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यह तो आप सभी जानते होंगे कि गर्भावस्था एक नाजुक पड़ाव है। इस दौरान किसी भी गर्भवती महिला को बहुत ही देखरेख की जरूरत होती है। वहीं, ध्यान देने वाली बात यह है कि बच्चे के जन्म के बाद यह कहानी यूं ही खत्म नहीं हो जाती। डिलीवरी के बाद महिला को और देखभाल की जरूरत होती है। ऐसे में महिलाओं को सावधानी के साथ ही विशेष सहयोग की भी आवश्यकता होती है। चूंकि, यह सहयोग पारिवारिक स्तर पर ही हासिल हो सकता है, इसलिए महिला के परिवार को भी इस विषय में उचित और सही जानकारी होना जरूरी है। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम प्रसवोत्तर एकांतवास के विषय से जुड़ी कई जरूरी बातें बता रहे हैं।

आइए, पहले यह जानते हैं कि प्रसवोत्तर एकांतवास कहा किसे जाता है।

नई माताओं के लिए घर में रहने के समय (प्रसवोत्तर एकांतवास) का क्या मतलब है? | After Delivery Care For Mother In India

भारतीय परंपरा में प्रसवोत्तर एकांतवास को अहम और मुख्य माना गया है। इसमें बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं को घर में किसी एक अलग स्थान पर कुछ समय के लिए ठहराया जाता है। उस स्थान पर महिला अपने बच्चे के साथ तब तक रहती है, जब तक कि वह गर्भावस्था से पूर्व की स्वास्थ्य स्थिति को हासिल नहीं कर लेती (1)। चूंकि, बच्चे के जन्म के बाद आने वाले इस पड़ाव में महिलाएं अकेले ही एक निश्चित स्थान पर लंबे समय तक रहती हैं, इसलिए इस अवधि को प्रसवोत्तर एकांतवास कहा जाता है। प्रसवोत्तर एकांतवास की अवधि धर्म और समुदाय के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकती है, जिसके बारे में आपको लेख में आगे जानने को मिलेगा।

लेख के अगले भाग में हम प्रसवोत्तर एकांतवास की अवधि के संबंध में बताएंगे।

प्रसवोत्तर एकांतवास की अवधि कितनी होती है? | Confinement Period In India

मेडिकली देखा जाए, तो प्रसवोत्तर एकांतवास को करीब तीन हफ्ते के लिए अहम माना जा सकता है, ताकि गर्भावस्था और प्रसव के बाद महिला में आए शारीरिक बदलाव अपनी प्रारंभिक स्थिति में आ सकें और महिला अपनी ऊर्जा और एक सामान्य शारीरिक स्वास्थ्य को फिर से हासिल कर सके। इसके विपरीत धर्म, जाति और समुदाय विशेष के आधार पर इस अवधि में बदलाव देखा जा सकता है। इसके आधार पर यह अवधि करीब 30 से 45 दिन तक भी हो सकती है (1)। प्रसवोत्तर एकांतवास की यह अवधि सिजेरियन और नार्मल डिलीवरी दोनों में सामान्य मानी जाती है।

प्रसवोत्तर एकांतवास की अवधि जानने के बाद अब हम इसके महत्व पर भी एक नजर डाल लेते हैं।

प्रसव के बाद नई मां के लिए एकांतवास की अवधि का क्या महत्व है?

प्रसवोत्तर एकांतवास के महत्व की बात करें, तो आराम इस अवधि का मुख्य और अहम उद्देश्य है, जिससे महिला का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य फिर से सामान्य हो सके (1)। यही वजह है कि इस वक्त उन्हें किसी भी तरह के घरेलू काम को करने की मनाही होती है। निम्न बिंदुओं के माध्यम से हम इस बात को थोड़ी गहराई से समझ पाएंगे –

  1. शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार : दरअसल, गर्भावस्था और प्रसव प्रक्रिया से गुजरने के बाद एक महिला काफी पीड़ा झेल चुकी होती है। वहीं, बच्चे के जन्म के बाद गर्भाशय भी अपनी पूर्व स्थिति में जाने के लिए सिकुड़ता है। ऐसे में अधिक रक्त स्त्राव के साथ-साथ हाथ-पैरों में दर्द और कमजोरी का होना आम है (2)। इसके अलावा, हार्मोनल बदलाव के कारण भी प्रसव के कुछ समय बाद तक महिलाओं में हड्डियों में कमजोरी महसूस हो सकती है। वहीं, बच्चे का बार-बार जाग कर दूध की मांग करना महिला में थकान को और भी ज्यादा बढ़ा सकता है। स्तनपान के दौरान महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन कम मात्रा में बन पाता है। इस कारण महिलाओं में बोन मास (हड्डियों का घनत्व) कम हो सकता है (3)। इस स्थिति में महिलाओं को आराम की खास जरूरत होती है (4)
  1. मानसिक स्वास्थ्य : शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए भी आराम जरूरी है। जन्म के बाद अपने बच्चे को समय और सही देखभाल न दे पाने की चिंता अक्सर महिलाओं को डिप्रेशन का शिकार बना देती है (5)। चूंकि, प्रसवोत्तर एकांतवास में महिलाओं को आराम के साथ-साथ बच्चे के साथ समय बिताने और उसकी देखरेख करने का भी समय मिल जाता है। इसलिए, इस अवधि को प्रसव के बाद होने वाले अवसाद से बचाव के लिए भी अहम माना जाता है (1)

प्रसवोत्तर एकांतवास का महत्व जानने के बाद हम इस अवधि के दौरान क्या-क्या होता है, इस बारे में जानने का प्रयास करेंगे।

एकांतवास की अवधि के दौरान क्या-क्या होता है?

प्रसवोत्तर एकांतवास की अवधि में क्या-क्या होता है, इस बात को नीच दिए कुछ बिंदुओं के माध्यम से बेहतर तरीके से समझा जा सकता है (1)

  1. बच्चे और मां की मालिश : प्रसवोत्तर एकांतवास में मां के साथ-साथ बच्चों की मालिश पर विशेष जोर दिया जाता है, जिसके कई फायदे हैं। यह बात तीन अलग-अलग शोध से स्पष्ट होती है। मां के संबंध में किए गए शोध में पाया गया कि डिलीवरी के बाद मालिश करने से महिलाओं में पनपने वाली चिंता और अवसाद में कमी आ सकती है। इससे बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को बरकरार रखने में मदद मिल सकती है (6) (7)

वहीं, बच्चों की मालिश के मामले में किए गए शोध में जिक्र मिलता है कि मालिश से वजन में सुधार, दूध पीने की क्षमता और मानसिक विकास को बल मिल सकता है। वहीं, शोध में यह भी माना गया है कि अपने बच्चों की मालिश स्वयं करने वाली महिलाओं में चिंता और अवसाद का स्तर भी काफी कम हो सकता है (8)। ध्यान रहे कि बच्चों की हड्डियां काफी कमजोर होती हैं, इसलिए उनकी मालिश हमेशा हल्के हाथों से ही की जानी चाहिए।

  1. भोजन को सीमित करना : पारंपरिक रूप से माना जाता है कि गर्भावस्था के बाद प्रसव प्रक्रिया से गुजरने के बाद महिलाओं का शरीर प्राकृतिक रूप से ठंडा हो जाता है। ऐसे में माना जाता है कि प्रसवोत्तर एकांतवास के दौरान गर्म तासीर वाले खाद्य का सेवन महिलाओं को जल्द स्वस्थ होने में मदद कर सकता है। यही वजह है कि इस दौरान महिलाओं को ठंडी चीजों का सेवन करने से मना किया जाता है। वहीं, गर्म तासीर वाले खाद्य को लेने की सलाह दी जाती है (1)
  1. नई माताओं पर एकांतवास की पाबंदी : पारंपरिक तौर पर भोजन को सीमित करने के साथ ही प्रसवोत्तर एकांतवास के दौरान महिला पर कई तरह की पाबंदियां भी लगाई जाती हैं। यह पाबंदियां केवल इस आधार पर लगाई जाती हैं कि महिला को खुद को गर्म रखना चाहिए, ताकि भविष्य में होने वाली परेशानियों (जैसे:- जोड़ों में दर्द और सूजन, खून का जमना, गर्भाशय का नीचे आ जाना या दूध न बनना) से बचाव हो सके (1)। हालांकि, इस संबंध में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि यह पाबंदियां वाकई में लाभकारी हैं या नहीं।

आइए, ऐसी ही कुछ पाबंदियों पर हम एक नजर डाल लेते हैं, जिन्हें भारत के अलग-अलग क्षेत्र में भिन्न-भिन्न तरह से लागू किया जाता है (1)

  • ठंडे पानी से न नहाएं।
  • हवा से बचाव के लिए खुद को ढक कर रखें।
  • गर्मी में भी नहाने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल करें।
  • इस दौरान बालों को बिल्कुल भी न धोएं।

लेख के अगले भाग में हम प्रसवोत्तर एकांतवास में खाए जाने वाले भोजन के बारे में बात करेंगे।

प्रसवोत्तर एकांतवास में खाए जाने वाले पारंपरिक भोजन की सूची | Delivery Ke Baad Kya Khaye

ऐसे समय में खाए जाने वाले पारंपरिक खाद्य और पेय पदार्थ कुछ इस प्रकार हैं –

1. प्रसवोत्तर एकांतवास में लिए जाने वाले खाद्य पदार्थ

  • हरीरा (गुड़, सोंठ और मेवे के साथ तैयार एक खाद्य)
  • पंजीरी (आटा, घी, मेवा और चीनी के साथ भूनकर तैयार किया जाने वाला खाद्य)
  • गोंद के लड्डू
  • बादाम शीरा
  • मेथी प्यूरी
  • दूध दलिया
  • मूंग दाल की खिचड़ी (मिक्स वेजिटेबल के साथ)
  • ओट्स की खिचड़ी
  • अजवाइन हलवा
  • अजवाइन पराठा
  • रागी का हलवा

2. प्रसवोत्तर एकांतवास में लिए जाने वाले पेय पदार्थ

  • लहसुन का दूध
  • सौंफ का पानी
  • सौंफ की चाय
  • अजवाइन और सौंफ का पानी
  • अजवाइन का पानी
  • सोआ चाय (dill seed tea)
  • जौ और सौंफ का पानी
  • तुलसी का पानी
  • मेथी की चाय
  • जीरा पानी
  • बादाम दूध

नोट – इन खाद्य सामग्रियों की लिस्ट लोक मान्यताओं के आधार पर तैयार की गई है। इनसे जुड़े वैज्ञानिक शोध का अभाव है। वहीं, सभी की गर्भावस्था एक जैसी नहीं होती है, इसलिए इनमें से बताई गई किसी भी खाद्य सामग्री का सेवन करने से पहले डॉक्टरी परामर्श जरूर लें।

आइए, अब प्रसवोत्तर एकांतवास से पहले की जाने वाली तैयारियों के बारे में जानते हैं।

प्रसवोत्तर एकांतवास से पहले क्या तैयारी करनी चाहिए?

डिलीवरी के बाद के समय की तैयारी कुछ इस प्रकार करनी चाहिए:

  • डिलीवरी के बाद आप अपने डॉक्टर से प्रसवोत्तर एकांतवास में बरती जाने वाली सावधानियों और लिए जाने वाले आहार की पूरी जानकारी लें। साथ ही यह भी सुनिश्चित कर लें कि इस दौरान उन्हें आहार में कौन-सी चीजें शामिल करनी है और किन चीजों से दूर रहना है।
  • प्रसव से पूर्व ही मालिश और निजी सहयोग के लिए मेड या करीबी रिश्तेदारों से बात कर लें, ताकि जरूरत के समय वह साथ मौजूद रहें।
  • प्रसव पूर्व ही उस स्थान को भी सुनिश्चित कर लें, जहां प्रसवोत्तर एकांतवास के दौरान रहना है। साथ ही अपनी जरूरत की सभी चीजों को भी चुने गए स्थान पर पहले से ही सेट कर लें, ताकि समय पड़ने पर छोटी-छोटी चीजों के लिए परेशान न होना पड़े।
  • वहीं, बच्चे के लिए कपड़े, वाटर प्रूफ मैट और ओढ़ने के लिए मोटी चादर या कंबल का इंतजाम भी पहले ही कर लेना चाहिए।

प्रसवोत्तर एकांतवास से जुड़ी और जानकारी के लिए पढ़ते रहें यह आर्टिकल।

प्रसवोत्तर एकांतवास से जुड़े प्रतिबंधों के साथ कैसे तालमेल बैठाएं?

डिलीवरी के बाद बिताए जाने वाले एकांतवास के दौरान आपको अपनी बुद्धि और विवेक के साथ तालमेल बैठना चाहिए। इस संबंध में कुछ खास बातों को जान लेते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं –

  • सुनिश्चित करें कि आपके क्षेत्र, समुदाय या धर्म में क्या प्रतिबंध है, जो आपके लिए लाभकारी हैं। उसके बाद सभी लाभकारी मान्यताओं को जो तथ्यात्मक दृष्टि से आपके लिए सही हैं, उनका पालन जरूर करें।
  • ऐसे प्रतिबंध, जिनका पालन करना कठिन है और तथ्यात्मक दृष्टि से आपके लिए उपयोगी नहीं हैं, उस संबंध में अपने डॉक्टर से बात करें। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर से पारिवारिक सदस्यों की बातचीत भी करवाएं।
  • वहीं, खान-पान के मामले में डॉक्टर से डाइट चार्ट जरूर बनवाएं और उसी के हिसाब से नियमित आहार का सेवन करें।

प्रसवोत्तर एकांतवास के संबंध में कुछ मिथक भी हैं, जिनके बारे में आगे बताया गया है।

प्रसवोत्तर एकांतवास से जुड़े कुछ मिथक और तथ्य

डिलीवरी के बाद बिताए जाने वाले समय को लेकर कई बातें की जाती हैं। उन बातों में कितनी सच्चाई है, यहां हम इस बारे में जानने का प्रयास करेंगे।

1. प्रसव के बाद पहले महीने में नहाना व बाल नहीं धोने चाहिए।

कई धर्म और समुदाय में मान्यता है कि प्रसवोत्तर एकांतवास के दौरान करीब 30 दिन तक नहाना या बाल नहीं धोने चाहिए, क्योंकि इससे महिला को सर्दी हो सकती है। ऐसे समय में सर्दी होना मां और बच्चे दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं को इस दौरान सर्दी से बचाव की आवश्यकता होती है, लेकिन न नहाना इसका विकल्प नहीं है। नहाने से शरीर स्वच्छ रहता है और इंफेक्शन का खतरा भी कम होता है। इसलिए, गुनगुने पानी को नहाने के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है (9)

2. मां व बच्चे को पंखे या एयर-कंडीशनिंग जैसे किसी भी विंड ड्राफ्ट के सामने नहीं लाना चाहिए।

सर्दियों के दिनों में, तो इस बात को स्वीकार जा सकता है, लेकिन गर्मी और आद्रता (नमीयुक्त) दिनों के लिए यह एक मिथक ही है, क्योंकि गर्मी और नमी युक्त मौसम में बच्चे को त्वचा पर चकत्तों की शिकायत हो सकती है। वहीं, अधिक गर्मी के कारण बच्चे को दिमागी स्तर पर भी नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए, अपने और बच्चे के आराम को देखते हुए गर्म दिनों में हल्का पंखा या एसी चलाकर कमरे के तापमान को सामान्य करना उपयुक्त हो सकता है (10)

3. मैं प्रार्थना या पूजा स्थल में प्रवेश नहीं कर सकती।

धार्मिक मान्यता के हिसाब से प्रसव के बाद योनि मार्ग से होने वाले रक्त स्त्राव को अशुद्ध माना जाता है। यही कारण है कि इस दौरान महिलाओं का धार्मिक स्थल जैसे:- पूजा घर या मंदिर में प्रवेश वर्जित रखा जाता है। यह मान्यता महज धार्मिक आस्था के आधार पर है, इसलिए इसका तथ्य या वैज्ञानिकता से कोई लेना देना नहीं है।

4. बहुत अधिक पानी पीने से शरीर में पानी के प्रतिधारण (water retention) की समस्या हो जाती है | डिलीवरी के बाद कितना पानी पीना चाहिए।

विशेषज्ञों के मुताबिक गर्भावस्था के बाद मूत्राशय की मांसपेशियां कमजोर होने की वजह से पानी के प्रतिधारण (water retention) की समस्या हो सकती है (11)। ऐसे में शरीर में मौजूद विषैले और हानिकारक तत्वों को बाहर करने के लिए अधिक पानी पीने की आवश्यकता होती है। इसलिए, इस दौरान अधिक से अधिक पानी (प्रतिदिन करीब 3.8 लीटर) पीने की सलाह दी जाती है (12)

प्रसवोत्तर एकांतवास को लेकर जितने भी सवाल अभी तक आपके मन में रहे होंगे, मुमकिन है इस लेख को पढ़ने के बाद आपको उन सभी का जवाब मिल चुका होगा। वहीं, इस अवधि से जुड़े तथ्य और मिथक को समझने में भी आपको इस लेख से मदद मिली होगी। ऐसे में अगर आप भी प्रसवोत्तर एकांतवास में जाने की तैयारी कर रही हैं, तो लेख में दी गई सभी जरूरी बातों को जरूर ध्यान में रखें। वहीं, लिए जाने वाले खाद्य और पेय पदार्थों के संबंध में डॉक्टर से एक बार परामर्श अवश्य कर लें। उम्मीद है कि लेख में दी गई बातें प्रसवोत्तर एकांतवास में आपके लिए काफी उपयोगी साबित होंगी। गर्भावस्था और बच्चों से जुड़े अन्य विषयों को समझने के लिए पढ़ते रहें मॉमजंक्शन।

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