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गर्भावस्था के दौरान, खासकर जिन्होंने पहली बार गर्भधारण किया हो उन्हें सबसे बड़ी चिंता इस बात की सताती है कि उनकी नॉर्मल डिलीवरी होगी या सिजेरियन। यह पूरी तरह से गर्भवती के स्वास्थ्य और गर्भ में पल रहे बच्चे की पोजीशन पर निर्भर करता है। गर्भ में बच्चे की पोजीशन अलग-अलग होती हैं, जिसमें वर्टेक्स भी एक है। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम बच्चे की वर्टेक्स पोजीशन के बारे में विस्तार से बात करेंगे। इस लेख में हम जानेंगे कि वर्टेक्स पोजीशन क्या है, इसमें डिलीवरी कैसे होती है और इसके क्या जोखिम हो सकते हैं। इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए लेख को अंत तक पढ़ें।
चलिए सबसे पहले समझते हैं कि बच्चे की वर्टेक्स पोजीशन क्या होती है।
वर्टेक्स पोजीशन (शीर्ष स्थिति) क्या है?
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गर्भ में भ्रूण की वृद्धि होने के साथ–साथ बच्चा अपनी पोजीशन बदलता रहता है। वहीं, जब बच्चे का सिर महिला की योनी के नीचे की ओर घूम जाता है, तो इसे वर्टेक्स पोजीशन यानी शीर्ष स्थिति कहते हैं। अक्सर डिलीवरी के कुछ हफ्तों पहले लगभग 34 हफ्ते तक बच्चा सिर-नीचे की स्थिति में आ जाता है। इस पोजीशन को हेड डाउन और सेफेलिक पोजीशन (Cephalic Position) के नाम से भी जाना जाता है। नॉर्मल डिलीवरी के लिए ये पोजीशन सबसे अच्छी मानी जाती है। इससे प्रसव के दौरान मां और बच्चे दोनों को कम परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है (1) (2)।
लेख में आगे वर्टेक्स पोजीशन कितनी तरह की होती है, इसके बारे में बता रहे हैं।
वर्टेक्स पोजीशन (सिर नीचे की ओर) के प्रकार – Types of Vertex Position
वर्टेक्स पोजीशन दो तरह की होती हैं, जो इस प्रकार हैं (1) :
1. ऑकीपुट इंटीरियर (Occiput anterior) : इसमें बच्चे का सिर नीचे की तरफ और चेहरा व शरीर मां की पीठ की तरफ होता है। डिलीवरी के लिए इस पोजीशन को सबसे बेहतर माना जाता है।
2. ऑकीपुट पोस्टीरियर (Occiput Posterior) : इसमें भी बच्चे का सिर नीचे की तरफ होता है, लेकिन चेहरा मां की पीठ की जगह पेट की तरफ होता है। आमतौर पर डिलीवरी के लिए इस अवस्था को भी सुरक्षित माना जाता है, लेकिन इसमें बच्चे के लिए पेल्विस से निकलना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। कई बार बच्चा लेबर के दौरान खुद इस पोजीशन से घूम कर ऑकीपुट इंटीरियर पोजीशन में आ जाता है।
यदि डिलीवरी के दौरान बच्चा इस अवस्था में होता है, तो उसे मुड़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए गर्भवती महिलाओं को टहलने यानी वॉक करने के लिए कहा जाता है। इसके अलावा, डिलीवरी की अलग-अलग पोजीशन ट्राई की जा सकती है। वहीं, जरूरत पड़ने पर वैक्यूम डिवाइस की मदद से बच्चे को बाहर निकाला जा सकता है।
लेख के इस भाग में जानते हैं कि गर्भवती महिला में वर्टेक्स पोजीशन कितनी आम है।
क्या शीर्ष स्थिति सामान्य है?
जैसा कि लेख में ऊपर बताया गया है कि डिलीवरी के दौरान बेबी का सिर नीचे की ओर यानी सिर के बल वाली अवस्था (वर्टेक्स पोजीशन) में होना सबसे अच्छा माना जाता है। गर्भावस्था में 34 हफ्ते के बाद ज्यादातर शिशु सिर के बल नीचे वाली स्थिति में आ जाते हैं। लगभग 97 फीसदी बच्चे डिलीवरी से पहले हेड डाउन अवस्था में आ जाते हैं। बाकी के 3 प्रतिशत बच्चे ब्रीच पोजीशन (पेट में बच्चा उल्टा) में हो सकते हैं, जिससे प्रसव के दौरान कई जटिलताएं हो सकती हैं (3)।
अब जानें शिशु के वर्टेक्स पोजीशन का कैसे पता लगा सकते हैं।
क्या मेरा शिशु वर्टेक्स पोजीशन में है? | Shishu Ke Vertex Position me Hone Ke Lakshan
बच्चा किस पोजिशन में है, गर्भवती महिलाएं खुद इसका पता नहीं लगा सकती हैं। बच्चे की पोजिशन से जुड़े कोई लक्षण नहीं होते हैं। निम्नलिखित तरीकों से इसका पता लगाया जा सकता है :
1. एब्डोमिनल पल्पेशन (abdominal palpation) : गर्भावस्था के दौरान बच्चे की पोजीशन जानने के लिए डॉक्टर पेट को छूकर जांच कर सकते हैं। बच्चे की स्थिति जानने का यह सबसे आसान तरीका है। इस तकनीक को लियोपोल्ड मन्यूवर्स कहते हैं (4)।
2. अल्ट्रासाउंड स्कैन : प्रसव का समय पास आने पर डॉक्टर गर्भ में बच्चे की पोजीशन की पुष्टि के लिए अल्ट्रासाउंड स्कैन की सलाह दे सकते हैं (5)।
आगे विस्तार से जानिए वर्टेक्स पोजीशन में प्रसव के बारे में।
शीर्ष स्थिति में बच्चे की डिलीवरी कैसे होती है?
नॉर्मल डिलीवरी के लिए बच्चे की वर्टेक्स पोजीशन (हेड डाउन) को सबसे अच्छा माना जाता है। जैसा कि लेख में बताया गया है कि यह भी दो प्रकार की होती है। भ्रूण का ऑकीपुट इंटीरियर पोजीशन (सिर नीचे और शरीर मां की पीठ की तरफ) में होना नॉर्मल है। गर्भवती महिला की नॉर्मल डिलीवरी की शुरुआत में भले ही बच्चा ऑकीपुट इंटीरियर पोजीशन में हो, लेकिन कई बार पेल्विस में आगे बढ़ते हुए वह ऑकीपुट पोस्टीरियर (सिर नीचे और चेहरा मां की पीठ की तरफ) की स्थिति में आ सकता। इसमें कोई परेशानी वाली बात नहीं है। 5 प्रतिशत मामलों में अचानक बच्चा घूम कर अपनी पोजीशन बदल सकता है (6)।
- सबसे पहले शिशु पेल्विस की तरफ आगे बढ़ता है और धीरे-धीरे इतनी जगह बनाता है कि उसमें से निकलकर जननमार्ग (बर्थ कैनाल-birth canal) से गुजर सके। बर्थ कैनाल छोटा होने की वजह से बच्चा अपने सिर को भी काफी इधर–उधर घुमाता है।
- इसके बाद भ्रूण की ग्रेविटी और एमनियोटिक द्रव सिर को घुमाते हुए शिशु को नीचे की तरफ जाने के लिए प्रेरित करते हैं। यही कारण है कि बच्चे के जन्म के दौरान सबसे पहले उसका सिर मां की योनी से बाहर निकलता है।
- इसके बाद प्रसव का दूसरा चरण शुरू होता है। इस दौरान गर्भाशय ग्रीवा (cervical dilatation) पूरी तरह से खुल जाती है और शिशु का सिर नीचे आ जाता है। इस दौरान शिशु ऑकीपुट पोस्टीरियर में है, तो उसे सिर की मदद से आराम से घुमाकर ऑकीपुट इंटीरियर पोजीशन में लाया जा सकता है।
- इसके बाद बच्चे के बाकी शरीर को बाहर निकाला जाता है।
बच्चे के जन्म की यह प्रक्रिया देखी जाए, तो काफी दिलचस्प है, क्योंकि सोचने वाली बात यह है कि बच्चे को कैसे पता की उसे प्रसव के दौरान अपना शरीर और सिर कहां और किधर से निकालना है। वर्टेक्स यानी शीर्ष पोजीशन में बच्चे का जन्म जल्दी हो जाता है, क्योंकि इसमें बच्चे का सिर दबाव डालता है, जिससे वह संकरे मार्ग को भी चौड़ा कर खुद-ब-खुद बाहर निकल आता है (7)। इसलिए, वर्टेक्स पोजीशन को नॉर्मल डिलीवरी के लिए सबसे बेहतर माना जाता है।
लेख में आगे शिशु की वर्टेक्स पोजीशन के जोखिम के बारे में बता रहे हैं।
क्या बच्चे के लिए शीर्ष (वर्टेक्स) स्थिति में कोई जोखिम है?
हर प्रेगनेंसी और डिलीवरी अलग-अलग होती है। इसलिए, कई बार बच्चे की वर्टेक्स पोजीशन होने के बावजूद प्रसव के दौरान समस्याएं आ सकती हैं, जिनके बारे में नीचे जानकारी दे रहे हैं (8) :
1. कमजोर संकुचन : कई बार संकुचन कमजोर हो सकता है, जिस वजह से गर्भाशय ग्रीवा समय पर पूरी तरह से खुल नहीं पाता है। ऐसे में शिशु बर्थ कैनाल से नहीं निकल पाता है। यदि लेबर की प्रक्रिया ठीक से आगे नहीं बढ़ती है, तो डॉक्टर संकुचन के लिए दवा दे सकते हैं या सिजेरियन डिलीवरी कर सकते हैं।
2. पेरिनियल टियर्स : डिलीवरी के समय योनि और आसपास के ऊतक पर अधिक दबाव पड़ता है, जिससे कभी-कभी वह हिस्सा फट जाता है। कई बार यह टियर अपने आप ठीक हो जाते हैं। यदि टियरिंग गंभीर है, तो परिस्थिति को देखते हुए एपीसीओटोमी (योनि और गुदा के बीच एक सर्जिकल कट) का सहारा लेना पड़ सकता है।
3. गर्भनाल संबंधित समस्या : बर्थ कैनाल से निकलते समय गर्भनाल शिशु के हाथ या पैर में फंस सकती है, लेकिन कई बार गर्भनाल शिशु के गले में लिपट जाती है, जिससे बच्चे के लिए जोखिम की स्थिति बन सकती है।
4. बच्चे की असामान्य हृदय गति : ज्यादातर लेबर के दौरान शिशु की हृदय गति का असामान्य होना कोई परेशानी वाली बात नहीं है। ऐसे में मां को पोजीशन बदलने के लिए कहा जा सकता है, जिससे शिशु का ब्लड फ्लो अच्छे से हो सके। कुछ मामलों में यह परेशानी गंभीर रूप ले सकती है, जिस वजह से तुरंत डिलीवरी करनी पड़ सकती है।
5. पानी की थैली का जल्दी फट जाना : आमतौर पर प्रसव की प्रक्रिया पानी की थैली के फटने के 24 घंटे के अंदर खुद शुरू हो जाती है। यदि ऐसा नहीं होता है, तो डॉक्टर लेबर को प्रेरित करने के लिए दवा दे सकते हैं।
6. पेरिनेटल एस्फेक्सिया : जब भ्रूण को गर्भाशय में या शिशु को प्रसव के दौरान पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती है, तो पेरिनेटल एस्फेक्सिया की परेशानी हो सकती है।
7. शोल्डर डिस्टोकिया : यह परेशानी तब होती है जब प्रसव के दौरान योनी से बच्चे का सिर निकल आता है, लेकिन कोई एक कंधा फंस जाता है।
8. अत्यधिक रक्तस्राव : यदि डिलीवरी के दौरान गर्भाशय में टियर्स ज्यादा आ जाते हैं या प्लेसेंटा गर्भाशय को ढक लेती है, तो रक्तस्राव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
चलिए, अब जानते हैं कि बच्चे को वर्टेक्स पोजीशन में कैसे लाया जा सकता है।
बच्चे को वर्टेक्स पोजीशन में कैसे लाएं?
नीचे बताए गए तरीकों से बच्चे को वर्टेक्स पोजीशन में लाने में मदद हो सकती है :
- एक्सरसाइज : बच्चे को वर्टेक्स पोजीशन में लाने के लिए डॉक्टर कई एक्सरसाइज की सलाह दे सकते हैं। हालांकि, ये एक्सरसाइज बच्चे को सिर के बल आने में मदद कर सकती हैं, लेकिन इसका मतलब नहीं है कि यू यह पूर्णतः कारगर है। इस विषय में संबंधित डॉक्टर से जरूर बात करें।
- एक्सटर्नल सेफेलिक वर्जन (ईसीवी) : डिलीवरी के कुछ समय पहले तक अगर बच्चा ब्रीच अवस्था (गर्भ में बच्चा उल्टा) है, तो संभव है कि डॉक्टर एक्सटर्नल सेफेलिक वर्जन (ईसीवी-मां के पेट पर हाथों से दबाव देकर भ्रूण की स्थिति को ठीक करने की प्रक्रिया) की मदद से बच्चे को सिर के बल लाने का प्रयास कर सकते हैं। ऐसा नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ाने के लिए किया जाता है (9)।
लेख के अंतिम भाग में जानिए क्या प्रसव के दौरान भी बच्चा शीर्ष स्थिति में आ सकता है।
क्या डिलीवरी के दौरान बच्चा वर्टेक्स पोजीशन से मुड़ सकता है?
डिलीवरी से पहले शिशु गर्भ में अपनी स्थिति बदलता रहता है, लेकिन प्रसव के शुरू होने के बाद यदि शिशु वर्टेक्स पोजीशन में है, तो अमूमन मामलों में वो इसी अवस्था में योनि से बाहर आता है। कुछ दुर्लभ मामलों में आखिरी के पलों में बच्चा वर्टेक्स पोजीशन से दूसरी अवस्था में आ सकता है (10)।
उम्मीद करते हैं इस लेख को पढ़ने के बाद गर्भावस्था के दौरान शिशु की वर्टेक्स पोजीशन से जुड़े आपके हर सवालों के जवाब आपको मिल गए होंगे। चाहे कुछ भी हो, नॉर्मल डिलीवरी के लिए बच्चे की वर्टेक्स पोजीशन को बेहतर माना गया है। इसलिए, यदि आप भी गर्भवती हैं, तो इन खूबसूरत पलों का भरपूर आनंद उठाएं। साथ ही अपना अच्छे से ख्याल रखें। इसके लिए अपनी डाइट का भी खास ख्याल रखें और पर्याप्त नींद लें। गर्भावस्था से जुड़ी ऐसी जानकारी हासिल करने के लिए आप हमारे अन्य लेख भी पढ़ सकते हैं।
References
1. Delivery presentations By Medlineplus
2. Your baby in the birth canal By Medlineplus
3. Labor with Abnormal Presentation and Position By Researchgate
4. Leopold Maneuvers By NCBI
5. Ultrasound By Medlineplus
6. Clinical effectiveness of position management and manual rotation of the fetal position with a U-shaped birth stool for vaginal delivery of a fetus in a persistent occiput posterior position By Sage Journals
7. Labor Stage 2 By Science Direct
8. What are some common complications during labor and delivery? By NIH
9. Effects of external cephalic version for breech presentation at or near term in high-resource settings: A systematic review of randomized and non-randomized studies By European Journal of Midwifery
10. BREECH PRESENTATIONS IN GENERAL PRACTICE. By Medical Journal
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