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गर्भावस्था ऐसा समय है, जिसमें हर कदम पर एहतियात बरतना बहुत जरूरी होता है। इस अवस्था में न सिर्फ गर्भवती को अपने ऊपर, बल्कि गर्भस्थ शिशु पर भी पूरा ध्यान देना चाहिए। इसलिए, समय-समय पर गर्भवती को कुछ जरूरी टेस्ट करवाने चाहिए, ताकि जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ्य रहें, लेकिन कुछ महिलाएं जानकारी के अभाव में ये टेस्ट नहीं करवाती हैं। इस कारण उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। मॉमजंक्शन के आर्टिकल में हम बता रहे हैं कि गर्भावस्था के दौरान नियमित तौर पर कौन-कौन से टेस्ट करवाने चाहिए।
सबसे पहले हम बता रहे कि गर्भवती होते ही चिकित्सक के पास कब जाना चाहिए।
प्रेगनेंसी के कितने दिन बाद डॉक्टर को दिखाना चाहिए?
गर्भवती होने का सबसे पहला संकेत शारीरिक संबंध के बाद पीरियड्स का न आना हो सकता है। अगर किसी महिला को ऐसा महसूस हो, तो घर में प्रेगनेंसी टेस्ट किट से इस बात की पुष्टि करनी चाहिए। साथ ही डॉक्टर के पास चेकअप के लिए जाना चाहिए, लेकिन भारत में कई महिलाएं शर्म के कारण डॉक्टर के पास नहीं जाती। वहीं, कुछ महिलाएं तब तक नहीं जातीं, जब तक कि कोई गंभीर शारीरिक समस्या न हो जाए। घर में टेस्ट का परिणाम सकारात्मक आने के बाद भी डॉक्टर फिर से टेस्ट की सलाह देते हैं, क्योंकि कई बार घर में किए टेस्ट की रिपोर्ट गलत भी हो सकती है। डॉक्टर निम्न प्रकार से प्रेगनेंसी की पुष्टि कर सकते हैं (1) (2):
- इस दौरान डॉक्टर यूरिन या खून का टेस्ट करते हैं। इन टेस्ट के द्वारा डॉक्टर ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी) नामक हार्मोन की मौजूदगी और उसके स्तर का पता लगाते हैं। एचसीजी हार्मोन आमतौर पर गर्भवती होने के बाद ही शरीर में बनता है।
- यूरिन में प्रोटीन, शुगर और किसी भी प्रकार के संक्रमण का भी परीक्षण किया जाता है।
- जब गर्भावस्था की पुष्टि हो जाती है, तब नियत तारीख की गणना अंतिम मासिक धर्म चक्र की तारीख के आधार पर की जाती है।
- जरूरत होने पर डॉक्टर अल्ट्रासाउंड भी कर सकते हैं। अल्ट्रासाउंड से गर्भावस्था व अन्य समस्याओं का पता लगाया जा सकता है (3)।
- गर्भावस्था की पुष्टि हो जाने पर डॉक्टर कई प्रकार की सावधानियां बरतने को कहते हैं। साथ ही इस बात की सलाह भी देते हैं कि प्रेगनेंसी में क्या खाएं और क्या नहीं, ताकि गर्भवती और भ्रूण स्वस्थ रहें।
आगे हम गर्भावस्था के दौरान नियमित तौर पर किए जाने वाले टेस्ट के बारे में जानेंगे।
प्रेगनेंसी के दौरान नियमित तौर पर कौन-कौन से टेस्ट होते हैं? | Pregnancy Me Konse Test Hote Hai
गर्भावस्था के दौरान प्रत्येक तिमाही में कुछ जरूरी और नियमित टेस्ट किए जाते हैं, जिन्हें प्रीनेटल टेस्ट यानी प्रसव पूर्व परीक्षण कहते हैं। इसके तहत कई तरह के टेस्ट होते हैं, जो ज्यादातर पहली और दूसरी तिमाही में किए जाते हैं। ये टेस्ट मुख्य रूप से भ्रूण का विकास और स्वास्थ्य चेक करने के लिए किए जाते हैं। इनके जरिए किसी भी तरह के जोखिम का अनुमान लगाया जा सकता है। इन जोखिम की पुष्टि होने पर आगे कुछ और टेस्ट किए जाते हैं। मूल रूप से प्रीनेटल टेस्ट दो तरह के होते हैं, जो इस प्रकार हैं (4):
स्क्रीनिंग टेस्ट : इस प्रकार के टेस्ट पहली और दूसरी तिमाही में किए जाते हैं। पहली तिमाही में अल्ट्रासाउंड किया जाता है। साथ ही कुछ ब्लड टेस्ट भी होते हैं। वहीं, दूसरी तिमाही में यह गर्भवती की स्थिति पर निर्भर करता है कि उसका सिर्फ ब्लड टेस्ट ही किया जाना है या फिर स्क्रीनिंग टेस्ट भी होगा। इसका निर्णय डॉक्टर ही लेते हैं। इन टेस्ट के जरिए क्रोमोसोम के स्तर का पता लगाया जाता है। क्रोमोसोम में असामानता नजर आने पर डॉक्टर अन्य टेस्ट के लिए बोल सकते हैं। यहां हम बता दें कि विभिन्न प्रकार के जीन के समुह को क्रोमोसोम बोला जाता है।
डायग्नोस्टिक टेस्ट : वैज्ञानिक शोध पर भरोस करें, तो ऐसा माना जाता है कि डायग्नोस्टिक टेस्ट के परिणाम 99.9 प्रतिशत तक सही होती हैं। इनके जरिए पता लग सकता है कि भ्रूण में क्रोमोसोम से संबंधित को विकार है या नहीं। ये टेस्ट दो तरह के होते हैं। पहला कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (सीवीएस) और दूसरा एमनियोसेंटेसिस है।
आइए, अब गर्भावस्था की पहली तिमाही में होने वाले टेस्ट के बारे में जानते हैं।
गर्भावस्था की पहली तिमाही में कौन से टेस्ट होते हैं?
गर्भावस्था की पहली तिमाही भ्रूण के लिए सबसे अहम होती है। डॉक्टर इस दौरान कई प्रकार के परहेज के साथ ही लंबी यात्रा न करने की सलाह देते हैं। इस दौरान गर्भवती महिला के कुछ टेस्ट किए जाते हैं। अगर इन टेस्ट में किसी प्रकार की समस्या या बीमारी की आशंका होती है, तो फिर अन्य टेस्ट किए जाते हैं। यहां हम बता रहे हैं कि पहली तिमाही में कौन-कौन से टेस्ट होते हैं:
- अल्ट्रासाउंड : गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में अल्ट्रासाउंड और विस्तार से किया जाता है। इसे शिशु की शरीरिक रचना का संपूर्ण सर्वेक्षण कहा जाता है। इसमें शिशु के सिर से लेकर पैर तक को चेक किया जाता है। इस अल्ट्रासाउंड में शिशु के विकसित हो चुकी आंखें, हाथ-पैर की उंगलियों आदि को देखा जा सकता है। साथ ही अगर कोई समस्या है, तो उसे भी चेक किया जा सकता है (9)।
- एमनियोसेंटेसिस परीक्षण: एमनियोसेंटेसिस एक प्रकार की डायग्नोस्टिक परीक्षण है। इस परीक्षण में डॉक्टर एमनियोटिक द्रव का एक छोटा-सा नमूना लेते हैं। एमनियोटिक तरल पदार्थ से भरी एक थैली होती है, जिसमें शिशु सुरक्षित रहता है। यह परीक्षण गुणसूत्र समस्याओं का निदान करने और तंत्रिका ट्यूब दोष (NTDs) पता लगाने के लिए किया जाता है। इसके तहत प्रोटीन स्क्रीनिंग टेस्ट भी किया जाता है, जिसके बारे में नीचे बताया गया है (10):
- प्लाज्मा प्रोटीन की स्क्रीनिंग (PAPP-A) : यह एक प्रकार का प्रोटीन ही होता है, जिसका निर्माण गर्भावस्था के शुरुआत में प्लेसेंटा द्वारा होता है। इसमें किसी भी तरह की असमानता क्रोमोसोम से जुड़ी समस्या की ओर इशारा करती है। यह टेस्ट 8 से 14 सप्ताह के बीच में किया जाता है।
- ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन परीक्षण (hCG) : यह गर्भावस्था के शुरुआत में प्लेसेंटा के द्वारा बनाया गया एक प्रकार का हार्मोन है। इस हार्मोन का असामान्य स्तर क्रोमोसोम जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है।
- कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (सीवीएस): यह टेस्ट भ्रूण में किसी प्रकार के बर्थ डिफेक्ट, आनुवंशिक विकार व गर्भावस्था में किसी प्रकार की समस्या का पता लगाने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट के तहत कोरियोनिक विली के कुछ सैंपल लिए जाते हैं। कोरियोनिक विली मुख्य रूप से गर्भाशय की दीवार से जुड़े प्लेसेंटा के छोटे-छोटे हिस्से होते हैं। इनका निर्माण निषेचित अंडों से होता है। यही कारण है कि इनकी मदद से आनुवंशिक विकार का पता चल सकता है। यह टेस्ट वैल्पिक होता है, इसलिए संभव नहीं कि हर गर्भवती महिला का यह टेस्ट हो।
यह टेस्ट 10वें से 12वें सप्ताह के बीच में किया जाता है और दो तरह का होता है। गर्भाशय ग्रीवा के जरिए किए जाने वाले टेस्ट को ट्रांससर्विकल (transcervical) और पेट के जरिए किए जाने वाले टेस्ट को ट्रांसएब्डॉमिनल (transabdominal) कहा जाता है (8)।
पहली तिमाही के बाद अब हम दूसरी तिमाही के बारे में बात करेंगे।
प्रेगनेंसी की दूसरी तिमाही में कौन से टेस्ट होते हैं?
दूसरी तिमाही प्रीनेटल स्क्रीनिंग के तहत कई रक्त परीक्षण शामिल हो सकते हैं। इन्हें मल्टीपल मार्कर स्क्रीनिंग कहा जाता है। इनके द्वारा कुछ आनुवंशिक स्थितियों या जन्म दोषों के जोखिम के बारे में पता लगाया जा सकता है। गर्भावस्था के 15वें से 20वें सप्ताह के बीच गर्भवती महिला के रक्त का नमूना लेकर स्क्रीनिंग की जाती है। इसके लिए गर्भावस्था के 16वें से 18वें सप्ताह को आदर्श माना जाता है। इस दौरान निम्न प्रकार के टेस्ट किए जाते हैं :
- अल्ट्रासाउंड : गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में अल्ट्रासाउंड और विस्तार से किया जाता है। इसे भ्रूण की शरीरिक रचना का संपूर्ण सर्वेक्षण कहा जाता है। इसमें भ्रूण के सिर से लेकर पैर तक को चेक किया जाता है। इस अल्ट्रासाउंड में भ्रूण के विकसित हो चुकी आंखें, हाथ-पैर की उंगलियों आदि को देखा जा सकता है। साथ ही भ्रूण को अगर कोई समस्या है, तो उसे भी चेक किया जा सकता है (9)।
- एमनियोसेंटेसिस परीक्षण: एमनियोसेंटेसिस एक प्रकार की डायग्नोस्टिक परीक्षण है। इस परीक्षण में डॉक्टर एमनियोटिक द्रव का एक छोटा-सा नमूना लेते हैं। एमनियोटिक तरल पदार्थ से बनी एक थैली होती है, जिसमें शिशु सुरक्षित रहता है। यह परीक्षण गुणसूत्र समस्याओं का निदान करने और तंत्रिका ट्यूब दोष (ONTDs) पता लगाने के लिए किया जाता है। इसके तहत प्रोटीन स्क्रीनिंग टेस्ट भी किया जाता है, जिसके बारे में नीचे बताया गया है (10):
- अल्फा-फेटोप्रोटीन स्क्रीनिंग (एएफपी) : यह एक प्रकार का ब्लड टेस्ट होता है। इसके जरिए गर्भवती के खून में मौजूद अल्फा-फेटोप्रोटीन के स्तर को मापता है। एएफपी एक प्रोटीन है, जो सामान्य रूप से भ्रूण के द्वारा बनाया जाता है। यह भ्रूण के आसपास होने वाले तरल पदार्थ यानी एमनियोटिक द्रव में होता है। एएफपी ब्लड टेस्ट को एमएसएएफपी (मेटेरनल सीरम एएफपी) भी कहा जाता है।
एएफपी स्तर का असामान्य होना इस ओर संकेत करता है:
- स्पाइनल बिफिडा जैसे ओपन न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट
- डाउन सिंड्रोम
- अन्य गुणसूत्र समस्याएं
- भ्रूण के पेट की दीवार में समस्याएं
- एक से अधिक भ्रूण
- ग्लूकोज स्क्रीनिंग : गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की जांच के लिए ग्लूकोज स्क्रीनिंग टेस्ट किया जाता है। यह ग्लूकोज स्क्रीनिंग टेस्ट हर गर्भवती के लिए अनिवार्य है, भले ही गर्भावस्था के पहले मधुमेह की समस्या रही हो या फिर नहीं रही हो, क्योंकि गर्भावस्था के दौरान गर्भावधि मधुमेह यानि जेस्टेशनल डायबिटीज होने की आशंका बनी रहती है। माना जाता है कि गर्भावधि मधुमेह से सी-सेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है। साथ ही प्रसव के बाद शिशु के रक्त में शुगर की मात्रा कम हो सकती है। अगर इस टेस्ट का परिणाम सकारात्मक आता है, तो अगले 10 वर्षों में मधुमेह होने का खतरा बना रहता है। इसलिए, गर्भावस्था के 6 हफ्ते बाद एक बार फिर से ग्लूकोज स्क्रीनिंग टेस्ट करवाना चाहिए (11)।
आर्टिकल के आखिर में जानते हैं गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में किए जाने वाले टेस्ट के बारे में।
गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में कौन से टेस्ट होते हैं?
गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में किए जाने वाले टेस्ट के बारे में नीचे बताया गया है। ये सभी टेस्ट हर गर्भवती महिला के किए जाएं, यह संभव नहीं है। इनके होने या न होने का आधार प्रत्येक गर्भवती के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है (12)।
- अल्ट्रासाउंड: तीसरी तिमाही में अल्ट्रासाउंड से प्लेसेंटा की पोजीशन, एम्नियोटिक द्रव की मात्रा और शिशु के स्वास्थ्य का आकलन किया जाता है। साथ ही चेक किया जाता है कि बच्चे को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल रही है या नहीं। अगर किसी गर्भवती को अधिक समस्या है, तो तीसरी तिमाही में उसके कई बार अल्ट्रासाउंड हो सकते हैं।
- ग्रुप बी स्ट्रेप स्क्रीनिंग: गर्भावस्था के 35वें से 37वें सप्ताह के बीच डॉक्टर ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस (जीबीएस) संक्रमण की जांच करते हैं। हालांकि, सभी गर्भवती में यह जांच नही होती। जीबीएस बैक्टीरिया महिलाओं के मुंह, गले व योनि में पाया जाता है। हालांकि, यह हानिकारक नहीं होता, लेकिन गर्भावस्था में यह मां और शिशु दोनों के लिए संक्रमण का कारण बन सकता है। जो होने वाले शिशु को संक्रमित कर सकता है। अगर टेस्ट पॉजिटिव आता है, तो डॉक्टर एंटीबायटिक दवा देते हैं, ताकि डिलीवरी के समय शिशु को संक्रमित होने से बचाया जा सके।
- नॉनस्ट्रेस टेस्ट (NST): इसके जरिए भ्रूण की हृदय गति और स्वास्थ्य की जांच की जाती है। नॉनस्ट्रेस टेस्ट (NST) तब किया जाता, जब गर्भ में शिशु की हलचल सामान्य हो या फिर गर्भवती की डिलीवरी डेट निकल गई हो और प्रसव पीड़ा न शुरू हुई हो। अगर कोई गर्भवती महिला अधिक जोखिम में है, तो यह टेस्ट हर हफ्ते किया जा सकता है।
- कांट्रैक्शन स्ट्रैस टेस्ट: इस परीक्षण को यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि बच्चा जन्म के समय होने वाले संकुचन का कितनी अच्छी तरह से सामना करेगा। इसका उद्देश्य संकुचन को प्रेरित करना है। साथ ही कार्डियोटोकोग्राफ का उपयोग करके बच्चे की हृदय गति चेक की जाती है।
आर्टिकल के माध्यम से हमने आपको गर्भावस्था में होने वाले लगभग सभी टेस्ट के बारे में विस्तार से समझाने का प्रयास किया है। फिर भी यह तय करने के लिए कि आपके लिए कौन से परीक्षण सही हैं, अपने डॉक्टर बात करें। वह आपकी अवस्था के अनुसार ही तय करेंगे कि आपको किस प्रकार के टेस्ट की जरूरत है। आप गर्भावस्था के दौरान हमेशा प्रसन्न रहें और पौष्टिक खाद्य पदार्थों का सेवन करें। मॉमजंक्शन आपकी स्वस्थ गर्भावस्था की कामना करता है।
References
1. Pregnancy Test By MedlinePlus
2. Prenatal Tests: First Trimester By KidsHealth
3. Ultrasound pregnancy By MedlinePlus
4. APPENDIX H PRENATAL SCREENING AND TESTING By NCBI
5. The use of first trimester ultrasound. By NCBI
6. First Trimester Maternal Serum Screening Using Biochemical Markers PAPP-A and Free β-hCG for Down Syndrome, Patau Syndrome and Edward Syndrome By NCBI
7. Common Tests During Pregnancy By URMC
8. Chorionic villus sampling By MedlinePlus
9. Assessment of fetus during second trimester ultrasonography using HDlive software: What is its real application in the obstetrics clinical practice? By NCBI
10. Diagnosis of Birth Defects By CDC
11. Glucose screening tests during pregnancy By MedlinePlus
12. Prenatal Tests: Third Trimester By KidsHealth
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