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कई बार बच्चे जरूरत से ज्यादा खाना खाने लगते हैं और कभी उनकी खुराक एकदम कम हो जाती है। अक्सर इसे आम बात समझ कर माता-पिता इसकी अनदेखी कर देते हैं। अगर ऐसा कुछ आपके घर के बच्चों के साथ भी है, तो सतर्क हो जाइए। यह ईटिंग डिसऑर्डर यानी भोजन विकार का संकेत हो सकता है। क्या है भोजन विकार और बच्चों को इससे कैसे बचाया जा सकता है, जैसे सभी जरूर सवालों के जवाब आपको मॉमजंक्शन के इस लेख में मिलेंगे। यहां हमने बच्चों में भोजन विकार से जुड़ी हर बात को रिसर्च के आधार पर आसान शब्दों में समझाया है।

आर्टिकल के शुरुआत में जानते हैं कि भोजन विकार क्या होता है।

बच्चों में भोजन विकार (ईटिंग डिसऑर्डर) क्या है?

ईटिंग डिसऑर्डर जीवनशैली और खाने की पसंद से जुड़ा बदलाव नहीं, बल्कि एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकार है। इस विकार में खाने और खाने के व्यवहार से जुड़े विचार प्रभावित होते हैं। इस दौरान बच्चा सामान्य से ज्यादा या कम खाना खाता है। इसके कारण शरीर को जरूरी पोषण नहीं मिलते और कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। गंभीर मामलों में तो व्यक्ति की मौत तक हो जाती है, लेकिन समय रहते इसका उपचार करने से इस समस्या को गंभीर होने से बचाया जा सकता है (1)

भोजन विकार के कई प्रकार हैं, जिनके बारे में हम आगे विस्तार से बताया गया है।

बच्चों में खाने के विकार (ईटिंग डिसऑर्डर) के प्रकार क्या हैं?

बच्चों में खाने के विकार को मुख्य रूप से इन तीन भागों में बांटा गया है। ईटिंग डिसऑर्डर के इन सभी प्रकार के बारे में हमने नीचे विस्तार से बताया है (1) (2)

  • बिंज ईटिंग डिसऑर्डर – इससे पीड़ित बच्चा पेट भरने के बाद भी खाना खाता रहता है। ऐसा वो तबतक करता है, जबतक कि उसे असहज महसूस नहीं होता। इस विकार में बच्चे खाने के प्रति अपना नियंत्रण खो देते हैं और खुद को खाना खाते रहने से नहीं रोक पाते। जरूरत से ज्यादा खाना खाने बाद में उन्हें अपराध और शर्म जैसी भावनाएं भी घेर लेती हैं। ज्यादा खाने के कारण बच्चे मोटापे का शिकार भी हो जाते हैं।
  • बुलिमिया नर्वोसा इस विकार में भी बच्चे जरूरत से ज्यादा खाना खाते हैं। खाने के बाद वो उल्टी करके या शौच की मदद से पेट में भरा हुआ अतिरिक्त खाना बाहर निकालते हैं। ज्यादा खाने की आदत की वजह से इस विकार वाले बच्चे ओवर एक्सरसाइज या उपवास भी करते हैं, ताकि वो मोटापे से बचे रहें। बुलिमिया नर्वोसा वाले बच्चों का वजन थोड़ा कम, सामान्य या अधिक हो सकता है।
  • एनोरेक्सिया नर्वोसा – एनोरेक्सिया नर्वोसा से पीड़ित बच्चे खाने से दूर भागते हैं या फिर बहुत कम खाना खाते हैं। ऐसा बच्चे वजन बढ़ने के डर से करते हैं। भले ही उनका वजन कितना भी कम क्यों न हो, उन्हें लगता है कि वो काफी मोटे हैं। एनोरेक्सिया नर्वोसा, खाने के इन सभी विकारों में से सबसे गंभीर होता है।

लेख में आगे हम बच्चों में ईटिंग डिसऑर्डर के कुछ लक्षणों के बारे में बताएंगे।

बच्चों में भोजन विकार के लक्षण

हम ऊपर बता ही चुके हैं कि बच्चों में भोजन विकार के तीन प्रकार होते हैं (3)। इन सभी प्रकार के अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं। इसी वजह से हम ईटिंग डिसऑर्डर के प्रकार के आधार पर इनके लक्षणों के बारे में बता रहे हैं (1)

बिंज ईटिंग के लक्षण (4):

  • थोड़ी-थोड़ी देर में ज्यादा मात्रा में भोजन करना, जैसे कि हर 2 घंटे में असामान्य रूप से खाना
  • भूख न लगने व पेट भरा होने पर भी खाना खाना
  • पेट में असहजता महसूस न होने तक खाते रहना
  • शर्मिंदगी से बचने के लिए अकेले में या छुपकर भोजन करना
  • अपनी ज्यादा डाइट को लेकर शर्मिंदगी महसूस करना
  • खाने को बहुत तेजी से खाना

बुलिमिया नर्वोसा के लक्षण (5) :

  • बिंज ईटिंग के सभी लक्षण इसमें शामिल हैं
  • अचानक खाने की मात्रा को कम कर देना और फिर ज्यादा खाने लगना
  • खाना खाते ही बाथरूम जाना
  • ज्यादा खाने के बाद उल्टी करके, एनीमा या लैक्सेटिव की मदद से शरीर का खाना बाहर निकालना
  • बहुत ज्यादा व्यायाम करना
  • उपवास रखना

एनोरेक्सिया नर्वोसा के लक्षण (6) :

  • बहुत कम खाना
  • अपने आप को भूखा रखना
  • अत्यधिक व्यायाम करना
  • काफी पतला हो जाना
  • वजन बढ़ने का डर लगना
  • खुद के दिमाग में ये बात बैठा लेना कि मैं मोटा या मोटी हूं
  • मुंह का सूखना
  • डिप्रेशन
  • हड्डियों का कमजोर होना
  • त्वचा का पीला पड़ना
  • कंफ्यूज रहना

चलिए, अब बच्चों को होने वाले ईटिंग डिसऑर्डर के कारण पर एक नजर डाल लेते हैं।

बच्चों में खाने के विकार के कारण

खाने के विकार के सटीक कारण स्पष्ट नहीं हैं। शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि खाने के सभी विकार कुछ कारकों की एक जटिल प्रतिक्रिया के कारण हो सकते हैं। इनमें आनुवंशिकता, जैविक, व्यवहारिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारक शामिल हैं। नीचे हम इसके कुछ संभावित कारणों के बारे में बता रहे हैं (1)

बिंज ईटिंग के कारण (4) :

  • जीन्स के कारण यानी अगर करीबी रिश्तेदार को खाने का विकार होने के कारण
  • मस्तिष्क रसायनों यानी ब्रेन केमिकल में बदलाव
  • अवसाद या अन्य भावनाएं, जैसे उदास या तनावग्रस्त होना
  • अनहेल्दी डाइटिंग करना, जैसे कि पर्याप्त पौष्टिक भोजन न करना या भोजन को स्किप करना

बुलिमिया नर्वोसा के कारण (5) :

बुलिमिया नर्वोसा के कारण अज्ञात हैं। माना जाता है कि पुरुषों के मुकाबले किशोर लड़कियों और युवा महिलाओं में यह विकार सबसे आम है। इसके पीछे आनुवंशिकता, मनोवैज्ञानिक, पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जैसे एक से अधिक कारण हो सकते हैं।

एनोरेक्सिया नर्वोसा के कारण (6):

एनोरेक्सिया होने के भी सही कारणों का पता नहीं चल पाया है। इसके होने के पीछे भी कई कारक शामिल हो सकते हैं, जिसमें जीन और हार्मोन की भूमिका अहम मानी जाती है। इसके अलावा, सामाजिक दृष्टिकोण को भी इसका कारण माना जाता है।

लेख में आगे हम बता रहे हैं कि इस विकार का निदान कैसे होता है।

बच्चों में ईटिंग डिसऑर्डर का निदान

भोजन विकार गंभीर भी हो सकता है, इसलिए बिना किसी देरी के इसका निदान करने के लिए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इसका निदान निम्न तरीकों से किया जा सकता है (1) :

  • मेडिकल हिस्ट्री के साथ ही लक्षणों के बारे में जानकारी हासिल करके।
  • फिजिकल चेकअप करके।
  • लक्षणों को जानने के बाद ब्लड या यूरिन टेस्ट कराकर।
  • खाने के विकार के कारण होने वाली अन्य स्वास्थ्य संबंधी स्थिति को जानने के लिए किडनी फंक्शन टेस्ट और इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईकेजी या ईसीजी) करके।

निदान के तरीकों के बाद ईटिंग डिसऑर्डर से होने वाली जटिलताओं को जान लेते हैं।

बच्चों में खाने के विकारों की जटिलताएं

भोजन विकार का समय रहते इलाज न कराया जाए, तो इसके कारण कई सारी जटिलताएं यानी कॉम्प्लिकेशन्स हो सकती हैं। इन्हें जानने के लिए लेख को आगे पढ़ें।

बिंज ईटिंग से होने वाली जटिलताएं (4) :

  • हाई कोलेस्ट्रॉल,
  • टाइप 2 मधुमेह
  • पित्ताशय की बीमारी
  • दिल की बीमारी
  • उच्च रक्तचाप
  • जोड़ों का दर्द
  • मासिक धर्म की समस्या

बुलिमिया नर्वोसा से होने वाली जटिलताएं  (5) :

  • पेट के एसिड का फूड पाइप तक पहुंचना
  • फूड पाइप में क्षति
  • डेंटल कैविटी
  • गले में सूजन

एनोरेक्सिया नर्वोसा से होने वाली जटिलताएं (6):

  • हड्डियों का कमजोर होना
  • सफेद रक्त कोशिकाओं में कमी, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है
  • रक्त में पोटैशियम की कमी, जिससे हृदय स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है
  • शरीर में पानी और तरल पदार्थों की कमी यानी निर्जलीकरण
  • बच्चो को कुपोषण होना यानी शरीर में प्रोटीन, विटामिन जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी
  • तरल पदार्थ व सोडियम की कमी के कारण दौरे पड़ना
  • थायराइड ग्रंथि संबंधी समस्याएं
  • दांतों में सड़न

अब जानिए बच्चों को होने वाले इटिंग डिसऑर्डर का ट्रीटमेंट कैसे होता है।

बच्चों में भोजन विकार के उपचार

ईटिंग डिसऑर्डर के लिए डॉक्टर निम्न प्रकार से उपचार आरंभ कर सकते हैं (1) (7)

  • मनोवैज्ञानिक उपचार – बच्चे की मानसिक स्थिति का आंकलन करके यह उपचार आरंभ किया जाता है। उसके परिवार से संबंधित हर बात जानी जाती है। बच्चे के व्यवहार को परखा जाता है। फिर माता-पिता से व्यवहारात्मक बदलाव करने को कहा जाता है, जिससे बच्चे की मानसिक स्थिति में बदलाव हो सके। इसके लिए बच्चे को संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी भी दी जा सकती है।
  • चिकित्सात्मक उपचार – इसमें बच्चे का पूर्ण रूप से शारीरिक परीक्षण किया जाता है। उनके शरीर में पोषण की जांच की जाती है। कमी का पता लगने पर डॉक्टर पोषक तत्व युक्त डाइट लेने की सलाह दे सकते हैं।
  • न्यूट्रिशन काउंसलिंग – जैसा कि हम ऊपर बता ही चुके हैं कि इस विकार में कुछ बच्चे बहुत ज्यादा खाते हैं, कुछ खाते ही नहीं और कुछ खाने के बाद उसे उल्टी करके निकाल देते हैं। ऐसे में न्यूट्रिशन काउंसलर उन्हें पोषक तत्वों की अहमियत समझाकर पौष्टिक आहार का सेवन करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इस दौरान आहार विशेषज्ञ बच्चे को डाइट प्लान बनाकर दे सकते हैं।
  • दवाएं – डॉक्टर बच्चे की स्थिति को देखते हुए उसे कुछ दवा खाने के लिए कह सकते हैं, जिससे भोजन विकार को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। इन दवाओं में एंटीडिप्रेसेंट, एंटीसाइकोटिक या मूड स्टेबलाइजर्स शामिल हैं।

बच्चों को इस विकार की चपेट में आने से रोकने के तरीके जानने के लिए लेख को आगे पढ़ें।

बच्चों में खाने के विकार को कैसे रोकें?

ईटिंग डिसऑर्डर से बच्चे को बचाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रख सकते हैं। क्या हैं वो बातों नीचे जानिए :

  • बच्चे को हर तरह के पौष्टिक भोजन खाने के लिए प्रेरित करें।
  • बॉडी इमेजिंग को लेकर बच्चों से नियमित बात करें। ध्यान दें कि बॉडी इमेज को लेकर उनके दिमाग में कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
  • आपस में खूब बातचीत करें और उसके मन की बातों को समझने की कोशिश करें।
  • भोजन के महत्व और उससे मिलने वाली ताकत व अन्य प्रभाव के बारे में बताएं।
  • बच्चे के व्यवहार पर नजर रखें। अगर किसी चीज को लेकर वो शर्मसार महसूस करता है, तो तुरंत उससे बात करें।
  • उसके शारीरिक बनावट की न खुद आलोचना करें और न किसी को करने दें।
  • बच्चे के आत्मविश्वास को बढ़ावा दें।
  • मानसिक और शारीरिक विकास के लिए बच्चे को खेल और अन्य आउटडोर एक्टिविटी के लिए प्रेरित करें।

आगे पढ़ें कि ईटिंग डिसऑर्डर को लेकर चिकित्सक से कब संपर्क करना चाहिए

डॉक्टर से परामर्श कब करें?

जब भी बच्चे में व्यवहारात्मक बदलाव नजर आने लगे या ऊपर बताए गए लक्षण दिखने लगे, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। ऐसे करने से ईटिंग डिसऑर्डर की समस्या को बढ़ने से रोकने और समय रहते इसका इलाज करने में मदद मिलती है।

अब आप समझ ही गए होंगे कि बच्चे की कम या ज्यादा खाने की आदत को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। खानपान बच्चे के संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। ऐसे में थोड़ी सी भी लापरवाही बरतने से घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। यह हम आपको डराने के लिए नहीं, बल्कि सावधान रहने के लिए बता रहे हैं। यहां हमने विस्तार से ईटिंग डिसऑर्डर के लक्षण और बचाव भी बताएं हैं, जिन पर गौर करके आप बच्चे को इस विकार की चपेट में आने से बचा सकते हैं।

संदर्भ (References) :

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