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बच्चे के जन्म के बाद उनका ख्याल रखना सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है। वहीं, छोटे बच्चों को गोद में उठाते समय अक्सर बड़े बुजुर्ग उनकी गर्दन को ठीक से संभालने की सलाह देते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि बच्चे के जन्म के समय उनकी गर्दन पर उनका कंट्रोल नहीं होता है। यह नियंत्रण धीरे-धीरे विकसित होता है। अगर बच्चा समय के साथ सिर और गर्दन पर नियंत्रण नहीं रख पाता है, तो इसे टोर्टीकोलिस कहते हैं। अगर आप बच्चों में होने वाली इस समस्या से रूबरू नहीं हैं, तो मॉमजंक्शन के इस लेख में आपको इसके बारे में संपूर्ण जानकारी मिलेगी। लेख में बच्चों में टोर्टीकोलिस के कारण, लक्षण और इससे जुड़ी जरूरी बातों को विस्तार से बताया गया है।
चलिए, लेख में सबसे पहले यह जान लेते हैं आखिर टोर्टीकोलिस क्या होता है।
टोर्टीकोलिस क्या होता है? | Torticollis in Hindi
टोर्टीकोलिस एक ऐसी समस्या है, जो गर्दन की मांसपेशियों पर प्रभाव छोड़ती है। इस बीमारी में बच्चे का सिर नीचे की ओर या फिर एक तरफ झुक जाता है (1)। यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। कुछ बच्चों में यह समस्या जन्मजात भी हो सकती है, जिसे कंजेनिटल टोर्टीकोलिस (Congenital Torticollis) कहा जाता है। आंकड़ों की मानें, तो 250 में से एक बच्चा इस बीमारी के साथ पैदा हो सकता है (2)।
चलिए अब जानते हैं कि टोर्टीकोलिस के आखिर कितने प्रकार होते हैं।
टोर्टीकोलिस कितने प्रकार का होता है?
बच्चों में टोर्टीकोलिस कई तरह के हो सकते हैं। इनमें से कुछ के बारे में नीचे विस्तृत जानकारी दे रहे हैं (3) :
1. कंजेनिटल टोर्टीकोलिस (Congenital torticollis) : गर्भावस्था या डिलीवरी के समय ट्रॉमा के कारण मांसपेशियों में एडिमा (सूजन) हो सकती है। इससे स्टर्नोक्लेडोमैस्टायड मांसपेशी (sternocleidomastoid muscle) में जन्मजात फाइब्रोसिस (रेशेदार ऊतकों का निर्माण) विकसित हो सकता है, जो इस मांसपेशी को कमजोर बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है। बता दें, स्टर्नोक्लेडोमैस्टायड मांसपेशी गर्दन की शारीरिक रचना के लिए मुख्य मांसपेशियों में से एक है। बच्चों में कंजेनिटल टोर्टीकोलिस के मुख्य तीन प्रकार हैं, जो इस प्रकार हैं (2) :
- पोस्ट्युरल (Postural) : कंजेनिटल टोर्टीकोलिस से ग्रसित 20 प्रतिशत बच्चों में यह समस्या होती है। गर्भ में बच्चे की पोजीशन कुछ भी हो सकती है, लेकिन यह परेशानी मांसपेशियों की दिशा बिगड़ने के कारण हो सकती है।
- मस्क्यूलर (Muscular) : गर्भ में स्टर्नोक्लेडोमैस्टायड मांसपेशी (sternocleidomastoid muscle) में दबाव के कारण शिशु में जन्मजात टोर्टीकोलिस की समस्या हो सकती है, जो 30 प्रतिशत बच्चों में देखने को मिलती है। बता दें गर्दन की शारीरिक रचना में यह मांसपेशी अहम भूमिका निभाती है।
- स्टर्नोक्लेडोमैस्टायड मांसपेशी का मोटा होना (Sternocleidomastoid mass) : स्टर्नोक्लेडोमैस्टायड मांसपेशी (sternocleidomastoid muscle) के मोटे होने के कारण भी बच्चे में जन्मजात टोर्टीकोलिस हो सकता है। कंजेनिटल टोर्टीकोलिस में 50 प्रतिशत मामलों में ऐसा देखने को मिलता है।
2. डर्माटॉजेनिक पेन (Dermatogenic pain) : गर्दन की त्वचा पर किसी तरह की चोट लगने के कारण इसे झुकाने और हिलाने में दिक्कत हो सकती है। इससे गर्दन की मांसपेशियों में तनाव पैदा हो सकता है। आमतौर पर यह समस्या जलने या घाव के भरने पर हो सकती है।
3. ऑक्युलर टोर्टीकोलिस (Ocular torticollis) : कुछ मामलों में सिर के झुकाव और घुमाने के लिए जरूरी मसल्स में एक्स्ट्राऑकुलर मांसपेशियां (Extraocular Muscles – आंख से जुड़ी मांसपेशियां) के कारण पैरालिसिस की शिकायत हो सकती है। बच्चों में टोर्टीकोलिस का एक कारण यह भी हो सकता है।
4. रूमेटोलॉजिकल टोर्टीकोलिस (Rheumatological torticollis) : जोड़ों से संबंधित परेशानी के कारण टोर्टीकोलिस की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
5. टॉरसिकोलो वेस्टिब्यूलर (Torcicolo vestibular) : आंतरिक कान के कारण गर्दन के संतुलन में परेशानी हो सकती है।
6. न्यूरोजेनिक टोरमेंटोर (Neurogenic tormentor) : यह किसी न्यूरोलॉजिकल विकार (मस्तिष्क संबंधिक रोग) या दुर्घटना के परिणामस्वरूप होता है, जैसे स्ट्रोक या ट्रॉमा।
7. स्पास्मोडिक टोर्टीकोलिस (Spasmodic torticollis): गर्दन की कठोरता का यह मुख्य कारण है। यह परेशानी मांसपेशियों के टोन में वृद्धि के कारण होती है। भावनात्मक तनाव, शरीर पर ज्यादा भार लेना या गर्दन में अचानक झटका आना इसके होने के मुख्य कारण हैं।
आइये, अब जान लेते हैं कि किन-किन वजहों से बच्चों को यह परेशानी होती है।
शिशुओं में टोर्टीकोलिस के कारण
नीचे बच्चों में टोर्टीकोलिस के कारण बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं (4) (5) (1):
1. गर्भ में स्थित बच्चे की स्थिति : कई बार गर्भ में शिशुओं में टोर्टीकोलिस की परेशानी विकसित हो सकती है।
ऐसा गर्भ में बच्चे की असामान्य पोजीशन के कारण हो सकता है।
2. आनुवंशिक : टोर्टीकोलिस एक ऐसी बीमारी है, जो बच्चों में वंशानुगत भी हो सकती है।
3. मांसपेशियों से संबंधित : कुछ गंभीर मामलों में स्टर्नोक्लेडोमैस्टायड मांसपेशियां (गर्दन के दोनों ओर एक लंबी मांसपेशी जो कान के पीछे से कॉलरबोन तक होती है) के कारण भी टोर्टीकोलिस की समस्या हो सकती है।
4. गर्दन में ट्यूमर : लोअर ब्रेन स्टेम (मस्तिष्क के निचले हिस्से की संरचना) और सर्वाइकल स्पाइन (गर्दन से जुड़ी रीढ़ की हड्डी) में ट्यूमर होने से बच्चों के सिर का पोस्चर प्रभावित हो सकता है। इसके कारण सिर का झुके रहना या ठोड़ी के ऊपर होने की समस्या हो सकती है।
5. तंत्रिका तंत्र से संबंधित : नर्वस सिस्टम में किसी परेशानी के कारण भी बच्चे में टोर्टीकोलिस की समस्या पैदा हो सकती है।
6. ब्लड सप्लाई : कुछ मामलों में गर्दन तक की मांसपेशियों में ब्लड सप्लाई का ठीक से नहीं पहुंच पाना भी बच्चे में इस समस्या का कारण बन सकता है।
लेख के इस भाग में बच्चों में टोर्टीकोलिस के लक्षणों के बारे में जानकारी हासिल कर लेते हैं।
छोटे बच्चों में टोर्टीकोलिस के लक्षण | Torticollis Symptoms In Babies In Hindi
बच्चों में टोर्टीकोलिस के लक्षण धीरे-धीरे नजर आते हैं, जो समय के साथ गंभीर होने लगते हैं। नीचे कुछ ऐसे लक्षण बता रहे हैं, जिनके जरिए बच्चों में टोर्टीकोलिस होने का अंदाजा लगाया जा सकता है। अगर इसमें से कोई भी लक्षण नजर आएं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें (1) (3) :
- सिर की गतिविधि सीमित या कम होना
- बच्चे को सिरदर्द
- सिर में कंपन होना
- गर्दन में अकड़न और दर्द होना
- गर्दन की मांसपेशियों का कठोर होना
- गर्दन की मांसपेशियों में सूजन
- उल्टी
- बुखार की शिकायत
- संक्रमण के लक्षण नजर आना
- ठीक से कदम न रखना या चलना
- संतुलन संबंधित परेशानी
स्क्रॉल करके जानिए बच्चों में टोर्टीकोलिस की पहचान कैसे कर सकते हैं।
बच्चों में टोर्टीकोलिस का निदान
नीचे बताए गए तरीकों के जरिए डॉक्टर बच्चे में टोर्टीकोलिस की पहचान कर सकते हैं (4) (6) (1):
1. मेडिकल हिस्ट्री : डॉक्टर बच्चे की स्वास्थ्य समस्या के बारे में पूछ सकते हैं। इसके अलावा, गर्भावस्था व लेबर के दौरान हुई कुछ जटिलताओं के बारे में जानकारी ले सकते हैं। जैसे पेरिनेटल एसफिक्सिया (जन्म के समय बच्चे के मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी), दौरा उठना, दवाएं, गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स (पेट में मौजूद पदार्थों का फूड पाइप में वापस आना) आदि।
2. फिजिकल एग्जाम : इसमें लक्षणों के आधार पर बच्चे के शरीर की जांच की जाती है। जैसे बच्चे की गर्दन की मूवमेंट या किसी तरह की असमानता नजर आना। गहन जांच के लिए इसमें बच्चे की गर्दन का अल्ट्रासाउंड या एमआरआई भी किया जा सकता है।
3. ब्लड टेस्ट : टोर्टीकोलिस से जुड़ी अन्य मेडिकल कंडीशन की जांच के लिए ब्लड टेस्ट किया जा सकता है।
लेख के अगले भाग में जानते हैं छोटे बच्चों में टोर्टीकोलिस का इलाज क्या है।
छोटे बच्चों में टोर्टीकोलिस का इलाज
बच्चे में टोर्टीकोलिस का सही इलाज होना भी बहुत जरूरी है, जिससे गर्दन व कंधे को सामान्य स्थिति में लाया जा सके। इसके लिए डॉक्टर नीचे बताए ट्रीटमेंट की सलाह दे सकते हैं (6) (7) :
1. फिजियोथेरेपी : ज्यादातर मामलों में डॉक्टर बच्चे की गर्दन की मांसपेशियों को स्ट्रेच करने व मजबूत बनाने के लिए फिजियोथेरेपी की सलाह दे सकते हैं। इसे नॉन सर्जिकल के रूप में भी जाना जाता है। इसमें बच्चे को कई स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज कराई जाती हैं। पेरेंट्स को भी इन एक्सरसाइज को सीखना होता है, जिससे कि वे घर पर भी बच्चे को एक्सरसाइज करा सकें।
2. सर्जिकल ट्रीटमेंट : गंभीर मामलों में टोर्टीकोलिस के इलाज के लिए सर्जरी की सलाह भी दी जा सकती है। इस तरह के इलाज में डॉक्टर गर्दन की मांसपेशियों को बढ़ाते हैं, जिससे गर्दन में उचित रूप से मूवमेंट हो सके।
चलिए लेख में आगे टोर्टीकोलिस के लिए घरेलू उपचार से जुड़ी जानकारी दे रहे हैं।
बच्चों में टोर्टीकोलिस के लिए घरेलू उपचार
यहां हम बच्चों में टोर्टीकोलिस के घरेलू उपचार बताने जा रहे हैं, जो काफी हद तक इस परेशानी से राहत प्रदान कर सकते हैं। ध्यान रखें कि ये घरेलू नुस्खे हैं, जरूरी नहीं कि ये सभी पर एक जैसा असर करें। इसलिए, इलाज के साथ-साथ इन घरेलू नुस्खों को करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लें।
- दूध पिलाते समय बोतल या ब्रेस्ट का मुंह ऐसी ओर करें, जिससे कि बच्चा अपने सिर को घुमाने में मूवमेंट करे। ऐसे में बच्चा अपनी अकड़ी हुई मांसपेशियों को स्ट्रेच करने की कोशिश करेगा।
- बच्चों को खिलाते समय इस बात का ध्यान रखें कि उन्हें खिलौनों को दोनों तरफ से दिखाने की कोशिश करें, इससे बच्चे की गर्दन की एक्सरसाइज खुद ब खुद हो जाएगी।
- बच्चे को खिलौने को उस तरफ रखें जिस तरफ उसका सिर न हो। ऐसे में बच्चे के अंदर अपना खिलौना देखने की ललक उठेगी और वह सिर को घुमाने की कोशिश करेगा।
- बच्चे को अपनी छाती या पेट पर लेटाएं और उनसे बातें करें। इससे बच्चा भी आपकी तरफ देखेगा। दिन में कई बार 10-15 मिनट के लिए इस एक्सरसाइज को करें।
लेख के इस हिस्से में हम बच्चों में टोर्टीकोलिस ठीक होने में लगने वाले समय के बारे में बता रहे हैं।
इसे ठीक होने में कितना समय लगता है?
बच्चों में टोर्टीकोलिस की समस्या कितने समय में ठीक होगी यह इसके कारण, स्थिति और इलाज पर पूरी तरह निर्भर करता है। इसके अलावा, बच्चों में टोर्टीकोलिस की समस्या के बारे में कब मालूम हुआ यह भी विशेष पहलू में से एक है। अगर बच्चे में सही समय पर टोर्टीकोलिस की पहचान कर ली जाए व उसे सही इलाज दिलाया जाए, तो ज्यादातर बच्चों में कुछ हफ्तों में सुधार नजर आने लगता है। हालांकि, यह बच्चे की स्थिति पर भी निर्भर करता है। ऐसे में इस बारे में आपको डॉक्टर से भी सटीक जानकारी मिल सकती है।
लेख के अंत में जानते हैं कि डॉक्टर से कब संपर्क करना चाहिए।
डॉक्टर से सलाह कब ली जाए?
बच्चों में टोर्टीकोलिस की समस्या का समय से इलाज बहुत जरूरी है। इसके लिए लेख में ऊपर दिए गए लक्षणों पर गौर करना जरूरी है। अगर बच्चे में टोर्टीकोलिस का एक भी लक्षण नजर आए, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
अगर बच्चे को सिर को सीधा न रखने व सिर को हमेशा झुकाकर रखने की परेशानी है, तो पेरेंट्स को परेशान होने की जरूरत नहीं है। बच्चे में इसके लक्षण नजर आते ही डॉक्टरी परामर्श लेने में बिलकुल भी देर न करें। बच्चों में यह समस्या घातक भी हो सकती है, लेकिन इसका समय पर इलाज बच्चे को इस परेशानी से उबरने में मदद कर सकता है। साथ ही लेख में टोर्टीकोलिस से जुड़े कुछ टिप्स दिए गए हैं, जो आपके काम आ सकते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि यह लेख आपके लिए मददगार साबित होगा। इस लेख को अन्य लोगों के साथ शेयर कर सभी को इस विषय के बारे में जागरूक बनाएं।
References
2. Congenital Torticollis By NCBI
3. TorticollisBy NCBI
4. Congenital Muscular Torticollis: An OverviewBy Researchgate
5. Torticollis By Science Direct
6. Congenital Torticollis and Its Physiotherapy ManagementBy International Journal of Health Science And Research
7. Congenital muscular torticollis By NCBI
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