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बच्चे के पैदा होने के बाद उसकी देखरेख करना किसी चुनौती से कम नहीं। हर पड़ाव पर बच्चे का साथ देना और उनको होने वाली परेशानियों का डटकर सामना करना, सभी आदर्श माता-पिता ऐसा ही करते हैं। वहीं, बच्चों को कई बार कुछ ऐसी समस्याएं हो जाती हैं, जिनसे मां-बाप खुद घबरा जाते हैं। ऐसी ही एक समस्या है, मिर्गी। बच्चे में दौरे की समस्या देखकर पैरेंट्स काफी परेशान हो जाते हैं, लेकिन ऐसे समय में घबराने की नहीं, बल्कि सूझबूझ दिखाने की जरूरत है। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम बच्चों में मिर्गी से संबंधित जरूरी जानकारियां विस्तार से देंगे। आर्टिकल को पढ़ने के बाद आप इस समस्या को समझने के साथ ही मिर्गी का दौरा पड़ने पर बच्चे की मदद भी कर पाएंगे। साथ ही लेख में मिर्गी से बचाव से जुड़े जरूरी टिप्स भी दिए जाएंगे।

चलिए, सबसे पहले यह समझ लेते हैं कि बच्चों में मिर्गी आने का मतलब क्या होता है।

बच्चों में मिर्गी आने का क्या मतलब होता है?

मिर्गी दिमाग से संबंधित एक विकार है। इस विकार के कारण बच्चों को समय-समय पर दौरे पड़ते हैं। ये दौरे तब आते हैं, जब दिमाग में अचानक विद्युत और रासायनिक गतिविधि में परिवर्तन होता है। यह बदलाव सिर पर चोट लगने, संक्रमण, किसी तरह की विषाक्तता और जन्म से पहले मस्तिष्क से जुड़ी समस्याओं के कारण हो सकता है (1)यूं तो मिर्गी का दौरा पड़ने का विकार जीवन के किसी भी समय उत्पन्न हो सकता है, लेकिन बच्चों और 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में यह सबसे अधिक पाया जाता है (2) चौंकाने वाली बात यह है कि दुनियाभर में बढ़ते मिर्गी के मामलों में एक चौथाई केस बच्चों से जुड़े हुए हैं (3)

अब, हम आपको बता रहे हैं कि बच्चों को कौन-कौन से प्रकार की मिर्गी होती है।

बच्चों में मिर्गी के प्रकार

वर्तमान में 60 से अधिक प्रकार के मिर्गी के दौरे लोगों को पड़ता है। आमतौर पर इन्हें फोकल (Focal) और सामान्यीकृत (Generalised) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। वहीं, जब मिर्गी का दौरा किसी विशेष उम्र और स्थितियों के हिसाब से शुरू होता है, तो इसे मिर्गी सिंड्रोम कहा जाता है। नीचे हम बच्चों को सामान्य तौर पर पड़ने वाले मिर्गी के दौरे के बारे में बता रहे हैं (2) (3) (4) (5) (6)

  1. फेब्राइल सीजर (Febrile Seizure) : इस मिर्गी का एक कारण बुखार के वजह से शरीर की तापमान का बढ़ना हो सकता है। यह मिर्गी अधिकतर 6 महीने से 5 साल के बच्चों के बीच देखा गया है (7)
  1. चाइल्डहुड एब्सेंस एपिलेप्सी (Childhood Absence Epilepsy) : मिर्गा का यह दौरा आमतौर पर दो से 12 साल की उम्र के बीच शुरू होता है। यह दौरा थोड़े समय के लिए पड़ता है। इस दौरान बच्चा अपना काम अचानक रोककर किसी जगह, वस्तु या व्यक्ति को घूरने लग जाता है। कुछ देर अचानक घूरना बंद करके अपने पहले वाले काम में लग जाता है। यह दौरा एक दिन में कई बार आ सकता है। आमतौर पर यह मिर्गी का दौरा दवा से नियंत्रित हो जाता है और युवावस्था आते-आते ठीक भी हो सकता है।
  1. जुवेनाइल एब्सेंस एपिलेप्सी (Juvenile Absence Epilepsy) : ये दौरे आमतौर पर 8 से 20 वर्ष की उम्र के बीच शुरू होते हैं। यह थोड़े लंबे समय तक भी पड़ सकते हैं। इसमें किसी चीज को एक टक देखने के साथ ही, बार-बार पलक झपकना या मुंह चबाना शामिल हो सकता है। यह दौरा भी एक दिन में कई बार आता है। इस प्रकार की मिर्गी वाले 80 प्रतिशत बच्चों में टॉनिक-क्लोनिक दौरे भी पड़ सकते हैं। टॉनिक-क्लोनिक दौरा वो होता है, जब बच्चे की मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं और वो अचेत होकर गिर जाते हैं। इस किस्म के दौरे अक्सर दवाई से नियंत्रित हो जाते हैं।
  1. बेनिग्न एपिलेप्सी विद सेंटरोटेम्पोरल स्पाइक्स  (Benign Epilepsy with Centrotemporal Spikes) : यह मिर्गी अक्सर शुरुआती उम्र से लेकर पांच से दस साल तक होती है। इस दौरान पड़ने वाले दौरे मामूली हो सकते हैं। यह दौरा पड़ने पर बच्चा थोड़ी देर तक बोल नहीं पाता और मुंह से बहुत सारा थूक निकालने लगता है। यह आमतौर पर सोते समय या सुबह बच्चे के जागते ही पड़ सकता है। इस प्रकार की मिर्गी उम्र के साथ, आमतौर पर किशोरावस्था तक ठीक हो सकती है।
  1. जुवेनाइल मायोक्लोनिक मिर्गी (Juvenile Myoclonic Epilepsy) : इस मिर्गी का निदान 8 से 25 साल के बीच किया जा सकता है। इस दौरान सुबह व नींद के समय मांसपेशियों में अचानक झटके लगते हैं। साथ ही टॉनिक-क्लोनिक दौरे भी पड़ सकते हैं।
  1. टेम्पोरल लोब एपिलेप्सी (Temporal Lobe Epilepsy) : इस प्रकार के मिर्गी के दौरे किसी भी उम्र में शुरू हो सकते हैं। इसमें बच्चा एक टक देखने व घूरने के साथ ही ऐसा व्यवहार करता है, जिससे लगता है कि वो किसी तरह की उलझन में है या भ्रमित है।
  1. फ्रंटल लोब एपिलेप्सी (Frontal Lobe Epilepsy) : इस प्रकार की मिर्गी किसी भी उम्र में शुरू हो सकती है। यह अक्सर नींद के दौरान आती है और इसमें जोरदार शारीरिक गतिविधि शामिल हो सकती है। इस मिर्गी के प्रकार के निदान के लिए बच्चे की रात भर की गतिविधि पर निगरानी रखना जरूरी है।
  1. वेस्ट सिंड्रोम या इन्फेंटाइल स्पाज्म (West Syndrome or Infantile Spasms) : इसकी शुरुआत आमतौर पर जीवन के पहले वर्ष के दौरान होती है। थोड़ी देर के लिए ऐंठन (दौरा) की वजह से बच्चा अचानक अकड़ जाता है। इस दौरान अक्सर घुटने बाहर की ओर निकल जाते हैं और शरीर आगे की ओर झुक जाता है।
  1. लेनोक्स-गैस्टॉट सिंड्रोम (Lennox-Gastaut Syndrome) : यह मिर्गी एक से सात साल की उम्र तक होती है। इसमें कई प्रकार के दौरे पड़ सकते हैं। इस प्रकार की मिर्गी को संभालना अक्सर मुश्किल होता है। इस सिंड्रोम से ग्रसित 90 प्रतिशत बच्चों का विकास देरी से होता है। इसमें अक्सर बौद्धिक विकलांगता शामिल होती है।

आगे, हम मिर्गी के लक्षण के बारे में बता रहे हैं।

बच्चों में मिर्गी के लक्षण

मिर्गी के लक्षण हर बच्चे में भिन्न हो सकते हैं। साथ ही इसके लक्षण इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि मिर्गी का दौरा कब से पड़ने लगा है और इसकी वजह से शरीर का कौन-सा हिस्सा प्रभावित हो रहा है। यह शारीरिक और मानसिक हो सकता है। मिर्गी के दौरे के आमतौर पर निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं (1):

  • बच्चों का घूरना व एक टक देर तक एक ही जगह को देखना।
  • अचेत व बेहोश होना।
  • शरीर का पूरी तरह से हिल जाना।
  • मांसपेशियों में जकड़न।
  • शरीर में सनसनाहट।
  • डर और चिंता।
  • ऐसी गंध का आना जो वास्तव में होती ही नहीं।

बच्चों में मिर्गी के लक्षण के बाद मिर्गी के कारण पर एक नजर डाल लेते हैं।

बच्चों में मिर्गी के कारण

बच्चों को मिर्गी का दौरा पड़ने के कई कारण हो सकते हैं। कई बार प्रसव के दौरान और गर्भ में ही ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो मिर्गी की वजह बन सकती हैं। ऐसे ही कुछ आम कारण हम आपको नीचे बता रहे हैं (1) (3)  (4)

  • प्रसवकालीन हाइपोक्सिया (प्रसव के दौरान या बाद में बच्चे के मस्तिष्क को अपर्याप्त ऑक्सीजन मिलना)
  • बच्चे के चयापचय में गड़बड़ी
  • मस्तिष्क की जन्मजात विकृतियां
  • संक्रमण
  • फेब्राइल डिजीज (बुखार की वजह से होने वाली बीमारियां)
  • केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम) में इंफेक्शन
  • ब्रेन इंजरी
  • मस्तिष्क के संक्रमण के बाद दिमाग को पहुंचने वाला नुकसान
  • दिमाग से संबंधी बर्थ डिफेक्ट
  • बेनिग्न (Benign) ब्रेन ट्यूमर
  • मस्तिष्क में असामान्य रक्त वाहिकाएं
  • मस्तिष्क के ऊतकों को नष्ट करने वाली या नुकसान पहुंचाने वाली बीमारियां
  • स्ट्रोक

बच्चों को मिर्गी का दौरा पड़ने पर क्या सब जरूरी चीजें करनी चाहिए, इस बारे में जानने के लिए पढ़ते रहें यह लेख।

बच्चों को मिर्गी का दौरा पड़ता है तो क्या करें?

बच्चों को मिर्गी का दौरा पड़ता देखना माता-पिता के लिए दर्दनाक और भयावह होता है। अधिकतर माता-पिता जानकारी के अभाव में इस दौरान डर जाते हैं और असहाय महसूस करने लगते हैं। ऐसे में माता-पिता बच्चे की किस तरह से मदद कर सकते हैं, यह हम नीचे बता रहे हैं (5) (7)

  • बच्चे को धीरे से फर्श पर लेटा दें।
  • उसके आसपास की वस्तुओं को हटा दें।
  • अब धीरे-धीरे बच्चे को एक साइट की ओर लिटाएं।
  • बच्चे के सिर के नीचे तकिया रख दें।
  • अगर बच्चे ने शर्ट पहनी है, तो उसके बटन खोल दें या गले में कोई टाइट कपड़ा जैसे – टाई आदि, तो उसे ढीला कर दें।
  • अगर उसे किसी तरह का खतरा नहीं है, तो बच्चे को चलने और टहलने से न रोकें।
  • बच्चे के मुंह में कुछ भी न डालें। यहां तक कि दवा या तरल भी नहीं। इससे उसके जबड़े, जीभ या दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • बच्चे को मिर्गी पड़ने के दौरान और उसके कुछ देर बाद तक उसके साथ ही रहें।
  • दौरा पड़ते समय उसके लक्षण और दौरा पड़ने के समय को नोट करके रखें।
  • डॉक्टर को विस्तार से बताएं कि मिर्गी का दौरा कितनी देर के लिए आया और उसके लक्षण क्या थे।

बच्चों में मिर्गी का निदान किस प्रकार किया जाता है, यह हम आपको आगे बता रहे हैं।

बच्चों में मिर्गी का निदान

एक दौरा आने का मतलब यह नहीं है कि बच्चे को मिर्गी है। कुछ लोगों को जीवनकाल में केवल एक दौरा या एक से अधिक दौरे ही पड़ते हैं। इसका मतलब यह नहीं की उन्हें मिर्गी हो गई है। कई बार दौरा कुछ परिस्थितियों, जैसे कि उच्च तापमान या विषाक्तता की वजह से भी पड़ सकता है। हां, अगर किसी को दौरा बार-बार पड़ रहा है, तो उसे मिर्गी हो सकती है। इसका निदान आमतौर पर डॉक्टर कुछ इस प्रकार करते हैं (1) (8)

  • बच्चे और परिवार की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में जानकारी।
  • दौरा कितनी बार और कितनी देर तक आया आदि।

मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की जांच के लिए एक शारीरिक परीक्षण की सलाह दी जाती है। यह कुछ इस प्रकार हैं:

ईईजी (इलेक्ट्रो एन्से फलोग्राम) : यह परीक्षण अक्सर मस्तिष्क में किसी भी असामान्य विद्युत गतिविधि को दर्शाता है। कुछ मामलों में परीक्षण मस्तिष्क में उस क्षेत्र को दर्शाता है, जहां से दौरा पड़ना शुरू होता है।

ईईजी के साथ ही डॉक्टर कुछ अन्य टेस्ट करने की सलाह दे सकते हैं:

  • ब्लड केमिस्ट्री
  • ब्लड शुगर
  • कंप्लीट ब्लड काउंट (CBC)
  • किडनी फंक्शन टेस्ट
  • लिवर फक्शन टेस्ट
  • लम्बर पंचर (स्पाइनल टैप)
  • संक्रामक रोगों के लिए टेस्ट

मस्तिष्क में समस्या के कारण और स्थान का पता लगाने के लिए अक्सर हेड सीटी या एमआरआई स्कैन भी किया जाता है।

बच्चों को मिर्गी होने पर इसका इलाज कैसे हो सकता है, इस पर भी एक नजर डाल लेते हैं।

बच्चों में मिर्गी का इलाज

मिर्गी के उपचार के लिए डॉक्टर कुछ इस प्रकार की सलाह दे सकते हैं (1) (2) (5):

  • दवाई : मिर्गी के दौरे को रोकने वाली दवाओं को एंटीकॉन्वेलेंट्स (Anticonvulsants) या एंटीपीलेप्टिक (Antiepileptic) दवा कहा जाता है। मिर्गी के दौरे की संख्या को इन दवाओं की मदद से कम किया जा सकता है। ध्यान रहे कि ऐसी कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह के बिना मरीज को न दें।
  • जीवनशैली में परिवर्तन :उम्र और मिर्गी के प्रकार के आधार पर आहार संबंधी बदलाव भी दौरे की आवृत्ति (Frequency) को कम कर सकते हैं। उच्च वसा युक्त और कम कार्बोहाइड्रेट युक्त केटोजेनिक (Ketogenic) आहार को कुछ विशेष प्रकार के मिर्गी के इलाज के लिए उपयोगी माना जाता है। माना गया है कि केटोजेनिक आहार से 50 प्रतिशत लोगों में मिर्गी के दौरे नियंत्रित और 10 प्रतिशत लोगों में यह समस्या खत्म हुई है।
  • सर्जरी : अगर आपके बच्चे की मिर्गी एक ट्यूमर, असामान्य रक्त वाहिकाओं या मस्तिष्क में रक्तस्राव के कारण होती है, तो ही सर्जरी की सलाह दी जाती है। साथ ही जो मिर्गी दवाओं के बाद भी नियंत्रित नहीं होती है, उसे मेडिकली रिफ्रेक्टरी मिर्गी (Medically Refractory Epilepsy) कहा जाता है। ऐसे मामलों में भी डॉक्टर सर्जरी करने की सलाह देते हैं।

मिर्गी का दौरा पड़ने की वजह से बच्चों को कई तरह के जोखिम और जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। इनके बारे में हम नीचे विस्तार से बता रहे हैं।

मिर्गी के दौरे के जोखिम

मिर्गी के दौरे पड़ने की वजह से कई तरह के जोखिम भी हो सकते हैं। दरअसल, अचानक दिमाग में होने वाले परिवर्तन और दिमाग पर नियंत्रण खोने की वजह से कई बार हादसे भी हो जाते हैं। चलिए, नीचे मिर्गी के दौरे के जोखिम पर एक नजर डाल सकते हैं (1) (4) (9) (10) (11) (12)

  • अगर रास्ते पर चलते हुए अचानक दौरा पड़ जाए, तो बच्चे को चोट लग सकती है।
  • कुछ गंभीर मामलों में मिर्गी का दौरा पड़ने की वजह से मौत भी हो सकती है।
  • बार-बार दौरा आने की वजह से परेशान होकर कुछ लोग आत्महत्या भी कर सकते हैं।
  • ऐसे बच्चों को पढ़ने में भी मुश्किल हो सकती है।
  • दौरा पड़ने पर फेफड़ों में भोजन या लार पहुंच जाती है, जिससे निमोनिया हो सकता है।
  • दिल की धड़कन तेज हो सकती है।
  • स्थाई मस्तिष्क क्षति (स्ट्रोक या अन्य क्षति)
  • दवाओं के दुष्प्रभाव।
  • फ्रैक्चर हो सकता है।
  • मनोवैज्ञानिक स्थितियां जैसे चिंता व अवसाद का उच्च स्तर।

कुछ ऐसे भी तरीके हैं, जिनकी मदद से आप बच्चों को मिर्गी होने से बचा सकते हैं। नीचे विस्तार से पढ़ें मिर्गी से बचाव क्या हो सकते हैं।

बच्चे को मिर्गी से बचाने के तरीके

माना जाता है कि 25 प्रतिशत मिर्गी के मामलों को रोका जा सकता है, अगर इससे संबंधित बचाव कार्य किये जाएं। नीचे हम इससे संबंधित जानकारी दे रहे हैं (1) (4) (13)

  • बच्चों के सिर पर चोट लगने से बचाना व रोकना।
  • प्रसवकाल में मां की पर्याप्त देखभाल बच्चे को बर्थ इंजरी की वजह से होने वाली मिर्गी से बचा सकती हैं।
  • बुखार का ज्यादा शिकार होने वाले बच्चों के शरीर के तापमान को दवाओं की मदद से नियंत्रित कर फेब्राइल सिजर (Febrile seizures) से बचाया जा सकता है।
  • उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मोटापे को नियंत्रित करके स्ट्रोक से जुड़ी मिर्गी से बचा जा सकता है।
  • केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम) से संबंधित संक्रमण का इलाज।
  • पर्याप्त नींद मिर्गी के शिकार बच्चों में दौरा पड़ने की आशंका को कम कर सकती है।
  • उचित आहार।

मिर्गी का दौरा पड़ने पर डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए, आइए यह भी जान लेते हैं।

डॉक्टर के पास कब जाएं

अक्सर मिर्गी का दौरा पड़ने पर लगता है कि यह थोड़ी देर में खुद-ब-खुद ठीक हो जाएगा, लेकिन ध्यान रखें कि कुछ मामलों में ये लापरवाही हानिकारक भी हो सकती है। ऐसे में मिर्गी के दौरे पढ़ने के समय और शांत होने के बाद डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए (1) (5)

  • अगर बच्चे को मधुमेह यानी डायबिटीज हो।
  • अगर बच्चे को पानी में होते समय दौरा पड़ा हो।
  • दौरा 5 मिनट से अधिक समय तक रहता हो।
  • बच्चा बेहोश हो जाए।
  • दौरे की अवधि समाप्त होने के बाद सामान्य रूप से सांस लेने में परेशानी हो या फिर बच्चे को होश न आए।
  • दौरा पड़ने के बाद होश में आते ही एक और दौरा पड़ना।
  • अगर दौरा पड़ने पर बच्चा खुद को घायल कर लें।
  • अगर बच्चे को पहली बार दौरे पड़ रहे हैं।
  • अगर अन्य दिनों की तुलना में दौरे ज्यादा समय तक रहे।

अगर आपके बच्चे में नए लक्षण नजर आ रहे हैं, तो भी डॉक्टर को तुरंत कॉल करना चाहिए, जैसे :

  • उलटी अथवा जी-मिचलाना
  • लाल चकत्ते
  • दवाओं के दुष्प्रभाव, जैसे आलस, बेचैनी या भ्रम
  • हकलाना या कोई अन्य असामान्य गतिविधि

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

क्या मिर्गी का दौरा पड़ने से दिमाग को नुकसान हो सकता है?

एपिलेप्सी की वजह से दिमाग में संरचनात्मक क्षति के बजाय मस्तिष्क की कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है (14)। माना जाता है कि मिर्गी की वजह से होने वाली जटिलताओं में स्थायी रूप से ब्रेन डैमेज भी शामिल है (1)

क्या बच्चों को एक से अधिक बार मिर्गी का दौरा पड़ सकता है?

जी हां, बच्चों को एक से ज्यादा बार मिर्गी का दौरा पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर से तुरंत संपर्क करने की सलाह दी जाती है।

बच्चों में मिर्गी से संबंधित आवश्यक जानकारी आपको इस आर्टिकल के माध्यम से मिल ही गई होगी। अब आप अपनी सूझबूझ और लेख में बताई गई जरूरी बातों को ध्यान में रखते हुए बच्चे की मदद कर सकते हैं। लेख में दिए गए लक्षण अगर किसी भी बच्चे में नजर आएं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें, क्योंकि बीमारी की रोकथाम के लिए जरूरी कदम उठाना इसकी चपेट में आने के बाद इलाज करवाने से बेहतर विकल्प है। वो कहते हैं न, प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योर। साथ ही आप अपने दोस्तों और जानकारों के साथ यह लेख साझा करके उन्हें बच्चों में होने वाली मिर्गी की समस्या के संबंध में बताने में मदद करें। अगर आपके मन में इस विषय से संबंधित कोई सवाल या अन्य जानकारी है, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स के जरिए हम तक जरूर पहुंचाएं।

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