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किसी भी महिला के लिए गर्भावस्था सुखद अनुभूति होती है। खासकर, जब वह बच्चे को जन्म देकर मां और संपूर्ण महिला होने का एहसास करती है। बच्चे को जन्म देने के साथ ही महिला के जीवन में नई जिम्मदेारी भी जुड़ जाती है और वो है बच्चे की देखभाल। सबसे ज्यादा शिशु का शुरुआती दौर पर ध्यान रखना जरूर होता है। वो भी तब जब गर्भनाल काटी गई हो। गर्भनाल के कटने के बाद बच्चे का ध्यान न रखने पर इंफेक्शन होने का खतरा होता है। यही वजह है कि मॉमजंक्शन के इस लेख में हम गर्भनाल से जुड़ी सभी जरूरी बातें बता रहे हैं। साथ ही इसका ख्याल रखने के तरीके पर भी प्रकाश डालेंगे।

चलिए, सबसे पहले यह जान लेते हैं कि गर्भनाल क्या होती है और क्यों जरूरी होती है।

गर्भनाल क्या होती है? | What Is Umbilical Cord In Hindi


गर्भनाल महिला के शरीर का वह अहम हिस्सा है, जो गर्भावस्था के समय उसे शिशु से जोड़ता है। मां द्वारा लिए जाने वाले सभी पोषण तत्व इसी नाल के जरिए बच्चे के शरीर तक पहुंचते हैं। गर्भनाल ही वह माध्यम है, जिसके सहारे शिशु गर्भ में जीवित रहता है। इस नाल से ही बच्चे को ऑक्सीजन मिलती है। गर्भनाल बच्चे के पेट से लेकर महिला की नाभि तक जुड़ी होती है। औसतन अंबिकल कॉर्ड यानी गर्भनाल लगभग 50 सेमी (20 इंच) लंबी होती है (1)। गर्भनाल से जुड़ी कुछ और रोचक बातें इस प्रकार हैं :

  • गर्भनाल, नस और धमनियों से मिलकर बनी होती है।
  • नस बच्चे तक ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचाती है।
  • गर्भनाल सीधे शिशु के लिवर से जुड़ी होती है। ऐसे में नाल में अगर कोई संक्रमण होता है, तो बच्चे को गंभीर लिवर इंफेक्शन होने का खतरा हो सकता है।

चलिए, अब जानते हैं कि बच्चे की गर्भनाल को किस प्रकार अलग किया जाता है।

बच्चे की गर्भनाल कब और कैसे काटी जाती है?

शिशु के जन्म के तुरंत बाद डॉक्टर गर्भनाल को काट देते हैं (1)। वैसे वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मुताबिक, यदि बच्चा सामान्य है और उसे किसी चिकित्सकीय सहायता की जरूरत नहीं है, तो कॉर्ड क्लैंपिंग कुछ क्षण रुककर करने की सलाह दी जा सकती है। बताया जाता है कि डिलीवरी के बाद गर्भनाल काटने के लिए डॉक्टरों को कम से कम एक मिनट तक इंतजार करना चाहिए। यह शिशु के स्वास्थ्य और पोषण के लिए जरूरी है (2)। नीचे हम बता रहे हैं कि बच्चे की गर्भनाल कैसे काटते हैं (3) (1)

  • बच्चा जैसे ही जन्म के बाद सांस लेने लगता है, तो बच्चे से जुड़ी गर्भनाल को साफ और स्टेराइल यानी बैक्टीरिया मुक्त कैंची या ब्लेड की मदद से काट दिया जाता है।
  • काटने से पहले ब्लैड व कैंची को स्टरलाइज किया जाता है, ताकि बच्चे को किसी तरह का बैक्टीरियल इंफेक्शन न हो।
  • डिलीवरी के बाद शिशु को खुद से सांस लेने और पोषक तत्व के लिए गर्भनाल की जरूरत नहीं पड़ती है। यही वजह है कि इसे काट दिया जाता है।
  • इसे काटते वक्त दर्द भी नहीं होता है, क्योंकि इसमें कोई नर्व यानी तंत्रिका नहीं होती है।
  • गर्भनाल को काटने से पहले एक प्लास्टिक की क्लिप बच्चे से जुड़ी नाल को 3 से 4 cm तक लगाई जाती है और फिर दूसरी तरफ की नाल में क्लैंप को लगाया जाता है।
  • इन दोनों प्लास्टिक के बीच से गर्भनाल को काटा जाता है।
  • इसे काटने के बाद बच्चे के पेट पर 2 से 3cm (1 से 1.5in) लंबा स्टंप (बची हुई नाल) रह जाएगी। यह ठीक होने पर बच्चे की नाभि बनती है।

नोट: गर्भनाल को काटने की प्रक्रिया सिर्फ डॉक्टर व विशेषज्ञ ही कर सकते हैं। इसे स्वयं से करने का प्रयास न करें।

अब हम बता रहे हैं कि गर्भनाल काटने के बाद शिशु का ख्याल कैसे रखा जाता है।

शिशु के ठूंठ की देखभाल करने के लिए सुझाव | Baby Ki Garbh Naal Ki Dekhbhal

शिशु की नाल कटने के बाद ठूंठ की देखभाल करना अहम होता है। इसकी अनदेखी करने पर बच्चे को इंफेक्शन हो सकता है। बच्चे की ठूंठ न गिरने तक किस तरह से उसकी देखभाल की जानी चाहिए, इसके लिए कुछ सुझाव हम नीचे दे रहे हैं (4) (5):

  • स्टंप को हर समय साफ रखें।
  • कॉटन के कपड़े या पानी का इस्तेमाल करके इसे साफ करें।
  • किसी भी तरह के साबुन या अन्य पदार्थ के इस्तेमाल से बचें।
  • पानी का इस्तेमाल करने के बाद तुरंत स्टंप को सुखाएं या हवा में सूखने के लिए छोड़ दें।
  • समय-समय पर स्टंप के आस-पास चिपचिपा पदार्थ (Ooze) नजर आ सकता है, उसे साफ करते रहें।
  • जब तक स्टंप गिर न जाए, तब तक अपने बच्चे को पानी के टब में न नहलाएं।
  • इसे खींचने की कोशिश न करें, भले ही यह केवल एक धागे से ही क्यों न लटका हो।
  • स्टंप को स्वाभाविक रूप से गिरने दें।
  • स्टंप को छूने से पहले हाथ धोएं।
  • साथ ही कोशिश ये करें कि उसे ज्यादा न छुएं।
  • कॉर्ड को सूखा व हवा के संपर्क में रखें।
  • बच्चे को नैपी पेंट्स पहनाते समय ध्यान रखें कि वो स्टंप से नीचे ही हो। अन्यथा स्टंप में नमी बन सकती है।

अब शिशु की नाभि ठीक न हो जाने तक उसे कैसे नहलाया जा सकता है, उस बारे में जान लेते हैं।

शिशु की नाभि ठीक होने तक उसे कैसे नहलाएं?

शिशु की नाभि ठीक न होने तक उसमें पानी नहीं जाना चाहिए। ऐसे बच्चे को नहलाते समय खास ख्याल रखना चाहिए। सबसे बेहतर उसे ड्राई बाथ देनी चाहिए यानी स्पंज या किसी कपड़े को भिगोने के बाद अच्छे से नीचोड़ कर बच्चे का शरीर साफ करें। ऐसा करने से बच्चा साफ भी रहेगा और नाभि वाले हिस्से में पानी भी नहीं पहुंचेगा। नाभि के आसपास के हिस्से को भी इसी तरह से पोंछ सकते हैं, लेकिन सावधानी के साथ (4)

ठूंठ का ख्याल कैसे रखें यह तो आप जान ही गए हैं। आइए, गर्भनाल के संबंध में कुछ और जानकारी हासिल कर लेते हैं।

शिशु की नाभि का ठूंठ कब गिरेगा?

बच्चे की नाभि का ठूंठ गर्भनाल काटने के 5 से 15 दिन में सूख कर गिर जाता है। बस ध्यान रखें कि उसमें पानी न जाए। साथ ही उसे खींचने की कोशिश न करें। समय के साथ वह खुद ही सूखकर गिर जाएगा। इसके गिरने के बाद बच्चे के नाल वाली जगह में हल्का घाव जैसा बन जाएगा, जो ठीक होने के बाद बच्चे की नाभि का रूप ले लेता है (4)। बस ध्यान दें कि गर्भनाल या नाभि पर कभी भी कोई क्रीम, तेल या पाउडर न लगाएं। इससे गंभीर संक्रमण हो सकता है। इसे जितना संभव हो उतना सूखा रखें।

आगे हम ठूंठ गिरने के बाद बच्चे की नाभि ठीक होने में लगने वाले समय के बारे में बता रहे हैं।

शिशु की नाभि ठीक होने में कितना समय लगता है?

शिशु की नाभि का ठूंठ यानी स्टंप गिरने के बाद नाभि को ठीक होने में कम से कम एक सप्ताह का समय लगता है। इस दौरान नाल वाली जगह पर लाल रंग का हल्का-सा धब्बा दिखना सामान्य बात है। वह जगह चिपचिपी, भूरी और थोड़ी बदबूदार भी हो सकती है। यह बच्चे की नाभि ठीक होने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है, इसलिए घबराने की कोई बात नहीं है (6)

लेख के इस हिस्से में हम उन लक्षणों की बात कर रहे हैं, जो ठूंठ में संक्रमण की ओर इशारा करते हैं।

शिशु के ठूंठ में संक्रमण के संकेत

नाभि की ठूंठ का अगर ठीक तरीके से ख्याल न रखा जाए, तो इसमें संक्रमण हो सकता है। नीचे हम सामान्य संक्रमण और गंभीर संक्रमण के कुछ लक्षणों के बारे में बता रहे हैं (4)

सामान्य संक्रमण:

  • अत्यंत अप्रिय गंध का आना।
  • स्टंप के आसपास की त्वचा में सूजन और लाल चकत्ते होना।

गंभीर संक्रमण:

  • बुखार (100.4°F/38°C या इससे अधिक)।
  • सुस्ती।
  • पिलपिली मांसपेशियां।
  • दूध पीने में रुचि न दिखाना।

चलिए, अब यह जानते हैं कि डॉक्टर से कब संपर्क करना चाहिए।

डॉक्टर के पास कब जाएं?

सबसे पहले तो डॉक्टर से संपर्क तब करना चाहिए, जब बच्चे के ठूंठ में संक्रमण के ऊपर बताए गए लक्षण नजर आने लगें। इसके अलावा, किन अन्य परिस्थितियों में डॉक्टर के पास जाना चाहिए ये हम नीचे विस्तार से बता रहे हैं (4)

  • अगर बच्चे का स्टंप चार हफ्ते बाद भी नहीं गिरता है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। हो सकता है कि बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता में कुछ कमी हो।
  • अगर बच्चे का कॉर्ड स्टंप (ठूंठ) बहुत जल्दी खिंच जाता है, तो रक्तस्राव शुरू होने लगता है। इस दौरान बार-बार साफ करने के बाद भी बच्चे के नाल वाली जगह में रक्त की बूंद नजर आती है। ऐसे में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

अंबिलिकल ग्रेनुलोमा क्या होता है?

कभी-कभी ठूंठ पूरी तरह से सूखने के बजाय, वहां गुलाबी निशान वाले ऊतक बन जाते हैं, जिसे ग्रेनुलोमा कहा जाता है। ग्रेनुलोमा से हल्के पीले रंग का तरल पदार्थ निकलता। वैसे तो यह एक सप्ताह में ठीक हो जाता है, लेकिन अगर ऐसा न हो, तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए (4)

किस कारण से बच्चों की नाभि अंदर की तरफ (इन्नी) या बाहर की तरफ (आउटी) होती है?

कुछ बच्चों की नाभि अंदर की ओर होती है तो कुछ की बाहर की ओर। इसके पीछे कोई खास कारण नहीं है, बस नाल के काटने के बाद हिलिंग प्रक्रिया के दौरान किस तरह से त्वचा के ऊतक यानी टिश्यू बने हैं, यह उस पर निर्भर करता है। अधिकतर बच्चों की नाभि अंदर की ओर ही होती है। हां, कुछ मामलों में जिन बच्चों की नाभि बाहर की ओर होती है, उसके पीछे मुख्य वजह नाल हर्निया (Umbilical hernia) हो सकता है। इसमें नाभि का हिस्सा करीब 1 से 5 cm तक बाहर निकला हुआ होता है। हालांकि, इस दौरान किसी तरह का दर्द महसूस नहीं होता, लेकिन नाभि में हल्की सूजन जरूर आती है (7)

क्या बच्चे की नाल का कोई धार्मिक महत्व होता है?

सभी तरह की धर्मों में नाल को लेकर अलग-अलग तरह की मान्यताएं हैं। कुछ नाल को दफन करना बेहतर समझते हैं, तो कुछ उसे दान में देना। कुछ धर्मों में नाल को किसी भी तरह का नुकसान होने का मतलब किसी बुरी चीज की शुरुआत होना माना जाता है। नाल को संभालकर रखने या फिर रीति-रिवाज के साथ नष्ट करने जैसी कई मान्यताएं नाल से जुड़ी हुई हैं। हां, आजकल बच्चे की नाल और इसमें मौजूद रक्त को संभाल कर जरूर रखा जाने लगा है। माना जाता है, इससे बच्चे से संबंधित आनुवंशिक बीमारी के बारे में पता लगाया जा सकता है। साथ ही बच्चे को किसी तरह की गंभीर बीमारी होने पर भी गर्भनाल मदद कर सकती है (8) (9)

क्या शिशु की नाभि में तेल की बूंदें डालना सुरक्षित है?

पुराने समय से शिशु की नाभि में तेल डालने का चलन चला आ रहा है। हालांकि, यह किस प्रकार शिशु को फायदा पहुंचाता है, यह स्पष्ट नहीं है। यही वजह है कि शिशु की नाभि में तेल की बूंदें बिना डॉक्टर के परामर्श के नहीं डालनी चाहिए।

गर्भनाल क्या होती है और इसका ख्याल कैसे रखा जाता है, यह तो हम बता ही चुके हैं। बस अब आप इस लेख को ध्यान से पढ़कर शिशु की नाल की अच्छे से देखभाल करें। इस दौरान किसी भी तरह की लापरवाही से इंफेक्शन हो सकता है। यही वजह है कि हमने लेख में इंफेक्शन के लक्षण के बारे में भी बताया है। इनमें से कोई भी लक्षण नजर आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। देरी होने पर समस्या  गंभीर भी हो सकती है। यह हम आपको डराने के लिए नहीं, बल्कि शिशु के प्रति सतर्क रहने के लिए बता रहे हैं।

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