भाग में मिलेगा।
डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए?
बच्चे को गंभीर डायरिया और डिहाइड्रेशन होने की स्थिति में बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए, ताकि समय रहते ही बच्चे को होने वाली जटिलताओं से बचाया जा सके (7)।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
क्या टीकाकरण के बाद भी शिशुओं को रोटावायरस संक्रमण हो सकता है?
टीकाकरण के बाद बच्चों में रोटावायरस संक्रमण की आशंकाएं काफी हद तक कम हो जाती हैं। वहीं, कुछ मामलों में टीकाकरण के बाद भी बच्चा संक्रमित हो सकता है, लेकिन बच्चे पर वायरस के प्रभाव के लक्षण काफी हद तक कम प्रदर्शित होते हैं (4)।
क्या शिशुओं को एक से अधिक बार रोटावायरस संक्रमण हो सकता है?
जी हां, साफ-सफाई और बचाव संबंधी उपायों को न अपनाने की स्थिति में बच्चा एक से अधिक बार इस संक्रमण की चपेट में आ सकता है।
भारत में रोटावायरस वैक्सीन की कीमत क्या है?
भारत में रोटावायरस वैक्सीन की कीमत 900 से 1000 रुपये तक है। इस कीमत में जगह, स्थान, अस्पताल और डॉक्टर के आधार पर परिवर्तन हो सकता है। टीकाकरण की यह प्रक्रिया दो से तीन चरण में पूरी होती है (8)। इसलिए, पूर्ण टीकाकरण के लिए आपको 2700 से 3000 रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं।
रोटावायरस वैक्सीन के कोई दुष्प्रभाव हैं?
सामान्य रूप से कुछ बच्चों में टीकाकरण के हल्के प्रभाव देखे जा सकते हैं, जिसमें उल्टी आना, हल्के दस्त और चिड़चिड़ापन शामिल हैं। वहीं, कुछ विशेष स्थितियों में बच्चे में इंट्यूससेप्शन यानी पेट में मल के सूख जाने की समस्या हो सकती है। इस अवस्था में बच्चे को अस्पताल ले जाने की आवश्यकता होती है, जिसकी जानकारी डॉक्टर टीकाकरण के बाद आपको पहले से दे देते हैं (9)।
लेख को अच्छे से पढ़ने के बाद आपको रोटावायरस से जुड़ी सभी छोटी-बड़ी जानकारियां मिल गई होंगी। वहीं, आप रोटावायरस इंफेक्शन के कारणों को भी बारीकी से समझ गए होंगे। ऐसे में अगर आपके परिवार का कोई बच्चा इस समस्या से जूझ रहा है, तो आपके लिए इस समस्या से निपटने में मदद मिल सकती है। वहीं, अगर आपका परिवार इस समस्या से बचा हुआ है, तो लेख में सुझाए गए बचाव संबंधी उपाय भविष्य में इस वायरस को आपके परिवार से दूर रखने में मददगार साबित होंगे। आशा करते हैं कि लेख में बताई गई सभी बातें आपके बच्चे के स्वस्थ जीवन को बनाए रखने में आपकी मदद करेंगी। इस लेख में मौजूद जानकारी को ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ साझा कर रोटावायरस के बारे में जागरूकता बढ़ाएं।
References
2. Impact of nutrition and rotavirus infection on the infant gut microbiota in a humanized pig model By Ncbi
3. Prevalence of rotavirus infection in children below two years presenting with diarrhea By Ncbi
4. Rotavirus By Cdc
5. Rotavirus Transmission By Cdc
6. Molecular epidemiology and associated risk factors of rotavirus infection among children By Ncbi
7. Rotavirus Treatment By Cdc
8. Rotavirus Vaccines By Cdc
9. Rotavirus Vaccination: What Everyone Should Know By Cdc
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