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पेट में कीड़ों की समस्या किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है, लेकिन इसके ज्यादा मामले 1 से 14 वर्ष के बच्चों में अधिक देख जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों की माने, तो भारत में लगभग 24.1 करोड़ बच्चे पेट में कीड़ों से प्रभावित हैं (1)। यह एक गंभीर समस्या है, इसलिए माता-पिता के लिए यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी हो जाता है कि कहीं उनका बच्चा पेट के कीड़ों से ग्रसित तो नहीं है। मॉमजंक्शन के इस लेख में जानिए पेट में कीड़ों के कारण, इसके लक्षण और बच्चों को इससे निजात दिलाने के सटीक उपाय।

लेख में सबसे पहले जानिए कि बच्चों में पेट के कीड़े क्या होते हैं?

बच्चों के पेट के कीड़े क्या होते हैं? | Bacho Ke Pet Me Kide

पेट के कीड़े का मतलब है आंतों में परजीवियों का प्रवेश होना। ये परजीवी अपने जीवन के लिए पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर रहते हैं। ये परजीवी बच्चों को भी अपना शिकार बनाते हैं और विभिन्न माध्यमों से पेट के अंदर दाखिल हो जाते हैं। पेट में इनके प्रवेश और इनकी बढ़ती संख्या से आंत बुरी तरह से प्रभावित होती है। अपने भोजन के लिए ये परजीवी आंतों को चोट पहुंचाते हैं, जिससे रक्त्रसाव भी होने लगता है। नीचे जानिए शिशुओं में पेट के कीड़े होना कितना आम है?

स्क्रॉल करके पढ़ें कि बच्चों में पेट के कीड़े की समस्या कितनी आम है?

शिशुओं और बच्चों में पेट के कीड़े होना कितना आम है?

एक रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों के पेट में कीड़ों की समस्या एक गंभीर वैश्विक बाल स्वास्थ्य चुनौती है, जो बाल्यावस्था से लेकर जवानी तक रह सकती है। रिपोर्ट बताती है कि यह समस्या विकासशील देशों में ज्यादा देखने को मिलती है और बच्चों व किशोरों को अपना निशाना ज्यादा बनाती है (2)

यह संक्रमण बच्चों को जल्दी चपेट में ले लेता है, क्योंकि बच्चे अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग नहीं होते हैं। वो नंगे पैर देर तक बाहर घूम लेते हैं और धूल-मिट्टी, मल या फिर दूषित पानी के संपर्क में आ जाते हैं। नीचे जानिए कि बच्चों के पेट में कीड़े कितने प्रकार के होते हैं।

आगे जानिए पेट में कीड़े के प्रकार से जुड़ी जानकारी।

बच्चों के पेट में कीड़े कितने प्रकार के होते हैं?

बच्चों के पेट में कीड़े विभिन्न प्रकार के होते हैं और ये अलग-अलग तरीके से शिशुओं के शरीर को प्रभावित करते हैं। नीचे जानिए पेट के कीड़ों के प्रकार (3) :

  1. थ्रेडवर्म : थ्रेडवर्म छोटे परजीवी होते हैं, जो आंतों में रहते हैं। ऐसे परजीवी 10 वर्ष के कम उम्र के बच्चों में देखे जा सकते हैं। इनका रंग सफेद होता है और ये 13 मि.मी. तक लंबे हो सकते हैं। थ्रेडवर्म किसी सफेद धागे से दिखते हैं और छह हफ्तों तक जीवित रह सकते हैं। थ्रेडवर्म का एक प्रकार पिनवॉर्म भी है, जो आमतौर पर बच्चों को अपना निशाना बनाता है (4)
  1. राउंडवॉर्म : ये भी एक प्रकार के परजीवी हैं, जो एक बार पेट में दाखिल होने के बाद अपनी आबादी अंडों के माध्यम से बढ़ाने लगते हैं। गंदगी वाले इलाकों में रहने वालों लोगों को यह परीजीवी अपना शिकार बनाते हैं। इससे होने वाले संक्रमण को एस्कारियासिस कहते हैं। ये परजीवी 10 से 24 महीने तक पेट में रह सकते हैं (5)
  1. टेपवर्म : ये भी एक प्रकार के परजीवी हैं, जो दूषित पानी या आधे पके संक्रमित मांस के जरिए शरीर में दाखिल होते हैं। इंसानों में इस संक्रमण का इलाज आसानी से कर लिया जाता है, लेकिन कभी-कभी स्थिति गंभीर भी हो जाती है। इसलिए, इसके लक्षण दिखने पर आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए (6)
  1. व्हिपवॉर्म : इन परजीवियों को सॉइल ट्रांसमिटेड हेल्मिन्थस भी कहा जाता है, जो दूषित मिट्टी के जरिए इंसानी शरीर में दाखिल हो जाते हैं। व्हिपवॉर्म बड़ी आंत में रहते हैं और इसके अंडे संक्रमित व्यक्ति के मल से दूसरे व्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं (7)
  1. हुकवर्म : इन परजीवियों को भी सॉइल ट्रांसमिटेड हेल्मिन्थस कहा जाता है, जो दूषित मिट्टी और मल के जरिए व्यक्ति को संक्रमित कर सकते हैं। ये परजीवी छोटी आंत में रहते हैं और इनके अंडे संक्रमित व्यक्ति के मल से दूसरे व्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं (8)

अब जानिए बच्चों में पेट के कीड़े से जुड़ी जटिलताएं।

बच्चों और शिशुओं में पेट के कीड़े से जुड़ी जटिलताएं

जैसा कि हमने बताया कि बड़ों की तुलना में बच्चों को पेट के कीड़ों से ज्यादा खतरा रहता है। अगर समय रहते इसकी पहचान और इलाज न किया जाए, तो स्थिति गंभीर हो सकती है। अध्ययन बताते हैं कि बच्चों के पेट में बढ़ती कीड़ों की संख्या कई रोगों को उत्पन्न कर सकती है, जिसमें (2) :

  • कृमियों की वजह से होने वाला कुपोषण
  • दमा
  • आंतों में सूजन
  • हेपेटाइटिस जैसी शारीरिक समस्याएं शामिल हैं।
  • एनीमिया (हुकवर्म बच्चों में एनीमिया का सबसे मुख्य कारण है)
  • टेपवर्म के कारण न्यूरोसिस्टेरिसोसिस नामक संक्रमण हो सकता है। यह संक्रमण मस्तिष्क को निशाना बनाता है, जिससे बच्चों में गंभीर दौरे और यहां तक कि मौत का जोखिम भी बढ़ सकता है।

स्क्रॉल करके पढ़ें शिशुओं के पेट में कीड़े होने के कारण।

बच्चों के पेट में कीड़े होने के कारण

वयस्कों की तुलना में बच्चे पेट के कीड़ों से जल्द संक्रमित हो जाते हैं। इसके पीछे निम्नलिखित कारण हो सकते हैं (1) :

  • अनजाने में घास पर नंगे पैर चलने से कीड़े बच्चों के शरीर में दाखिल हो सकते हैं।
  • बच्चे मिट्टी में खेलते हैं, जिससे वो संक्रमित मिट्टी के संपर्क में आ सकते हैं और मिट्टी में मौजूद कीड़ों के अंडे बच्चे के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं
  • शौच के बाद हाथ न धोना, बिना हाथ धोए भोजन करना या दूषित पानी पीना पेट में कीड़ों का कारण बन सकते हैं।
  • फल व सब्जियों को अच्छी तरह धोए बिना खाना।
  • बाहर बिकने वाले भोजन (जैसे नूडल्स या पानी-पूरी) को बनाने में स्वच्छता का ध्यान नहीं रखा जाता है। साथ ही कई विक्रेता स्वच्छ पानी का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं। वहीं, उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली बंदगोभी को अगर ठीक से साफ न किया जाए, तो उसमें मौजूद परजीवियों के अंडे भोजन को संक्रमित कर सकते हैं।
  • आधे सड़े फलों व सब्जियों का सेवन करना।
  • ठीक से न पका मांस का सेवन करने से भी पेट के कीड़ों का खतरा बढ़ सकता है।
  • पालतू जानवरों के माध्यम से भी परजीवियों का खतरा बढ़ सकता है।

आइए, अब जान लेते हैं कि कैसे पता करें कि शिशु के पेट में कीड़े हैं।

बच्चे के पेट में कीड़े होने के लक्षण

आंतों में कीड़े हैं कि नहीं यह जानने के लिए इसकी पहचान करना जरूरी है। नीचे जानिए, परजीवियों के प्रकारों के अनुसार पेट के कीड़ों के लक्षण।

1. थ्रेडवर्म

  • सोने में तकलीफ
  • पेट के नीचे खुजली
  • लड़कियों में योनी के आसपास लाल निशान, खुजली या सूजन
  • भूख न लगना
  • चिड़चिड़ापन
  • मल त्याग के दौरान कीड़े निकलना (9)

2. राउंडवॉर्म

  • खूनी बलगम (निचले वायुमार्ग द्वारा बलगम निकलता है)
  • खांसी, घरघराहट
  • कम श्रेणी बुखार
  • मल में कीड़े गुजरना
  • साँसों की कमी
  • त्वचा के लाल चकत्ते
  • पेट दर्द
  • उल्टी या खांसी के कीड़े
  • नाक या मुंह के माध्यम से शरीर को छोड़ने वाले कीड़े (5)

3. टेपवर्म

  • जी-मिचलाना
  • कमजोरी या थकान
  • दस्त
  • पेट में दर्द
  • भूख न लगना
  • वजन घटना
  • विटामिन और मिनरल्स की कमी (6)
  • गंभीर दौरे आना (न्यूरोसिस्टेरिसोसिस नामक मस्तिष्क संक्रमण की वजह से)।

गंभीर स्थितियों में निम्नलिखित लक्षण दिख सकते हैं :

  • बुखार
  • अल्सर
  • एलर्जी
  • सिरदर्द, चक्कर आना या दौरे पड़ना।

4. व्हिपवॉर्म

  • मल त्याग में तकलीफ (मल के साथ खून, पानी या बलगम आना)
  • डायरिया
  • मानसिक विकास में बाधा (10)

5. हुकवर्म

  • गुदे के आसपास खुजली और लाल चकत्ते
  • डायरिया
  • थकना
  • एनीमिया
  • पेट में दर्द
  • वजन घटना
  • मानसिक और शारीरिक विकास में बाधा (11)

पेट के कीड़ों का पता लगाने के लिए कौन से टेस्ट किए जाते हैं?

पेट में कीड़े होने की पहचान करने के बाद इसकी जांच करना बहुत ही आवश्यक है। नीचे जानिए पेट में कीड़ों की जांच की विभिन्न विधियां (12) :

  1. मल की जांच : आपके बच्चे के पेट में कीड़े हैं या नहीं इसका पता लगाने के लिए डॉक्टर बच्चे के मल का परीक्षण कर सकते हैं। यह टेस्ट उन परजीवियों का पता लगाने के लिए किया जाता है, जो डायरिया, कब्ज, पेट फूलने, पेट में दर्द और पेट संबंधी अन्य बीमारियों का कारण बनते हैं। मल में परजीवी और अंडे की जांच के लिए डॉक्टर अलग-अलग दिनों के स्टूल को किसी कंटेनर में रखने को कहेगा, जिसे आपको उसे सौंपना होगा। इसके अलावा, डॉक्टर आपको अन्य निर्देश भी दे सकता है।
  1. इंडोस कॉपी/कोलन कॉपी : इस विधि का उपयोग उन परजीवियों की पहचान करने के लिए किया जाता है, जो दस्त, पानी से मल, पेट में ऐंठन, पेट फूलना या अन्य पेट से जुड़ी परेशानियों का कारण बनते हैं। इस परीक्षण के अंतर्गत एक ट्यूब को मुंह या मलाशय में डाला जाता है, ताकि डॉक्टर आंत की जांच कर सकें।
  1. रक्त की जांच : कुछ परजीवियों की पहचान रक्त जांच के जरिए भी हो सकती है। इसके लिए डॉक्टर दो प्रकार के ब्लड टेस्ट कर सकते हैं।
  • सीरोलॉजी टेस्ट : सीरोलॉजी का प्रयोग परजीवी से संक्रमित शरीर में एंटीबॉडीज और पैरासाइट एंटीजन का पता लगाने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट के लिए डॉक्टर आपके शरीर से रक्त की एक मात्रा लेगा और उसकी जांच करेगा।
  • ब्लड स्मीयर : इस परीक्षण का प्रयोग उन परजीवियों की पहचान करने के लिए किया जाता है, जो रक्त में पाए जाते हैं। इस टेस्ट में माइक्रोस्कोप की मदद से परजीवियों से होने वाले रोगों, जैसे – मरेलिया व फाइलेरिया आदि की पहचान की जाती है।
  1. एक्सरे, एमआरआई और कैट : इन टेस्ट का प्रयोग परजीवी रोगों से होने वाले घावों की जांच करने के लिए किया जाता है।

आगे हम इस बीमारी के इलाज व असरकारक दवाइयों के बारे में बता रहे हैं।

बच्चों के पेट में कीड़े का इलाज

पेट में कीड़े होने की जांच अगर पॉजिटिव है, तो आपको तुरंत इसके इलाज के लिए आगे बढ़ना चाहिए। इलाज के लिए बरती थोड़ी-सी लापरवाही भी गंभीर रूप ले सकती है। पेट के परजीवियों से निजात पाने के लिए आप डॉक्टर के परामर्श पर दवाइयां ले सकते हैं या हर्बल दवाइयों का सेवन कर सकते हैं। नीचे जानिए पेट में कीड़ों के लिए आप कौन-कौन सी दवाइयां ले सकते हैं।

बच्चों के पेट में कीड़े की दवा | Bache Ke Pet Me kide Ki Dawa

बच्चों को पेट के कीड़े से आराम दिलाने के लिए आप डॉक्टर की सलाह पर निम्नलिखित एलोपैथी दवाइयां दे सकते हैं :

एल्बेंडाजोल (Albendazole) : डॉक्टरी परामर्श पर आप बच्चे को एल्बेंडाजोल टैबलेट ले सकते हैं। यह दवा पेट के हर तरह के कीड़ों को मारने का काम करेगी। इसकी खुराक भोजन के साथ दिन में दो बार दी जा सकती है, लेकिन आप डॉक्टर के कहे अनुसार ही इसे लें (13)। बच्चों में कीड़े की दवा और उपचार का समय बच्चे की उम्र और परजीवी संक्रमण के प्रकार पर निर्भर करता है। इसलिए, बच्चे को कोई भी दवा खुद से देना शुरू न करें।

मेबेंडाजोल (Mebendazole) : पेट के कीड़ों से निजात दिलाने के लिए आप बच्चे को मेबेंडाजोल दवाइयां दे सकते हैं। मेबेंडाजोल दवा खासकर पिनवॉर्म और हुकवर्म के खिलाफ एक कारगर कृमिनाशक के रूप में काम करती है। इसकी खुराक आप डॉक्टर के निर्देशानुसार ही लें (14)

पिपराजिन (Piperazine) : बच्चे को पेट के कीड़ों से छुटकारा दिलाने के लिए आप पिपराजिन प्रयोग में ला सकते हैं। यह बच्चों के पेट में कीड़ों के लिए एक कारगर ओवर द काउंटर मेडिसिन है। बच्चे को इसकी खुराक देने के लिए डॉक्टरी परामर्श जरूर लें (15)

पेट के कीड़ों के लिए ऊपर बताई गई दवाइयों के अलावा इन निम्नलिखित दवाइयां का भी सेवन किया जा सकता है (15) :

  • पाइरेंटेल और मोरेंटल (Pyrantel and Morantel)
  • इमोडेपसाइड (Emodepside)
  • इवेरमेक्टिन (Ivermectin)
  • नाइटाजोक्सानाइड (nitazoxanide)
  • मोनपैंटेल (monepantel)

बच्चों के पेट में कीड़े की होम्योपैथी दवा से जुड़ी जानकारी के लिए स्क्रॉल करें।

बच्चों के पेट में कीड़े की होम्योपैथी दवा

पेट के कीड़ों से निजात पाने के लिए होम्योपैथी दवाइयों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए आपको किसी होम्योपैथी डॉक्टर से मिलना होगा। होम्योपैथी डॉक्टर आपके बच्चे की सही जांच करेगा और निम्नलिखित दवाइयां दे सकता (16) :

  • सीना (Cina)
  • सेंटोनाइन (Santonine)
  • पोडोफाइलम (Podophyllum)

आइए, अब इस समस्या के लिए कुछ घरेलू उपचार भी जान लेते हैं।

बच्चों के पेट में कीड़ों की समस्या के घरेलू उपचार | Bacho Ke Pet Me Kide Ka Gharelu Upay

बच्चों के पेट के कीड़े बाहर करने के लिए आप डॉक्टरी सलाह पर घरेलू उपचार का सहारा ले सकते हैं। नीचे जानिए पेट के कीड़ों के लिए सबसे सटीक घरेलू उपाय।

  1. पपीता : पेट से कीड़े बाहर करने के लिए आप बच्चे को पपीता खिला सकते हैं। पपीता एक गुणकारी फल है। पपीता और इसके बीज कृमिनाशक (Antihelminthic) गुणों से समृद्ध होते हैं, जो आतों से कीड़ों को साफ करने का काम करते हैं (17)
  1. लहसुन : बच्चों के पेट में कीड़े मारने की दवा के रूप में आप लहसुन का सेवन भी कर सकते हैं। लहसुन में जानवरों के साथ-साथ इंसानों के पेट में प्रवेश करने वाले कीड़ों को भी मारने की क्षमता है (18)
  1. अजवाइन : बच्चों को पेट के कीड़ों से निजात दिलाने के लिए आप अजवाइन का सहारा भी ले सकते हैं। यह एक गुणकारी खाद्य पदार्थ है, जो कृमिनाशक गुणों से समृद्ध होता है (19)
  1. कद्दू के बीज : पेट के कीड़ों के लिए कद्दू के बीजों का सेवन भी कारगर उपाय हो सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, कद्दू के बीज टेपवार्म संक्रमण पर 89 प्रतिशत प्रभावी रूप से काम कर सकते हैं (20)
  1. करेला : पेट के कीड़ों को मारने के लिए करेले का सेवन किया जा सकता है। यह कारगर कृमिनाशक औषधि के रूप में काम कर सकता है (21)
  1. नीम : नीम भी औषधीय गुणों से भरपूर होती है, जो आपके बच्चे को पेट के कीड़ों से छुटकारा दिलाने में आपकी मदद कर सकती है (22), क्योंकि नीम कड़वी होती है। इसे देने के तरीके के संबंध में आप चिकित्सीय परामर्श जरूर लें।
  1. गाजर : पेट के कीड़ों के लिए गाजर का सेवन भी अहम भूमिका निभा सकता है (23)। आप डॉक्टरी सलाह पर बच्चे को गाजर का जूस या कच्चा गाजर खिला सकते हैं।
  1. हल्दी : एक औषधि के रूप में हल्दी का इस्तेमाल लंबे समय से किया जा रहा है। यह शरीर से जुड़ी कई परेशानियों से निजात दिलाने का काम कर सकती है। पेट के कीड़ों को मारने के लिए भी आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं (24)
  1. नारियल : पेट के कीड़ों से निजात पाने का एक कारगर तरीका नारियल भी है। नारियल पानी आंतों से कीड़ों को बाहर करने का काम कर सकता है (25)
  1. लौंग : लौंग कई औषधीय गुणों से भरपूर एक खाद्य पदार्थ है, जिसका इस्तेमाल शरीर से जुड़ी परेशानियों के लिए लंबे समय से किया जा रहा है। पेट के कीड़ों के लिए आप लौंग को प्रयोग में ला सकते हैं (26)। इसका इस्तेमाल कैसे किया जाए, इसके लिए चिकित्सीय परामर्श जरूर लें।

कुछ अन्य टिप्स भी हैं, जो आपके काम आ सकते हैं। उसके बारे में हम आगे बता रहे हैं।

बच्चों के पेट में कीड़ों की समस्या की रोकथाम

अपने बच्चे को पेट की कीड़े से बचाने के लिए आप निम्नलिखित सुझावों का पालन कर सकते हैं :

  • यह जरूर सुनिश्चित करें कि शौच के बाद और खाने से पहले बच्चे ने हाथ अच्छी तरह धोएं हैं कि नहीं।
  • बच्चे के खाने-पीने पर जरूर ध्यान दें।
  • स्ट्रीट फूड और अनहेल्दी जगहों में जाकर खाने से बचें।
  • सब्जियों को अच्छी तरह धोकर ही इस्तेमाल में लाएं। खासकर, वो जो जमीन के अंदर पैदा होती हैं, जैसे आलू और गाजर।
  • बच्चे के आसपास की जगह को साफ रखें।
  • बच्चे को खाली पैर बाहर न निकलने दें।
  • अगर आप बच्चे को पार्क घुमाने ले गए हैं, तो घर में प्रवेश करते ही बच्चे के हाथ-पैर अच्छी तरह से धोएं।
  • पेट के कीड़े के लक्षण दिखने पर बच्चे को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।
  • उपचार के दौरान बच्चे की चादर और अंडरवियर नियमित रूप से बदलें।
  • टॉयलेट सीट को हमेशा साफ रखें।
  • बच्चों के हाथ-पैर के नाखुनों को समय-समय पर काटते रहें।

पेट में कीड़ों की समस्या घातक भी हो सकती है, लेकिन सही समय पर इसकी पहचान, निदान और इलाज आपके बच्चे को इस संक्रमण से बचा सकता है। इसलिए, जितना हो सके बच्चे के खान-पान से लेकर उसकी स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। पेट के कीड़ों के इलाज के लिए आप एलोपैथिक मेडिसिन से लेकर लेख में बताए गए घरेलू उपायों को प्रयोग में ला सकते हैं। बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित यह एक जरूरी जानकारी है, इसलिए आप इसे दूसरों के साथ साझा भी कर सकते हैं।

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