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बच्चे भी समय व परिस्थितियों के अनुसार दुखी, उदास व परेशानी महसूस करते हैं। अगर ये भावनाएं बच्चे को लंबे समय तक घेरे रहें, तो वह डिप्रेशन या अवसाद का शिकार भी हो सकते हैं। अक्सर बच्चे बहुत से मुश्किल मुद्दों से जूझ रहे होते हैं, जैसे माता-पिता के बीच विवाद, स्कूल में खराब ग्रेड, दोस्तों को खोना, अपने शरीर से नाखुश होना और कई बार पहला प्यार होना। इन समस्याओं व परिस्थितियों के कारण बच्चे धीरे-धीरे अवसाद ग्रस्त हो सकते हैं (1)। इसी वजह से मॉमजंक्शन के इस आर्टिकल में हम बच्चों में डिप्रेशन के बारे में बताएंगे। यहां आप जानेंगे कि अवसाद क्या होता है और बच्चों को इससे कैसे बचाया जा सकता है।
इस लेख में सबसे पहले बताते हैं कि अवसाद होता क्या है।
अवसाद या डिप्रेशन क्या है?
डिप्रेशन या अवसाद एक गंभीर मानसिक बीमारी है। डिप्रेशन को क्लिनिकल डिप्रेशन या डिप्रेसिव डिप्रेशन भी कहा जाता है। यह एक तरह का मूड डिसऑर्डर है, जो सोचने-समझने, महसूस करने, दैनिक क्रियाओं जैसे सोना, खाना, पीना और अन्य कामों पर प्रभाव डालता है। डिप्रेशन से जूझ रहा व्यक्ति अमूमन उदास रहता है और उसे खालीपन महसूस होता है (2)।
अवसाद जैसी समस्या किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। इस दौरान इंसान काफी निराश हो जाता है और गंभीर स्थितियों में जिंदगी जीने की चाहत छोड़कर आत्महत्या करने के रास्ते पर चल पड़ता है (3)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि 2021 तक अवसाद ग्लोबल डिजीज बर्डन का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन सकता है (4)।
आगे जानिए कि बच्चे भी डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं या नहीं।
क्या बच्चे वास्तव में अवसाद से पीड़ित हो सकते हैं?
हां, बच्चे भी अवसाद का शिकार हो सकते हैं। बदलते दौर और बदलती जीवन शैली में जिस तेजी से बच्चों का दिमाग व्यस्क होता जा रहा है, उतनी ही तेजी से वह अवसाद का भी शिकार हो रहे हैं। इस बदलती जीवनशैली का सीधा असर बच्चों के दिमाग पर पड़ रहा है। ऐसे बच्चे जिनका बचपन गरीबी व असुरक्षा के माहौल में गुजरा हो उनमें डिप्रेशन की आशंका अधिक रहती है, क्योंकि ऐसी स्थिति में बच्चों के डिप्रेशन संबंधित लक्षणों व अवसाद से जूझ रहे बच्चे की जरूरतों को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, 13 साल से कम उम्र के बच्चों में डिप्रेशन का प्रसार 0.3% से 7.8 प्रतिशत तक हुआ है (4)।
लेख के अगले भाग में आपको बताते हैं कि बच्चों में डिप्रेशन की समस्या कितनी आम है।
बच्चों में डिप्रेशन कितना आम है?
बच्चों में डिप्रेशन गंभीर मनोरोग विकार है। करीब 100 में से 5 बच्चों व किशोरों में ऐसे लक्षण होते हैं, जो अवसाद की ओर संकेत कर सकते हैं (1)। उम्र के अनुसार बच्चों में डिप्रेशन का प्रसार अलग-अलग पाया गया है। बतौर रिपोर्ट्स, 10 से 13 साल तक के बच्चों में डिप्रेशन का प्रसार 1 से 2 प्रतिशत, 12 से 14 वर्ष वाले बच्चों में 3 से 8 प्रतिशत और 15 से 18 साल तक के किशोरों में इसे 14% तक पाया गया है। एक अनुमान के मुताबिक, कुल आबादी के 20 फीसदी लोगों ने 18 साल की उम्र तक पहुंचने से पहले कम से कम एक बार डिप्रेशन का सामना किया होता है (5)।
अब आपको बताते हैं कि अवसाद से ग्रस्त बच्चों में क्या लक्षण होते हैं।
बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण
अवसाद से ग्रस्त बच्चों व किशोरों में डिप्रेशन के लक्षण वयस्कों जैसे ही दिखाई देते हैं। जैसे कि गहरी उदासी और कुछ भी करने के लिए प्रेरणा की कमी, लेकिन कई मामलों में ये लक्षण अलग भी हो सकते हैं। इसे हमने नीचे तीन हिस्सों में बांटकर समझाया है (1)।
- प्री-स्कूल के बच्चों में अवसाद: इस आयु के बच्चों में डिप्रेशन के मामले कम होते हैं। अगर वो इसका शिकार हो जाते हैं, तो इस उम्र में अवसाद का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। इस दौरान कुछ ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं:
- बच्चों का अधिक रोना।
- खेलने-कूदने में मन न लगना।
- बेचैन रहना।
- बहुत अच्छा व्यवहार करने व आज्ञाकारी बनने की कोशिश करना।
- स्कूल जाने की उम्र वाले बच्चों में डिप्रेशन: इस आयु वर्ग के बच्चे में अवसाद के लक्षण कुछ इस प्रकार के हो सकते हैं:
- अपनी मनपसंद की चीजें व शौक में रुचि खो देना।
- बात-बात पर लड़ लेना या सामने वाले को अपना दुश्मन समझना।
- दूसरों व परिवार के प्रति गुस्सैल और आक्रामक रवैया।
- जल्दी अपना आपा खो देना।
- छोटी-छोटी बातों पर परेशान होना।
- आत्मसम्मान में कमी।
- किशोरावस्था के बच्चों में अवसाद: इस उम्र के बच्चों में सामान्य मूड स्विंग और डिप्रेशन का पता लगाना मुश्किल हो सकता है। इस आयु में स्वस्थ किशोर भी कभी-कभी हीन, आक्रामक व उदासीन हो जाते हैं। इनके अलावा, कुछ ऐसे लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं:
- हमेशा उदास रहना।
- नशे (शराब व सिगरेट) का सेवन शुरू करना।
- बहुत थका हुआ महसूस करना।
- आत्मघाती विचार मन में आना।
लेख के अगले भाग में पढ़िए कि बच्चों में अवसाद किन कारणों से होता है।
बच्चों में डिप्रेशन के कारण
प्रत्येक शख्स में डिप्रेशन के कारण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन इनकी पहचान करना आवश्यक है। निम्नलिखित कारणों से इसकी पहचान की जा सकती है (4) (6)।
- आनुवंशिकता के कारण।
- किसी डिप्रेशन ग्रस्त व्यक्ति के साथ रहने से।
- भावुक और खुद को दोष देने वाला स्वभाव।
- तनाव की गंभीर स्थिति।
- जीवन की घटनाएं जैसे किसी की मृत्यु या बड़ा नुकसान।
- निराशाजन माहौल में रहना।
- बच्चों के मन को चोट पहुंचाने वाली घटनाएं, जैसे किसी तरह का शोषण।
- पारिवारिक समस्याएं।
- माता व पिता में किसी एक के छोड़कर जाने से।
- स्कूल व पढ़ाई में होने वाली परेशानियां।
- दोस्तों के न होने के कारण।
आखिर कैसे पता लगाया जाए कि बच्चों तनावग्रस्त है या नहीं? आइए, जानते हैं।
बच्चों के सवालों और व्यवहार से डिप्रेशन का पता कैसे लगाएं?
अगर बच्चा बेहद अजीब से सवाल करता है, तो समझ जाइए कि उसे कुछ समस्या है। यह समस्या डिप्रेशन भी हो सकती है। ऐसे में बच्चे खुद को नुकसान पहुंचाने और जिंदगी खत्म करने के तरीकों के बारे में पूछ सकते हैं। साथ ही वो जीवन में क्या रखा है या ऐसे कुछ अन्य सवाल कर सकते हैं। इनके अलावा, बच्चे के व्यवहार से भी डिप्रेशन का पता लगाया जा सकता है, जो कुछ इस प्रकार हैं (6):
- चिड़चिड़ापन
- उदासी
- चिंता
- गुस्सा
- शिकायत व बेचैनी
- बात-बात पर खुद को दोष देना
- आत्मघाती विचार
- परेशान रहना
- हर समय मूड खराब रहना
- अकेले रहना
अवसाद के बारे में इतना कुछ जानने के बाद अब इसके इलाज पर चर्चा करना भी जरूरी है।
बच्चे के डिप्रेशन का इलाज
बच्चों में अवसाद के मामूली मामलों में एक विकल्प थोड़ा इंतजार करना और उनके लक्षण में सुधार हो रहे है या नहीं यह देखना है। ऐसी स्थिति में बच्चों की जरूरतों को बेहतर ढंग से समझने और उन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत होती है। अन्य बच्चों की तुलना में अवसाद ग्रस्त बच्चों के साथ धैर्य बरतने और उनके आत्मसम्मान को बढ़ावा देना चाहिए। इसके अलावा, पेशेवर मनोवैज्ञानिक की मदद ली जा सकती है, जो कुछ इस प्रकार से बच्चे का इलाज कर सकते हैं (6)।
- प्रारंभिक हस्तक्षेप: अवसाद की प्रारंभिक स्थिति में सबसे पहले बच्चों से बात करके ही उसका इलाज करने की कोशिश की जाती है। इस दौरान बच्चों को अपनी समस्याओं को बताने के लिए कहा जाता है और उस समस्या का समाधान निकाला जाता है। जैसे अगर स्कूल में कोई परेशानी है, तो उसे दूर करना साथ ही व्यायाम व संतुलित आहार भी डिप्रेशन में मददगार साबित हो सकता है।
- आत्महत्या के विचार के बारे में जानना: मनोवैज्ञानिक अवसाद ग्रस्त बच्चे व किशोर आत्मघाती विचारों के बारे में पूछते हैं। अगर बच्चे की बातों से ऐसे संकेत मिलते हैं कि वो खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं, तो मनोचिकित्सक दवा लेने की सलाह दे सकते हैं, जिसके बारे में हम नीचे बता रहे हैं। साथ ही माता-पिता को यह सुनिश्चित करने को कहा जाएगा कि संभावित आत्महत्या के तरीके, जैसे कि गोलियां, नुकीले हथियार आदि को बच्चों से छिपाकर रखें। बच्चे की स्थिति के अनुसार परिवार को बच्चे पर निगरानी रखने को भी कहा जाता है।
- एंटीडिप्रेसेंट दवा: मनोचिकित्सक बच्चे की स्थिति और उम्र को ध्यान में रखते हुए एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का सेवन करने की सलाह दे सकते हैं। इन दवाओं के दुष्प्रभाव भी होते हैं, इसलिए डॉक्टर के परामर्श के बिना इन्हें नहीं लेना चाहिए।
- मनोवैज्ञानिक उपचार: इसके तहत दो तरीकों से बच्चों में अवसाद का इलाज किया जा सकता है।
- कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी): इस थेरेपी के तहत बच्चों के ऐसे विचारों व व्यवहारों की पहचान की जाती है, जिसके कारण उन्हें अवसाद हुआ है। साथ ही उन्हें सकारात्मकता में बदलने की विशेषज्ञ कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए अगर बच्चा किसी बात के लिए खुद को दोषी मानता है, तो उसे यकीन दिलाया जाता है कि वो दोषी नहीं है।
- इंटरपर्सनल सायकोथेरेपी (आईपीटी): आईपीटी के दौरान बच्चों के आपसी संबंधों पर ध्यान दिया जाता है। इस थेरेपी के तहत मरीज के आपसी विवादों, बदलाव, दुख और नुकसान जैसे बिंदुओं पर काम करके अवसाद के लक्षणों को कम करने की कोशिश की जाती है।
अगले भाग में पढ़िए कि कैसे बच्चों को डिप्रेशन में जाने से बचाया जा सकता है।
बच्चों का डिप्रेशन से बचाव कैसे करें?
बच्चों को डिप्रेशन से बचाने के लिए उनकी मनोस्थिति को समझना जरूरी है। बच्चा अवसाद ग्रस्त न हो इसके लिए निम्न प्रकार से बचाव किए जा सकते हैं (1)।
- बच्चों से बात करके जानने की कोशिश करें कि उन्हें क्या परेशान कर रहा है और वो कैसा महसूस करते हैं।
- बच्चों की समस्या को प्राथमिकता से हल करने का प्रयास करें, क्योंकि हो सकता है कि आपको मामूली लगने वाली बातें उसकी परेशानी का कारण हों।
- अगर बच्चा इस दौरान आपसे बातें शेयर न करे, तो उसे प्यार से समझाएं कि आप उसकी परवाह करते हैं और वह आपको कोई भी बात बेझिझक बता सकता है।
- बच्चा जिनके साथ सहज हो या जिन पर वह विश्वास करता हो, उनसे बात करने के लिए प्रोत्साहित करें। चाहे वह परिवार का सदस्य हो, दोस्त हो या रिश्तेदार।
- बच्चे की स्थिति को देखते हुए जरूरत पड़ने पर प्रोफेशनल की मदद ले सकते हैं।
- कई जगहों में अवसाद ग्रस्त बच्चों की सहायता के लिए स्पेशल प्रोग्राम व कोर्स चलाए जाते हैं। जहां जाकर बच्चे इससे निपटने के तरीके सीख सकते हैं।
इस लेख में आगे पढ़िए कि अवसाद ग्रस्त बच्चों में चेतावनी के संकेत क्या होते हैं।
बच्चों में अवसाद – चेतावनी के संकेत
अवसाद कई अलग-अलग प्रकार के होते हैं, जिन्हें विभिन्न संकेतों द्वारा पहचाना जा सकता है। गहरी उदासी और उन कामों में रुचि न होना जिन्हें वे आमतौर पर करना पसंद करते हों, ये दो लक्षण यदि किसी शख्स में कम से कम 2 सप्ताह से अधिक समय तक रहें, तो वे अवसाद ग्रस्त हो सकते हैं (7)। अवसाद से जूझ रहे बच्चे में चेतावनी के निम्न संकेत भी दिख सकते हैं।
- बच्चे में एनर्जी में कमी, खाने-सोने और अन्य कामों में बदलाव।
- हफ्तों तक उदास, चिड़चिड़ा और हताश रहना।
- सामाजिक अलगाव यानी दूसरों से अलग रहने लगना। यहां तक कि परिवार के लोगों से भी।
- आत्महत्या, निराशा या फिर लाचारी की बातें करना।
- हर दम बेचैन और चिंतित रहने लगना।
- नेगेटिव चीजों की ओर ध्यान देना।
- अधिर भावुक होना और रोना।
- नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करना।
- सोचने और निर्णय लेने में दिक्कतें आना।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
क्या बिना दवाई के डिप्रेशन का इलाज संभव है?
हां, बिना दवाई के भी डिप्रेशन का इलाज संभव है। डिप्रेशन के प्रसार व रोगी की स्थिति को देखते हुए इसका इलाज बिना दवाइयों के भी किया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक उपचार के तहत बच्चों में कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) और इंटरपर्सनल सायकोथेरेपी (आईपीटी) थेरेपी के जरिए अवसाद का इलाज किया जाता है (6)।
बच्चों में डिप्रेशन कितने दिन तक रहता है?
डिप्रेशन की व्यापकता (कम, मध्यम और अधिक) के अनुसार बच्चों में अवसाद की समयावधि अलग-अलग हो सकती है। वहीं, अगर किसी बच्चे में गहरी उदासी, बेचैनी, काम में रुचि न होना जैसे अवसाद के लक्षण 2 हफ्ते से अधिक समय तक रहें, तो उसके अवसाद ग्रस्त होने की आशंका अधिक हो जाती है (7)।
बच्चों में डिप्रेशन आत्मघाती प्रवृत्ति की ओर ले जा सकता है?
हां, डिप्रेशन उन्हें आत्मघाती प्रवृत्ति की ओर ले जा सकता है। अवसाद ग्रस्त बच्चे की बातों व व्यवहार से यदि आत्मघाती संकेत मिले, तो उसे तुरंत मनोचिकित्सक के पास ले जाएं और उसे निरंतर निगरानी में रखें (6)।
इस आर्टिकल के जरिए हमने बच्चों में डिप्रेशन कैसे व किन कारणों से होता है, इससे जुड़ी पूरी जानकारी दी है। आप आगे से बच्चे के व्यवहार में आए छोटे-बड़े बदलावों को गंभीरता से जरूर लें, क्योंकि बच्चे के व्यवहार में ही अवसाद के लक्षण छुपे होते हैं। अगर कोई बच्चा अवसाद जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है, तो उसकी देखभाल अधिक करें और प्रोफेशनल की सहायता भी जरूर लें। बच्चों से जुड़े ऐसे ही अन्य विषयों के संबंध में जानने के लिए पढ़ते रहें मॉमजंक्शन।
References
1. Depression in children and teenagers By NCBI
2. Depression Basics By NIHM
3. Depression By MedlinePlus
4. Childhood depression: a systematic review By NCBI
5. Should antidepressants be used to treat childhood depression? By NCBI
6. Managing depression in childhood and adolescence By NCBI
7. Depression By NCBI
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