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हर गर्भवती महिला को उस पल का इंतजार होता है, जब नन्ही-सी जान उसके हाथों में खेले। इसके लिए घर के सभी सदस्य गर्भवती महिला का पूरा ध्यान रखते हैं, ताकि नॉर्मल डिलीवरी हो। साथ ही डॉक्टर से समय-समय पर जांच भी कराते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अंतिम समय में ऐसी मेडिकल परिस्थिति पैदा हो जाती है, जिस कारण डॉक्टरों को सी-सेक्शन यानी सिजेरियन डिलीवरी का विकल्प चुनना पड़ता है। आखिर, सी-सेक्शन क्या होता है और ऐसी नौबत क्यों आती है? क्या यह अवस्था सुरक्षित है या जोखिम भरी है? आपको ऐसे तमाम सवालों के जवाब मॉमजंक्शन के इस लेख में मिलेंगे।
सबसे पहले हम इस सवाल का जवाब जानते हैं कि आखिर सी-सेक्शन होता क्या है।
क्या है सी-सेक्शन (सिजेरियन डिलीवरी)?
सी-सेक्शन एक प्रकार का ऑपरेशन होता है। इसमें डिलीवरी के दौरान गर्भवती के पेट और गर्भाशय पर चीरा लगाया जाता है, ताकि शिशु का जन्म हो सके। इसके बाद डॉक्टर पेट और गर्भाशय को टांके लगाकर बंद कर देते हैं, जो समय के साथ-साथ शरीर में घुल जाते हैं (1)।
सी-सेक्शन की जरूरत कब होती है?
सी-सेक्शन करना है या नहीं, यह कई मामलों पर निर्भर करता है। आमतौर पर डॉक्टर गर्भावस्था के 39वें हफ्ते के बाद ही सिजेरियन डिलीवरी करते हैं, ताकि गर्भ में बच्चा पूरी तरह से विकसित हो जाए। वहीं, अगर नॉर्मल डिलीवरी में प्रसव पीड़ा के दौरान गर्भवती और शिशु दोनों की जान को खतरा हो जाए या फिर योनी मार्ग से डिलीवरी होने में कठिनाई हो रही हो, तो भी सिजेरियन डिलीवरी का निर्णय लिया जाता है। इसके अलावा, गर्भावस्था के दौरान ही गर्भवती में विभिन्न जटिलताओं के लक्षण नजर आने पर डॉक्टर सर्जरी की सलाह देते हैं। इसके लक्षण कुछ इस प्रकार हो सकते हैं (2) (3) :
शिशु को समस्या
- शिशु के दिल की धड़कन असामान्य है।
- गर्भाशय में शिशु की मुद्रा ठीक नहीं है। अगर शिशु क्रॉसवाइज यानी टेढ़ा या फिर ब्रीच यानी पैर नीचे की तरफ हैं, तो सी-सेक्शन का सहारा लिया जाता है।
- अगर शिशु को विकास संबंधी कोई समस्या यानी हाइड्रोसेफलस या फिर स्पाइना बिफिडा (रीढ़ की हड्डी में समस्या) है, तो ऑपरेशन किया जाता है। डॉक्टर का ऐसा मानना है कि अगर कोई जन्मजात विसंगित शिशु के जीवन पर किसी तरह का असर नहीं डालती, तो नॉर्मल डिलीवरी संभव हो सकती है।
- गर्भ में दो या दो से ज्यादा शिशु होने पर भी नॉर्मल डिलीवरी संभव है, लेकिन सी-सेक्शन होने की आशंका भी बनी रहती है।
गर्भवती को समस्या
- जेनिटल हर्पीस संक्रमण होने पर ऐसा किया जाता है। अगर इस स्थिति में भी नॉर्मल डिलीवरी की जाए, तो शिशु को भी संक्रमण होने का खतरा रहता है।
- अगर गर्भाशय ग्रीवा के पास बड़ा गर्भाशय फाइब्रॉइड (गर्भाशय में जरूरत से ज्यादा सेल्स व कोशिकाओं के विकसित होने से बनने वाली गांठ) है।
- गर्भवती को एचआईवी संक्रमण होने पर सी-सेक्शन का निर्णय लिया जाता है।
- अगर पहले भी सी-सेक्शन हुआ है।
- अगर गर्भाशय का पहले भी ऑपरेशन हो चुका है।
- अगर गर्भवती को प्लेसेंटा प्रिविया की समस्या है। इस अवस्था में प्लेसेंटा (अपरा) नीचे आकर ग्रीवा को ढक लेता है, जिस कारण शिशु का बाहर निकलने का रास्ता बंद हो जाता है। वहीं, अगर प्लेसेंटा (अपरा) गर्भाशय से अलग हो जाए, तो शिशु की जान खतरे में पड़ जाती है। इस अवस्था में भी डॉक्टर ऑपरेशन करने का निर्णय लेते हैं।
कैसे की जाती है सिजेरियन डिलीवरी? | Cesarean Delivery Kaise Hoti Hai
यह प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी होती है। इस बारे में हम यहां विस्तार से बता रहे हैं (4) (5)।
सी-सेक्शन से पहले
- डॉक्टर आपको ऑपरेशन की पूरी प्रक्रिया समझाएंगे।
- डिलीवरी से करीब आठ घंटे पहले आपको कुछ भी खाने-पीने से मना किया जाएगा।
- पेट में एसिड को कम करने के लिए डॉक्टर आपको कुछ दवाइयां दे सकते हैं।
- ऑपरेशन से पहले एनीमिया जैसे कुछ जरूरी टेस्ट किए जाते हैं। साथ ही सर्जिकल प्रोफाइल के जरिए चेक किया जाता है कि महिला सर्जरी के लिए तैयार है या नहीं।
- सर्जरी से पहले आपको बेहोशी की दवा या एनेस्थीसिया दिया जाएगा। एनेस्थीसिया रीढ़ की हड्डी में दिया जाता है।
सी-सेक्शन के दौरान
- पेट में चीरा : जब शरीर का निचला हिस्सा सुन्न हो जाता है, तो डॉक्टर पेट के निचले हिस्से में चीरा लगाते हैं। यह चीरा जघन क्षेत्र (प्यूबिक हेयरलाइन) के पास लगाया जाता है। इसके अलावा, डॉक्टर नाभी के नीचे और जघन हड्डी (प्यूबिक बोन) के पास भी चीरा लगा सकते हैं। इस प्रकार डॉक्टर चीरे की मदद से टिश्यू व मांसपेशियों को खोलते हुए गर्भाशय तक पहुंचते हैं।
- गर्भाशय में चीरा : इसके बाद गर्भाशय में चीरा लगाया जाता है। आमतौर पर यह चीरा गर्भाशय के निचले हिस्से में लगाया जाता है। यहां चीरा आड़ा लगाना है या सीधा, यह शिशु की मुद्रा या फिर प्लेसेंटा प्रिविया को ध्यान में रखकर लगाया जाता है।
- डिलीवरी : इसके बाद शिशु को गर्भाशय से बाहर निकाला जाता है। डॉक्टर उसके मुंह व नाक को साफ करते हैं और गर्भनाल को काटते हैं। प्लेसेंटा (अपरा) को गर्भाशय से अलग किया जाता है और कट को टांकों के जरिए बंद किया जाता है।
सी-सेक्शन के बाद
- ऑपरेशन के बाद आपको कुछ दिनों के लिए अस्पताल में ही रखा जाता है। सर्जरी के कारण होने वाले दर्द को कम करने के लिए दवाइयां दी जाती हैं।
- जब एनेस्थीसिया का असर खत्म हो जाता है, तो कुछ समय बाद डॉक्टर आपको पीने के लिए हल्का पेय पदार्थ देते हैं और थोड़ा-सा चलने के लिए कहते हैं, ताकि कब्ज व गैस जैसी समस्या न हो। साथ ही आपके टांकों को भी चेक करेंगे कि कहीं उनमें किसी तरह का संक्रमण तो नहीं फैल रहा।
- ऑपरेशन के कुछ घंटों बाद जब आप पहले से बेहतर महसूस करने लगेंगी, तो आपको शिशु को स्तनपान कराने के लिए कहा जा सकता है। इसमें अस्पताल का नर्सिंग स्टाफ आपकी मदद करेगा। साथ ही स्तनपान को ध्यान में रखते हुए डॉक्टर आपको दर्द निवारक दवा देंगे।
- घर जाने से पहले डॉक्टर आपको कुछ जरूरी सावधानियों के बारे में बताएंगे।
आइए, अब जान लेते हैं कि क्या सिजेरियन डिलीवरी पूरी तरह से सुरक्षित है?
सिजेरियन डिलीवरी के फायदे व जोखिम
यह कहना गलत नहीं होगा कि सिजेरियन डिलीवरी के मुकाबले नॉर्मल डिलीवरी बेहतर है। डॉक्टर भी अंतिम समय तक नॉर्मल डिलीवरी के लिए ही प्रयास करते हैं। फिर भी कुछ परिस्थितियों में डॉक्टर सी-सेक्शन करने का निर्णय लेते हैं। कुछ मामलों में यह ऑपरेशन लाभदायक होता है। उस बारे में हम यहां बता रहे हैं (6)।
लाभ
- अगर मां व शिशु दोनों की जान को खतरा है, तो डॉक्टर ऑपरेशन करना उचित समझते हैं। इससे दोनों की जान बचाना आसान हो जाता है।
- नॉर्मल डिलीवरी के मुकाबले सिजेरियन से जन्म के समय शिशु को होने वाली ऑक्सीजन की कमी, कंधे में चोट या फ्रैक्चर से बचाया जा सकता है।
- महिला को पेल्विक फ्लोर डिसऑर्डर जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। इस अवस्था में पेल्विक एरिया में पाई जाने वाली मांसपेशियां व टिश्यू कमजोर हो जाते हैं या फिर टूट जाते हैं।
- बच्चे के जन्म का दिन और समय पहले से तय होता है और महिला उसी के अनुसार अपनी तैयारी कर सकती है। वहीं, अगर इमरजेंसी में सी-सेक्शन का निर्णय लिया जाता है, तो ऐसा होना असंभव है।
नोट : ध्यान रहे कि सी-सेक्शन का चुनाव आमतौर पर इमरजेंसी की स्थिति में ही किया जाता है।
जोखिम
- सी-सेक्शन के कारण महिला को कई दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ता है। चीरे के कारण असहाय दर्द का सामना करना पड़ता है और उसमें संक्रमण होने का अंदेशा रहता है।
- महिला को खून की कमी हो सकती है।
- ऑपरेशन के कारण आंत या मूत्राशय में जख्म हो सकता है या फिर खून का थक्का बन सकता है।
- महिला को स्तनपान कराने की अवस्था में आने में अधिक समय लग सकता है।
- अगली बार गर्भधारण करने पर भी सिजेरियन डिलीवरी होने का अंदेशा रहता है।
- ऑपरेशन से पैदा हुए शिशु को दमे की बीमारी हो सकती है। कुछ मामलों में शिशु मोटापे का शिकार हो सकता है । मां और शिशु का वजन ऑपरेशन के बाद ली जानी वाली डाइट पर भी निर्भर करता है। जो महिलाएं सी-सेक्शन से उबरने के बाद अपनी डाइट और एक्सरसाइज पर ध्यान नहीं देती हैं, उनका वजन बढ़ सकता है।
सी-सेक्शन के लिए अधिक वजन वाली महिलाओं को सलाह
गर्भावस्था के दौरान वजन अधिक होने पर गर्भवती महिला को कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऊपर से अगर स्थिति सिजेरियन डिलीवरी की हो, तो और समस्या उत्पन्न हो जाती है। आंकड़े बताते हैं कि अधिक वजन वाली महिलाओं में सी-सेक्शन की आशंका 40 प्रतिशत तक होती है (8)। यहां हम बता रहे हैं कि अधिक वजन वाली महिलाएं किस तरह से सिजेरियन डिलीवरी की आशंका को कम कर सकती हैं।
- अधिक वजन वाली महिलाओं को गर्भधारण करने से पहले ही अपना वजन कम करना चाहिए। इसके लिए उन्हें प्रतिदिन एक्सरसाइज करनी चाहिए और संतुलित भोजन करना चाहिए। साथ ही ब्लड शुगर, रक्तचाप और थायराइड की जांच करवा लेनी चाहिए।
- अगर अधिक वजन वाली महिलाएं गर्भधारण कर लेती हैं, तो उन्हें अपने डॉक्टर की सलाह पर जरूरी एक्सरसाइज और पौष्टिक भोजन का सेवन करना चाहिए।
- कई वैज्ञानिक शोधों में इस बात की पुष्टि की गई है कि अधिक वजन वाली महिलाओं में शिशु की मुद्रा बदलने की आशंका ज्यादा रहती है। इससे डिलीवरी के समय सिजेरियन की नौबत आ जाती है। इससे बचने के लिए काइरोप्रैक्टिक उपचार का सहारा लिया जा सकता है।
- अधिक वजन वाली महिलाओं की सर्जरी के साथ कई जोखिम भी जुड़े होते हैं। साथ ही उनकी सर्जरी करना भी मुश्किल भरा होता है।
सी-सेक्शन से पहले की तैयारी
डिलीवरी चाहे सिजेरियन हो या फिर नॉर्मल, दोनों ही स्थिति के लिए अस्पताल जाने से पहले बैग तैयार करना जरूरी होता है। इस बैग में आप अपने व अपने शिशु के लिए जरूरी सामान रखें। ध्यान रहे कि बैग ज्यादा भारी न हो। बैग तैयार करने से पहले एक बार अस्पताल में संपर्क कर लें कि वहां क्या-क्या सामान मिलेगा, ताकि अतिरिक्त भार से बचा जा सके। डिलीवरी के बाद आप इस स्थिति में नहीं होंगे कि किसी को बता सकें कि कौन सा सामान कहां रखा हुआ है, इसलिए अपना व शिशु का सामान अलग-अलग रखें, ताकि आपके परिवार के सदस्यों को ढूंढने में समस्या न हो। यहां हम कुछ ऐसी जरूरी चीजें बता रहे हैं, जिन्हें सिजेरियन डिलीवरी से पहले बैग में रखना जरूरी है।
- कपड़े : सर्जरी के कारण तीन-चार दिन तक अस्पताल में रुकना होता है, इसलिए उस हिसाब से कपड़े रखें। कपड़े हल्के, ढीले-ढाले व आरामदायक होने चाहिए। सर्जरी के कारण पेट के निचले हिस्से में टांके लगते हैं, जिस कारण कपड़े ढीले-ढाले होने चाहिए, ताकि वो टांकों के साथ न लगें। ध्यान रहे कि कपड़े नायलॉन व लैस वाले न हों।
- अंतर्वस्त्र : अंतर्वस्त्र भी आरामदायक व लचीले होने चाहिए, ताकि इन्हें पहनने से आपको किसी तरह की परेशानी महसूस न हो और टांकों से रगड़ न खाएं। साथ ही मैटरनिटी गाउन को रखना न भूलें।
- अन्य सामान : तौलिया, साबुन, शैंपू, कंडीशनर, फैस वॉश, टूथब्रश, टूथपेस्ट, मॉइस्चराइजर, बॉडी लोशन आदि।
- सैनिटरी हाइजेन : कई बार अधिक रक्तस्राव हो सकता है, इसलिए मैटरनिटी पैड रखना समझदारी होगी।
- एब्डोमिनल कम्प्रेशन बाइंडर : सर्जरी के बाद इसकी भी जरूरत होती है, ताकि पेट पर लगे चीरे से राहत मिल सके। साथ ही आपको उठने, बैठने या फिर चलने-फिरने में कोई दिक्कत न हो।
- स्तनपान के लिए सामान : सर्जरी के बाद हो सकता है कि ब्रेस्ट पंप की जरूरत पड़े। हालांकि, कुछ अस्पताल यह देते हैं, इसलिए एक बार अपने अस्पताल से इस बारे में पूछ लें।
- आरामदायक चप्पल : सर्जरी के कुछ समय बाद आपको चलने के लिए कहा जा सकता है। उस समय आरामदायक चप्पल का होना जरूरी है।
- मेडिकल रेकॉर्ड : बैग में अपनी सभी मेडिकल रिपोर्ट व इंश्योरेंस से जुड़े कागजों को रखना न भूलें।
- गर्म कपड़े : किसी भी तरह की असुविधा से बचने के लिए आप कंबल या फिर शॉल भी साथ रख सकते हैं।
इनके अलावा, अगर आपको जरूरत लगे तो अपनी पसंदीदा मैगजीन या फिर किताब को भी बैग में रख सकते हैं, ताकि खाली समय में उसे पढ़ सकें। साथ ही नवजात के लिए कई जोड़ी कपड़े, जुराबें, डाइपर, कंबल, बेबी साबुन व पाउडर आदि बैग में जरूर रखें। हमारी यह चेकलिस्ट आपकी बैग पैक करने में मदद करेगी। इसे आप प्रिंट करके अपने पास रख सकते हैं।
सिजेरियन डिलीवरी से रिकवरी
सी-सेक्शन को महिलाओं पर होने वाली सबसे बड़ी सर्जरी माना गया है। हालांकि, यह आम सर्जरी होती है, लेकिन किसी भी महिला को इससे उबरने में काफी समय लगता है। इस दौरान उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस बारे में हम यहां विस्तार से बता रहे हैं।
- सी-सेक्शन के बाद रक्तस्राव : सर्जरी के बाद रक्तस्राव होना आम बात है। यह गर्भावस्था के दौरान होने वाली ब्लीडिंग से अधिक हो सकता है। यह रक्तस्राव रुक-रुक कर हो सकता है। जब तक यह ब्लीडिंग लंबे समय तक और गंभीर न हो, तब तक चिंता करने की जरूरत नहीं है (9)। सर्जरी के बाद होने वाले रक्तस्राव से इस प्रकार निपटा जा सकता है।
- करीब छह हफ्ते तक टैम्पोन का प्रयोग न करें।
- आप जितनी बार भी शौचालय जाएं, मैटरनिटी पैड को जरूर बदलें।
- पैड को बदलने से पहले और बाद में हाथों को अच्छी तरह धोएं।
- जितना हो सके उतना आराम करें।
- कोई भी भारी सामान उठाने से बचें और किसी भी तरह के शारीरिक श्रम से बचने का प्रयास करें, वरना रक्त का प्रवाह तेज हो सकता है।
- भावनात्मक रूप से उबरना : सी-सेक्शन के कारण महिला को अत्यधिक दर्द का सामना करना पड़ता है और साफ-सफाई का ध्यान न देने पर घाव में संक्रमण भी हो सकता है। विभिन्न समस्याओं के कारण महिला मानसिक तौर पर कमजोर हो जाती है। इसलिए, परिवार के सभी सदस्यों को चाहिए कि वो भावनात्मक रूप से उसका साथ दें और उसे विश्वास दिलाएं कि वह जल्द से जल्द ठीक हो जाएगी।
- सी-सेक्शन के बाद शारीरिक तौर पर कैसा महसूस होगा? : सिजेरियन डिलीवरी के बाद महिला को कई दिनों तक दर्द रहता है। शरीर में थकावट महसूस होती है। ऐसा लगता है कि खुद से कुछ भी करने की हिम्मत नहीं रही है। हंसते, बोलते या खांसते हुए घावों पर दर्द हो सकता है। सर्जरी के बाद पहली बार मल त्याग करने में दिक्कत हो सकती है। उससे निपटने के लिए डॉक्टर आपको लैक्सटिव (पेट साफ करने की दवा) दे सकते हैं। बेशक, यह समय पीड़ादायक होता है, लेकिन संयम बरतने और अपना पूरा ख्याल रखने पर इस स्थिति से जल्द उबरा जा सकता है।
- सी-सेक्शन के बाद कितना आराम जरूरी है? : ऑपरेशन के बाद पूरी तरह से ठीक होने में करीब छह हफ्ते लग सकते हैं। इस दौरान जितना हो सके आराम करें और बीच-बीच में थोड़ा टहलते भी रहें। साथ ही डॉक्टर की कही बातों का पालन करें।
- सी-सेक्शन के बाद पहली बार मासिक धर्म : यह इस पर निर्भर करता है कि आप कब तक स्तनपान कराती हैं और कितनी जल्दी हार्मोंस सामान्य होते हैं। अगर आप स्तनपान कराती रहती हैं, तो प्रोलैक्टिन का स्तर अधिक रहता है, जिस कारण करीब छह महीने तक ओव्यूलेशन प्रक्रिया शुरू होने की संभावना कम होती है। वहीं, अगर स्तनपान नहीं कराती हैं, तो सी-सेक्शन के छह-आठ हफ्ते बाद मासिक धर्म शुरू हो सकते हैं (10)।
- सी-सेक्शन के बाद स्तनपान : अगर आपकी डिलीवरी सिजेरियन होती है, तो भी आप अपने शिशु को स्तनपान करा सकती हैं। हालांकि, शुरुआत में आपको कुछ तकलीफ या फिर दर्द हो सकता है, लेकिन उस समय आप नर्स या फिर परिवार के किसी सदस्य की मदद ले सकती हैं। साथ ही अलग-अलग अवस्था में स्तनपान कराएं, ताकि पता चल सके कि आप किस मुद्रा में आराम महसूस कर रही हैं।
- सिजेरियन डिलीवरी के बाद खानपान : आप घर का बना ताजा और हल्का भोजन करें। इस दौरान कब्ज व गैस की समस्या हो सकती है, इसलिए फाइबर युक्त भोजन करें। साथ ही ऐसे खाद्य पदार्थ को अपनी डाइट में शामिल करें, जिससे स्तनों में दूध सही प्रकार से बन सके। आप अपने खाद्य पदार्थ में अंडा, दूध, फल, अखरोट, दही, हरी पत्तेदार सब्जियां व मछली आदि को शामिल कर सकती हैं।
- ऑपरेशन के बाद कब और कैसे व्यायाम करें : ऑपरेशन के बाद कम से कम छह-आठ हफ्ते तक आराम करने की सलाह दी जाती है। जब आपको लगे कि घाव भर चुके हैं और टांके पूरी तरह से घुल चुके हैं, तो फिर आप व्यायाम या फिर योग शुरू कर सकती हैं। शुरुआत प्राणायम से करें, इसके बाद हल्के-हल्के व्यायाम और योग करें (11)। यहां हम आपको कुछ व्यायाम व योग के बारे में बता रहे हैं, जो आपको बेहतर सेहत प्राप्त करने में मदद करेंगे।
- पेट के लिए अग्निसार, पेल्विक के लिए कंधरासन और पेट की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए भुजंगासन करें।
- कमर, रीढ़ की हड्डी व मांसपेशियों को मजबूत व लचीला बनाने के लिए अधोमुख शवासन करें।
- अगर आप पूरे शरीर को लचीला बनाना चाहते हैं, शरीर में रक्त का प्रवाह बेहतर करना चाहते और पोस्चर को सही करना चाहते हैं, तो ताड़ासन करें।
- पेल्विक एरिया को बेहतर करने के लिए वृक्षासन किया जा सकता है।
- अगर आप ऊपर बताए गए सभी आसन करने में सक्षम हो गए हैं, तो सूर्य नमस्कार का अभ्यास शुरू कर सकते हैं। यह संपूर्ण शरीर के लिए बेहतर है। इसे करने से शरीर में ऊर्जा आती है और सभी अंग अच्छी तरह काम कर पाते हैं।
- इनके अलावा, कुछ कार्डियो एक्सरसाइज भी कर सकते हैं।
नोट : इन सभी व्यायाम को डॉक्टर की सलाह के बाद और किसी प्रशिक्षित ट्रेनर की देखरेख में ही करें।
- सी-सेक्शन के बाद गर्भावस्था : सी-सेक्शन के बाद फिर से गर्भधारण के लिए सामान्य रूप से छह महीने तक इंतजार करने के लिए कहा जाता है। वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद अगले गर्भधारण के लिए कम से कम 24 महीने का इंतजार करना चाहिए। अगर ऐसा न किया जाए, तो मां व शिशु दोनों को कई तरह की गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है (12)। वैज्ञानिक शोध में इस बात की पुष्टि भी हुई है कि अगर सी-सेक्शन के बाद छह महीने के अंदर फिर से गर्भधारण किया जाए, तो आपको यूटरिन रप्चर (गर्भाशय का टूटना) जैसी समस्या हो सकती है (13)।
होने वाले पिता के लिए टिप्स
- यह महिलाओं की होने वाली सबसे बड़ी सर्जरी होती है। इसलिए, होने वाले पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वह गर्भवती को भावनात्मक रूप से सहयोग करे।
- सर्जरी के बाद शरीर इस हालत में नहीं होता कि महिला कुछ काम कर सके, तो पिता को चाहिए कि वह घर के कामों में हाथ बंटाए।
- मां को पर्याप्त आराम की जरूरत होती है, इसलिए पिता को समय निकालकर शिशु का ध्यान रखना चाहिए।
- मां के खान-पान पर ध्यान दें।
- कई बार मां को स्तनपान कराने में दिक्कत आ सकती है, इसलिए पिता को चाहिए कि वह उनकी मदद करे।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
सिजेरियन डिलीवरी में कितने टांके आते हैं?
आमतौर पर सी-सेक्शन में 11 से 12 टांके आते हैं। टांकों की संख्या इस बात पर भी निर्भर करती है कि होने वाले शिशु का स्वास्थ्य कैसा है। साथ ही डॉक्टर पेट पर कितना बड़ा चीरा लगाते हैं।
क्या सिजेरियन डिलीवरी दर्द रहित है?
बेशक, ऑपरेशन के समय गर्भवती को एनेस्थीसिया या फिर बेहोशी की दवा दी जाती है, जिस कारण चीरे आदि का अहसास नहीं होता। वहीं, डिलीवरी के बाद जब एनेस्थीसिया का असर कम होने लगता है, तो टांकों का अहसास होता है। इस कारण से कई दिनों तक दर्द का अहसास हो सकता है, जिसके लिए डॉक्टर दर्द निवारक दवा दे सकते हैं।
क्या सी-सेक्शन के बाद स्नान कर सकते हैं?
सी-सेक्शन के करीब 20-24 घंटे बाद डॉक्टर नहाने के लिए कह सकते हैं। इस दौरान घावों को न रगड़ें, बल्कि पानी को उसके ऊपर से जाने दें। अगर डॉक्टर कहें, तो घर जाने के बाद बैंडेज के साथ भी नहा सकते हैं और बाद में उसे सुखा सकते हैं। (14)।
क्या सी-सेक्शन के बाद जिम जाना सुरक्षित है?
नहीं, सी-सेक्शन के बाद महिला को कम से कम छह से आठ हफ्ते तक आराम करना चाहिए। इस दौरान कोई भारी वजन उठाने या अधिक परिश्रम करने से घावों पर असर पड़ सकता है। छह से आठ हफ्ते के बाद भी प्राणायाम व हल्के व्यायाम से शुरुआत करनी चाहिए। साथ ही हल्की-फुल्की वॉक भी करनी चाहिए।
क्या मैं सी-सेक्शन के साथ प्रसव वेदना के संकेत महसूस कर सकती हूं?
यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। अगर सी-सेक्शन पहले से निर्धारित है, तो तय समय पर ऑपरेशन कर डिलीवरी की जाती है। इसमें किसी भी तरह की प्रसव वेदना का अहसास नहीं होता है। वहीं, अधिकतर मामलों में डॉक्टर अंतिम समय तक नॉर्मल डिलीवरी का प्रयास करते हैं। इस दौरान गर्भवती को लेबर पैन होता है। अगर उस समय मां-शिशु की जान खतरे में होती है, तो डॉक्टर सिजेरियन डिलीवरी करने का निर्णय लेते हैं।
यह तो स्पष्ट हो गया है कि गर्भवती महिला के लिए सी-सेक्शन का निर्णय विषम परिस्थितियों में लिया जाता है। हालांकि, इसके प्रभाव से उबरने में समय जरूर लगता है, लेकिन मुश्किल नहीं है। अगर महिला व उसके परिवार के सदस्य संयम बरतें, तो इस स्थिति का आसानी से सामना किया जा सकता है। हम उम्मीद करते हैं कि इस लेख में आपको सी-सेक्शन से जुड़ी हर प्रकार की जानकारी मिल गई होगी। गर्भावस्था से जुड़ी ऐसी ही और जानकारी के लिए आप पढ़ते रहें मॉमजंक्शन।
References
1. What is a C-section? By National Institute of Child Health and Human Development
2. Indications for and Risks of Elective Cesarean Section By NCBI
3. C-section By MedLinePlus
4. New Technique For Caesarean Section By NCBI
5. Cesarean Section By URMC
6. Having a C-Section: What to Expect? By UMICH
7. Children born by C-section have higher risk of obesity later in life By Researchgate
8. Association between cesarean delivery rate and body mass index By NCBI
9. Cesarean Section By Uc Scan Diego Health
10. Your Body After Baby: The First 6 Weeks By Marchofdimes
11. Pregnancy And Postpartum: A Guide For Singers By Arizona State University
12. Report Of A Who Technical Consultation On Birth Spacing By Who
13. Short interpregnancy interval: risk of uterine rupture and complications of vaginal birth after cesarean delivery By NCBI
14. Going home after a C-section By MedLinePlusNew Technique for Caesarean Section
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