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छोटे बच्चों का शरीर कोमल होता है। ऐसे में उन्हें सुरक्षित रखना हर माता-पिता का कर्तव्य होता है, लेकिन कुछ शिशुओं को जन्मजात कोई समस्या हो सकती है, जिसका उचित उपचार कराना जरूरी होता है। ऐसी ही एक समस्या ऑटिज्म है। ऑटिज्म मस्तिष्क से जुड़ा एक विकार है। मॉमजंक्शन के इस आर्टिकल में हम आटिज्म के बारे में ही बात करेंगे। जिनके शिशु के ऐसी कोई समस्या है, तो उनके लिए यह लेख काम का साबित हो सकता है। साथ ही हम गर्भवती महिलाओं के लिए कुछ ऐसी काम की बातें बता रहे हैं, जिनकी मदद से वो अपने शिशु को ऑटिज्म से सुरक्षित रख सकती हैं।

लेख की शुरुआत हम बच्चों को होने वाली ऑटिज्म की परिभाषा के साथ करेंगे।

बच्चों में ऑटिज्म क्या है? | Autism Meaning In Hindi

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक तरह का मस्तिष्क संबंधित विकार है, जो कम उम्र में ही शुरू हो सकता है। यह बच्चों के सामाजिक रहन-सहन पर प्रभाव डाल सकता है। इस समस्या से ग्रस्त बच्चों को दूसरों के साथ बातचीत करने या फिर अपनी बात समझाने में समस्या होती है। इस विकार के कारण उनके व्यवहार व रुचियों में भी परिवर्तन आ सकता है (1)

लेख के अगले भाग में हम ऑटिज्म के प्रकार के बारे में जानेंगे।

ऑटिज्म के प्रकार

मुख्य रूप से ऑटिज्म के 3 प्रकार माने गए हैं, जिनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है (2):

  1. ऑटिस्टिक डिसऑर्डर- इस तरह के ऑटिज्म को क्लासिक ऑटिज्म के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह के विकार वाले बच्चों को हकलाकर बोलना, सामाजिक संचार और व्यवहार की समस्या हो सकती है। कई ऑटिस्टिक विकार वाले बच्चों की दिमागी स्थिति सही नहीं होती है।
  1. एस्पर्गर सिंड्रोम – एस्पर्गर सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों में ऑटिस्टिक डिसऑर्डर के कुछ लक्षण दिखाई दे सकते हैं। इन्हें बोलचाल या मानसिक रूप से कोई खास समस्या नहीं होती। बस इन्हें समाज में सामान्य व्यवहार करने में कुछ परेशानी हो सकती है।
  1. परवेसिव डेवलपमेंटल डिसऑर्डर- यह भी एक तरह का ऑटिज्म है, जिसे एटिपिकल ऑटिज्म भी कहा जाता है। इस समस्या वाले बच्चों में ऑटिस्टिक विकार वालों की तुलना में कम लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसे बच्चों को सिर्फ सामाजिक और संचार संबंधी समस्या हो सकती है।

इस लेख के अगले भाग में स्वलीनता (ऑटिज्म) के विभिन्न लक्षणों के बारे में बताया जा रहा है।

ऑटिज्म (स्वलीनता) के प्रमुख लक्षण

स्वलीनता (ऑटिज्म) से प्रभावित बच्चों में कुछ इस तरह के लक्षण नजर आ सकते हैं (3))।

  • अटक-अटक कर बात करना (हकलाना)।
  • जन्म के कुछ वर्षों तक केवल कुछ इशारे ही का ही उपयोग करना (हाथों से इशारा, ताली बजाना, हाथो से इशारा करना)।
  • उनका नाम पुकारने पर प्रतिक्रिया न देना।
  • नजर मिलाने से परहेज करना।
  • अन्य बच्चों के साथ रहने में रूचि न दिखाना।
  • असामान्य तरीके से अपने हाथ, उंगली और शरीर को हिलाना।
  • इस्तेमाल न होने वाले वस्तुओं के प्रति लगाव रखना।
  • सामान्य बच्चों की तरह दूसरों की नकल न करना।
  • चीजों को बार-बार दोहराना।
  • किसी चीज की ओर बार-बार इशारा करने पर भी उस तरफ न देखना।

आगे आप ऑटिज्म के कारणों के बारे में पढेंगे।

ऑटिज्म के कारण

वैसे तो ऑटिज्म के सटीक कारणों के बारे में अभी तक पूरी तरह से कोई वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि निम्नलिखित कारणों से ऑटिज्म हो सकता है (4) (5) (6):

  1. आनुवंशिक : कई बच्चों में ऑटिज्म आनुवांशिक हो सकता है। अगर यह समस्या परिवार के किसी सदस्य को रही हो, तो आने वाली पीढ़ी में किसी अन्य को भी ऐसा होने की आशंका हो सकती है। आनुवंशिक कारक में क्रोमोसोमल असामान्यताएं व तंत्रिका तंत्र (न्यूरोलॉजिकल) से जुड़ी समस्या भी हो सकती है।
  1. पर्यावरणीय कारक : कई लोगों का मानना है कि पर्यावरण के कारण भी ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर हो सकता है। इनमें वायरल संक्रमण, गर्भवस्था की जटिलताएं और वायु प्रदुषण शामिल हो सकता है।
  1. स्पोरेडिक (Sporadic) : अगर परिवार में पहले किसी को ऑटिज्म की शिकायत न रही हो, फिर भी बच्चे को यह समस्या होती है, तो इसे स्पोरेडिक ऑटिज्म कहा जाता है।

ऑटिज्म का निदान कैसे करें, जानने के लिए पढ़ते रहें यह आर्टिकल।

ऑटिज्म का निदान

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) का निदान आसन नहीं है, क्योंकि इस समस्या के लिए किसी तरह का रक्त की जांच या अन्य मेडिकल टेस्ट नहीं किया जाता है। ऑटिज्म के निदान के लिए डॉक्टर बच्चे के व्यवहार और विकास को देखता हैं। कुछ मामलों में 18 महीने के बच्चे में भी इसके लक्षण नजर आने लगते हैं  (7)

ऑटिज्म की जांच मुख्य रूप से दो प्रकार से की जा सकती है:

  • डेवलपमेंटल स्क्रीनिंग- यह बच्चों के लिए एक तरह का परीक्षा होता है। इससे यह पता लगाया जाता है कि बच्चे का मानसिक तौर पर विकास हो रहा है या नहीं। इस परीक्षण के दौरान डॉक्टर बच्चे के माता-पिता से कुछ सवाल पूछ सकते हैं या फिर उसके साथ कुछ देर खेल सकते हैं। इससे डॉक्टर को बच्चों की स्थिति को समझने में आसानी हो सकती है। इसलिए, 9वें महीने, 18वें महीने और 24 से 30वें महीने के बीच शिशु का मेडिकल चेकअप जरूर करवाना चाहिए।

अगर डॉक्टर को डेवलपमेंटल स्क्रीनिंग के दौरन ऑटिज्म के कुछ लक्षण नजर आते हैं, तो वो अगले चरण के लिए जांच करते हैं।

  • कॉम्प्रेहेंसिव डायग्नोस्टिक इवैल्यूएशन- यह ऑटिज्म के जांच की दूसरा चरण होता है। इसमें ऑटिज्म का मूल्यांकन किया जा सकता है। इस अवस्था में बच्चे के व्यवहार, विकास के साथ-साथ माता-पिता से बातचीत की जाती है। इस परिक्षण में बच्चे की सुनने, देखने, आनुवंशिक, न्यूरोलॉजिकल व अन्य चिकित्सा जांच की जा सकती हैं।

आइए, अब जानते हैं कि ऑटिज्म का इलाज किस तरह से किया जा सकता है।

ऑटिज्म का इलाज | Autism Ka Ilaj Hindi Me

ऑटिज्म प्रभावित बच्चों का समय पर इलाज शुरू करना फायदेमंद साबित हो सकता है। यह इलाज बच्चों की अवस्था के अनुसार होता है, जैसे – बिहेवियर थेरेपी, स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी और जरूरत पड़ने पर दवा भी दी जा सकती है। इससे बच्चों में निम्न प्रकार का सुधार हो सकता है (1) :

  • अपनी बात कहने व समझाने में सक्षम होने लगते हैं।
  • दूसरे बच्चों के साथ खेलने व उनसे कुछ सीखने में मदद मिलने लगती है।
  • एक चीज को बार-बार कहने या करने की आदत में सुधार होने लगता है।
  • सीखने की क्षमता बेहतर होने लगती है
  • खुद का ध्यान रखना सीखने लगते हैं।

ऑटिज्म के कारण होने वाले जटिलताओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं।

ऑटिज्म से होने वाली जटिलताएं

ऑटिज्म के कारण अन्य कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जो इस प्रकार हैं :

  • ऑटिज्म के कारण मोटापा और चयापचय में विकार संबंधी समस्या हो सकती है (8)
  • इस समस्या से पीड़ित बच्चों में भावनात्मक समस्याएं हो सकती है। इससे उन्हें परिजनों या अन्य किसी की छोटी-सी बात भी बुरी लग सकती है।
  • ऑटिज्म वाले बच्चों को तनाव व चिंता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है (9)
  • कई बारी ऑटिज्म के रोगियों को दौरे आने का खतरा भी हो सकता है।

आर्टिकल के इस अहम भाग में हम शिशु को ऑटिज्म से बचाने की कुछ खास बातें बता रहे हैं।

क्या ऑटिज्म होने से बचा जा सकता है?

कुछ बातों का ध्यान रखें, तो बच्चों में ऑटिज्म जैसी समस्या को पनपने से रोका जा सकता है। बस आपको इन बातों पर ध्यान देने की जरूरत है :

  • गर्भावस्था के दौरान किसी तरह की अतिरिक्त केमिकल युक्त दवाई का सेवन न करें। कई बार दवाई के दुष्प्रभाव होने वाले शिशु पर हो सकते हैं।
  • गर्भवस्था के समय शराब व अन्य नशीली पदार्थ से दूर रहें।
  • गर्भावस्था के समय व डिलीवरी के बाद शिशु को नियमित समय पर टीके लगवाते रहें।
  • शिशु का समय-समय पर स्वास्थ्य चेक-अप कराते रहे।
  • गर्भावस्था के दौरान न्यूकल ट्रांसलुसेंसी (एनटी) और ट्रिपल मार्कर स्कैन करवा कर भ्रूण में न्यूरल ट्यूब दोष का पता लगाया जा सकता है। इससे समस्या को विकसित होने से पहले ही रोकने का उचित इलाज किया जा सकता है (10)

लेख में आगे ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के माता-पिता को ध्यान रखने वाली बातों की जानकारी देंगे।

ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के माता-पिता को ध्यान में रखने वाली बातें

अगर किसी के बच्चे को ऑटिज्म की समस्या है, तो उन्हें कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए, जो इस प्रकार है:

  • बच्चे को परिवार के अन्य बच्चों या दोस्तों के साथ ज्यादा समय बिताने दें।
  • बच्चे की खूबियों को पहचाने और उसकी जरूरतों का ध्यान रखें। साथ ही उनके टैलेंट को बढ़ावा दें।
  • बच्चे से संबंधित जरूरी जानकारियों को नोटबुक में लिखते रहें।
  • उसे अन्य बच्चों से हाथ मिलाने और समूह के साथ किसी काम को करना सिखाएं।
  • उसे खुद के लिए निर्णय लेना सिखाएं।
  • उसे सिखाएं कि जो काम उसे समझ न आए, तो वह उस बारे में दूसरों से जरूर पूछे।
  • बच्चे से हर समयांतराल पर विभिन्न मुद्दों पर बात करें। अन्य इतिहास की बातों पर अधिक फोकास न करें।
  • उसके साथ अधिक से अधिक फ्रेंडली रहने की कोशिश करें।

आगे हम ऑटिज्म से जुड़े कुछ अहम सवालों के जवाब देने का प्रयास कर रहे हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

क्या ऑटिस्टिक बच्चे एक सामान्य जीवन जी सकते हैं?

ऑटिस्टिक बच्चे जीवित रह सकते हैं, लेकिन पूरी तरह सामान्य बच्चों की तरह जीवन नहीं जी सकते हैं। हां, उचित ट्रीटमेंट के बाद उन्हें अन्य बच्चों की तरह कई काम करने में आसानी हो सकती हैं (11)।

क्या टीकाकरण से बच्चे को ऑटिज्म हो सकता है?

नहीं, टीकाकरण बच्चों को ऑटिज्म के प्रति अतिसंवेदनशील नहीं बनाता है। वास्तव में टीकाकरण और ऑटिज्म का दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है (12)

इस आर्टिकल से यह तो स्पष्ट हो गया कि ऑटिज्म से डरने की नहीं, बल्कि उससे अपने शिशु को सुरक्षित रखने की जरूरत है। बेशक, ऑटिज्म गंभीर समस्या है, लेकिन इससे बचना बेहद आसान है। वहीं, अगर कोई बच्चा ऑटिज्म से ग्रस्त है, तो उसे इस समस्या से उबरने में काफी हद तक मदद की जा सकती है। साथ ही हमें उम्मीद है कि इस आर्टिकल में ऑटिज्म से बचने के जो टिप्स दिए गए हैं, वो आपके काम आएंगे। अगर आपके मन में अभी भी ऑटिज्म के संबंध में कोई सवाल है, तो आप नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स की मदद से हमसे पूछ सकते हैं। हम जल्द से जल्द वैज्ञानिक प्रमाण सहित जवाब देने का प्रयास करेंगे।

संदर्भ (Reference):

 

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