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गलसुआ या गलफड़ा से कई माता-पिता परचित होंगे। यह एक संक्रामक बीमारी है, जो अक्सर छोटे बच्चों में होती है। दरअसल, प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने के कारण छोटे बच्चों में संक्रामक रोगों के होने का जोखिम बढ़ जाता है (1)। संभवत: यही वजह है कि बच्चों में गलसुआ (मम्प्स) होने का भी जोखिम देखा जा सकता है। इसके बारे में हम मॉमजंक्शन के इस लेख में जानकारी दे रहे हैं। यहां आप न सिर्फ गलसुआ के बारे में जानेंगे, बल्कि बच्चों में गलसुआ का जोखिम, कारण और लक्षण भी जान सकेंगे। साथ ही बच्चों में गलसुआ होने पर उसका उपचार कब और कैसे कराएं, यह भी विस्तार से बताएंगे।
सबसे पहले हम जानेंगे कि मम्प्स या गलसुआ क्या है।
मम्प्स या गलसुआ (गलफड़े) क्या है?
यह अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट (Respiratory Tract) यानी श्वास नली में होने वाली एक संक्रामक बीमारी है, जो एक से दूसरे व्यक्ति में फैल सकती है (2)। गलसुआ होने पर लार की ग्रंथियों में सूजन हो जाती है, जो काफी दर्दनाक भी होती है। लार की ग्रंथियां लार (एक प्रकार का तरल पदार्थ) का उत्पादन करती हैं, जो भोजन को नम करने, चबाने और निगलने में मदद करती हैं। गलफड़ा को पैरोटाइटिस (Parotitis), पैरोटाइटिस महामारी या वायरल पैरोटाइटिस भी कहा जाता है (3)।
अब पढ़ें कि बच्चों में मम्प्स होना कितना सामान्य माना जाता है।
क्या बच्चों को गलसुआ होना आम है?
आंकड़ों के अनुसार, बच्चों में मम्प्स होना दुर्लभ माना जाता है। एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की साइट पर प्रकाशित शोध के अनुसार, गलसुआ को एक समय में बचपन में होने वाली आम बीमारी मानी जानी थी, लेकिन मौजूदा समय में उचित टीकाकरण के जरिए इसके रोकथाम में काफी मदद मिली है (4)। आंकड़ों के अनुसार, प्रति 10,000 बच्चों में से 4 बच्चों में इसके होने का जोखिम हो सकता है (5)।
ध्यान रखें कि टीकाकरण नहीं कराने वाले 2 से 12 साल तक की उम्र के बच्चों में गलसुआ होने का जोखिम अधिक होता है। यह संक्रमण किसी भी उम्र में हो सकता है। यह छोटे बच्चों के साथ ही किशोरों को भी प्रभावित कर सकता है (3)। इसलिए, जन्म के बाद सही समय पर बच्चे का उचित टीकाकरण करवाना जरूरी है।
चलिए, अब बच्चों में गलफड़ा होने की वजह भी जानते लेते हैं।
बच्चों में मम्प्स (गलसुआ) होने के कारण
बच्चों में गलसुआ होने का मुख्य कारण पैरामिक्सोवायरस (Paramyxoviridae) होता है, जो रुबेलावायरस (Rubulavirus) परिवार का सदस्य होता है। एनसीबीआई की साइट पर उपलब्ध शोध पत्र के मुताबिक, सर्दियों के आखिर और वसंत ऋतु के शुरुआती समय में मम्प्स वायरस फैलने का खतरा अधिक होता है (4)। इसके अलावा, इससे संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से भी यह अन्य व्यक्तियों में फैल सकता है, जैसे (3):
- संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छीकनें के दौरान उसके आस-पास रहना, क्योंकि इस दौरान नाक और मुंह से छींटे दूर तक फैल सकते हैं, जो अन्य व्यक्तियों को भी संक्रमित कर सकता है।
- इसके अलावा, संक्रमित लार के संपर्क में आने से भी मम्प्स फैल सकता है।
आगे उन संकेतों के बारे में जानेंगे जिनसे गलसुआ की पहचान करना आसान होता है।
बच्चों में मम्प्स के लक्षण
मम्प्स वायरस के संपर्क में आने पर लगभग 12 से 25 दिन के बीच इसके लक्षण दिखाई दे सकते हैं। बच्चों में मम्प्स (गलसुआ) की पहचान नीचे दिए गए लक्षणों से हो सकती है (3) (4):
- लो डिग्री का बुखार होना, जो तीन से चार दिनों तक रह सकता है।
- मांसपेशियों में दर्द (Myalgia)।
- भूख में कमी (Anorexia)।
- बेचैनी होना (Malaise)।
- सिरदर्द होना।
- चेहरे के किसी एक तरफ के गाल और जबड़े में सूजन व दर्द होना। सूजन आमतौर पर एक से दो दिन में बढ़ सकती है।
- चेहरे में दर्द होना।
- गले में खराश होना।
इसके अलावा, बच्चों में मम्प्स (गलसुआ) होने के अन्य लक्षण भी हैं, जो लड़कों में देखे जा सकते हैं (3):
- अंडकोष में गांठ होना।
- अंडकोष में दर्द होना।
- अंडकोश में सूजन होना।
लेख के इस भाग में पढ़ें बच्चों में मम्प्स (गलसुआ) होने के कारण होने वाली जटिलताएं।
मम्प्स से जोखिम और जटिलताएं
बच्चों में मम्प्स कई जटिलताओं को भी बढ़ा देता है, जिनमें निम्नलिखित स्वास्थ्य स्थितियां शामिल हैं (3) (4):
- अंडकोष में सूजन (ऑर्काइटिस) के साथ ही, शरीर के दूसरे अंगों में इसका संक्रमण फैल सकता है।
- अग्नाशय (Pancreas) में संक्रमण हो सकता है।
- सेंट्रल नर्वस सिस्टम का प्रभावित होना।
- एन्सेफेलाइटिस रोग (Encephalitis) यानी दिमागी बुखार होना।
- बहरापन होना।
- गुलियन बेरी सिंड्रोम (Guillain Barre Syndrome) होना, जो एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल अवस्था है।
- थायरॉयडिटिस यानी बच्चे को थायराइड होना।
- स्तन में सूजन (Mastitis) होना।
- पोलीन्यूराइटिस (Polyneuritis) यानी परिधीय नसों में होने वाला विकार।
- निमोनिया होना।
- गठिया होना।
आगे हम बच्चों में गलसुआ बीमारी की जांच करने के तरीके बता रहे हैं।
बच्चों में गलसुआ (मम्प्स) का निदान
बच्चों की गलसुआ बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर निम्न प्रकार की प्रक्रिया अपना सकते हैं (3) (6) :
- शारीरिक परीक्षण : बच्चे में गलसुआ का पता लगाने के लिए डॉक्टर सबसे पहले बच्चे की शारीरिक स्थिति और लक्षणों की जांच कर सकते हैं।
- रक्त परीक्षण : कुछ स्थितियों में गलसुआ की स्पष्टता के लिए डॉक्टर रक्त परीक्षण भी कर सकते हैं। रक्त परीक्षण के दौरान नसों से खून का नमूना लिया जाता है।
- स्वैब टेस्ट : नाक या गले से तरल पदार्थ का नमूना लेकर भी उसकी जांच की जा सकती है।
- नेजल एस्पिरेट : इस तरह के टेस्ट में नाक के अंदर एक विशेष रसायन डालकर नाक के अंदर से सैंपल लिया जाता है, जिसकी जांच की जाती है।
- स्पाइनल टैप : निदान की इस प्रक्रिया में रीढ़ की हड्डी में एक छोटा छेद किया जाता है और वहां से तरल पदार्थ का नमूना लेकर उसकी जांच की जाती है। यह प्रक्रिया मैनिंजाइटिस या एन्सेफलाइटिस के लक्षण दिखाई देने पर ही की जाती है। मस्तिष्क में आई सूजन की समस्या को मैनिंजाइटिस कहा जाता है।
स्क्रॉल करें और पढ़ें कि डॉक्टर किस प्रकार इस समस्या का इलाज करते हैं।
बच्चों में मम्प्स का ट्रीटमेंट
बच्चों में गलसुआ के इलाज के लिए कोई खास प्रक्रिया उलब्ध नहीं है। सिर्फ मम्प्स के कारण होने वाले लक्षणों का उपचार करके इससे राहत पाई जा सकती है। इसके अलावा, अन्य बातों का ध्यान रख कर भी मम्प्स के लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है, जैसे (3) (7) :
- गर्दन के आस-पास बर्फ या हीट पैक से सिकाई की जा सकती है।
- दर्द से राहत के लिए डॉक्टरी की सलाह पर बच्चे को दर्द निवारक दवा दी जा सकती है। ध्यान रहे कि वायरस संक्रमण होने पर बच्चे को एस्पिरिन (दर्द
- निवारक दवा) की खुराक न दें। इससे रेये सिंड्रोम का जोखिम बढ़ सकता है।
- बच्चे को अधिक से अधिक तरल पदार्थ पिलाएं।
- बच्चे को नरम भोजन खिलाएं।
- गुनगुने नमक के पानी से बच्चे को गरारे कराएं।
- बच्चे को ज्यादा से ज्यादा आराम करने को कहें।
बच्चों में गलसुआ के इलाज जानने के बाद, अब घरेलू इलाज के बारे में बात करते हैं।
मम्प्स का घरेलू उपचार
कुछ ऐसे घरेलू उपाय हैं, जिनकी मदद से बच्चों में गलफड़े का उपचार किया जा सकता है। ध्यान रखें कि यहां बताए गए उपायों को सिर्फ घरेलू तौर पर ही अपनाएं। ये उपाय बच्चों में मम्प्स के लक्षणों को कुछ हद तक कम करने में मदद कर सकते हैं। इसे पूर्ण इलाज नहीं माना जा सकता है। साथ ही इन घरेलू उपायों का उपयोग डॉक्टर की सलाह पर ही करें।
- अदरक का रस : ताजे अदरक के रस में एंटी-वायरल गुण होते हैं, जो श्वसन तंत्र से जुड़े वायरस को खत्म करने में मदद कर सकते हैं। वहीं, लेख में ऊपर बताया गया है कि मम्प्स श्वास नली को प्रभावित करने वाली बीमारी है (8)। इसलिए, बच्चे के तरल खाद्य में अदरक का रस शामिल किया जा सकता है।
- हरी सब्जियां : मेथी व पालक जैसी हरी सब्जियां श्वसन तंत्र से संबंधित बीमारियों से बचाने में मदद करती हैं। साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बेहतर करती हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करने से गलसुआ की समस्या से बचा जा सकता है। वहीं, अगर कोई बच्चा इससे ग्रस्त है, ताे उसके लक्षण कुछ हद तक कम हो सकते हैं (9)।
- फल : सब्जियों के साथ ही बच्चे के आहार में आम, संतरा, पपीपा और खूबानी जैसे फल भी शामिल किए जा सकते हैं। इस तरह के फल बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं (9)।
- बर्फ की सिंकाई : चेहरे व गाल के सूजे हुए हिस्से पर कॉटन के कपड़े में बर्क के टुकड़े लेपकर, उससे 15 से 20 के लिए सिकाई करें। यह प्रक्रिया हर घंटे में एक बार दोहराएं। इससे सूजन और दर्द को कम करने में मदद मिल सकती है (10)।
- काली मिर्च : एनसीबीआई की साइट पर पब्लिश रिसर्च पेपर के अनुसार, काली मिर्च में एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो शरीर के विभिन्न बैक्टीरिया को खत्म करने और उनसे होने वाले इंफेक्शन को रोकने में मदद कर सकते हैं (11)। साथ ही, यह वायरल बुखार और माइग्रेन यानी सिरदर्द से भी राहत दिलाने में मददगार मानी जा सकती है (12)। ऐसे में बच्चे के तरल आहार में काली मिर्च शामिल करना लाभकारी हो सकता है।
- हल्दी : हल्दी का एंटी इंफ्लेमेटरी गुण सूजन कम करने में मदद कर सकता है (13)। इसके लिए बच्चे के सूजे हुए गाल पर हल्दी पाउडर से बने लेप का इस्तेमाल किया जा सकता है या फिर बच्चे को दूध में हल्दी मिलाकर पीने के लिए भी दिया जा सकता है।
- एलोवेरा जेल : एलोवेरा में एंटीसेप्टिक, एंटीबायोटिक, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो सूजन और बैक्टीरिया दोनों को ही खत्म करने में प्रभावकारी माने जा सकते हैं (14)। इस उपाय को करने के लिए एलोवेरा जेल का लेप बच्चे के गालों पर लगाया जा सकता है।
- लहसुन : लहसुन में मौजूद एजोइन (Ajoene) और एलीन (Allein) जैसे यौगिक संक्रमण दूर करने में मदद कर सकते हैं (15)। साथ ही, लहसुन का इस्तेमाल दर्द दूर करने के लिए भी किया जा सकता है (16)। ऐसे में बच्चे के सूजे हुए चेहरे पर लहसुन का पेस्ट लगाना लाभकारी हो सकता है।
- नीम की पत्तियों के पेस्ट : नीम में दर्द दूर करने वाला (Analgesic) प्रभाव होता है (17)। इसके लिए बच्चे के सूजे हुए गालों पर ताजे नीम की पत्तियों का लेप बनाकर लगाया जा सकता है।
इसी तरह बने रहें हमारे साथ और आगे आप पढ़ेंगे बच्चों में गलसुआ के रोकथाम की जानकारी।
बच्चों में गलसुआ (मम्प्स) को कैसे रोकें?
कुछ बातों को ध्यान में रखकर बच्चों को इस संक्रमण से बचाया जा सकता है। इसके लिए नीचे बताई गई विभिन्न बातों और उपायों का माता-पिता ध्यान रखें।
1. मेजल-मम्प्स-रूबेला (MMR) का टीकाकरण : बच्चे को सही समय पर यह टीका लगवाया जाए। यह टीका बच्चों की इम्यूनिटी मजबूत करने में मददगार माना जाता है। बच्चे को ये टीका दो बार में लगाया जाता है। इसकी जानकारी हम नीचे बता रहे हैं (4):
- टीके की पहली खुराक – शिशु के 12 से 15 माह का होने पर लगाई जाती है।
- टीके की दूसरी खुराक – दूसरी खुराक बच्चे को 4 से 6 साल की उम्र के बीच दी जा सकती है।
2. स्वच्छता का ध्यान : बच्चे को बार-बार साबुन से हाथ धोने की आदत सिखाएं। साथ ही बच्चे को बताए कि जब भी वह खेलकर आए या फिर स्कूल व बाजार से घर आए, तो सबसे पहले साबुन से अपने हाथों को धोएं। घर में अगर पालतू जानवर है, तो उससे खेलने से पहले और बाद में अपने हाथों को अच्छे से धोए।
3. अच्छी आदतें सिखाएं : बच्चे को हर किसी का जूठन न खाने की आदत सिखाएं, खासकर तब अगर कोई व्यक्ति किसी संक्रमण से पीड़ित है। साथ ही, बच्चे को यह भी बताएं कि अगर बच्चे के आस-पास कोई खांसता या छींकता है, तो उस दौरान उसे अपने मुंह पर साफ रूमाल या टिश्यू लगाना चाहिए, ताकि संक्रमित व्यक्ति का लार या बलगम की छींटे बच्चे के मुंह के अंदर न जाएं।
4. बच्चे को घर में रखें : जब तक बच्चे के लक्षण पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाते, तब तक बच्चे को घर में ही रखें। उसे स्कूल या भीड़ वाले स्थानों में लेकर न जाएं।
लेख के आखिरी हिस्से में पढ़ें कब जाए डॉक्टर के पास।
डॉक्टर से कब मिलें?
अगर बच्चे में गलफड़े के लक्षण के साथ ही निम्नलिखित स्वास्थ्य स्थितियां भी नजर आती हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए (3) (18)।
- आंखों का लाल होना।
- लगातार उंघाई आना।
- लगातार उल्टी या पेट दर्द होना।
- तेज सिरदर्द होना।
- अंडकोष में दर्द या गांठ महसूस होना।
- 7 दिन से अधिक सूजन रहना।
- गर्दन में अकड़न होना।
- सुनने में परेशानी होना।
उम्मीद करते हैं कि बच्चों में गलफड़े से जुड़ी सारी जानकारी आपको इस लेख में मिली होगी। बच्चों में गलसुआ (मम्प्स) होना हर माता-पिता की चिंता बढ़ा सकती है, लेकिन अगर आपके बच्चे को उचित समय पर उम्र के अनुसार टीकाकरण हुआ है, तो आपका बच्चा इस संक्रमण से सुरक्षित हो सकता है। फिर भी कुछ स्थितियों में टीकाकरण के बाद भी इसके लक्षण नजर आ सकते हैं। इसलिए, अगर लेख में बताए अनुसार, बच्चे में गलसुआ के लक्षण नजर आते हैं, तो तुरंत डॉक्टरी सलाह लें और लेख में बताई गए उपचार और रोकथाम की बातों पर अमल करें।
References
2. For Healthcare Providers By CDC
3. Mumps By Medlineplus
4. Mumps By NCBI
5. Parotitis By NCBI
6. Measles and Mumps Tests By Medlineplus
7. Mumps By Betterhealth
8. Fresh ginger (Zingiber officinale) has anti-viral activity against human respiratory syncytial virus in human respiratory tract cell lines By Pubmed
9. Traditional foods with their constituent’s antiviral and immune system modulating properties By NCBI
10. Mumps Home Treatment By Iowa State University, Thielen Student Health Center
11. Antibacterial mechanism and activities of black pepper chloroform extract By NCBI
12. Medicinal Properties of Black Pepper (Piper Nigrum Linn): A Common Unani Medicine By Academia
13. Safety and anti-inflammatory activity of curcumin: a component of tumeric (Curcuma longa) By Pubmed
14. Aloe vera: The Miracle Plant Its Medicinal and Traditional Uses in India By Journal of Pharmacognosy and Phytochemistry
15. Antiviral potential of garlic (Allium sativum) and its organosulfur compounds: A systematic update of pre-clinical and clinical data By NCBI
16. Effects of Garlic Supplements on Opioids in Healthy Volunteers By Clinicaltrials
17. Medicinals By NCBI
18. Mumps By The Board of Trustees of the University of Illinois
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