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बचपन में सभी शिशु बिस्तर में पेशाब कर देते हैं और ऐसा होना आम है। वहीं, कुछ बच्चे पांच-छह वर्ष के हो जाने पर भी बिस्तर गीला कर देते हैं। अगर आपका बच्चा भी ऐसा कर रहा है, तो यह चिंता का विषय हो सकता है। बेशक, इस मामले को गंभीरता से लेने की जरूरत है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इसका इलाज नहीं हो सकता। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम बच्चों में बिस्तर गीला करने की समस्या पर ही विस्तार से चर्चा करेंगे। इस लेख में आप बच्चों की इस समस्या के कारण, निदान और इलाज के बारे में अच्छी तरह समझ पाएंगे।
आइए, सबसे पहले आपको यह समझाएं कि बिस्तर गीला करने का मतलब क्या है।
बिस्तर गीला करने का मतलब क्या है?
बच्चा होश में तो अपने पेशाब पर नियंत्रण रख पाता है, लेकिन नींद में नियंत्रण नहीं रख पाते। ऐसा जब पांच साल से ज्यादा उम्र के बच्चे के साथ होता है, तो उसे बिस्तर गीला करना (nocturnal enuresis) कहते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, पांच साल से ज्यादा उम्र के लगभग 20 प्रतिशत बच्चे नींद में पेशाब करने की बीमारी से ग्रस्त होते हैं। 10 वर्ष से ज्यादा उम्र के 5 प्रतिशत और 18 वर्ष से ज्यादा उम्र के 1-2 प्रतिशत बच्चे बेड वेटिंग से पीड़ित होते हैं (1)।
लेख के अगले भाग में जानिए कि ये कितना आम है।
बच्चों में बिस्तर गीला करना कितना आम है?
भारत में लगभग 7.61-16.3 प्रतिशत बच्चे (5 से 12 साल की उम्र तक) नींद में पेशाब करने की समस्या से पीड़ित हैं। इसमें ज्यादातर बच्चे पांच से आठ साल तक की उम्र के हैं और यह समस्या लड़कियों के मुकाबले लड़कों में ज्यादा पाई जाती है (2)।
आगे जानिए कि बिस्तर गीला करने के कितने प्रकार होते हैं।
बिस्तर गीला करने के प्रकार
बेड वेटिंग की समस्या को दो भागों में बांटा जा सकता है, जो इस प्रकार है (3):
- प्राइमरी बेड वेटिंग (Primary nocturnal enuresis) : जब बच्चा बचपन से ही बिस्तर गीला करता आया हो और पांच वर्ष का होने के बाद भी यह जारी रहे, तो इसे प्राइमरी बेड वेटिंग कहा जाता है।
- सेकंडरी बेड वेटिंग (Secondary nocturnal enuresis) : इस स्थिति में बच्चा लगभग छह महीनों के लिए बिस्तर गीला करना बंद कर देता है, लेकिन उसके बाद यह समस्या फिर शुरू हो जाती है।
अगर आप भी यह सोचते हैं कि आपका बच्चा बिस्तर गीला क्यों करता है, तो लेख के अगले भाग में इसका जवाब है। पहले जानिए प्राइमरी बेड वेटिंग के कारण।
प्राइमरी बेड वेटिंग के कारण
नींद में बिस्तर गीला करना बच्चों की कोई शरारत या आलस नहीं है, बल्कि इस समस्या के पीछे कुछ कारण हो सकते हैं, जो इस प्रकार हैं (1):
- मूत्राशय की समस्याएं : कुछ बच्चों का मूत्राशय बहुत छोटा होता है, जिस कारण वो पेशाब की ज्यादा मात्रा पर नियंत्रण नहीं रख पाते। ऐसे में तरल पदार्थ का ज्यादा सेवन करने से मूत्राशय पर दबाव बन सकता है और बच्चों में मूत्रस्राव हो सकता है। इसके अलावा, कुछ बच्चों को मूत्राशय पर नियंत्रण रखना सीखने में भी समय लगता है।
- एंटीडाइयूरेटिक हार्मोन : ये हॉर्मोन शरीर में पेशाब पर नियंत्रण रखते हैं (4)। इनकी कमी से बच्चों में अक्सर बिस्तर गीला करने की समस्या आ सकती है।
- गहरी नींद : कई बार गहरी नींद की वजह से बच्चों को मूत्राशय पर दबाव महसूस नहीं होता और उन्हें बाथरूम जाने की आवश्यकता महसूस नहीं हो पाती। यह भी एक कारण हो सकता है कि बच्चे बिस्तर गीला कर देते हैं।
प्राइमरी बेड वेटिंग के कारण जानने के बाद, आइए आपको बताएं कि सेकंडरी बेड वेटिंग के कारण क्या हो सकते हैं।
सेकंडरी बेड वेटिंग के कारण
सेकंडरी बेड वेटिंग के कारण प्राइमरी बेड वेटिंग के कारणों से कुछ अलग हो सकते हैं, जैसे (1) (5):
- यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण
- मधुमेह
- किडनी की समस्या
- स्लीप एपनिया से पीड़ित (6)
- कब्ज के कारण
- पिनवर्म के कारण
- बढ़ा हुआ थाइराइड हॉर्मोन
नींद में पेशाब करने की बीमारी के पीछे कुछ जोखिम कारक भी हो सकते हैं, जिनके बारे में हम लेख के अगले भाग में आपको बताएंगे।
बिस्तर गीला करने के जोखिम कारक
बेड वेटिंग की समस्या के पीछे निम्न जोखिम कारक हो सकते हैं (1) (7):
- अगर बच्चे के माता-पिता या दोनों में से कोई एक बेड वेटिंग की समस्या से पीड़ित रहा हो।
- लड़कियों की तुलना में यह समस्या लड़कों को ज्यादा होती है।
- पांच से आठ साल की उम्र के बच्चों में यह समस्या ज्यादा होती है।
- कमजोर आर्थिक स्थिति और ग्रामीण क्षेत्रों में रहना।
- भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक कारक से पीड़ित जैसे स्ट्रेस या अवसाद।
- किसी भी प्रकार की पारिवारिक की समस्या।
सिर्फ बिस्तर गीला करने से बेड वेटिंग की समस्या का निदान नहीं होता। इसके लिए मेडिकल चेकअप की जरूरत होती है, जिसके बारे में हम लेख के अगले भाग में बता रहे हैं। आगे जानते हैं कि बेड वेटिंग का निदान किस प्रकार किया जा सकता है।
बिस्तर गीला करने का निदान
आपका बच्चा बिस्तर गीला क्यों करता है, इसके पीछे मौजूद कारणों का पता निदान की मदद से लगाया जा सकता है। इसके लिए निम्न प्रकार की प्रक्रिया की जाती हैं (8):
- मूत्राशय डायरी : इसमें आपको यह ध्यान रखना जरूरी है कि आपका बच्चा पानी या अन्य पेय पदार्थ का कितना सेवन करता है और बाथरूम का उपयोग कितनी बार करता है। इसके अलावा, आपको यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि महीने में बच्चा कितनी बार बिस्तर गीला करता है। सही निदान के लिए आपको बच्चे से जुड़ी यह पूरी जानकारी डॉक्टर को देनी होगी।
- यूरिन टेस्ट : डॉक्टर आपके बच्चे की पेशाब की जांच कर सकते हैं। इस जांच से पेशाब में मौजूद बैक्टीरिया या संक्रमण के बारे में पता लगाया जा सकता है। पेशाब में सफेद रक्त कोशिकाओं और बैक्टीरिया का होना यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण का एक लक्षण हो सकता है।
- अन्य स्कैन : डॉक्टर आपके बच्चे के कुछ और स्कैन भी कर सकते हैं, जैसे – अल्ट्रासाउंड, एमआरआई (MRI), यूरोडायनामिक टेस्टिंग (Urodynamic testing)। इन स्कैन की मदद से बच्चे में मौजूद किसी जन्म दोष या यूरिनरी ट्रैक्ट में किसी ब्लॉकेज के बारे में पता लगाया जा सकता है। इन स्कैन से मूत्राशय के आकार, कमजोर मांसपेशियों और मांसपेशियों की गतिविधियों के बारे में पता लगाया जा सकता है।
आगे जानिए कि अगर समय रहते नींद में पेशाब करने की बीमारी के कारण किस प्रकार की जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है।
बिस्तर गीला करने की जटिलताएं
हालांकि, बिस्तर गीला करने की वजह से किसी गंभीर शारीरिक जटिलताओं का सामना नहीं करता पड़ता, लेकिन नीचे बताई गई कुछ समस्याएं आपके सामने जरूर आ सकती हैं (9):
- स्किन रैशेज : रात भर गीले बिस्तर के सम्पर्क में रहने की वजह से बच्चे के गुप्तांग और उसके आसपास रैशेज हो सकते हैं। ऐसा उन बच्चों के साथ भी हो सकता है, जो रात भर डायपर पहन कर सोते हैं।
- मनोवैज्ञानिक जटिलताएं : बच्चे के मन में बार-बार बिस्तर गीला करने को लेकर शर्मिंदगी का भाव पैदा हो सकता है। इस वजह से उनके आत्मसम्मान में कमी आ सकती है।
- आत्मविश्वास की कमी : पेशाब पर नियंत्रण न रख पाने की वजह से बच्चों के पास से अक्सर पेशाब की बदबू आने लगती है। इस वजह से उन्हें लोगों के बीच उठने-बैठने में आत्मविश्वास की कमी होने लगती है।
लेख के अगले भाग में जानिए बिस्तर गीला करने से बचाव।
बेड वेटिंग की समस्या होने से रोकने या बचाव के टिप्स | Bistar Gila Na Karne Ke Upay
बेड वेटिंग की समस्या से अपने बच्चे को बचाने के लिए आप नीचे बताए गए बचाव उपाय अपना सकते हैं (10):
- बच्चे में हर दो से तीन घंटे में बाथरूम जाने की आदत डालें। कोशिश करें कि वह दिन में कम से कम चार से सात बार बाथरूम जाए।
- कोशिश करें कि बच्चा रात के समय ज्यादा पेय पदार्थों का सेवन न करे, बल्कि सुबह उठने से लेकर शाम 5 बजे तक अच्छी तरह पानी पिए।
- बच्चों को कॉफी, साइट्रस जूस और स्पोर्ट्स ड्रिंक्स पीने से रोकें। ये शरीर में ज्यादा यूरिन का उत्पादन कर सकते हैं।
- अगर बच्चा कब्ज से पीड़ित है, तो उसका जल्द इलाज करवाएं।
इन बचाव उपाय के अलावा जीवनशैली में कुछ परिवर्तन लाने से भी बेड वेटिंग की समस्या से आराम मिल सकता है। लेख के अगले भाग में हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे।
बच्चों में बेडवेटिंग को रोकने के लिए जीवनशैली में बदलाव
बच्चों की जीवनशैली में कुछ परिवर्तन ला कर आप उनकी बिस्तर गीला करने की समस्या का हल कर सकते हैं। ये परिवर्तन कुछ इस प्रकार हो सकते हैं (1):
- रात को सोने से पहले बच्चे की बाथरूम जाने की आदत डलवाएं।
- उसे रात के खाने से पहले पेय पदार्थों में जूस या किसी और ड्रिंक की जगह सूप पीने की आदत डलवाएं।
- बच्चे को एक बार में पानी का पूरा गिलास पीने की आदत डलवाएं। बार-बार में थोड़ा-थोड़ा पानी पीने से मूत्राशय पर दबाव पड़ेगा।
- डॉक्टर की सलाह के अनुसार इस बात का टाइम टेबल बनाएं कि पानी पीने के कितने समय बाद बच्चे को बाथरूम भेजना है और वैसा ही करें। इस प्रकार को बच्चे को धीरे-धीरे समझ आने लगेगा कि उसका मूत्राशय कितने समय में भर जाता है और उसे पेशाब करने की जरूरत कब पड़ती है।
- बच्चों को डांटने की जगह उनसे बात करें और उन्हें समझाएं कि यह एक समस्या है जिससे राहत पाई जा सकती है। डांटने से बच्चा घबरा सकता है और उसे ठीक होने में ज्यादा समय लग सकता है।
- उपचार के दौरान, जब-जब बच्चा रात भर बिस्तर गीला न करे, तो उसे शाबाशी दें। इससे उसका आत्मबल बढ़ेगा और समस्या का उपचार जल्द हो पाएगा।
जीवनशैली में बदलाव लाने के साथ कुछ चिकित्सीय इलाज भी जरूरी हैं। आगे जानिये बिस्तर गीला करने के इलाज के बारे में।
बिस्तर गीला करने का इलाज | Bistar Gila Karne Ka Ilaj
यहां हम आपको ये बता दें कि बेड वेटिंग का इलाज पांच वर्ष से ज्यादा आयु के बच्चे का ही किया जाता है। अगर आपका बच्चा इससे छोटा है, तो कुछ समय इंतजार करें। अगर पांच साल से ज्यादा उम्र होने के बाद भी वह बिस्तर गीला करता हो, तो आप डॉक्टरी परामर्श से उसका इलाज करवा सकते हैं। बेड वेटिंग की समस्या का चिकित्सकीय इलाज कुछ इस प्रकार किया जा सकता है :
- डेस्मोप्रेसिन : यह दवा रात में बच्चों के पेशाब की मात्रा को कम कर सकती है। इसे बेड वेटिंग के प्राथमिक उपचार के रूप में उपयोग किया जाता है। इसकी प्रतिदिन 200mg खुराक बच्चों के लिए पर्याप्त होती है (11)।
- बेडवेटिंग अलार्म : कई डॉक्टर माता-पिता को बेडवेटिंग अलार्म लगाने की सलाह भी देते हैं। इस अलार्म में एक सेंसर होता है, जिसे बच्चों के पायजामे या अंडरवियर में लगाया जाता है। यह नमी को सेंस करता है और बजने लगता है। इससे बच्चे की नींद खुल जाती है और वह बिस्तर गीला न करके बाथरूम का उपयोग करता है। ऐसे धीरे-धीरे उसकी रात में उठने की आदत पड़ जाती है और फिर उसकी अलार्म के बिना भी नींद खुलने लगती है (12)।
- डिट्रोपन : जब तक बच्चा बड़ा न हो जाए और अपने मूत्र प्रवाह पर नियंत्रण करना न सीख जाए, तब तक उसे डिट्रोपन दी जा सकती है। यह बच्चों के मूत्राशय को नियंत्रित रखने में मदद करती है (13)।
- एंटीबायोटिक : अगर जांच में बच्चे के मूत्राशय में किसी प्रकार का संक्रमण का पता चलता है, तो डॉक्टर एंटीबायोटिक लेने की सलाह दे सकते हैं। यह संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया को खत्म करके, बेड वेटिंग की समस्या से आराम दिला सकते हैं (13)।
- टोफ्रानिल और नॉरप्रामिन : बेड वेटिंग के इलाज में ये दोनों दवाइयां लेने की सलाह भी दी जा सकती है। ये दोनों 40 से 60 प्रतिशत तक प्रभावशाली साबित हुई हैं, लेकिन इनका सेवन बंद करते ही समस्या फिर शुरू हो सकती है (5)।
नोट : इन सभी दवाइयों के अपने दुष्प्रभाव हो सकते हैं, इसलिए इनका सेवन डॉक्टरी परामर्श पर ही करें। अपने चिकित्सक से बात किए बिना इनमें से किसी भी दवा का सेवन न करें।
डॉक्टरी इलाज के साथ आप घरेलू उपचार का भी उपयोग कर सकते हैं। ये नुस्खे बच्चे की नींद में पेशाब करने की बीमारी से राहत दिला सकते हैं।
बेडवेटिंग की समस्या के लिए घरेलू उपचार | Bistar Gila Na Karne Ke Desi Nuskhe
कुछ घरेलू नुस्खों की मदद से आप इस समस्या से उबरने में अपने बच्चे की मदद कर सकते हैं। आप नीचे बताए गए कुछ घरेलू उपचार अपना सकते हैं :
- ब्लैडर एक्सरसाइज : मूत्राशय का कमजोर होना बिस्तर गीला करने की बीमारी एक बहुत बड़ा कारण है। ये मूत्राशय का पूरी तरह विकास न होने या आकार छोटे होने की वजह से हो सकता है (1)। ऐसे में ब्लैडर एक्सरसाइज आपके बच्चे की मदद कर सकती है। यह एक्सरसाइज कुछ इस प्रकार हो सकती है :
- जब भी बच्चा पेशाब करना चाहे तो उसे लगभग 10-15 मिनट के लिए पेशाब पर नियंत्रण रखना सिखाएं। ऐसा करने से धीरे-धीरे उनके मूत्राशय की क्षमता बढ़ने लगेगी। इस एक्सरसाइज से शुरू में समस्या बढ़ सकती है। हो सकता है कि इस दौरान वो बार-बार अपना पायजामा गीला करे, लेकिन इस वजह से उन्हें डांटे नहीं, बल्कि संयम के साथ उसे समझाएं।
- कीगल एक्सरसाइज से भी इस समस्या में कुछ सुधार हो सकता है (14)। इसे करने के लिए बच्चे का मूत्राशय पूरी तरह खाली करवा कर उसे योग मेट पर लेटाएं। फिर उसे अपनी पेल्विक मसल्स को अंदर खीचने के लिए कहें, जैसे मूत्र और मल प्रवाह रोकने के लिए किया जाता है। इस स्थिति में तीन से पांच सेकंड तक रहें। फिर मसल्स को ढीला छोड़ने के लिए कहें और 5 सेकंड बाद दोहराएं (15)। इसे 10-10 बार दिन में तीन बार दोहरा सकते हैं।
- दालचीनी : जैसा कि बेड वेटिंग के सेकंडरी प्रकार में हमने बताया कि इसके पीछे एक कारण मधुमेह भी हो सकता है। ऐसे में आप दालचीनी का उपयोग कर सकते हैं। यह शरीर में इंसुलिन के प्रभाव को बेहतर करती है और ब्लड ग्लूकोज के स्तर को कम करके मधुमेह से आराम दिलाने में मदद कर सकती है (16)। आप बच्चे के दूध, आइसक्रीम, सरेलेक या चोकोस के ऊपर दालचीनी पाउडर डाल कर उसे खिला सकते हैं।
- क्रैनबेरी जूस : यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण मूत्राशय पर नियंत्रण न होने का कारण हो सकता है और इस बारे में आपने बेड वेटिंग के कारणों में जाना। यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन का इलाज करने के लिए आप बच्चे को क्रैनबेरी जूस का सेवन करवा सकते हैं। इसमें एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया को खत्म करते हैं और आपको समस्या से राहत पाने में मदद कर सकते हैं (17)। इसके खट्टे-मीठे स्वाद की वजह से बच्चा इसे पीना जरूर पसंद करेगा। इसे आप बच्चे को नाश्ते के साथ या शाम को स्नैक्स के साथ दे सकते हैं।
- सेब का सिरका : अगर बच्चे को नींद में पेशाब करने की बीमारी यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण की वजह से है, तो सेब का सेवन करने से भी इस समस्या से आराम पाया जा सकता है। शोध में पाया गया है कि इसमें कई प्रकार के एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया से लड़ते हैं और उन्हें पनपने से रोकते हैं (18)। इसका उपयोग करने के लिए आप एक गिलास पानी में सेब का सिरका मिलाकर बच्चे को पिला सकते हैं। आप चाहें तो स्वाद बढ़ाने के लिए उसमें एक चम्मच शहद भी मिला सकते हैं। इस प्रयोग को शाम को या नाश्ते के बाद किया जा सकता है।
- आंवला : मधुमेह और कब्ज की वजह से हो रही सेकंडरी बेड वेटिंग के लिए आंवला का उपयोग करना लाभकारी साबित हो सकता है। इसमें एंटी-डायबिटिक गुण होते हैं, जो मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद करते हैं (19)। इसके उपचार के लिए आप बच्चों को साबुत आंवला खिला सकते हैं या नाश्ते के बाद उन्हें एक चम्मच आंवला का जूस पिला सकते हैं।
- शहद : बच्चों में कब्ज की समस्या को दूर करने के लिए शहद का भी उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए आप एक गिलास पानी में एक चम्मच शहद मिला कर बच्चे को सुबह खाली पेट पिला सकते हैं (20)। इसके अलावा, आप बच्चे को रात को सोने से पहले भी लगभग 5 ml शहद चटा सकते हैं (21)।
- सरसों के बीज : मूत्राशय पर नियंत्रण न रहना, कई बार बच्चों में किसी संक्रमण की तरफ इशारा हो सकता है। ऐसे में, बच्चों को सरसों का सेवन करवाने से फायदे मिल सकते हैं। सरसों में एंटी माइक्रोबियल गुण होते हैं, जो संक्रमण फैलाने वाले जीवाणु को नष्ट कर सकते हैं और बच्चे को संक्रमण व बेड वेटिंग से आराम दिलवा सकते हैं (22)।
लेख के अगले भाग में जानिए कि बच्चे को डॉक्टर के पास कब ले जाना चाहिए।
डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए
आप बच्चे को डॉक्टर के पास नीचे बताई गई परिस्थितियों में ले जा सकते हैं (23) :
- अगर बच्चा 5 वर्ष से बड़ा है और एक महीने में दो से ज्यादा बार बिस्तर गीला कर रहा है।
- अगर बच्चे को पेशाब करते समय खून निकलता हो व दर्द हो रहा हो। साथ ही उसे बुखार भी हो, तो तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें।
- अगर बच्चा छह महीने बिस्तर गीला न करने के बाद, दोबारा बिस्तर गीला करना शुरू कर दे।
- अगर आप तमाम तरह के घरेलू उपचारों को अपना चुके हों और कोई फायदा न मिल रहा हो।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
क्या बिस्तर गीला करना आनुवंशिक होता है?
जी हां, जैसा कि हमने लेख के शुरुआत में बताया कि बेड वेटिंग की समस्या आनुवंशिक होती है। अगर बच्चे के माता-पिता, दोनों को यह समस्या थी, तो 75 प्रतिशत आशंका है कि बच्चे को भी यह समस्या होगी। वहीं, अगर दोनों में से किसी एक को बेड वेटिंग की समस्या थी, तो 50 प्रतिशत आशंका होती है कि बच्चे को भी होगी (1)।
क्या नींद में पेशाब करने की बीमारी लड़कियों से ज्यादा लड़कों में होती है?
जी हां, शोध में पाया गया है कि नींद में बिस्तर गीला की बीमारी लड़कियों से ज्यादा लड़कों में होती है (7)।
इस लेख को पढ़ने के बाद आप समझ गए होंगे कि नींद में बिस्तर गीला करना बच्चों की कोई शरारत नहीं होती और न ही इसमें उनकी कोई गलती होती है। इसलिए, जब भी वो बिस्तर गीला करें, तो उन्हें डांटने की जगह उन्हें प्यार और धैर्य के साथ समझाने की कोशिश करें। साथ ही इस बीमारी से उबरने में उनकी मदद करें। अगर इस पर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो बच्चों के बड़े हो जाने के बाद यह उनके और आपके लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकता है।
References
1.Nocturnal Enuresis (Bed-Wetting) by Student Health Service, Department of Health, Hong Kong
2.Nocturnal Enuresis in India: Are We Diagnosing and Managing Correctly by NCBI
3.Primary Nocturnal Enuresis: A Review by NCBI
4.Syndrome of inappropriate antidiuretic hormone secretion by MedlinePlus
5.Evaluation and Treatment of Enuresis by AAFP
6.Resolution of diurnal incontinence and nocturnal enuresis after adenotonsillectomy in children by NCBI
7.The epidemiology and factors associated with nocturnal enuresis among boarding and daytime school children in southeast of Turkey: A cross sectional study by ResearchGate
8.Diagnosis of Bladder Control Problems & Bedwetting in Children by NIH, U.S Department of Health and Human Services
9.Bedwetting: What can make everyday life easier by NCBI
10.Prevention of Bladder Control Problems & Bedwetting in Children by NIH, U.S Department of Health and Human Services
11.Enuresis: practical guidelines for primary care by NCBI
12.What are the treatment options for bedwetting by NCBI
13.Treatment of Bladder Control Problems & Bedwetting in Children by NCBI
14.Kegel exercises and childhood incontinence: a new role for an old treatment by NCBI
15.Kegel exercises – self-care by MedlinePlus
16.Treatment of Diabetes Mellitus Using iPS Cells and Spice Polyphenols by NCBI
17.Cranberry juice for the prevention of pediatric urinary tract infection: a randomized controlled trial by NCBI
18.Antimicrobial activity of apple cider vinegar against Escherichia coli, Staphylococcus aureus and Candida albicans; downregulating cytokine and microbial protein expression by NCBI
19.Anti-diabetic effects of the Indian indigenous fruit Emblica officinalis Gaertn: active constituents and modes of action by NCBI
20.Functional constipation in children – evaluation and management by NCBI
21.Medicinal and cosmetic uses of Bee’s Honey – A review by NCBI
22.Antibacterial and Antifungal Activities of Spices by NCBI
23.Bedwetting by MedlinePlus
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