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गर्भावस्था में महिला का खान-पान और शारीरिक गतिविधि शिशु को प्रभावित करती है। इस दौरान बरती गई छोटी-सी गलती भी शिशु के लिए गंभीर समस्या का कारण बन सकती है। बच्चों से संबंधित ऐसा ही एक रोग ब्लू बेबी सिंड्रोम है। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम इसी बारे में बात करेंगे। हम बच्चों को ब्लू बेबी रोग होने के कारण, बच्चों को ब्लू बेबी रोग होने के लक्षण और ब्लू बेबी सिंड्रोम का इलाज कैसे करें, इस पर वैज्ञानिक प्रमाण सहित जानकारी देंगे।
आइए, सबसे पहले यह जानते हैं कि ब्लू बेबी सिंड्रोम होता क्या है।
ब्लू बेबी सिंड्रोम क्या है और यह कितना आम है?
ब्लू बेबी सिंड्रोम एक घातक स्थिति है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब शिशु के लाल रक्त कोशिकाओं में मौजूद हीमोग्लोबिन (रक्त में मौजूद प्रोटीन) मेथेमोग्लोबिनेमिया (केमिकल कंपाउंड) में बदल जाता है। हीमोग्लोबिन पूरे शरीर में ऑक्सीजन को पहुंचाने के लिए रक्त की क्षमता को बढ़ाता है। वहीं, मेथेमोग्लोबिनेमिया इस काम में बाधा डालता है। यह ऑक्सीजन को संचारित नहीं कर पाता और सायनोसिस (Cyanosis) का कारण बनता है। सायनोसिस में शिशु की त्वचा का रंग नीला-ग्रे या लैवेंडर हो जाता है। इसे ही ब्लू बेबी सिंड्रोम कहा जाता है (1)।
वैज्ञानिकों के अनुसार, शरीर में मेथेमोग्लोबिनेमिया का स्तर 50% से अधिक होने पर शिशु कोमा में जा सकता है। यहां तक कि जान जाने का खतरा भी बना रहता है। इसलिए, ऐसी स्थिति में जल्द से जल्द इलाज की जरूरत होती है (1)। मेथेमोग्लोबिनेमिया एक दुर्लभ समस्या है, जो ब्लू बेबी सिंड्रोम का कारण होती है। इसलिए, बहुत ही कम बच्चों को ब्लू बेबी सिंड्रोम हो सकता है (2)।
इस लेख में आगे हम बच्चों को ब्लू बेबी रोग होने के कारण की जानकारी दे रहे हैं।
बच्चों को ब्लू बेबी रोग होने के कारण
ब्लू बेबी सिंड्रोम के लिए मुख्य रूप से मेथेमोग्लोबिनेमिया जिम्मेदार होता है। यह ऑक्सीजन को पूरे शरीर में ले जाने की रक्त की क्षमता को कम कर देता है। इससे शरीर के कई हिस्सों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। यह समस्या बड़ों की तुलना में शिशु को अधिक होती है (3)।
- नाइट्रेट का सेवन- पानी और सब्जियों के माध्यम से अधिक मात्रा में नाइट्रेट (केमिकल कंपाउंड) लेने पर मेथेमोग्लोबिनेमिया की समस्या उत्पन्न हो सकती है। अधिक समय से रखे हुए पानी में नाइट्रेट की अधिकता हो सकती है। इसलिए, ऐसा पानी के सेवन से गर्भवती और छोटे बच्चों को दूर रखना चाहिए।
- वंशानुगत (Genetic)- अगर ब्लू बेबी सिंड्रोम की यह समस्या परिवार में पहले किसी को रही है, तो होने वाली संतान को भी यह रोग होने की आशंका रहती है। हालांकि, इस कारण का प्रतिशत बहुत कम है, लेकिन आशंका जरूर रहती है।
- साइनोटिक हार्ट डिजीज (Cyanotic Heart Disease)- सियानोटिक हार्ट डिजीज में अलग-अलग हृदय दोष (हार्ट डिफेक्ट) शामिल होते हैं, जो शिशुओं में जन्मजात हो सकते हैं। इसके पीछे मुख्य कारण रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा का होना है। इस अवस्था में त्वचा का रंग और म्यूकस मेम्ब्रेन (एक तरह की झिल्ली) नीली हो जाती है (4)।
इस लेख के अगले हिस्से में आप ब्लू बेबी सिंड्रोम के लक्षणों के बारे में पढ़ेंगे।
बच्चों में ब्लू बेबी रोग होने के लक्षण
अगर कोई शिशु ब्लू बेबी सिंड्रोम से ग्रस्त है, तो उसमें निम्न प्रकार के लक्षण नजर आ सकते हैं। इन लक्षणों के दिखाई देने पर डॉक्टर को इस बारे में जरूर बताएं (3) (5)।
- त्वचा के रंग में परिवर्तन।
- त्वचा में जलन।
- स्तनपान करने में समस्या होना।
- ठीक से वजन नहीं बढ़ पाना।
- तेजी से दिल का धड़कन या श्वास लेना।
- उलटी।
- दस्त।
- सांस लेने में समस्या।
अब लेख के अगले भाग में हम ब्लू बेबी सिंड्रोम के निदान की जानकारी दे रहे हैं।
ब्लू बेबी सिंड्रोम का निदान
ब्लू बेबी सिंड्रोम का निदान करने के लिए डॉक्टर बच्चे के माता-पिता से स्वास्थ्य से जुड़े कुछ सवाल पूछ सकते हैं। साथ ही निम्न प्रकार के चेकअप भी कर सकते हैं।
- फिजिकल चेकअप- ब्लू बेबी सिंड्रोम की जांच करने के लिए डॉक्टर सबसे पहले फिजिकल चेकअप करते हैं। इस जांच के दौरान डॉक्टर शिशु की सांस लेने और हृदय गति की क्षमता पर ध्यान देते हैं। जिससे कि उन्हें ब्लू बेबी सिंड्रोम का पता लग सकता है।
- रक्त की जांच- कई बार शारीरिक जांच से ब्लू बेबी सिंड्रोम का सही से पता नहीं चल पता है। ऐसे में डॉक्टर शिशु के रक्त की जांच कर सकते हैं। इस जांच के दौरान डॉक्टर रक्त में मेटहीमोग्लोबिन और नाइट्रेट का स्तर पता किया जाता है (6)। वहीं, अगर किसी शिशु के जन्म के साथ ही त्वचा का रंग नीला दिखाई दे, तो ऐसे में डॉक्टर पल्स ऑक्सीमेट्री के जरिए रक्त में ऑक्सीजन के स्तर की जांच करते हैं (7)।
- इकोकार्डियोग्राम- यह ऐसा परीक्षण होता है, जिसमें अल्ट्रासाउंड (ध्वनि तरंग) की मदद से हृदय की तस्वीर बनाई जाती है। इससे हृदय से जुड़ी समस्या का पता लगाया जा सकता है, जो ब्लू बेबी सिंड्रोम के कारण बन सकता है (1) (8)। जैसे कि ऊपर हमने बताया है कि हार्ट डिजीज के कारण ब्लू बेबी सिंड्रोम हो सकता है। इसलिए, हृदय की समस्या का पता कर ब्लू बेबी सिंड्रोम का पता लगाया जा सकता है।
चलिए, अब ब्लू बेबी सिंड्रोम के इलाज के बारे में जानते हैं।
ब्लू बेबी सिंड्रोम का इलाज
ब्लू बेबी सिंड्रोम का इलाज कराना बहुत जरूरी होता है। इलाज के लिए डॉक्टर इन उपायों को अपना सकते हैं (1):
- मेथिलीन ब्लू- मेथिलीन ब्लू (एक तरह की दवाई) के उपयोग करने पर मेथेमोग्लोबिनेमिया के इलाज में मदद मिल सकती है। साथ ही मेथिलीन ब्लू हीमोग्लोबिन को कम होने से भी रोकने का काम करता है, ताकि रक्त में ऑक्सीजन को बनाए रखने की क्षमता को बनाए रख सके। इसलिए, ब्लू बेबी सिंड्रोम के इलाज में मदद मिल सकती है (9)।
- बाइकार्बोनेट – दवाई और आहार के माध्यम से बाइकार्बोनेट (एक तरह का केमिकल कंपाउंड) लेने पर इस समस्या का इलाज किया जा सकता है। यह उपचार डॉक्टर अस्पताल में भर्ती करने के बाद शुरू कर सकते हैं या फिर बच्चों को घर में देने के लिए भी कह सकते हैं।
- इंट्रावेनस फ्लूइड – इस इलाज में नस के माध्यम से तरल पदार्थ को शरीर में पहुंचाया जाता है। यह रक्त में हीमोग्लोबिन को बनाए रखने में मदद कर सकता है जिससे शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन को बनाए रखा जा सकता है।
इस लेख के अगले भाग में बच्चों को ब्लू बेबी रोग होने से कैसे बचाएं, इसकी जानकारी दे रहे हैं।
बच्चों को ब्लू बेबी रोग होने से कैसे बचाएं
बच्चों को इस रोग से बचाए रखने के लिए निम्न उपायों को अपनाया जा सकता हैं।
- कुएं के पानी के सेवन से बचाएं- जब तक शिशु की आयु 12 महीने की न हो जाए, तब तक उन्हें कुएं के पानी का सेवन न कराएं। पानी को उबालने पर भी नाइट्रेट नहीं जाता है। पानी में नाइट्रेट की मात्रा 10 mg से अधिक नहीं होना चाहिए। कुएं के पानी की जांच के लिए स्थानीय स्वास्थ्य विभाग से संपर्क कर सकते हैं।
- नाइट्रेट युक्त खाद्य पदार्थों के उपयोग में कमी- कुछ खाद्य पदार्थों में नाइट्रेट की मात्रा अधिक पाई जाती है, उनमें ब्रोकली, पालक, बीट्स और गाजर शामिल हैं। सात महीने तक के बच्चों को इन खाद्य पदार्थ का सेवन न कराएं।
- गर्भावस्था के दौरान नशीली पदार्थ के सेवन न करें- गर्भवती महिला को ड्रग्स, धूम्रपान, शराब और कुछ दवाओं के सेवन से बचना चाहिए। यह कांगेनिटल हार्ट डिफेक्ट से बचाने में मदद कर सकता है। अगर किसी को मधुमेह की समस्या है, तो उसका समय पर उपचार भी होना चाहिए।
चलिए जानते हैं, ब्लू बेबी सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के लिए डॉक्टर की सलाह के बारे में।
ब्लू बेबी सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के लिए डॉक्टर क्या सलाह देते हैं?
ब्लू बेबी सिंड्रोम से प्रभावित शिशुओं की देखभाल के लिए डॉक्टर माता-पिता को कुछ सलाह दे सकते हैं, जो इस प्रकार है:
- फॉर्मूला द्वारा किए गए नाइट्रेट मुक्त पानी के सेवन करने की सलाह दे सकते हैं।
- तत्काल सर्जरी न करने के बारे में सलाह दे सकते हैं, क्योंकि यह नवजात शिशु के लिए जोखिम का कारण बन सकता है।
- मेटहीमोग्लोबिन को कम करने वाले आहार का सेवन कराने की सलाह दे सकते हैं।
- नाइट्रेट का सेवन कम करने के बारे में भी कह सकते हैं।
बेशक, ब्लू बेबी सिंड्रोम एक दुर्लभ बीमारी है और कम ही बच्चे इसकी चपेट में आते हैं, लेकिन इसकी गंभीरता से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए, जितना हो सके गर्भावस्था में सावधानी बरतें और डिलीवरी के बाद शिशु का ध्यान रखें। साथ ही इस लेख को अन्य महिलाओं के साथ भी जरूर शेयर करें, ताकि वो भी इस रोग के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। अगर आप इस विषय के संबंध में और कुछ जानना चाहती हैं, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स के जरिए हमें संपर्क कर सकती हैं।
References
1.Blue Babies and Nitrate-Contaminated Well Water By NCBI
2.Blue baby syndrome: the source of the truth By NCBI
3.The Blue Baby Syndrome By Researchgate
4.Cyanotic heart disease By Midlineplus
5.The Blue baby syndrome By Googlebook
6.Nitrate in Drinking Water By DOH
7.Methemoglobinemia By Midlineplus
8.Echocardiogram By Midlineplus
9.Methylene Blue: Revisited By NCBI
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