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गर्भावस्था के दौरान मां और बच्चे के बेहतर भविष्य और स्वास्थ्य को देखते हुए कई प्रकार के मेडिकल टेस्ट कराए जाते हैं। इन मेडिकल टेस्ट को दो वर्गों में बांटा जाता है। पहले वर्ग में वो सभी टेस्ट आते हैं, जो मां और बच्चे की सेहत के लिहाज से बेहद जरूरी माने गए हैं। इस प्रकार के सभी टेस्ट गर्भावस्था के दौरान होने वाली नियमित जांच का हिस्सा मात्र होते हैं।

वहीं, दूसरे वर्ग में उन टेस्ट को शामिल किया गया है, जिन्हें डॉक्टर भविष्य में आने वाली किसी परेशानी की आशंका के मद्देनजर कराने की सलाह देते हैं। डबल मार्कर टेस्ट भी ऐसा ही परीक्षण है। किसी गंभीर समस्या का अंदेशा होने पर ही डॉक्टर इस टेस्ट को कराने की सलाह देते हैं। मॉमजंक्शन के इस लेख के माध्यम से हम डबल मार्कर टेस्ट से संबंधित सभी खास जानकारियों के बारे में जानने की कोशिश करेंगे।

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि डबल मार्कर टेस्ट होता क्या है।

डबल मार्कर टेस्ट क्या है?

डबल मार्कर टेस्ट की बात करें, तो यह गर्भधारण की पहली तिमाही पर किया जाने वाला रक्त परीक्षण है। आमतौर पर इसे गर्भधारण के 10वें और 13वें सप्ताह के बीच किया जाता है। इसमें एनोप्लॉयडी (गुणसूत्र की असामान्य मात्रा) गर्भावस्था का पता लगाया जाता है। खास यह है कि डबल मार्कर टेस्ट नॉन-इनवेसिव स्क्रीनिंग (बिना किसी कट मार्क के किया जाने वाला परीक्षण) है। इस टेस्ट के जरिए डाउनग्रेड सिंड्रोम (ट्राइसोमी 21), एडवर्ड सिंड्रोम (ट्राइसोमी 18) और पटाउ सिंड्रोम (ट्राइसोमी 13) जैसे क्रोमोसोम (गुणसूत्र) का पता लगाया जाता है (1) क्रोमोसोम में किसी प्रकार की कमी होने पर भ्रूण के विकास में बाधा आ सकती है या फिर जन्म के बाद भविष्य में शिशु को किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या का सामना करना पड़ सकता है। कई जीन के समावेश को क्रोमोसोम यानी गुणसूत्र बोला जाता है।

आगे लेख में हम यह जानेंगे कि किन स्थितियों में डबल मार्कर टेस्ट की आवश्यकता पड़ती है और इसे क्यों किया जाता है।

डबल मार्कर टेस्ट क्यों किया जाता है?

जिन गर्भवती महिलाओं को विशेष प्रकार के गंभीर जोखिम की श्रेणी में शामिल किया जाता है, उन्हें डबल मार्कर टेस्ट कराने की आवश्यकता होती है। उनके इन गंभीर जोखिमों को देखते हुए ही चिकित्सक उन्हें डबल मार्कर टेस्ट कराने की सलाह देते हैं। आइए, एक नजर डालते हैं उन जोखिमों पर जिनके कारण गर्भवती महिला को डबल मार्कर टेस्ट कराना जरूरी हो जाता है (1)

  • अगर महिला की उम्र अगर 35 साल से ऊपर हो।
  • पिछला बच्चा गुणसूत्र असमान्यता के साथ पैदा हुआ हो।
  • परिवार में कोई विशेष आनुवंशिक समस्या लगातार चली आ रही हो।
  • आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) विधि से गर्भधारण किया गया हो।
  • महिला टाइप-1 डायबिटीज की शिकार हो और इंसुलिन पर निर्भर रहती हो।

आगे लेख में हम जानने की कोशिश करेंगे कि डबल मार्कर टेस्ट के लिए किसी खास तैयारी की आवश्यकता है या नहीं।

क्या डबल मार्कर टेस्ट के लिए तैयारी करने की जरूरत है?

डबल मार्कर टेस्ट से पहले किसी खास तैयारी की आवश्यकता नहीं है। कारण यह है कि यह एक साधारण-सा रक्त परीक्षण है, जो अल्ट्रासाउंड के साथ किया जाता है। हां, यह जरूर है कि अपनी किसी भी मेडिकल हिस्ट्री को डॉक्टर से न छिपाएं। साथ ही अगर इस दौरान आप कुछ दवाओं का सेवन कर रही हैं, तो उस बारे में भी अपने डॉक्टर को जरूर बताएं। हो सकता है कि आपकी ये दवाएं टेस्ट होने तक बंद करनी पड़ें (1) (2)

आगे लेख में हम डबल मार्कर टेस्ट को करने के तरीके के बारे में विस्तार से जानेंगे।

डबल मार्कर परीक्षण कैसे किया जाता है? | Double Marker Test Kaise Hota Hai

डबल मार्कर टेस्ट मुख्य रूप से न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन यानी एनटी पर आधारित होता है। शिशु के सिर के पीछे गर्दन के नीचे वाले एरिया में एक तरल पदार्थ होता है, जिसे न्यूकल ट्रांसलुसेंसी कहा जाता है। न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन के दौरान इस तरल पदार्थ की मोटाई को चेक करके डाउन सिंड्रोम का पता लगाया जाता है। डाउन सिंड्रोम की आशंका पाए जाने पर डॉक्टर डबल मार्कर टेस्ट कराने की सलाह देते हैं।

सीधे तौर पर कहा जाए, तो यह एक ऐसा ब्लड टेस्ट है, जिसे गर्भावस्था के दौरान होने वाले अल्ट्रासाउंड के साथ किया जाता है। इस टेस्ट की सहायता से चिकित्सक गर्भवती महिला के खून की जांच करके उसमें उपस्थित हार्मोन और प्रोटीन की जांच करते हैं। बता दें कि इस जांच में जिस हार्मोन की जांच की जाती है, उसे फ्री बीटा एचसीजी (ह्यूमन क्रियोनिक गोनडोट्रोफिन) के नाम से संबोधित किया जाता है। वहीं, जांच में शामिल किए जाने वाले प्रोटीन की बात की जाए, तो इस टेस्ट के दौरान ग्लाइकोप्रोटीन (एक प्रकार का प्रोटीन) और पीएपीपी-ए (प्रेगनेंसी एसोसिएटेड प्लाज्मा प्रोटीन) का परीक्षण किया जाता है (1)

अब हम बात करते हैं डबल मार्कर टेस्ट की सामान्य वैल्यू के बारे में, जिससे पता चलता है कि गर्भवती महिला को कोई खतरा तो नहीं हैं।

डबल मार्कर टेस्ट की सामान्य वैल्यू

डबल मार्कर टेस्ट की सामान्य वैल्यू की बात करें, तो जांच के परिणामों में फ्री बीटा एचसीजी की औसत मात्रा पहली तिमाही यानी 9 से 12 हफ्तों के बीच 59,109 से 201,165 mIU/mL (milli-international units per milliliter) होनी चाहिए (3) वहीं PAPP-A की मात्रा 1 MoM (मल्टीपल ऑफ मीडियन) होनी चाहिए (4)

डबल मार्कर टेस्ट की सामान्य वैल्यू के बाद हम जानेंगे कि इस टेस्ट के आने वाले अलग-अलग परिणामों का मतलब क्या होता है।

डबल मार्कर टेस्ट के परिणाम का क्या मतलब होता है?

डबल मार्कर टेस्ट के परिणाम भविष्य में होने वाले डाउन सिंड्रोम से संबंधित गंभीर जोखिमों को दर्शाते हैं। इन्हें कुछ इस तरह से समझा जा सकता है, उदाहरण के तौर पर अगर की गई जांच में फ्री बीटा एचसीजी की मात्रा सामान्य सीमा से अधिक पाई जाती है, तो इसे पॉजिटिव मार्कर माना जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि गर्भवती में डाउन सिंड्रोम होने की आशंका अधिक हैं। वहीं, दूसरी स्थिति में पीएपीपी-ए की मात्रा सामान्य से कम मापी जाती है, तो यह स्थिति भी डाउन सिंड्रोम के लिए पॉजिटिव परिणाम के तौर पर देखी जाती है (5)

इन टेस्ट के रिजल्ट रेशियो फॉर्म में आते हैं। अगर रेशियो 1:10 से 1:250 तक है, तो इसका मतलब स्क्रीन पॉजिटिव से है। वहीं अगर रेशियो 1:1000 है, तो मतलब स्क्रीन नेगेटिव से है। स्क्रीन नेगेटिव को कम खतरे का निशाना माना जाता है। अब इस रेशियो को आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं। 1:10 रेशियो का मतलब है कि 10 गर्भावस्था के बाद 1 शिशु को यह डिसऑर्डर हो सकता है। इसी तरह 1:1000 रेशियो का मलतब 1000 गर्भावस्था के बाद 1 शिशु में डिसऑर्डर पाया जा सकता है।

इन दोनों ही स्थितियों में सकारात्मक परिणाम मिलने के बाद चिकित्सक आगे के टेस्ट कराने की सलाह देते हैं। डाउन सिंड्रोम के खतरे की पुष्टि करने के लिए ये टेस्ट जरूरी होते हैं, जैसे :- एमनियोसेंटेसिस और कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (सीवीएस) और एम्नियोटिक द्रव में मौजूद भ्रूण कोशिकाओं का परीक्षण (6)

अब हम बात करेंगे डबल मार्कर परीक्षण के लाभ के बारे में।

डबल मार्कर परीक्षण के लाभ

डबल मार्कर टेस्ट के कई लाभ हैं, जिन्हें हम कुछ बिंदुओं के माध्यम से यहां समझाने की कोशिश कर रहे हैं (1) (7)

  • अगर भ्रूण में क्रोमोसोम की मात्रा असामान्य पाई जाती है, तो भविष्य में उसके उपचार व अन्य परीक्षण करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।
  • डबल मार्कर टेस्ट के परिणाम आमतौर पर सटीक रहते हैं।
  • अगर परिणाम भविष्य में जटिलताओं के बढ़ने की ओर इशारा करते हैं, तो डॉक्टर बिना किसी जोखिम के समय रहते प्रेग्नेंसी को खत्म करने का निर्णय ले सकते हैं।

आगे लेख में हम डबल मार्कर टेस्ट से होने वाले नुकसान के बारे में जानेंगे।

डबल मार्कर परीक्षण के नुकसान

डबल मार्कर टेस्ट से होने वाले नुकसान की बात की जाए, तो फिलहाल इस संबंध में कोई खास जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। डॉक्टर इस टेस्ट को कराने की सलाह तभी देते हैं, जब वो इसकी जरूरत समझते हैं। इसके बावजूद, हर चीज में कुछ न कुछ खामियां पाई जाती हैं, तो ऐसा इस टेस्ट के साथ भी है।

  • मुख्य रूप से इस टेस्ट में होने वाले नुकसान टेस्ट करने वाले के कौशल और मशीन की क्वालिटी पर निर्भर कर सकते हैं।
  • चूंकि, यह टेस्ट हर अस्पताल या शहर में नहीं हो सकता, इसलिए आपको इसके लिए दूसरे शहर की यात्रा करनी पड़ सकती है।
  • यह एक महंगा टेस्ट है, इस कारण सभी के लिए इसके खर्च को उठा पाना मुश्किल है।

नोट- ध्यान देने वाली बात यह है कि डबल मार्कर परीक्षण केवल एक स्क्रीनिंग टेस्ट मात्र है। इसके परिणाम संभावनाओं पर आधारित होते हैं। यह महज आनुवंशिक विकार के जोखिम को दर्शाता है। इसका निदान करना मुश्किल है।

अब बात करते हैं डबल मार्कर परीक्षण पर होने वाले खर्चे के बारे में।

डबल मार्कर परीक्षण की लागत क्या है?

डबल मार्कर टेस्ट पर आने वाली लागत की बात करें, तो औसतन रूप से इस जांच पर करीब 4 से 15 हजार तक का खर्चा आ सकता है। यह जांच हर शहर में उपलब्ध नहीं है, इसलिए आपको जांच कराने के लिए दूसरे शहर जाना पड़ सकता है। इसलिए, जगह और अस्पताल के आधार पर इस जांच पर आने वाले खर्च में बदलाव हो सकता है (8)

उम्मीद है कि आपको लेख के माध्यम से डबल मार्कर टेस्ट से होने वाले लाभ, नुकसान व जटिलताओं के बारे में काफी जानकारी मिल गई होगी। ऐसे में अगर आपके डॉक्टर ने भी इस टेस्ट को कराने की सलाह दी है या आप इस टेस्ट को कराने की सोच रही हैं, तो टेस्ट कराने से पहले इस लेख को एक बार अच्छी तरह पढ़ जरूर लें। उम्मीद है कि लेख में दी गई जानकारी आपके स्वस्थ प्रसव के लिए काफी मददगार साबित होगी।

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