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शिशु के जन्म के बाद से ही उसे सही तरीके से स्तनपान कराना जरूरी है। इस दौरान शिशु और मां सही पोजीशन में होंगे, तो ही नवजात ठीक से दूध पी पाता है। इसको सुनिश्चित करने के लिए डीप लैचिंग प्रक्रिया प्रचलित है। इसमें शिशु को गोद में लेकर स्तन के पास इस तरह लगाया जाता है, जिससे दूध पीना उसके लिए आसान हो जाए। जब शिशु दूध पीने लगता है, तो उसे लैचिंग कहा जाता है। यह क्रिया अच्छी तरह से होती है, तो डीप लैचिंग कहलाती है (1)। इससे शिशु और मां दोनों को ही लाभ होते हैं। इन फायदों के बारे में आप मॉमजंक्शन के इस लेख से जान सकते हैं।

लेख की शुरुआत में हम बता रहे हैं कि ब्रेस्टफीडिंग के समय सही से डीप लैचिंग कैसे होती है।

स्तनपान के वक्त सही से डीप लैचिंग कैसे कराएं? | Deep Latch Technique in Hindi

शिशु को सही से डीप लैचिंग कराने के लिए सही तरीके के बारे में पता होना जरूरी है। हम इसके बारे में नीचे कुछ बिंदुओं के मदद से बता रहे हैं (2):

  1. डीप लैचिंग के लिए स्तन के किनारे वाले भाग को अपनी तर्जनी (Index finger) उंगली और अंगूठे की मदद से पकड़ें। इससे सी या यू का आकार बनेगा। फिर उंगली और अंगूठे से स्तन के किनारे वाले भाग को एक साथ दबाएं, जिससे ​स्तन संकुचित हो जाएगा। इस समय उंगुलियां साइड में होंगी और चुटकी में निप्पल पकड़ा हुआ होगा।
  1. अब शिशु के मुंह को अपने स्तन के पास लाने के लिए उसके सिर को हाथ से सहारा दें। इस समय शिशु के एक कान वाले भाग को अंगूठे से और दूसरे कान के पास अपनी तीसरी उंगली से सहारा दें। साथ ही हथेली और अन्य उंगलियां से शिशु के गर्दन को सपोर्ट दें।
  1. इसके बाद शिशु को निप्पल के पास ले आएं। इस समय शिशु का सिर हल्का पीछे की तरफ झुका हुआ व ठुड्डी ऊपर की तरफ उठी हुई होगी। निप्पल को शिशु के ऊपरी होंठ के ठीक ऊपर ही रखें। जब शिशु दूध पीने के लिए मुंह खोले, तो सबसे पहले स्तन को उसके नीचे वाले जबड़े पर रख दें।
  1. फिर शिशु के सिर को हल्का सामने की तरफ झुकाकर ऊपरी जबड़े को निप्पल के पीछे की तरफ करें। ऐसा करते समय तर्जनी उंगली और अंगूठे से निप्पल को दबाकर चपटा कर लें। इससे निप्पल सही तरह से बच्चे के मुंह में फिट हो जाएगा।
  1. अब कुछ सेकंड रुक कर उंगलियों को स्तन से हटा लें। अगर इस दौरान शिशु की नाक निप्पल से दबती हुई दिखाई दे, तो उसके सिर को हल्का झुकाएं, जिससे शिशु का ​नथुना ठीक से दिखाई दे। इस समय नाक स्तन को स्पर्श कर रही होगी। इसके बाद स्तन को उंगलियों से दबाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

अब जानते है डीप लैचिंग से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण टिप्स।

डीप लैचिंग के लिए जरूरी टिप्स

शिशु को लैचिंग कराते समय कुछ टिप्स पर गौर किया जाना जरूरी है। ये टिप्स कुछ इस प्रकार हैं (2):

1. शांत वातावरण – डीप लैचिंग के लिए शांत वातावरण जरूरी है। ऐसे में किसी भी शोर-गुल वाली जगह में बैठकर डीप लैचिंग बिल्कुल न कराएं। घर के किसी शांत कोने में तकिए या अन्य आरामदायक चीज का सहारा लेकर बैठें और फिर कुछ देर बाद इस प्रक्रिया को शुरू करें।

2. त्वचा से त्वचा का संपर्क – शिशु और मां के बीच त्वचा-से-त्वचा का संपर्क होने से दोनों के बीच का संबंध गहरा होता है। ऐसे में स्तनपान के समय शिशु को सिर्फ डायपर में ही रखें। इससे शिशु की त्वचा का स्पर्श आपकी त्वचा से होता रहेगा। इस समय शिशु को अपने स्तन के पास रखकर कुछ देर उसके साथ खेले और स्तनपान कराने के बारे में न सोचें।

3. शिशु को अपनी मर्जी करने दें – शिशु को अपने मन से निप्पल को मुंह से लगाने दें। ​यदि शिशु को भूख नहीं है, तो वह छाती से लिपटा या आपके साथ खेलता रहेगा। अगर शिशु को भूख लगी है, तो वो सिर घुमाएगा या आंखें मिलाने की कोशिश करेगा।

4. लैच के लिए दबाव न डालें – इसके बाद शिशु के सिर और कंधों को सपोर्ट दें, जिससे कि वह स्तन को ढूंढ सके।

5. स्तन को सामान्य रहने दें – जब शिशु की ठुड्डी स्तन के करीब आती है, तो स्तन के हल्के दबाव से शिशु का मुंह चौड़ा खुल सकता है और इससे डीप लैचिंग अच्छे से हो सकती है। इसी वजह से स्तन को सामान्य ही रहने दें। बस इस बात का ध्यान रखें कि शिशु स्तनपान के साथ अच्छे से सांस ले सके।

आइए, आगे पढ़ते हैं कि डीप लैचिंग के संकेत क्या-क्या हैं।

डीप लैचिंग के क्या संकेत हैं?

स्तनपान के दौरान डीप लैचिंग की तकनीक सही काम कर रही है या नहीं, इसे समझना भी जरूरी है। इसमें आपकी मदद कुछ संकेत कर सकते हैं। जी हां, डीप लैचिंग के समय कुछ संकेत नजर आते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं (2)

  • स्तनपान के दौरान आराम महसूस होना और किसी प्रकार के दर्द या चुभन का एहसास न करना।
  • दूध पीते समय शिशु अपने सिर को घूमता या हिलाता नहीं है।
  • शिशु के मुंह के अंदर पूरा या अधिकतम एरोला (निप्पल के पास बना काला घेरा) का होना।
  • जब शिशु अच्छी से लैचिंग कर रहा होगा, तो उसका मुंह स्तन से भरा हुआ होगा।
  • शिशु की जीभ स्तन के नीचे होती है, इसलिए हो सकता है कि उसकी जीभ दिखाई न दे।
  • दूध निगलने की आवाज आ सकती है।
  • शिशु के होंठ मछली के होठों की तरह बाहर की तरफ मुड़े हुए होंगे न कि अंदर की ओर। इस समय शिशु का निचला होंठ ठीक से दिखाई नहीं देता है।
  • शिशु की ठुड्डी स्तन को स्पर्श कर रही होगी।

लेख के अगले भाग में हम डीप लैचिंग तकनीक के फायदे बता रहे हैं।

डीप लैचिंग तकनीक आजमाने के कुछ अद्भुत फायदे

डीप लैचिंग तकनीक से शिशु और मां को कई फायदे हो सकते हैं। यही वजह है कि इस तकनीक को स्तनपान कराने वाली महिलाओं को आजमाने की सलाह दी जाती है। क्या हैं इसके फायदे आगे जानिए।

1. निप्पल के दर्द से छुटकारा – एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की वेबसाइट पर पब्लिश रिसर्च में दिया है कि लैच में सुधार करके स्तन और निप्पल के दर्द को कम किया जा सकता है। शोध के अनुसार, निप्पल में दर्द होने की एक वजह सही लैच न कर पाना भी है। ऐसे में सही लैचिंग तकनीक को अपनाकर इस दर्द से राहत मिल सकती है (3)

2. दूध के उत्पादन और सप्लाई को बढ़ावा – इस तकनीक की मदद से स्तन में दूध उत्पादन और दूध की सप्लाई को बढ़ावा मिल सकता है। दरअसल, इस दौरान शिशु के मुंह में निप्पल के साथ ही एरोला वाला भाग भी होता है, जिससे सही से लैचिंग हो पाती है। रिसर्च बताती हैं कि नियमित तौर पर अच्छी लैचिंग होने से दूध के उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है (4)

साथ ही डीप लैचिंग तकनीक के दौरान शिशु और मां के बीच त्वचा से त्वचा का संपर्क रहता है। न्यू यॉर्क सिटी हेल्थ डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर प्रकाशित जानकारी के मुताबिक, त्वचा से त्वचा के बीच संपर्क होने पर दूध की सप्लाई को बढ़ सकता है (5)

3. स्तन भारी नहीं लगेंगे – जब शिशु ठीक तरह से डीप लैचिंग करने लगता है, तो स्तन में ज्यादा मात्रा में दूध जमा नहीं रहता है। इस तकनीक से होने वाली ब्रेस्टफीडिंग से स्तन भारी महसूस नहीं होते हैं।

4. शिशु के विकास में सहायक – डीप लैचिंग तकनीक की मदद से शिशु सही से स्तनपान कर पाता है, जिससे उसका ठीक विकास होता है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर पब्लिश रिसर्च की मानें, तो डीप लैचिंग से शिशु को पर्याप्त दूध मिलता है, जो शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास में मदद कर सकता है (6)

आगे डीप लैचिंग के दौरान ध्यान रखने वाली कुछ जरूरी बातें जानिए।

डीप लैचिंग करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

डीप लैचिंग तकनीक को अपनाने के समय कुछ जरूरी बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है, जिनमें ये शामिल है (2):

  • अगर आप या आपका शिशु चिड़चिड़ा महसूस कर रहे हैं, तो डीप लैचिंग के दौरान थोड़ी देर का ब्रेक लें।
  • अगर शिशु स्तनपान नहीं कर रहा है, तो उसे उंगली चूसने के लिए दे सकते हैं और थोड़ी देर बाद फिर से स्तनपान कराने की कोशिश करें।
  • शिशु को डीप लैचिंग कराने के लिए फुटबॉल, क्रैडल, क्रॉस क्रैडल, साइड लाइंग आदि पोजीशन आजमा सकते हैं।
  • फुटबॉल पोजीशन में शिशु गोद में पूरा लेटा हुआ नहीं होता है, वो थोड़ा सीधा होता और एक हाथ से शिशु के सिर को सहारा दिया जाता है। साथ ही क्रैडल
  • पोजीशन में एक हाथ से शिशु के गर्दन व सिर के नीचे के भाग को सहारा दिया जाता है और शिशु के सिर को अपनी कोहनी पर रखना होता है। फिर दूसरे हाथ से शिशु के नितंब को हल्का उठाकर सीने से लगाया जाता है।
  • आप शिशु को लेटकर भी स्तनपान करा सकती हैं। इसे साइड लाइंग पोजीशन कहते हैं।
  • इसके अलावा, स्तनपान के दौरान सीधे बैठकर स्वयं को और शिशु को तकिये से सहारा दे सकती हैं।
  • शिशु को सीधा पकड़कर भी स्तनपान करा सकते हैं। इसे स्ट्रैडल होल्ड कहा जाता है।
  • इस दौरान शिशु से बात करने या उसे लोरी सुनाने की कोशिश करें।
  • अगर शिशु ठीक तरह से डीप लैचिंग नहीं कर पा रहा है, तो विशेषज्ञ से बात करें।

सही डीप लैचिंग कराने का तरीका काफी आसान है। जब भी शिशु को स्तनपान कराएं, तब इस तकनीक को आजमा सकते हैं। इसमें बस पोजीशन का ध्यान रखना होता है। शुरुआत में शिशु को इसे सीखने में थोड़ा समय लगेगा। फिर शिशु खुद-ब-खुद इसी तकनीक से स्तनपान करने लगता है। डीप लैचिंग तकनीक से जुड़े हमने स्टेप्स और टिप्स दोनों बताए हैं, जिन्हें आप फॉलो कर सकते हैं।

हैप्पी ब्रेस्टफीडिंग!

References

 

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