Written by , (शिक्षा- एमए इन मास कम्युनिकेशन)

बदलते समय के साथ एक बार फिर से लोगों का ध्यान योग की तरफ अधिक आकर्षित हो रहा है। कहा भी जाता है कि योग भारतीय संस्कृति और सभ्यता का ही देन है, जो आज पूरे विश्व में चर्चा का विषय है। हालांकि, योग के ऐसे कई प्रकार व आसन भी हैं, जिनके बारे में लोगों को कम ही जानकारी होगी। उन्हीं में से ज्ञान योग भी एक माना जा सकता है। यही वजह है कि स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम ज्ञान योग के बारे में बता रहे हैं। इस लेख में आप न सिर्फ ज्ञान योग के बारे में विस्तार से जानेंगे, बल्कि आपको यहां ज्ञान योग के फायदे भी पता चलेंगे।

शुरू करते हैं लेख

फायदों से पहले हम ज्ञान योग के बारे में थोड़ा विस्तार से जान लेते हैं।

विषय सूची

  • ज्ञान योग क्या है? – What is Jnana Yoga in Hindi
  • ज्ञान योग के फायदे – Benefits of Jnana Yoga in Hindi
  • ज्ञान योग के सात चरण – The Seven Stages Of Jnana Yoga in Hindi
  • ज्ञान योग करने का तरीका
  • ज्ञान योग के लिए कुछ सावधानियाँ – Precautions for Jnana Yoga in Hindi
  • अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

ज्ञान योग क्या है? – What is Jnana Yoga in Hindi

ज्ञान योग की व्याख्या करने से पहले बता दें कि यह एक साधना है, जो अन्य योगों से भिन्न है। ज्ञानयोग व्यक्ति के विवेक को बढ़ाकर उसके मन को शांत करने में मदद कर सकता है। इस वजह से ज्ञान योग को ‘ज्ञान का मार्ग’ भी कहा जाता है। यह व्यक्ति को बौद्धिक रूप से खुद को समझने और जीवन की सच्चाई को जानने में मदद करता है। इस वजह से ज्ञान योग को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी माना जा सकता है। साथ ही ज्ञान योग व्यक्ति को खुद के व्यक्तित्व को समझने व उसे बेहतर बनाने में मदद कर सकता है (1)। वैसे तो योग की उत्पत्ति ऋषि-मुनियों के काल से ही मानी जाती है, लेकिन ज्ञानयोग के बारे में स्वामी विवेकानंद ने भी काफी विस्तृत जानकारी दी है। उनके मुताबिक ज्ञान योग धर्म और कर्म का एक मिश्रित रूप है (2)। साथ ही बता दें कि ज्ञान योग को करने के लिए व्यक्ति को मुख्य रूप से दो चरणों और उनके उपचरणों का पालन करना होता है, जिसके बारे में आपको लेख में आगे विस्तार से जानने को मिलेगा।

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यहां अब हम विस्तार से ज्ञान योग के फायदे समझने का प्रयास करेंगे।

ज्ञान योग के फायदे – Benefits of Jnana Yoga in Hindi

ज्ञानयोग का मुख्य फायदा यह है कि यह मानसिक रूप से मजबूत बनाने में मदद करता है और मन को नियंत्रित करता है। वहीं, इस भाग में हम विस्तृत रूप से ज्ञान योग के लाभ बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं :

1. याददाश्त बढ़ाए

ज्ञान योग के फायदे को लेकर एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की साइट पर एक शोध मौजूद है। इस शोध में स्कूली बच्चों पर ज्ञान योग के प्रभाव का जिक्र किया गया है। इसके अनुसार, ज्ञानयोग के प्रभाव के कारण बच्चों के श्रवण (सुनने), मनन (विचार करने) और निदिध्यासन (बार-बार किसी विषय पर विचार करना या ध्यान करना) की क्षमता बढ़ती है। शोध में जिक्र मिलता है कि इस योग के अभ्यास से बच्चों ने न सिर्फ शिक्षक की बताई गई बातों को ध्यान से सुना, बल्कि उन बातों पर विचार भी किया। इतना ही नहीं बच्चों ने शिक्षक द्वारा बताई गई बातों को वास्तविकता से जोड़ कर भी देखा। इसके परिणामस्वरूप अध्ययन में शामिल छात्रों की स्मरण शक्ति (याद रखने की क्षमता) को बढ़ाने में मदद मिली (3)। इस आधार पर ज्ञान योग एकाग्रता व स्मृति बढ़ाने वाला योग भी माना जा सकता है।

2. अवसाद और तनाव कम करे

ज्ञानयोग करने के लिए व्यक्ति को साधना करने की मुद्रा में बैठना होता है। इस दौरान उसे आंखें बंद करके अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। इस वजह से ज्ञान योग के लाभ में मन को एक केंद्र पर स्थिर करना भी शामिल है। दरअसल, अनजाने में हमारे मन में कई तरह विचार चलते रहते हैं, जो तनाव का कारण बन जाते हैं। वहीं, ज्ञान योग के लाभ शरीर और दिमाग के मध्य स्थिरता और सामंजस्य (होमियोस्टैटिक संतुलन) बनाने में मदद करते हैं (4)। इसके अलावा, ज्ञान योग में कामिंग इफेक्ट (मन को शांत करने वाला) होता है, जिस वजह से ज्ञान योग को “मन पर नियंत्रण बनाने वाला मार्ग” भी कहा जा सकता है (5)। इस कारण यह काफी हद तक अवसाद और तनाव बनने वाले कारकों को दूर कर सकता है। इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि ज्ञान योग अवसाद और तनाव के लक्षण कम करने वाला योग भी हो सकता है।

3. अहंकार और स्वार्थ दूर करे

ज्ञान योग के लाभ व्यक्ति के मन में आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देते हैं। योग करने से मन के स्वभाव में सकारात्मकता आती है, जो व्यक्ति को इसका अनुभव करने में मदद कर सकते हैं कि एकता ही सेहत और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। एक तरह से योग के फायदे व्यक्ति को स्वयं का निरीक्षण करने में मदद करता है। साथ ही यह व्यक्ति को अधिक आनंद महसूस करने, प्रेम से रहने और और भलाई के प्रति भावना विकसित करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है (4)। इस तरह ज्ञान योग व्यक्ति के मन को उदार बनाकर, उसके मन से अहंकार और स्वार्थ भाव को दूर करने में मदद कर सकता है। इसे हम अहंकार दूर करने वाला योग भी कह सकते हैं।

4. बेहतर निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाए

ज्ञान योग के लाभ व्यक्ति के सोचने और विचार करने की क्षमता को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। इस वजह से यह योग व्यक्ति को किसी मुद्दे पर गहनता से विचार करने में मदद कर सकता है। वहीं, इस योग के अभ्यास से व्यक्ति में किसी भी स्थिति या समस्या के बारे में बेहतर निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित होती है (3)। इस आधार पर ज्ञानयोग मन को शांत करके उसे बेहतर निर्णय लेने के लिए तैयार करने में मदद कर सकता है।

5. भावनाओं को नियंत्रित करे

ज्ञान योग की मदद से व्यक्ति खुद की भावनात्मक स्थितियों पर आसानी से नियंत्रण करना सीख सकता है। जैसा कि एनीसीबीआई की रिपोर्ट से पता चलता है कि ज्ञान योग व्यक्ति के मनन (विचार करने) की क्षमता को बढ़ा सकता है। इस कारण ज्ञानयोग का अभ्यास करने से भावनात्मक स्थितियों पर विचार करके उन पर नियंत्रण करने में भी मदद मिल सकती है (3)

6. दुख और दर्द से मुक्ति दिलाए

आज के दौर में अधिकतर लोग विभिन्न तरह की बीमारियों से परेशान हैं, जो उनके दुख-दर्द का एक आम कारण हो सकता है। वहीं, योग इन सब समस्याओं से अलग व्यक्ति को बेहतर तरीके से सोचने और जीवन जीने में मदद कर सकता है। योग हमें उन परिस्थितियों को भी सहन करने की क्षमता देता है, जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है (6)। इसके अलावा, योग व्यक्ति को कठिन से कठिन स्थितियों को सहन करने की क्षमता प्रदान करने में मदद कर सकता है (4)। इस आधार पर ज्ञानयोग को सांसारिक दुख-दर्द को दूर करने का भी एक मार्ग माना जा सकता है।

7. सुरक्षा की भावना विकसित करे

ज्ञानयोग करने से व्यक्ति के मन में स्वयं के प्रति सुरक्षा की भावना का विकास हो सकता है। उदाहरण के तौर पर किसी लंबी बीमारी, स्थिति या विचित्र व्यवहार के कारण व्यक्ति को अपने परिवार से दूर हो जाने का डर लगा रहता है। वहीं, परिवार की तरफ से समर्थन की कमी के कारण उसके मन में असुरक्षा की भावनाएं उत्पन्न हो सकती हैं। वहीं, योग की साधना से व्यक्ति के मन में समर्पण की भावना विकसित होती है, जो उसके मन से इस तरह की भावनाओं को आने से रोकने में मदद मिल सकती है (5)

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लेख के अगले भाग में हम ज्ञान योग के चरण जानेंगे।

ज्ञान योग के सात चरण – The Seven Stages Of Jnana Yoga in Hindi

अगर किसी को ज्ञान योग का अभ्यास करना है, तो उसे ज्ञान योग के सात चरणों से होकर गुजरना होता है। ये सभी चरण एक-एक करके व्यक्ति को गहराई से ज्ञान योग का लाभ हासिल करने में मदद करते हैं। यह चरण कुछ इस प्रकार हैं :

  1. शुभेच्छा : ज्ञान योग का पहला चरण है शुभेच्छा यानी सत्य की तलाश। इस चरण में व्यक्ति को सत्य की खोज करने के लिए संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन करना होता है। साथ ही मन में लालसा पैदा करने वाली वस्तुओं के प्रति उसे अपने आकर्षण को कम करने की भी आवश्यकता होती है।
  2. विचारणा : ज्ञान योग का दूसरा चरण है विचारणा यानी किसी विषय के बारे में विचार, पूछताछ या जांच करना। इसका मतलब यह है कि ज्ञान योग के दूसरे चरण में व्यक्ति को मन में उठने वाले विचारों के प्रति सवाल करना होता है और उनका सही अर्थ या उद्देश्य क्या है यह जानना होता है।
  3. तनुमानसी : इस चरण में आने पर व्यक्ति सभी जरूरी बातों को समझ गए होते हैं, जो उनके मन को एकाग्र करने में मदद करती हैं। इस चरण में आने के बाद व्यक्ति आसानी से अपना ध्यान मन के अंदर केंद्रित करने में सक्षम हो जाता है।
  4. सत्वापत्ति : इस चौथे चरण में व्यक्ति का मन पूरी तरह से शुद्ध हो जाता है। उसके मन से सांसारिक लोभ दूर होने लगते हैं और दुनिया में मौजूद सभी चीजों को समान रूप से देखने लगता है।
  5. असंसक्ति : ज्ञान योग के पांचवें चरण में आने पर व्यक्ति निस्वार्थ हो जाते हैं और उन्हें प्रत्येक कार्य में आनंद की अनुभूति होती है। व्यक्ति खुद को भ्रम की दुनिया से अलग करने लगता है।
  6. पदार्थभावनी : छठे चरण में मन से सांसारिक जीवन का भ्रम दूर होता है, जिससे व्यक्ति खुद को वास्तविकता में पहचाने लगता है। इस वजह से छठे चरण में आकर व्यक्ति को इसका अनुभव होने लगता है कि सिर्फ आत्मा ही एकमात्र वास्तविकता है और बाकी सब काल्पनिक है। यही बात व्यक्ति को अपनी आत्मा के प्रति जागरूक बनाने में मदद करती है।
  7. तुरीय : सातवें और आखिरी चरण में व्यक्ति खुद की वास्तविकता से परिचित हो जाता है और व्यक्ति का मन पूरी तरह से साधना की ओर समर्पित हो जाता है। इसके बाद वह खुद को पूरी तरह से अध्यात्म के प्रति समर्पित कर देता है।

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चलिए, अब जानते हैं ज्ञान योग करने का तरीका व इसकी मुद्रा।

ज्ञान योग करने का तरीका

ज्ञानयोग की साधना करने के लिए व्यक्ति को दो तरह की साधना व उनके चरणों का पालन करना होता है। ये इस प्रकार हैं :

  1. बर्हिरंग साधना इस साधना का पहला भाग है बर्हिरंग साधना, जिसका अर्थ बाहरी रूप से की जाने वाली साधना। यानी इसमें व्यक्ति को अपने भौतिक व्यक्तित्व में सुधार करने की आवश्यकता होती है। इस साधना को मुख्य रूप से चार भागों में बांटा गया है। यह भाग कुछ इस प्रकार हैं :
  2. i) विवेक ज्ञानयोग के बर्हिरंग साधन का पहला चरण है विवेक यानी बुद्धि। बुद्धि के सही इस्तेमाल से व्यक्ति के मन में सकारात्मक ऊर्जा व भावना का विकास होता है। ऐसे में इस चरण के दौरान व्यक्ति को सात्विक आहार और सत्य का पालन करना होता है।
  3. ii) वैराग्य वैराग्य के चरण में आने पर व्यक्ति को सांसारिक सुखों और इच्छा का त्याग करना होता है। ऐसे में व्यक्ति को अपने आत्मिक सुख को पहचाने पर विशेष ध्यान देना होता है।

iii) षट्सम्पत्ति षट्सम्पत्ति  का  अर्थ  है,  छह  साधन यानी ज्ञानयोग के इस अंश में व्यक्ति को छह विशेष बातों का पालन  करना होता है। इन बातों को अपनाना ही षट्सम्पत्ति माना जाता है। षट्सम्पत्ति के भी छह भाग होते हैं, जो इस प्रकार हैं :

  • शम शम में मनुष्य को अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना होता है। ताकि वो अपने मन को पूरी तरह से नियंत्रित कर सके।
  • दम दम का अर्थ है, दमन करना। यानी व्यक्ति को अपनी इंद्रियों से सांसारिक लोभ-मोह व सभी सुखों के विचारों का त्याग करना होता है।
  • तितिक्षाइस चरण में व्यक्ति को अपने लक्ष्य की प्राप्ति करने के लिए सभी कष्टों को सहते हुए अपनी साधना में लीन रहना होता है। इस दौरान व्यक्ति को अपने लक्ष्य को जीतने या हारने की बजाय अपने लक्ष्य को पूरा करने पर जोर देना होता है।
  • उपरतिउपरति का तात्पर्य होता है, संयमित होना। यानी साधना के दौरान व्यक्ति को अपना लक्ष्य हासिल होने पर भी उदासीन बने रहने की जरूरत होती है।
  • श्रृद्धा ज्ञान योग के चरण में श्रद्धा को विश्वास के तौर पर जाना जाता है। यानी व्यक्ति ने अपनी साधना के चरणों के दौरान जो भी अभी तक प्राप्त किया है, उसे उन पर विश्वास करना होता है।
  • समाधान मन को एकाग्र करना ही समाधान है। दरअसल, मन स्वाभाविक रूप से एक साथ कई बातों पर विचार कर सकता है। वहीं साधना के जरिए व्यक्ति उपासना, जप और ध्यान करता है, जो उसके मन को एक बिंदु पर रोकने में मदद कर सकता है।
  1. iv) मुमुक्षुत्व – ऊपर बताए गए सभी चरणों को पूरा करते हुए साधक खुद को सांसारिक संबंधों और जरूरतों से अलग कर लेता है, जिसे ही मुमुक्षुत्व यानी मोक्ष की प्राप्ति की तीव्र इच्छा कहा जाता है।

इन चरणों को पूरा करने के बाद बारी आती है अन्तरंग साधना की।

  1. अन्तरंग साधना ज्ञानयोग साधना के इस चरण में साधक अपने मन को अंदर से नियंत्रित करना सीखता है। इसके तीन चरण होते हैं। जो निम्नलिखित हैं :
  2. i) श्रवण श्रवण का अर्थ है सुनना। यानी इस चरण में व्यक्ति में सिर्फ उन्हीं बातों को सुनता है, जिसे उससे ज्ञान मिले और वह उन पर विचार कर सके।
  3. ii) मनन मनन का अर्थ है विचार करना। यानी उसने अभी तक जिन बातों को सुना है, अब उसे उन पर विचार करना है। एक तरह से प्राप्त किए हुए ज्ञान को मन पर लागू कर उनका पालन करना होता है।

iii) निदिध्यासनयानी बार-बार किसी विषय पर विचार करना या ध्यान करना। अभी तक प्राप्त किया गया ज्ञान व्यक्ति के आत्मज्ञान को किस तरह बढ़ा सकता है, उसे इस पर विचार करना होता है। इसके तहत व्यक्ति को 15 चरणों का पालन करना होता है, जो कुछ इस प्रकार हैंः

  • यम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करके मन को पूरी तरह से साधना में लीन करना।
  • नियम – जीवन से उन मोह या सुखों का त्याग करना, तो व्यक्ति को ध्यान लगाने से रोकते हों।
  • त्याग संसार के समस्त सुखों का त्याग कर साधना में रहना ही त्याग का चरण है। इसे महापुरुष त्याग भी कहते हैं।
  • मौन इस चरण में आने पर व्यक्ति को अपनी इंद्रियों को शांत रखना होता है और मन में ही विचार करना होता है।
  • देश इस चरण में व्यक्ति को अपना पूरा ध्यान किसी एक ही बिंदु पर ही क्रेद्रिंत करना होता है।
  • काल इस चरण में व्यक्ति को यह समझना होता है कि व्यक्ति का शरीर नश्वर है, यानी इंसान की मृत्यु निश्चित है और एक मात्र ईश्वर ही है, जो सभी जगह मौजूद रहता है।
  • आसन इस चरण में व्यक्ति को बिना हिले-डुले एक स्थिति में आराम से बैठने वाले आसन सीखने होते हैं। जो मन को शांत करते हैं। इस दौरान वे सिद्धासन, पद्मासन, स्वस्तिकासन, सुखासन आदि सीखते हैं।
  • मूलबन्ध इस चरण में व्यक्ति को ईश्वर का ध्यान लगाना होता है।
  • देहस्थिति ध्यान लगाने पर जब मन एकाग्र व शांत हो जाता है, तो शरीर के अंगों में एक तरह की स्थिरता व ठहराव आता है, जो मन व शारीरिक संतुलन को बनाता है।
  • दृक्स्थिति इस चरण में व्यक्ति हमेशा सत्य की ही खोज करता है और सत्य क्या है उसे पहचानने का प्रयास करता है।
  • प्राणायाम इस चरण में व्यक्ति को अपने सांस लेने की प्रक्रिया का विस्तार करना होता है।
  • प्रत्याहार प्रत्याहार का अर्थ है, इन्द्रियों पर धैर्य रखना। यानी इन्द्रियों के कारण खर्च होने वाली ऊर्जा को संतुलित करना। एक तरह से व्यक्ति को बोलते, सुनते या देखते समय सिर्फ आवश्यक बातों पर ही गौर करना चाहिए, ताकि शरीर में अधिक से अधिक ऊर्जा को सुरक्षित रखा जा सके।
  • धारणा किसी एक बिंदु पर मन को एकाग्र करना या विचार करना ही धारणा है। जो व्यक्ति को उसकी संतुलित की हुई ऊर्जा को संचित रखने और उसे कैसे खर्च करना है, इस पर विचार करने की क्षमता देती है।
  • समाधिज्ञान योग का सबसे आखिरी पड़ाव है समाधि, यानी साधक का शून्य होना। साधक जब अपनी इंद्रियों, मन और ऊर्जा पर नियंत्रण करना सीख लेता है, तो वह अपनी साधान करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाता है। इसके बाद व्यक्ति परमात्मा के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो जाता है।

पढ़ते रहें लेख

ज्ञान योग करने का तरीका जानने के बाद, अंत में पढ़ें ज्ञान योग से जुड़ी सावधानियां।

ज्ञान योग के लिए कुछ सावधानियाँ – Precautions for Jnana Yoga in Hindi

ज्ञान योग का लाभ पाने के लिए व्यक्ति को एक लंबी अवधि के लिए इसकी मुद्रा का अभ्यास करना पड़ सकता है। इसलिए ज्ञान योग का अभ्यास करने के दौरान कुछ विशेष सावधानियों का ध्यान रखना पड़ता है। यह सावधानियां कुछ इस प्रकार हैं :

  • बिना योग गुरु के ज्ञान योग का अभ्यास नहीं करना चाहिए। क्योंकि, गुरु के बिना इसके अभ्यास का सही तरीके जानने में परेशानी हो सकती है।
  • ज्ञान योग को पूरा करने के लिए व्यक्ति को इसके प्रत्येक चरणों का पालन करना होता है। इन चरणों को पूरा करने के लिए उन्हें सावधानी और लगन की जरूरत होती है।
  • गर्भवती महिलाओं को लंबे समय तक ज्ञान योग की मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  • जैसा लेख में हमने बताया है कि ज्ञान योग करने के लिए इसके दो चरण हैं, जिनके उपचरण भी हैं। इसलिए जरूरी है कि इसके सभी चरणों को क्रमवार ही आगे बढ़ाएं। पहला चरण सिद्ध होने पर ही अगले चरण का प्रयास करें।
  • ज्ञान योग करने का तरीका यह बताता है कि इसके प्रत्येक चरणों को करने में एक लंबी अवधि लग सकती है। इसलिए अगर ज्ञान योग कर रहे हैं, तो मन सहज रखें और खुद पर विश्वास बनाएं रखें, ताकि इसके लंबे चरणों की प्रक्रिया के दौरान आपका मानसिक स्तर संतुलित बना रहे
  • ज्ञानयोग करते समय व्यक्ति को एक लंबे तक आसन व साधना में लीन रहना पड़ सकता है। इस वजह से उसे सात्विक भोजन अपनाना चाहिए। दरअसल, सात्विक आहार को शुद्ध और संतुलित माना जाता है, जो शरीरिक ऊर्जा को बढ़ाने और मन को शांत करने में मदद कर सकता है। इसके लिए आहार में ताजा, रसदार और पौष्टिक फल, सब्जियां, अंकुरित अनाज, नट्स, गाय का दूध, दही और शहद का सेवन कर सकते हैं (7)

तो दोस्तों, इस लेख से आपने यह जाना कि ज्ञान योग एक तरह की साधना है, जो शरीर, मन और इंद्रियों को शांत करने में मदद कर सकती है। इसकी मदद से व्यक्ति अपने आध्यात्मिक ज्ञान का विस्तार कर सकता है और आत्मा पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। बशर्ते, ज्ञान योग के लाभ पाने के लिए ज्ञान योग करने का तरीका सही होना चाहिए। वहीं, यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि ज्ञान योग ऐसी साधना है, जिसमें व्यक्ति को अपने मस्तिष्क और मन पर नियंत्रण करना सीखना होता है। ऐसे में इसकी सफलता व्यक्ति की लगन और अभ्यास पर ही निर्भर करती है। योग से जुड़े ऐसे ही अन्य विषयों के बारे में जानने के लिए पढ़ते रहें स्टाइलक्रेज।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

ज्ञान योग किसे नहीं करना चाहिए?

जैसा कि लेख में ज्ञान योग से जुड़ी बातों से पता चलता है कि यह एक प्रकार की साधना है। इसमें किसी विशेष आसान को नहीं करना होता है। इसलिए ज्ञानयोग कोई भी कर सकता है। हालांकि, साधना के दौरान व्यक्ति को लंबे समय तक बैठना होता है। इस लिहाज से गर्भवती महिलाओं और शारीरिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों को डॉक्टरी सलाह पर ही ज्ञान योग का अभ्यास करना चाहिए।

हम कितनी बार ज्ञान योग कर सकते हैं?

जैसा कि आपको लेख में बताया गया है कि ज्ञान योग कोई योग आसन नहीं है, जिसे दिन में किसी एक निश्चित समय में किया जा सके। यह एक साधना है, जिसके सभी चरणों में शामिल बातों को पहले खुद में शामिल करने का अभ्यास करना होता है। इसलिए ज्ञान योग की साधना करने वाला व्यक्ति इसके सभी मूल सिद्धांतों को दिन के प्रत्येक क्षण में अपनाने का प्रयास करता है।

ज्ञान योग साधना में गुरु का क्या महत्व है?

कहा जाता है कि ज्ञान कोई भी हो बिना गुरु के अधूरा ही माना जाता है। वहीं बात जब ज्ञान योग की हो तो इसमें व्यक्ति को आत्मसमर्पण और साधना की जरूरत होती है, जिसके बारे में एक गुरु ही बेहतर ढंग से समझा सकता है। इसलिए अगर कोई योग ज्ञान करना चाहता है, तो उसे किसी अच्छे आध्यात्मिक गुरु की देखरेख में ही ज्ञान योग की साधना करनी चाहिए।

हिंदू धर्म में ज्ञान योग क्या है?

ज्ञान योग हिंदू धर्म के तीन आध्यात्मिक मार्गों में से एक है। यह एक आध्यात्मिक अभ्यास है, जो व्यक्ति को खुद के बारे में विचार करना और अपनी आत्मा के अस्तित्व को पहचानना बताता है। यही वजह है कि ज्ञान योग को “ज्ञान का मार्ग” भी कहा जाता है (1)

ज्ञान योग के प्रकार कितने हैं?

ज्ञान योग स्वयं में योग का एक प्रकार है। हालांकि, जैसा लेख में बताया गया है कि ज्ञान योग करने के लिए कुछ चरणों का पालन करना होता है। इसलिए अगर कोई ज्ञान योग करना चाहता है, तो उसे ज्ञान योग के विभिन्न चरणों और उनके उपचरणों का अभ्यास करना होगा।

References

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    1. Principles and Applications of Gyan Yoga in context of Bhagavad-Gita
      http://indianyoga.org/wp-content/uploads/2013/02/v2-issue1-article1.pdf
    2. SWAMI VIVEKANANDA’S CONCEPT OF JNANA YOGA, RAJA YOGA, KARMA YOGA AND BHAKTI YOGA
      https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3336515/pdf/ASL-13-261.pdf
    3. Effect of yogic education system and modern education system on memory
      https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC2934577/
    4. Mental Health and Wellbeing through Yoga
      https://www.researchgate.net/publication/308889737_Mental_Health_and_Wellbeing_through_Yoga
    5. Integrated Yoga Therapy for mental Illness
      https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3768208/
    6. YOGA THERAPY: AN OVERVIEW
      https://aos.sbvjournals.com/doi/AOS/pdf/10.5005/jp-journals-10085-5208
    7. Yoga, bioenergetics and eating behaviors: A conceptual review
      https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4479904/
  1. Principles and Applications of Gyan Yoga in context of Bhagavad-Gita
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  2. SWAMI VIVEKANANDA’S CONCEPT OF JNANA YOGA, RAJA YOGA, KARMA YOGA AND BHAKTI YOGA
    https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3336515/pdf/ASL-13-261.pdf
  3. Effect of yogic education system and modern education system on memory
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  6. YOGA THERAPY: AN OVERVIEW
    https://aos.sbvjournals.com/doi/AOS/pdf/10.5005/jp-journals-10085-5208
  7. Yoga, bioenergetics and eating behaviors: A conceptual review
    https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4479904/
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