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बड़ों की तरह ही बच्चों के मन में भी कई तरह की भावनाएं पनपती है। उन्हें भी खुशी, गम, निराशा, आशा और जलन जैसी भावना का अनुभव हो सकता है। देखा जाए तो खुशी और गम जैसी भावनाएं बच्चों में ईर्ष्या का कारण भी बन सकती है। ऐसे में वक्त रहते बच्चों में ईर्ष्या का कारण जानना और बच्चों को उससे बाहर निकालना आवश्यक है। तो मॉमजंक्शन के इस खास लेख में हम बच्चों में ईर्ष्या से जुड़ी ज्यादा से ज्यादा जानकारी लाए हैं। बच्चों में ईर्ष्या क्यों होती है, इसके दुष्प्रभाव व बच्चों में ईर्ष्या से बचने के उपाय और ऐसी ही विशेष जानकारियों के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
सबसे पहले यह पढ़ें कि बच्चों में ईर्ष्या का कारण क्या हो सकता है।
बच्चों में ईर्ष्या के कारण
ऐसी कई वजहें हैं, जो बच्चों में ईर्ष्या की भावना उत्पन्न कर सकती है। इनमें माता-पिता की परवरिश और देखभाल से जुड़ी छोटी-मोटी गलतियों से लेकर, बच्चे के आसपास का माहौल, पर्यावरण, परिवार व दोस्तों के व्यवहार, आदि शामिल हैं। इनके बारे में बेहतर समझने के लिए नीचे पढ़ें।
1. बहुत ज्यादा लाड़-प्यार करना
बच्चे को जरूरत से ज्यादा लाड़-प्यार करना भी उनमें नकारात्मक भावना उत्पन्न कर सकता है। दरअसल, अधिक लाड़-प्यार से बच्चों की अनावश्यक जरूरतें बढ़ सकती हैं। वे छोटी-छोटी बातों के लिए अपने माता-पिता पर निर्भर हो सकते हैं (1)। ऐसे में अगर घर में कोई नया बच्चा या सदस्य आए, जिसे पहले बच्चे की ही तरह अटेंशन या प्यार दिया जाए, तो इससे ओवर पैम्पर्ड बच्चा खुद को असुरक्षित महसूस कर सकता है। इस वजह से उसमें नए बच्चे या उस नए सदस्य के प्रति जलन की भावना उत्पन्न हो सकती है।
2. ओवर प्रोटेक्टिंग होना
माता-पिता का ओवर प्रोटेक्टिंग होना, बच्चे में सामाजिक चिंता व संज्ञानात्मक विकास के साथ ही बच्चे के आत्मविश्वास को भी प्रभावित कर सकता है। इस वजह से ओवरप्रोटेक्शन की स्थिति में बच्चा अपनी सुरक्षा के लिए हमेशा अपने माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति पर निर्भर हो सकता है (1)। वहीं, अगर माता-पिता उस बच्चे के अलावा, किसी दूसरे बच्चे को इसी तरह से प्रोटेक्शन देंगे या उनका ख्याल रखेंगे, तो इससे बच्चे के मन में अपनी सुरक्षा खोने का भय उत्पन्न हो सकता है, जो बच्चे में ईर्ष्या का कारण भी बन सकता है।
3. बच्चे की तुलना करना
अधिकतर माता-पिता बच्चे की बढ़ती उम्र के साथ उसकी तुलना करने लगते हैं, जैसे – वह अपनी उम्र के अन्य बच्चों के मुकाबले पढ़ने-लिखने, कुछ नया सीखने या करने के मामले में कितना तेज या कमजोर है। माता-पिता का ऐसा व्यवहार भी बच्चों में ईर्ष्या की भावना उत्पन्न कर सकता है। इस विषय से संबंधित एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की साइट पर प्रकााशित जानकारी के अनुसार, ईर्ष्या की भावना तब पैदा होती है जब कोई हमसे बेहतर होता है (2)। वहीं, अगर बच्चे की तुलना बार-बार अन्य बच्चों से की जाए, तो उसे इसका अनुभव हो सकता है कि दूसरा बच्चा उससे बेहतर है। इस वजह से वह अपने मन में दूसरे बच्चे के लिए ईर्ष्या की भावना रख सकता है।
4. अधिक सख्ती बरतना
हर माता-पिता के परवरिश और पालन-पोषण के तरीके अलग-अलग होते हैं। इनमें से कुछ पेरेंट्स ऐसे भी होते हैं, जो अपने बच्चे पर कई तरह के नियम व शासन लगाकर रखते हैं। ऐसे बच्चे अन्य परिवेश के बच्चों के मुकाबले, अधिक विनम्र, और कम आत्मविश्वासी भी हो सकते हैं (3)। इस वजह से ऐसे बच्चे खुद को दूसरों बच्चों से कमजोर समझ सकते हैं और उनके मन में अन्य बच्चों व लोगों के प्रति ईर्ष्या की भावना हो सकती है।
5. जबरन कोई बात या कार्य करवाना
बच्चों में ईर्ष्या क्यों होती है, इसका एक कारण माता-पिता का बच्चे पर दबाव बनाना भी हो सकता है। उदाहरण के तौर पर, कुछ माता-पिता बच्चे को उसकी कौशल या क्षमता के विपरीत किसी दूसरे काम को करने के लिए दबाव दे सकते हैं। उनका यह व्यवहार बच्चे की मानसिक भावना को प्रभावित कर सकता है। वह तनाव तो महसूस कर ही सकता है, साथ ही उसका आत्मविश्वास भी कम हो सकता है और यही कारण उसके व्यवहार को गुस्सैल बना सकती है। साथ ही, बच्चे के मन में उस दूसरे बच्चे के प्रति जलन की भावना भी हो सकती है, जो उस विशेष काम में अच्छा है।
6. बच्चे में एंग्जायटी होना
एक रिसर्च पेपर के अुसार, एंग्जायटी या चिंता विकार होना या कुछ खोने का डर होना भी ईर्ष्या का एक कारण बन सकता है (4)। ऐसे में माना जा सकता है कि अगर बच्चे में अवसाद, तनाव या ऐसी कोई भी मानसिक स्थिति है, तो उसमें ईर्ष्या या जलन की भावना उत्पन्न हो सकती है।
7. बच्चे के जन्म का क्रम
बच्चों में ईर्ष्या क्यों होती है, इसका एक कारण बच्चे के जन्म का क्रम यानी अपने भाई-बहनों में बच्चे के जन्म का कौन सा स्थान है, यह भी हो सकता है। यह तो सब जानते हैं कि माता-पिता के लिए उनका हर बच्चा प्यारा है। हालांकि, ऐसा माना जाता है कि अक्सर माता-पिता दूसरे या तीसरे नंबर में पैदा होने वाले बच्चों की तुलना में सबसे पहले पैदा हुए बच्चे की परवरिश के प्रति अधिक ध्यान देते हैं। वे अपने पहले बच्चे के प्रति अत्यधिक चिंतित रहते हैं।
इसके अलावा, कोई भाई-बहन नहीं होने के कारण दूसरे या तीसरे नंबर पर जन्में बच्चों के मुकाबले पेरेंट्स पहले जन्में बच्चे को अधिक समय भी देते हैं। ऐसे में जब दूसरे बच्चे का जन्म होता है, तो पहले बच्चे को अपनी अहमियत कम होने का डर हो सकता है (5)। यही बच्चों में ईर्ष्या का एक कारण भी बन सकता है।
8. सिबलिंग या भाई-बहन होना
न सिर्फ स्कूल, बल्कि घर में भी बच्चे खुद को बेहतर साबित करने के प्रयास में लगे रहते हैं। वहीं, अगर उनका कोई भाई-बहन है, तो उनकी यह भावना और भी बढ़ सकती है। एक रिसर्च के अनुसार, 5 साल तक की उम्र के लगभग 40 लाख बच्चे अपने भाई-बहन को अपना प्रतिद्वंदी मानते हैं। इस वजह से उनके बीच ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हो सकती है और बच्चों के बीच लड़ाई-झगड़े भी हो सकते हैं (6)। यही वजह है कि कभी-कभी भाई-बहन होने के कारण भी बच्चे का व्यवहार ईर्ष्यालु हो सकता है।
9. जुड़वा बच्चे होना
जुड़वा बच्चों की खबर माता-पिता की खुशी को दोगुना कर देती है। हालांकि, वो इस बात से अंजान होंगे कि उनके जुड़वा बच्चों में जलन की भावना पनप सकती है। दरअसल, जुड़वा बच्चों के बीच आपसी प्रतिद्वंदिता बढ़ सकती है (7)। अन्य लोग भी हर मामले में दोनों की एक-दूसरे के साथ तुलना कर सकते हैं। अपने ही जुड़वा भाई या बहन से तुलना के कारण उनका आत्मसम्मान कम हो सकता है या उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंच सकती है। यही आगे चलकर ईर्ष्या की भावना पैदा कर सकती है।
कारण के बाद अब बच्चों में ईर्ष्या के प्रकार समझने के लिए आगे पढ़ें।
बच्चों में ईर्ष्या के प्रकार
जलन एक भावनात्मक स्थिति है, जो बच्चे में परवरिश और आस-पास के माहौल जैसे अन्य स्थितियों के कारण उत्पन्न हो सकती है। देखा जए, तो बच्चों में ईर्ष्या के कोई खास प्रकार नहीं होते हैं। हालांकि, कुछ स्थितियों और अनुभवों के आधार बच्चों के मन में ईर्ष्या के भाव अलग-अलग हो सकते हैं, जिन्हें बच्चों में ईर्ष्या का प्रकार मान सकते हैं।
1. सिबलिंग (भाई-बहन के प्रति) ईर्ष्या
वैसे तो माता-पिता सभी बच्चों को एक समान ही प्यार करते हैं, लेकिन कभी-कभी स्थितियों के अनुसार या बच्चे की व्यवहार की वजह से माता-पिता एक बच्चे को अधिक प्यार जता सकते हैं। इसी वजह से दूसरा बच्चा अपने भाई-बहन को अपना प्रतिद्वंद्वी मान सकता है (7)।
इसके अलावा, पहले बच्चे को ऐसा एहसास हो सकता है कि उसके भाई-बहन की वजह से उसके माता-पिता के मन में उसके प्रति प्यार की भावना कम हो गई है या उनका प्यार बंट गया है। इस वजह से भी बच्चे के मन मन में अपने भाई-बहन के प्रति ईर्ष्या हो सकती है (8)। ऐसी स्थिति में उत्पन्न हुई बच्चों में ईर्ष्या की भावना को सिबलिंग या भाई-बहन के प्रति ईर्ष्या का नाम दिया जा सकता है।
2. मटेरियल या वस्तुगत ईर्ष्या
मटेरियल या वस्तुगत ईर्ष्या भी जलन की एक भावना हो सकती है। दरअसल, कुछ माता-पिता बच्चे को उसकी जरूरत के अनुसार खिलौना या अन्य वस्तुएं प्रदान कर सकते हैं। यह बच्चे के स्वाभाव को बिगड़ैल बना सकता है (1)। वहीं, इसके विपरीत ऐसे भी बच्चे हो सकते हैं, जिन्हें जिद करने या अपनी इच्छा जाहिर करने के बाद भी माता-पिता खिलौना या वस्तु नहीं देते हैं। ऐसी स्थितियों में इन दोनों ही तरह के बच्चों में एक-दूसरे के प्रति जलन हो सकती है, जिसे मटेरियल या वस्तुगत ईर्ष्या कह सकते हैं।
3. सामाजिक ईर्ष्या
आमतौर पर बढ़ती उम्र के साथ बच्चों में सामाजिक ईर्ष्या हो सकती है। दरअसल, कुछ बच्चे दूसरे लोगों से आसानी से घुल-मिल जाते हैं, जिस वजह से लोग उन्हें अधिक स्नेह भी करते हैं। वहीं, कुछ बच्चे सामाजिक तौर पर लोगों से कम घुलना-मिलना पसंद करते हैं। ऐसे में बच्चे में सामाजिक ईर्ष्या भी हो सकती है।
हो सकता है दो भाई-बहन में से एक ज्यादा मिलनसार हो और दूसरा कम। ऐसे में दूसरे बच्चे के मन में पहले बच्चे के प्रति ईर्ष्या हो सकती है, जिसे सामाजिक ईर्ष्या कहा जा सकता है। बता दें कि बच्चे का एंटी सोशल बिहेवियर अनुवांशिक भी हो सकता है (9)।
4. पढ़ाई-लिखाई वाली ईर्ष्या
कई बार माता-पिता व शिक्षक उसी बच्चे को अधिक पसंद करते हैं, जो पढ़ाई में दूसरे बच्चों के मुकाबले बेहतर होता है। ऐसे में पढ़ाई में कमजोर बच्चा उस होशियार बच्चे के प्रति जलन की भावना रख सकता है। कई बार वह खुद को कक्षा में होशियार साबित करने का प्रयास भी कर सकता है। इस तरह की होड़ में कमजोर बच्चा कभी-कभी परीक्षा में नकल और होशियार बच्चे को नुकसान पहुंचाने जैसे कदम भी उठा सकता है।
आगे हम बच्चों में ईर्ष्या की भावना के लक्षण बता रहे हैं।
ईर्ष्यालु बच्चे के लक्षण | Signs Of Jealousy In Child In Hindi
बच्चों में ईर्ष्या क्यों होती है और इसके प्रकार जानने के बाद, अब उन लक्षणों को पढें जो बच्चों में ईर्ष्या की भावना को जाहिर करते हैं। यहां हम ऐसे ही कुछ लक्षणों की जानकारी दे रहे हैं, जिनकी मदद से माता-पिता को अपने ईर्ष्यालु बच्चे के लक्षण समझने में मदद मिल सकती है।
- बच्चे का अपने भाई-बहन या अन्य बच्चे से नाराज रहना (7)।
- बच्चे में एंग्जायटी या अवसाद जैसे अन्य मानसिक लक्षण होना (4)।
- पेरेंट्स द्वारा भाई-बहन को स्नेह करते समय बच्चे का आक्रामक या क्रोधी व्यवहार होना या बच्चे का रोना (10)।
- सिबिलिंग को दुलार या देखभाल मिलते समय बच्चे का मन उदास होना (10)।
- जिस बच्चे या व्यक्ति से बच्चा ईर्ष्या करता हो, उसके खिलाफ झूठी शिकायतें करना।
- बच्चे को घबराहट होना।
- अन्य बच्चे को धमकाना या उसके साथ गलत व्यवहार करना।
- किसी बच्चे के व्यवहार की तरह नकल करना या उसके जैसा व्यवहार होने का दिखावा करना।
- जिस बच्चे के प्रति मन में जलन हो, उसके साथ खेलने या बात करने से मना करना।
बच्चों के मन में ईर्ष्या की भावना उत्पन्न होने से कैसे रोक सकते हैं, यह भी हम बता रहे हैं।
बच्चे को ईर्ष्या की भावना से कैसे बचाएं?
इस भाग में बताई गई बातों का ध्यान रखने से माता-पिता बच्चे के मन में ईर्ष्या की भावना होने से रोक सकते हैं। यहां पढ़ें इसके लिए माता-पिता को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
- बच्चे से बात करना : माता-पिता को जब भी समय मिले, उन्हें अपने बच्चों से बात करनी चाहिए। बच्चे के स्कूल का समय, खेल का समय या अन्य गतिविधियों में उसका दिन या योगदान कैसा रहा है, इसके बारे में पूछना चाहिए। ऐसा करने से बच्चे और पेरेंट्स के बीच दोस्ताना व्यवहार बन सकता है, जो बच्चे के मन में ईर्ष्या की भावना होने से रोक सकता है।
- खेलना : कहते हैं खेल-खेल में लोग जल्दी एक-दूसरे के दोस्त बन जाते हैं। वहीं, इससे जुड़ी जानकारी में इस बात का जिक्र मिलता है कि खेलने से बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है (11)। इसी तरह माता-पिता को भी समय निकालकर अपने बच्चे के साथ खेलना चाहिए, ताकि बच्चे का मानसिक विकास बेहतर हो सके। माता-पिता का साथ व वक्त पाने से बच्चों में ईर्ष्या की भावना का जोखिम भी कम हो सकता है। इसलिए, जब भी समय मिले पेरेंट्स को बच्चों के आउटडोर गेम्स या बच्चों के इनडोर गेम्स खेलने में सहयोग करना चाहिए।
- बराबर का समय दें : अगर माता-पिता के एक से अधिक बच्चे हैं, तो उन्हें अपने सभी बच्चों के साथ बराबर का समय व्यतीत करना चाहिए। ऐसा करने से माता-पिता अपने सभी बच्चों के मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक स्थिति को बराबरी से समझ सकते हैं। साथ ही बच्चे के मन में भी सिबलिंग को लेकर ईर्ष्या की भावना उत्पन्न होने से बचाव हो सकता है।
- बराबर का बंटवारा करें : घर में दो बच्चे हैं, तो दोनों को खिलौने, कपड़े या अन्य वस्तुएं बराबर की मात्रा में ही दें। बेहतर होगा कि बच्चों को कोई ऐसा खिलौना लाकर दें, जिसे दोनों बच्चे साथ में मिलकर खेल सकें। वहीं, कपड़े खरीदते वक्त एक कपड़ा दोनों बच्चों के लिए एक जैसा लें।
- बच्चे को अहमियत सिखाएं : अगर बच्चा किसी खिलौने या वस्तु की जिद करता है, तो उसे उस खिलौने की अहमियत सिखाएं। अगर वो खिलौना उम्र अनुसार या किसी कौशल से जुड़ा है, तो बच्चे को उस बारे में बताएं और उसे यह भी बताएं कि उस उम्र में पहुंचने या उस कौशल में अच्छा होने पर बच्चे को वो खिलौना दिया जा सकता है। अगर खिलौना महंगा है तो बच्चे को खेल-खेल में कहानी के जरिए इस बारे में भी समझाएं और सीख के साथ अहमियत बताएं।
यहां पढ़ें ईर्ष्या के कारण बच्चे को किस तरह की परेशानियां हो सकती हैं, उसकी जानकारी।
ईर्ष्या के कारण बच्चे को किस प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है?
ईर्ष्या की भावना बच्चे व उसके साथ रहने वाले लोगों को प्रभावित कर सकता है। ईर्ष्या की भावना होने पर बच्चे व उनके साथ रहने वाले लोगों को नीचे दी गई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। ये कुछ इस प्रकार हैं:
- अधिक लाड़-प्यार या देखभाल मिलने से बच्चे का आत्मविश्वास कमजोर हो सकता है (1)। ऐसे में यह माना जा सकता है, ओवर पैंपरिंग के कारण ईर्ष्यालु हुए बच्चे को कमजोर आत्मविश्वास का सामना भी करना पड़ सकता है।
- बच्चे को अवसाद, एंग्जायटी जैसे अन्य मानसिक लक्षण हो सकते हैं (4)।
- ईर्ष्या के कारण बच्चा अपने भाई-बहनों को अपना प्रतिद्वंदी समझ सकता है। वह उसे शारीरिक रूप से नुकसान भी पहुंचा सकता है (7)।
- अगर उम्र में बड़े बच्चे को ईर्ष्या होती है, तो वह अपने छोटे-भाई बहनों पर अपने बड़े होने का रौब जमा सकता है (7)।
- बच्चे का भाई-बहन के साथ भेदभाव बढ़ सकता है (12)।
- बच्चे का व्यवहार आक्रामक या क्रोधी हो सकता है (13)।
लेख के आखिरी भाग में पढ़ें बच्चों में ईर्ष्या को दूर करने के टिप्स।
बच्चों में ईर्ष्या की भावना से निपटने के टिप्स
अगर आप भी बच्चों में ईर्ष्या को कैसे दूर करें, इसके तरीके खोज रहे हैं, तो लेख के इस भाग में आपको इससे संबंधित उचित जानकारी मिल सकती है। ध्यान रहे बच्चे में ईर्ष्या को दूर करने के लिए माता-पिता को भी अपने कुछ व्यवहार में सकारात्मक बदलाव करने होंगे।
1. बच्चे की बात सुनें
अगर माता-पिता को लगता है कि उनके बच्चे में ईर्ष्या होती है, तो उन्हें अपने बच्चे की बातों को सुनना चाहिए। आमतौर पर, बच्चे छोटी-छोटी बातों से परेशान हो जाते हैं, लेकिन यही छोटी-छोटी बातें बच्चों के लिए एक बड़ी समस्या हो सकती है। इसलिए, बच्चे की हर बात को ध्यान से सुनें। ऐसा करने से बच्चे के व्यवहार में हो रहे बदलावों के कारणों को समझने में मदद मिल सकती है। साथ ही अगर बच्चे में ईर्ष्यालु भावना पनप रही है तो वक्त रहते इसका पता लगाकर उसे कम किया जा सकता है।
2. बच्चे की तुलना न करें
सभी बच्चों के मानसिक और कौशल विकास भिन्न हो सकते हैं, इसलिए दूसरे बच्चों से अपने बच्चे की तुलना न करें। इसके बदले बच्चा जिस भी कौशल में अच्छा है उसे उसके लिए प्रोत्साहित करें और उसका मनोबल बढ़ाएं। साथ ही उन्हें यह भी बताएं कि हर बच्चा जैसा भी है अपने माता-पिता के लिए सबसे अव्वल और अच्छा होता है।
3. प्रोत्साहन देना सिखाएं
अगर भाई-बहन एक-दूसरे के मुकाबले पढ़ने में बेहतर हैं, तो अपने कमजोर बच्चे को बताएं कि उसे अपने होशियार भाई-बहन को प्रोत्साहन देना चाहिए। साथ ही अगर कमजोर बच्चा किसी अन्य विषय में अच्छा है, तो उसे उससे संबंधित विषयों पर ध्यान लगाने के लिए प्रोत्साहित करें। साथ ही भाई-बहन को भी यह समझाएं कि वो अपने कमजोर भाई या बहन को प्रोत्साहित करें।
4. डांटे या सजा न दें
अगर बच्चे का ईर्ष्यालु नकारात्मक व्यवहार बढ़ गया है, तो ऐसे में उन्हें डांटे या सजा न दें। उससे इसके इस व्यवहार का कारण पूछें और उसमें सकारात्मक भावना का विकास करने में मदद करें। कहते हैं प्यार से कोई भी पिघल सकता है। ऐसे में माता-पिता के इस तरह के शांत और दयालु व्यवहार से बच्चे को अपने बुरे व्यवहार पर जल्द ही पछतावा हो सकता है और वह ईर्ष्यालु व्यवहार करने से बच सकता है।
5. शेयरिंग करना सिखाएं
अगर बच्चे का कोई खास खिलौना या कोई अन्य वस्तु है, तो उसे उसके सिबलिंग या अन्य बच्चों के साथ साझा करना सिखाएं। बच्चे को बताए की चीजों को दूसरों के साथ शेयर करना अच्छी आदतों में से एक है। इससे वो न सिर्फ मिलनसार बनेंगे, बल्कि लोग उन्हें पसंद भी करेंगे। शेयरिंग का मतलब केयरिंग भी है यानी दूसरों का ध्यान रखना भी है। ऐसा करने से न सिर्फ बच्चे में शेयरिंग की भावना विकसित होगी, बल्कि उसके मन में हो रही जलन की भावना भी कम हो सकती है।
6. ईर्ष्या को महत्वाकांक्षा में बदलें
अगर बच्चा अपने किसी दोस्त या भाई-बहन से किसी वजह से ईर्ष्या रखता है, तो उसके इस ईर्ष्या को सकारात्मक तरीके से बदलने की कोशिश करें। उसके इस भावना को महत्वाकांक्षा में बदलने में मदद करें। उदारहण के लिए, अगर बच्चा अपने दोस्त के अच्छे अंक आने की वजह से उससे ईर्ष्या करने लगा है, तो बच्चे को बताएं कि उसे ईर्ष्या की जगह अच्छे अंक पाने के लिए पढ़ाई पर अधिक मेहनत करनी चाहिए। साथ ही उसे उस दूसरे बच्चे के साथ भी दोस्ती करनी चाहिए, ताकि उसके साथ मिलकर अपने पढ़ाई के स्तर को अच्छा बना सके। हालांकि, ध्यान रहे उन्हें स्वार्थ बिल्कुल न सिखाएं।
7. दंतकथाएं सुनाएं
बच्चे कहानियां बड़े ही मन से सुनते हैं। यही वजह है कि वे कहानी में बताई या सिखाई गई बातों को जल्दी से अपने व्यवहार में शामिल कर लेते हैं। ऐसे में अगर बच्चे के मन में हो रही ईर्ष्या की भावना को दूर करना है, तो माता-पिता बच्चों के प्राचीन कहानियों और दंत कथाओं का सहारा ले सकते हैं। इस तरह की कहानियों में कई तरह के नैतिक संदेश दिए होते है। ये संदेश बच्चे के मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास को बेहतर कर सकते हैं (14)। साथ ही ये कहानियां बच्चों के लिखने, पढ़ने, सुनने और बोलने की स्किल के लिए भी उपयोगी हो सकती है (15)। ऐसा करने से न सिर्फ बच्चे अच्छी बातें सीख सकते हैं, बल्कि दूसरों द्वारा बताई गई बातों पर गौर भी कर सकते हैं।
8. स्नेह जताएं
अपने सभी बच्चों को बराबर का स्नेह दें। उन्हें यह बताएं कि माता-पिता अपने सभी बच्चों से एक बराबर प्यार करते हैं। माता-पिता के इस तरह के व्यवहार से बच्चे के मन से भाई-बहनों के प्रति हो रही असुरक्षा की भावना में कमी आ सकती है। फिर वे भी अपने भाई-बहनों के प्रति स्नेह व सकारात्मक व्यवहार विकसित कर सकेंगे।
9. जरूरत के अनुसार ही तारीफ करें
बच्चा जब भी कोई अच्छा कार्य करे या दूसरों के प्रति सकारात्मक व्यवहार करे, तो माता-पिता को बच्चे की सराहना जरूर करनी चाहिए। हालांकि, इस दौरान उन्हें बच्चे की अत्यधिक प्रशंसा करने से बचना भी चाहिए। अत्यधिक तारीफ से बच्चे ओवर कॉन्फिडेंट या अहंकारी हो सकते हैं। फिर उनमें दूसरे बच्चों के प्रति नकारात्मक व्यवहार उत्पन्न हो सकता है। इसलिए, जरूरत के अनुसार ही बच्चे की तारीफ करें।
10. उदाहरणों का उपयोग करें
माता-पिता को जब भी मौका मिले उन्हें बच्चे को किसी सकारात्मक भावना वाले व्यक्ति व उसके उपलब्धियों के बारे में बताना चाहिए। ऐसा करने से बच्चा उस व्यक्ति के प्रति सकारात्मक विचार रख सकता है और वो भी उसी के दिशा-कदमों पर चलने के लिए खुद को प्रोत्साहित कर सकता है। ऐसा करने से बच्चे का मानसिक और सामाजिक स्तर तो अच्छा रहेगा ही, साथ ही वह ईर्ष्यालु व्यवहार से भी बच सकते हैं।
बच्चों में ईर्ष्या की भावना उत्पन्न होना सामान्य है। अगर माता-पिता सकारात्मक तरीके से इसके उपायों को उपनाएं, तो वे जल्द ही अपने बच्चे के ईर्ष्यालु व्यवहार को बदल सकते हैं। साथ ही बच्चों के नकारात्मक व्यवहार के साथ-साथ माता-पिता को अपने व्यवहार पर भी गौर करना चाहिए। ऐसा करने से उन्हें बच्चे के ईर्ष्यालु व्यहार के कारणों को समझने में आसानी हो सकती है। इसके अलावा, अगर बच्चे का ईर्ष्यालु व्यवहार गंभीर हो गया है या वो माता-पिता की कोई बात नहीं सुनता है, तो ऐसी स्थिति में उन्हें एक्स्पर्ट की मदद जरूर लेनी चाहिए। अब इस महत्वपूर्ण लेख को अन्य लोगों के साथ साझा करना न भूलें।
संदर्भ (References)
- Pampered Children and the Impact of Parenting Styles
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https://repository.uchastings.edu/cgi/viewcontent.cgi?article=3426&context=hastings_law_journal - Birth order, development and personality
https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/1310365/ - A study on knowledge regarding sibling rivalry in children among mothers in selected hospital at Mangaloru
http://www.jsirjournal.com/Vol5_Issue4_04.pdf - Children and sibling rivalry
https://www.betterhealth.vic.gov.au/health/healthyliving/sibling-rivalry - Differential parenting and sibling jealousy: Developmental correlates of young adults’ romantic relationships
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC2396512/ - Antisocial Behavior: Passing From Parent to Child to Grandchild
https://clinicaltrials.gov/ct2/show/NCT00060788 - Proximal Foundations of Jealousy: Expectations of Exclusivity in the Infant’s First Year of Life
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5302134/ - Psychological Restoration through Indoor and Outdoor Leisure Activities
https://www.researchgate.net/publication/284097205_Psychological_Restoration_through_Indoor_and_Outdoor_Leisure_Activities - Sibling Relationships and Influences in Childhood and Adolescence
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3956653/ - Friendship jealousy in young adolescents: individual differences and links to sex, self-esteem, aggression, and social adjustment
https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/15656752/ - The Positive Impacts of Fairy Tales for Children
https://hilo.hawaii.edu/campuscenter/hohonu/volumes/documents/ThePositiveImpactsofFairyTalesforChildrenLeilaniVisikoKnox-Johnson.pdf - Children’s literature to promote students’ global development and wellbeing
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC7036210/
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