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शिशु के पैदा होने के बाद उससे जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात का खास ख्याल रखना होता है। इन बातों में सबसे जरूरी है, बेबी स्लीपिंग पोजीशन। जी हां, शिशु के सोने की स्थिति पर ध्यान न दिया जाए, तो कई तरह की मुश्किलातों का सामना करना पड़ सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मॉमजंक्शन बेबी स्लीपिंग पोजीशन के बारे में रिसर्च के आधार पर हर तरह की जानकारी आपके लिए लेकर आया है। हम आपको बताएंगे कि बच्चे को सही तरीके से सुलाना क्यों जरूरी है और उसके लिए सोने की कौन-कौन सी अवस्थाएं सुरक्षित व असुरक्षित हैं।
चलिए, सबसे पहले जानते हैं कि नवजात के लिए सोने की सही स्थिति कितनी जरूरी है।
छोटे बच्चों को सही पोजीशन में सुलाना क्यों जरूरी है?
छोटे बच्चों को सही पोजीशन में सुलाने से उन्हें अचानक होने वाली मौत के खतरे से बचाया जा सकता है। सही स्थिति में न सोने के कारण बच्चे को सांस लेने में दिक्कत व रूकावट हो सकती है (1)। रिसर्च कहती हैं कि इस वजह से सडन इंफेंट डेथ सिंड्रोम (SIDS) यानी शिशु की अचानक मौत होने का खतरा बढ़ जाता है (2)। शिशु को सही पोजीशन में सुलाने से वह सुरक्षित भी रहता है और उसकी नींद भी अच्छे से पूरी होती है।
आगे बच्चे के सोने की सुरक्षित और असुरक्षित पोजीशन के बारे में पढ़ते हैं।
शिशु के सोने की सुरक्षित और असुरक्षित अवस्थाएं | Baby Ko Kis Position Me Sulana Chahiye
1. पेट के बल सोना
बच्चों को पेट के बल सुलाने से मना किया जाता है, क्योंकि यह स्लीपिंग पोजीशन बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं मानी जाती। दरअसल, पेट के बल सोने से शिशु को सांस लेने में परेशानी और दम घुटने की समस्या हो सकती है। रिसर्च यह भी बताते हैं कि इस स्थिति में सोने से एसआईडी (सडन इंफेंट डेथ) यानी शिशु की अचानक मृत्यु होने का जोखिम सात से आठ गुना बढ़ सकता है (3)।
हां, अगर बच्चे को अपर एयरवे मालफॉर्मेशन (ऊपरी श्वसन तंत्र संबंधी समस्या) जैसे रोबिन सिंड्रोम है, तो पेट के बल सोने से राहत मिल सकती है। साथ ही गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स (पेट के एसिड का वापस ऊपर आना) की समस्या में डॉक्टर बच्चे को पेट के बल सुलाने की सलाह दे सकते हैं। इन चिकित्सकिय स्थिति में खास निर्देश भी दिए जाते हैं, इसलिए डॉक्टरी सलाह के बिना शिशु को पेट के बल न सुलाएं (3)।
2. पीठ के बल सोना
सही समय पर पैदा हुए स्वस्थ शिशुओं को उनकी पीठ के बल सुलाया जा सकता है। बताया जाता है कि पीठ के बल सोने से सडन इंफेंट डेथ का जोखिम नहीं होता है (4)। इस स्थिति में बच्चे का वायु मार्ग खुला रहता है, जिसके कारण वो अच्छे से सांस ले पाते हैं और एसआईडी का रिस्क कम रहता है। यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ एंड ह्यूमन डवलपमेंट ने पीठ के बल सोने को सबसे बेस्ट स्लिपिंग पोजीशन बताया है (5)।
इसी वजह से शिशु को थोड़ी देर लेटाना हो या रात को सुलाना हो, दोनों समय के लिए पीठ के बल सोने की स्थिति को अच्छा बताया गया है (5)। एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) द्वारा पब्लिश एक रिसर्च पेपर के अनुसार, पीठ के बल सोने से एसआईडी का जोखिम 40 प्रतिशत कम होता है। बस लंबे समय तक इस स्थिति में सोने से पोजीशनल प्लैगियोसेफली यानी सिर का एक हिस्सा चपटा होने का खतरा हो सकता है (6)।
3. एक तरफ मुंह करके सोना (साइड स्लीपिंग)
साइड स्लीपिंग यानी एक तरफ मुंह करके सोने से भी बच्चे को एसआईडीएस (सडन इंफेंट डेथ सिंड्रोम) यानी अचानक मृत्यु का खतरा हो सकता है। दरअसल, साइड स्लीप पोजीशन अस्थिर होती है। शिशु सोते समय रोल होकर पेट के बल सो जाते हैं। इसी वजह से इसे भी सोने की असुरक्षित स्थिति कहा जाता है (3)।
अब जानिए कि समय से पहले पैदा होने वाले नवजात को किस स्लीपिंग पोजीशन में सुलाना चाहिए।
समय से पहले जन्मे शिशुओं के लिए सोने की सबसे अच्छी स्थिति क्या है?
प्रीटर्म यानी समय से पहले जन्मे बच्चे के लिए भी पीठ के बल सोना ही अच्छा होता है (7)। रिसर्च पेपर में कहा गया है कि समय से पहले जन्मे शिशुओं को भी एसआईडीएस (सडन इंफेंट डेथ सिंड्रोम) का खतरा होता है (8)। शिशुओं की सुरक्षा से संबंधित गाइडलाइन में भी लिखा है कि प्रीटर्म शिशुओं में अचानक मृत्यु का जोखिम अधिक होता है। इसी वजह से समय से पहले जन्मे शिशु को पीठ के बल ही सुलाया जाना चाहिए (3)।
आगे हम बता रहे हैं कि कौन-कौन सी स्लीपिंग पोजीशन के कारण शिशु की अचानक मृत्यु हो सकती है।
स्लीपिंग प्रैक्टिस जो शिशु में अचानक मौत का कारण बन सकती है (SUDI)
पेट के बल और एक तरफ मुंह करके सोने से शिशु में अचानक मौत का जोखिम बढ़ सकता है। इन स्लीपिंग पोजीशन के अलावा भी कुछ ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से शिशु की अचानक मौत हो सकती है। ये वजह कुछ इस प्रकार हैं (3)।
- शिशु को मुलायम सतह, जैसे कि गद्दा, सोफा, वाटर बेड, तकिये पर सुलाना या रखना।
- नवजात के सिर या चेहरे को चादर से ढकना, जिससे आकस्मिक घुटन हो सकती है।
- काफी ज्यादा गर्मी होना।
- गर्भावस्था के दौरान या बच्चे के जन्म के बाद उसके आसपास धूम्रपान करना।
- प्रेगनेंसी के समय मादक पदार्थों जैसे शराब का सेवन करना।
लेख में आगे बढ़ते हुए नवजात को सुलाने के कुछ सुरक्षित टिप्स पर एक नजर डाल लते हैं।
शिशु को सुरक्षित तरीके से सुलाने के 11 टिप्स
शिशु को सुलाते समय कुछ सावधानियों को बरता जाए और कुछ बातों पर ध्यान दिया जाए, तो उसे सुरक्षित तरीके से सुलाया जा सकता है। इसी से संबंधित कुछ टिप्स हम लेख में आगे दे रहे हैं (5) (3)।
- फर्म बेड पर बच्चे को सुलाएं – शिशुओं को नरम और मुलायम गद्दे की जगह ठोस गद्दे पर ही सुलाया जाना चाहिए। डॉक्टर बच्चे के बेड के आसपास तकिये व अन्य मुलायम चीजें और चादर रखने से मना करते हैं। शिशु के बेड पर ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए, जिससे उसका मुंह ढक जाए।
- ओवरहीटिंग से बचें – शिशुओं को सोते समय हल्के कपड़े पहनाने चाहिए। ज्यादा गर्मी होने से भी बच्चे को सोने में समस्या व सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
- पेसिफायर का उपयोग – अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का मानना है कि पैसिफायर सडन इंफेंट डेथ सिंड्रोम को रोक सकता है। हां, अगर बच्चा सोते समय पेसिफायर को मुंह में नहीं रखना चाहता और बार-बार मुंह से गिरा देता है, तो जबरदस्ती उसके मुंह पर पेसिफायर न डालें।
- शिशु को अपने बिस्तर पर सुलाने से बचें – विशेषज्ञ कहते हैं कि शिशुओं को वयस्कों के बेड पर नहीं सुलाना चाहिए। शिशु को अलग बिस्तर व पालने पर सुलाना सुरक्षित बताया गया है। खासकर की तब अगर कोई धुम्रपान व शराब का सेवन करता हो। इनसे बच्चे में एसआईडीएस यानी अचानक मृत्यु का जोखिम बढ़ सकता है।
- शिशु का पालना अपने कमरे में ही रखें – शिशु को सुरक्षित रखने के लिए उसे अपने कमरे में ही सुलाएं। बच्चा जिस भी पालने या बेड में सो रहा हो, वो माता-पिता के एकदम करीब होना चाहिए। ध्यान दें कि उस कमरे में कोई भी धूम्रपान न करे।
- शिशु का सिर न ढकें – अगर शिशु के ऊपर कंबल या चादर रखी है, तो यह सुनिश्चित करें कि उससे उसका सिर न ढके। ऐसा होने से बच्चे का दम घुटेगा और उसे जान का खतरा हो सकता है। बच्चे के ऊपर ओढाये गए कपड़े को उसके सीने तक ही रखें।
- शिशु को लपेटना – किसी हल्के सूती व मलमल के कपड़े से बच्चे को लपेटकर भी सुलाया जा सकता है। ऐसा करने से बच्चे के पेट के बल रोल होने का खतरा कम हो सकता है। हम ऊपर बता ही चुके हैं कि जब शिशु रोल होकर पेट के बल सोने लगता है, तो उसे सांस लेने में परेशानी हो सकती है। बस बच्चे को कसकर लपेटने से बचें, अन्यथा बच्चे को परेशानी हो सकती है। संभव हो, तो ऐसा ध्यान से या फिर विशेषज्ञ की देखरेख में ही करें।
- ओढ़ने वाले कपड़े को सही तरीके से रखें – शिशु को कंबल या जो भी कपड़े ओढ़ा रहे हैं उसे सही तरीके से रखना भी जरूरी है। उस कपड़े व कंबल को शिशु के सीने तक रखना ही काफी नहीं है, बल्कि आपको इसके ऊपर बच्चे का हाथ रखना होगा। इससे कंबल के सरक कर बच्चे के मुंह तक पहुंचने का खतरा कम हो जाएगा। इसके अलावा, उसके ब्लैंकेट के छोर को गद्दे के अंदर टक कर दें यानी डाल दें।
- रूम टेम्परेचर को नॉर्मल ही रखें – बच्चे को सुरक्षित रखने और उसकी अच्छी नींद के लिए यह सलाह दी जाती है कि कमरे का तापमान कम ही रखें। कमरा न ही ज्यादा ठंडा होना चाहिए और न ही ज्यादा गर्म।
- शिशु के बेड पर किसी अन्य को न सुलाएं – शिशु को सुलाते समय उसके बेड या पालने पर किसी दूसरे बच्चे को न सोने दें। साथ ही किसी पालतू जानवर जैसे बिल्ली और खिलौने को भी उसके बेड पर रखने से बचें।
- प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने से बचें – मार्केट में कई ऐसे उत्पाद मौजूद हैं, जो शिशु को एसआईडीएस यानी अचानक होने वाली मृत्यु के खतरे से बचाने का दंभ भरते हैं। आप ऐसे उत्पादों को खरीदने से बचें। साथ ही शिशु को सही स्लीपिंग पोजीशन में सुलाने का दावा करने वाले उत्पादों से भी बचें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1. यदि बच्चा सोते समय पेट के बल रोल करता है, तो क्या होगा?
ऐसा होने पर बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। साथ ही एसआईडीएस का जोखिम भी बढ़ सकता है (3)।
2. पीठ के बल सोते समय शिशु फेंसिंग रिफ्लेक्स में क्यों आ जाता है?
शिशु का पीठ के बल सोते समय फेंसिंग रिफ्लेक्स पोजीशन में आना सामान्य है। बच्चे सोते समय ऐसे कई तरह के मूवमेंट करते हैं, जिनमें से एक फेंसिंग रिफ्लेक्स भी है। यह बच्चे के मूवमेंट के हिसाब से होने वाली मांसपेशी की प्रतिक्रिया होती है। फेंसिंग रिफ्लेक्स का मतलब होता है पीठ के बल सोते समय बच्चे का सिर एक तरफ होना, उसी तरफ बच्चे का हाथ झुका होना और एक हाथ का विपरित दिशा में मुड़ना। इसे टॉनिक नेक रिफ्लेक्स भी कहा जाता है (9)।
3. शिशु को पेट के बल कब रखा जा सकता है?
दिन में खेलेते समय शिशु को पेट के बल रखा जा सकता है। इस दौरान माता-पिता या किसी अन्य सदस्य को उसकी निगरानी के लिए वहां मौजूद होना जरूरी है। इसके अलावा, कुछ चिकित्सकीय स्थिति जैसे ऊपरी श्वसन संबंधी समस्या और एसिड रिफ्लक्स होने पर डॉक्टर बच्चों को कुछ देर पेट के बल रखने की सलाह दे सकते हैं।
4. क्या मैं अपने बच्चे के लिए स्लीप पोजीशनर्स का उपयोग कर सकती हूं?
नहीं, ऐसा करने की डॉक्टर बिल्कुल भी सलाह नहीं देते हैं (10)।
5. अगर मेरे बच्चे को पीठ के बल सोने में दिक्कत हो या सोते हुए दम घुटे तो क्या करें?
ऐसी स्थिति में डॉक्टर से संपर्क करना सबसे बेहतर विकल्प है। विशेषज्ञ की सलाह पर बच्चे के सिर को थोड़ा ऊंचा रख सकते हैं या फिर कमरे में ह्यूमिडिफायर लगाया जा सकता है।
शिशुओं के लिए सही स्लीपिंग पोजीशन कितनी जरूरी है, यह आप समझ ही गए होंगे। सोने की स्थिति के साथ की गई थोड़ी सी भी लापरवाही के कारण शिशु के जान पर बन सकती है। इसी वजह से इस पर गौर करना जरूरी है। इतना ही नहीं, दिनभर जब बच्चा खेले या लेटे, तो उसे अपनी निगरानी में ही रखें। ऐसा करने से बच्चे को स्वास्थ्य संबंधी जोखिम और इस दौरान होने वाली दुर्घटनाओं से बचाया जा सकता है। सतर्क रहें और शिशु को सुरक्षित रखें।
References
1. Sleeping position in infants over 6 months of age: implications for theories of sudden infant death syndrome By Oxford Academic
2. Infant sleeping position and the sudden infant death syndrome: systematic review of observational studies and historical review of recommendations from 1940 to 2002 By Oxford Academic
3. Infant Sleep Position and SIDS By NIH
4. Ways to Reduce The Risk Of SIDS And Other Sleep-Related Causes Of Infant Death By NIH
5. Healthy Native Babies By NIH
6. Diagnosis and treatment of positional plagiocephaly By NCBI
7. How can I reduce the risk of SIDS By NIH
8. Are the risk factors for SIDS different for preterm and term infants? By NCBI
9. Infant reflexes By Medline Plus
10. Baby Products with SIDS Prevention Claims By FDA
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