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शिशु का विकास मां के गर्भ में ही शुरू हो जाता है। जब शिशु नौ महीने बाद जन्म लेता है, तब उसकी शारीरिक संरचना पूरी हो चुकी होती है। फिर ही जन्म के बाद बच्चों में कई चीजों का विकास होना बाकी रह जाता है। उन्ही में से एक शिशु का देखना भी है। शिशु जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है, उसमें चीजों को देखने की क्षमता का भी विकास होता रहता है। यही कारण है कि मॉमजंक्शन के इस लेख में हम बच्चे देखना कब शुरू करते है और बच्चों की दृष्टि में सुधार किन चरणों में होता है, इस बात को विस्तार से बताने का प्रयास कर रहे हैं।

लेख के पहले भाग में हम शिशु कब देखना शुरू करते हैं, इसकी जानकारी दे रहे हैं।

बच्चे देखना कब शुरू करते हैं? | Bacche Kab Dekhna Shuru Karte Hai

शिशु जन्म के बाद से ही देखना शुरू कर देते हैं। इस समय शिशु 8 से 12 इंच की दूरी तक अच्छे से देख सकते हैं। मगर, इस समय शिशु को चीजे धुंधली नजर आ सकती हैं। इसके अलावा जन्म के कुछ समय तक तेज रोशनी के प्रति उनकी आंखें संवेदनशील होती हैं, इसलिए वे कम रोशनी में ही अपनी आंखें पूरी तरह खोलते हैं। वहीं जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता है, उसमें देखने की क्षमता का विकास होता जाता है (1)

आइए अब जानते हैं कि शिशु रंगों को कब पहचानने लगते हैं ।

बच्चे रंगो को कब देखने लगते हैं? | When Baby Start Seeing Color In Hindi

जन्म के समय शिशुओं में रंगों को देखने की क्षमता नहीं होती है। जब शिशु 4 से 6 महीने के बीच में आते हैं, तो उनमें रंगों को देखने की क्षमता विकसित होती है। इस उम्र के बाद लगभग ज्यादातर शिशु रंगों को देखने लगते हैं (2)। वहीं कुछ शिशुओं में रंगों को देखने की प्रक्रिया का विकास होने बाद भी वे कुछ खास रंगों की पहचान कर पाने में असमर्थ होते हैं। ऐसे बच्चों को कलर ब्लाइंडनेस की समस्या होती है (3)

आगे हम आपको शिशुओं में दृष्टि के विकास के चरणों के बारे में बताने जा रहे हैं।

बच्चों में दृष्टि के विकास के चरण

शिशुओं में दृष्टि विकास को अलग-अलग चरणों में समझाया जा सकता है। इन चरणों में शिशुओं की दृष्टि का विकास कुछ इस प्रकार से हो सकता है (4):

जन्म से 1 माह की उम्र तक

  • पहले हफ्ते में रौशनी के प्रति आंखों की एक अलग प्रतिक्रिया होती है। इस समय रौशनी में आंखें बंद होने लगती हैं।
  • दूसरे हफ्ते में भी शिशु की आंखें रोशनी के प्रति संवेदनशील होती हैं।
  • तीसरे हफ्ता आते-आते रोशनी के प्रति आंखों की संवेदनशीलता कम होने लगती है।
  • इस वक्त शिशु ज्यादा बड़ी वस्तुओं को पूरी तरह नहीं देख पता है।
  • पहले एक महीने में शिशु सिर्फ 40 सेमी की दूरी की वस्तुओं को ही ठीक से देख पाते हैं।

1 माह से 3 माह की उम्र तक

  • इस समय शिशु की पुतली की प्रतिक्रिया दिखाई दे सकती है।
  • रोशनी में किसी भी चीज पर फोकस करना।
  • आई कांटेक्ट कर पाना।
  • आई मूवमेंट का विकास होना।
  • लोगों के चेहरे देखकर पहचान कर पाना।
  • लोगों के चेहरे याद रखना।
  • चेहरे की अभिव्यक्ति की नकल करना।
  • 180 ° तक देखना।

3 माह से 6 माह की उम्र तक

  • दृष्टि की कार्यक्षमता में सुधार होता है।
  • शिशुओं में रंगों को देखने की क्षमता का विकास हो जाता है।
  • दर्पण में देखने पर छवि को पहचान सकता है।
  • इस उम्र में बच्चा लगभग 1.20 से 1.80 मीटर तक दूर की वस्तुओं को पहचान सकता है।
  • नजरे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जल्दी ले जा सकता है।

6 माह से 10 माह की उम्र तक

  • शिशु चीजों को बारीकी से देखना शुरू कर सकता है।
  • इस उम्र में बच्चा छोटी से छोटी चीजों को देख सकता है और उनकी पहचान कर सकता है।
  • साथ ही इस उम्र तक बच्चा लोगों को पहचान कर उनके साथ जाने या न जाने का फैसला भी ले सकता है।

10 माह से 2 साल की उम्र तक

  • इस समय ऑप्टिक नर्व माइलिनेशन (आंखें का पूर्ण विकास) पूरा हो गया होता है।
  • आंखों के मूवमेंट पर स्वैच्छिक नियंत्रण हो जाता है, जिससे कि वस्तुओं और चीजों पर अच्छी तरह नजरे रोक सकता है।
  • लोगों से अच्छी तरह आई कांटेक्ट करके बात कर सकता है।
  • इस उम्र में बच्चा सभी के चेहरे याद रख सकता है।
  • तेजी से हिलती या जाती हुई चीजों पर भी बच्चा नजरें रोक सकता है।

यहां हम शिशुओं की दृष्टि से संबंधित समस्याओं के लक्षण बताएंगे।

बच्चों में आंख और दृष्टि से जुड़ी समस्याओं के लक्षण

छोटे बच्चों में आंख व दृष्टि से जुड़ी समस्या होने से पहले उसके लक्षण दिखाई दे सकता हैं। आंखों की ये लक्षण कुछ इस प्रकार के हो सकते हैं (5)

  • लगातार आंख रगड़ना।
  • अत्यधिक प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता।
  • नजरें केंद्रित न कर पाना।
  • ठीक तरह से आंखों का मूवमेंट न होना।
  • आंखों का लाल दिखाई देना।

इन लक्षणों से अलग स्कूल जाने की उम्र में आंखों में समस्या होने पर कुछ इस तरह के लक्षण नजर आ सकते हैं :

  • दूर की चीजों को न देख पाना।
  • ब्लैकबोर्ड पर लिखे शब्दों को पढ़ने में परेशानी होना।
  • टीवी को बहुत पास से बैठकर देखना।
  • किताबों पर लिखे शब्दों को न पढ़ पाना।
  • आंखों को दबाकर देखना।

आगे जानिए, प्रीमैच्योर यानी समय से पहले जन्म लेने वाले शिशु के दृष्टि विकास के बारे में।

प्रीमैच्योर बच्चों में दृष्टि का विकास कब होता है | Navjat Bacche Me Drishti Ka Vikas Kab Hota Hai

समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं के शरीर के कई अंगों का ठीक तरह से विकास नहीं हुआ होता है। ऐसे शिशु को रेटिनोपैथी ऑफ प्रीटैरिटी जैसी आंखों से जुड़ी समस्या हो सकती है। इस समस्या के होने पर बच्चों को कम दिखाई दे सकता है (6)। यह समस्या समय से पहले जन्म लेने वाले 10 बच्चों में से 1 को हो सकती है। इसके कारण आंखों की पुतली से जुड़ी अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं (7)। ऐसे में प्रीमैच्योर शिशुओं की आंखों को अधिक देखभाल की जरूरत होती है। वहीं सामान्य समय में जन्मे शिशु की तुलना में प्रीमैच्योर शिशु की आंखों का विकास धीमी गति से हो सकता है।

आइए अब जानते हैं छोटे बच्चों की दृष्टि में सुधार से जुड़ी कुछ जरूरी टिप्स।

बच्चों की दृष्टि में सुधार करने के टिप्स

शिशु की दृष्टि में सुधार करने के लिए कुछ तरीकों को अपनाया जा सकता है। इन उपायों के बारे में हम नीचे कुछ बिंदुओं की मदद से बता रहे हैं (8):

  • बच्चों को बड़े और चटक रंग वाले चित्र दिखाएं। इससे उनमे रंगों को पहचाने के गुण का विकास होगा।
  • बच्चें की दृष्टि का विकास करने के उद्देश्य से आप बच्चे को पड़ोसियों से मिलाएं, सुपरमार्केट ले जाएं और साथ ही उसे आप चिड़ियाघर की सैर भी करा सकते हैं।
  • बच्चों को रंग-बिरंगे खिलौने खरीद सकते हैं।

बच्चे की आंखों के विकास के संबंध में डॉक्टर से कब मिलना चाहिए, आगे हम इस बारे में जानेंगे।

डॉक्टर से कब मिलें?

बच्चों की आंखों से जुड़ी किसी भी समस्या का आभास होने पर डॉक्टर से तुरंत मिलना चाहिए। यह समस्याएं कुछ इस प्रकार हो सकती हैं (10):

  • अगर किसी बच्चे को ठीक तरह से नहीं दिखाई देता है या धुंधला दिखाई देता है, तो बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाएं।
  • अगर बच्चे की एक आंख दूसरी आंख मुकाबले कुछ दबी हुई महसूस होती है, तो इस बारे में डॉक्टर से चर्चा करें।
  • बच्चों को पढ़ाई करने में परेशानी हो रही है, तो विशेषज्ञ की मदद लें।
  • अगर बच्चा मूविंग चीजों पर नजरें केद्रित नहीं कर पाता है, तो इस बारे में डॉक्टर को बताएं
  • बच्चे के आंखों से आंसू निकलने पर डॉक्टर की मदद लें।
  • अगर दोनों आंखों की पुतलियों में फर्क नजर आता है, तो इस बारे में डॉक्टर से बात करनी चाहिए।
  • प्रकाश के प्रति आंखों का अधिक संवेदनशील होना, आंखों में पानी आना या बार-बार पलके झपकाना भी इस बात का इशारा देता है कि आपको इस बारे में डॉक्टर से बात करनी चाहिए।

हम उम्मीद करते हैं कि बच्चों के देखने से जुड़ी पूरी जानकारी आपको इस लेख के माध्यम से प्राप्त हो गई होगी। इस लेख में बच्चों के आंखों के विकास को अलग अलग महीनों के हिसाब से बताया गया है। वहीं हमने लेख में बच्चों में आंखों से जुड़ी समस्या होने पर उसके लक्षण की भी जानकारी दी है। ऐसे में अगर किसी को अपने बच्चे में लेख में दिए कोई भी लक्षण दिखाई देता हैं, तो बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। छोटे बच्चों से जुड़े ऐसे ही अन्य विषयों के बारे में जानने के लिए मॉमजंक्शन पर विजिट करते रहें।

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