अलिफ लैला – भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष की कहानी
June 17, 2024 द्वारा लिखित nripendra
जिन्न ने जब पूछा कि भला आदमी कौन है और उसकी कहानी क्या है, तो दूसरे फकीर सुकेब ने उसका किस्सा सुनाते हुए जिन्न से कहा कि एक नगर में दो लोगों का घर आपस में सटा हुआ था। उनमें से एक व्यक्ति अच्छा था, जो हर बात को समझदारी के साथ सुलझाने की कोशिश करता था। एक पड़ोसी जितना सुलझा हुआ था, दूसरा उतना ही झगड़ालू। वो झगड़ालू पड़ोसी दूसरे सुलझे हुए व्यक्ति को बिल्कुल पसंद नहीं करता था, इसलिए बात-बात पर उससे लड़ता था। रोज-रोज के झगड़े की वजह से अच्छे पड़ोसी ने सोचा कि शायद यह मुझे देखकर परेशान हो जाता है, इसलिए मैं पास के नगर में रहने के लिए चला जाता हूं। यह सोचकर उसने अपना घर छोड़ा और पास के नगर में चला गया।
नगर में उसने एक घर खरीदा, जिसके पास ही एक अंधा कुआं था और एक भक्त की तरह भगवान का नाम जपता रहता था। इस तरह उसे भगवान की आराधना में लीन देखकर आसपास के लोगों को लगा कि कोई पहुंचा हुआ संत यहां रहने आया है। जल्दी ही उसकी भक्ति की वजह से उसे पूरा राज्य जानने लगा। दूर-दूर से लोग उसके पास आकर अपनी परेशानी कहते और वो अपनी समझदारी से उसका समाधान लोगों को बताने लगा।
फिर उस भले आदमी ने अपने मकान में साधुओं के लिए कुछ कमरे बनवाए, ताकि दूर-दराज से आए साधु वहां आकर ठहर सके। साधु-महात्माओं के बीच भी उसका नाम खूब होने लगा। करते-करते एक दिन भले आदमी के बारे में उस झगड़ालू पड़ोसी को पता चला। उसका स्वभाव ही जलन का था, तो वो अपने पुराने पड़ोसी की तारीफ और तरक्की के बारे में सुन नहीं पाया। उसे लगा कि क्यों न कुछ ऐसा करूं कि इस आदमी से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए। यह सोचकर वो अपने पुराने पड़ोसी के घर पहुंच गया। वहां पहुंचकर उसने देखा कि उसके आसपास कई सारे संत भी रहते हैं।
सबको देखकर उस झगड़ालू इंसान ने एक झूठी कहानी बनाई और रोते हुए अपने पुराने पड़ोसी के पास गया। साधु बन चुके उस भले व्यक्ति को याद था कि वह कितना झगड़ालू और बुरा है। फिर भी उसने कहा, “क्या हुआ, तुम क्यों रो रहे है।” जवाब में उस पुराने पड़ोसी ने कहा कि देखो, मैं बहुत दुखी हूं। मुझपर कई सारी परेशानियां आ चुकी हैं। तुम अपने घर में मौजूद सभी लोगों को कह दो कि जब मैं तुमसे बात करूं, तो कोई कमरे में न आए। इतना कहकर वह फिर रोने का नाटक करने लगा। साधु ने अपने पुराने पड़ोसी की बात मानकर सबको अपने कमरे में आने से मना कर दिया। इतना सुनते ही उसने साधु को कहा कि मेरी कहानी बहुत लंबी है, मैं तुम्हें बाहर टहलते हुए इसके बारे में बताऊंगा।
अब दोनों घर से बाहर निकल आए। वह पुराना पड़ोसी साधु को झूठी कहानी सुनाते-सुनाते उसके घर के पास के अंधे कुएं में लेकर गया और मौका देखते ही उसे धक्का देकर वापस उसके कमरे में आकर बैठ गया। उसे लगा कि साधु मर गया है और वो मन-ही-मन बहुत खुश हुआ। उधर, साधु के कुएं में रहने वाली परियों ने उसकी जान बचा ली। अब उसे होश आया, तो उसने देखा कि वो सुरक्षित एक जगह पर बैठा है। उसे कुएं में परियां दिखाई नहीं दीं, इसलिए उसने सोचा कि भगवान ने मुझपर कृपा करके मेरी जान बचा ली।
तभी उसे कुएं से दो-तीन लोगों की आवाज सुनाई दी। वो दोनों आपस में कह रहे थे कि यह आदमी सच्चा और ईश्वर का भक्त है, लेकिन इसका पुराना पड़ोसी इससे बहुत जलता है। उसने इसे न अपने पुराने घर में आराम से रहने दिया और न यहां। जैसे ही उसे पता चला कि इसे लोग पसंद करने लगे हैं, वो यहां आया और इसे कुएं में धक्का दे दिया। अगर हम इसे समय पर नहीं बचाते, तो शायद यह मर जाता।
फिर एक आदमी की आवाज आई कि अब इसका क्या होगा। तब दूसरे आदमी ने बताया कि कल इसके घर में इस राज्य का बादशाह आएगा। उसकी बेटी के सिर पर मैमून जिन्न का बेटा दिमदिम चढ़ रखा है, जो उसे बहुत पसंद करता है। इसी वजह से उसकी बेटी हमेशा बेहोशी की हालत में रहती है। बादशाह इस भले आदमी ने अपनी बेटी को ठीक करने के लिए कहेगा।
इसके बाद किसी तीसरे आदमी की आवाज साधु को सुनाई दी कि अब उसका इलाज कैसे हो पाएगा। इसका जवाब देते हुए कुएं से दोबारा आवाज आई कि इस साधु के घर में एक काली बिल्ली है, जिसके पूंछ के बगल में एक सफेद दाग है। वहां से अगर वो बिल्ली के सात बाल निकालकर अपने पास रख ले और शहजादी के आने पर उन बालों को जलाकर उसका धुआं उसे सुंघा दे, तो वह ठीक हो जाएगी।
यह सारी बात सुनते-सुनते बहुत अंधेरा हो गया था, जिस वजह से भले आदमी को कुएं में ही पूरी रात बितानी पड़ी। सुबह होते ही कुएं में बनी सीढ़ियों से वो ऊपर आ गया। जैसे ही साधु को कुएं से निकलते हुए उसके शिष्यों ने देखा, तो वो खुश हो गए और उनसे पूछने लगे कि वो कहा चले गए थे। इसके जवाब में साधु बने उस अच्छे इंसान ने कहा कि वो कुएं में गिर गया था और सुबह बाहर आ गया।
फिर साधु अपने कमरे में जाकर बैठ गया और तभी वो काली बिल्ली उसके सामने से गुजरी। उसे देखते ही उसने बिल्ली को पकड़कर उसके सात बाल निकाल लिए और उन्हें अपने पास रखकर बादशाह का इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद बादशाह अपनी सेना के साथ उसकी कुटिया में पहुंच गए। साधु ने उनका स्वागत किया और फिर वहां आने का कारण पूछा। तब राजा ने अपनी बेटी के बारे में सब कुछ बता दिया। साधु ने उनकी बेटी को अपनी कुटिया में बुलवाया।
बादशाह ने तुरंत अपनी बेटी को लाने का आदेश सिपाहियों को दिया। शहजादी एक हाथ लंबा घूंघट ओढ़ कर आई थी, क्योंकि उसके सिर पर जिन्न का बेटा चढ़ा हुआ था। साधु ने तब हल्के से उसका घूंघट ऊपर किया और बिल्ली के बाल को जलाकर उसका धुआं शहजादी के नाक तक पहुंचाने की कोशिश की। जैसे ही धुआं उसके नाक तक पहुंचा, तो मैमून जिन्न का बेटा दिमदिम चिल्लाते हुए शहजादी के सिर से उतर गया। जिन्न के सिर से उतरते ही शहजादी को होश आया और वो पूछने लगी कि वो कहा है?
अपनी बेटी को ठीक देखकर बादशाह बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा कि तुम्हें जो चाहिए मैं तुम्हें दूंगा। उसके बाद उन्होंने अपने मंत्रियों से पूछा कि आखिर मैं कैसे इनके एहसान का बदला चुका सकता हूं। सबने मिलकर बादशाह को अपने बेटी की शादी उस साधु से करने की सलाह दी। सब लोगों की सलाह बादशाह को पसंद आई और उन्होंने दोनों का विवाह करा दिया।
फिर समय बीता और एक दिन बादशाह ने अपनी इकलौती बेटी के पति यानी उस साधु को अपनी राज गद्दी में बैठा दिया। अब वह साधु बादशाह बन गया। इसी बीच एक दिन उसे घूमते-घूमते अपना पुराना पड़ोसी दिख गया। बादशाह बने साधु ने जल्दी से सैनिकों से कहा कि वो उसे मेरे पास लेकर आओ। सैनिकों को देखकर वह डर के मारे कांपने लगा और जब उसने बादशाह के रूप में अपने पुराने पड़ोसी को देखा, तो वो हैरान हो गया। बादशाह ने प्यार से उसे कई सारे सोने के सिक्के दिए और कुछ कीमती कपड़े देकर उसके घर पहुंचा दिया।
भले इंसान की इतनी कहानी सुनाकर दूसरे फकीर सुकेब ने जिन्न से कहा कि बादशाह ने अपने दुश्मन के साथ भी अच्छा व्यवहार किया था। मैं तो आपका दुश्मन नहीं हूं, फिर भी आप मुझे नहीं छोड़ रहे हैं। जिन्न ने कहा कि मैं तुम्हें सजा दिए बना नहीं छोड़ सकता हूं। इतना कहते ही जिन्न मुझे आसमान में इतनी ऊंचाई में लेकर गया कि मैं बादलों के करीब पहुंच गया। फिर वहां से एक पहाड़ में ले जाकर उसने मुझपर मंत्र पढ़ा कि मैं बंदर बन जाऊं और गायब हो गया।
इतना होते ही मैं बंदर बन गया और धीरे-धीरे पहाड़ से नीचे उतरने लगा। मुझे पता नहीं था कि मेरा राज्य का रास्ता कौन-सा है। कई दिनों तक लगातार चलने के बाद मैं समुद्र किनारे पहुंचा, जहां जहाज था। मैं तुरंत किसी तरह से जहाज के अंदर जाकर बैठ गया। वहां बहुत सारे लोग थे, जिन्होंने मुझे बंदर मानकर मारने की कोशिश की। कुछ लोगों ने मुझे डंडे से मारने की सोची और कुछ लोगों ने समुद्र में डुबोकर मारने के बारे में सोचा।
फिर मैं सीधे जहाज चलाने वाले के पास पहुंचा और उसके पैरों से लिपट गया। उसे मुझपर दया आ गई और उसने सभी को मुझे नुकसान न पहुंचाने का आदेश दिया। फिर मैंने भी उसका मनोरंजन करने के लिए थोड़ा नाच दिखाया। देखते ही देखते सब लोग मुझे पसंद करने लग गए। पचास दिनों तक चलने के बाद जहाज एक बड़े से नगर में पहुंचा। उस जहाज में बहुत से व्यापारी ये सोचकर आए कि उन्हें व्यापार करने का मौका मिलेगा, क्योंकि उसमें बहुत से धनी लोग थे।
तभी उस राज्य के बादशाह का एक मंत्री उस जहाज में एक लेखक ढूंढने के लिए। उसने सबको बताया कि बादशाह के दरबार में लेखक की जरूरत है, क्या कोई अच्छा लेखक है। उसने सबको एक कागज दिखाते हुए कहा कि जो भी अच्छा लिख सकता है, वो इस कागज में कविता लिख दे। अगर बादशाह को किसी का लिखा हुआ अच्छा लगा, तो उसे लेखक की नौकरी मिल जाएगी। भले ही मैं बंदर के रूप में था, लेकिन मुझे सब सुनाई दे रहा था। अपनी बात मैं उन तक पहुंचाने की कोशिश करने लगा, लेकिन बंदर की बात कौन समझ पाता।
तब मैंने झपटकर वो कागज छीन लिया, जिसमें कविता लिखनी थी। मुझे बंदर समझकर सब लोग वो कागज लेने के लिए मेरे पीछे दौड़ पड़े। कुछ लोग मुझे मारने लगे। तभी वहां जहाज चलाने वाला व्यक्ति आया और मेरी तरफदारी करने लगा। उसने कहा कि यह बंदर बहुत समझदार है। देख लेते हैं कि यह क्या करना चाहता है। अगर इसने कागज फाड़ दिया, तो मैं इसे सजा दूंगा और इसने कुछ अच्छा काम किया, तो मैं इसे हमेशा के लिए अपने घर ले जाकर रख लूंगा।
मैंने सारी बात सुन ली और जल्दी से कागज में अच्छी सी कविता लिख दी। विद्या का मैं धनी था ही कविता के अलावा बादशाह की तारीफ में भी कुछ ऐसा लिखा, जो उन्हें पसंद आता। एक बंदर को लिखते हुए देखकर सब हैरान रह गए। वह व्यक्ति मेरा लिखा हुआ कागज बादशाह के पास लेकर गया। बादशाह ने उसे पढ़ा और बहुत खुश हो गया। उसके बाद उसने अपने मंत्री को मुझे सम्मानित करने के लिए कुछ कपड़े और घोड़े देने के लिए कहा। इस बात को सुनकर मंत्री ने उन्हें बताया कि यह कविता किसी इंसान ने नहीं, बल्कि बंदर ने लिखी है।
इस बात को सुनकर बादशाह हैरान हो गया। उसने कहा कि बंदर कैसे लिख सकता है, तुम्हारी तबीयत ठीक है न? इसके जवाब में मंत्री के साथ ही अन्य लोगों ने बताया कि सबके सामने ही बंदर ने कागज पर लिखा था। बादशाह के मन में लिखने का हुनर रखने वाले बंदर से मिलने का मन हुआ और उन्होंने मुझे अपने राजमहल लाने का आदेश दिया। तभी सब लोग मुझे लेने आए और कपड़े पहनाकर बादशाह के पास लेकर गए।
मैंने बंदर के रूप में ही बादशाह को नमस्ते करने की कोशिश की। बादशाह ने मुझे सभा में बैठने को कहा और कुछ देर बाद सभी खाना खाने के लिए गए। मुझे भी बादशाह ने सबके साथ बैठाकर खाना खिलाया। मैंने अच्छी तरीके से खाना खाया और बर्तन उठाकर रख दिए। उसके बाद मैंने मंत्री को इशारा करके एक कागज और पेन मांगा। फिर मैंने बादशाह की तारीफ में कुछ कविता लिखी, जिन्हें पढ़कर वो खुश हो गए। उसके बाद राजा ने मेरे साथ शतरंज खेला, जिसमें से एक खेल बादशाह जीते और दो में मैं जीत गया।
इससे राजा को बहुत गुस्सा आया। उनके मन में हुआ कि वो एक बंदर से हार गए हैं, लेकिन मैंने एक कविता लिखी कि दो लोग लड़ाई के समय ही दुश्मन होते हैं। उसके बाद दुश्मनी का भाव नहीं रखना चाहिए। इससे बादशाह और खुश हो गए और उन्होंने राजदरबार से सभी लोगों को जाने को कहा। इसके बाद अपनी पत्नी और शहजादी को वहां बुलवाया। शहजादी मलिका हसन मुझे देखते ही चिल्लाने लगी और अपने पिता से कहा कि आपने मुझे किसी दूसरे व्यक्ति के सामने बिना बुर्के के क्यों बुलाया।
तब बादशाह ने कहा कि यहां बेटा मेरे अलावा कोई नहीं है। शहजादी ने मेरी तरफ देखते हुए बादशाह को कहा कि यह कोई बंदर नहीं, बल्कि एक राजकुमार है। इसे किसी जिन्न ने जादू से बंदर बना दिया है। बादशाह ने हैरान होते हुए पूछा कि यह सब तुम्हें कैसे पता। तब शहजादी मलिका हसन ने बताया कि उसने अपनी देखभाल करने वाली महिला से जादू सीखा था, इसलिए उसमें बहुत शक्ति है। इस बात पर बादशाह ने उससे पूछा कि क्या तुम इसे बंदर से दोबारा इंसान बना सकती हो। अगर ऐसा हो जाएगा, तो इसे मंत्री बनाकर तुम्हारी इससे शादी करवा देंगे।
अपने पिता की बात सुनकर शहजादी ने मंत्र पढ़ा। ऐसा होते ही बादल गरजने लगे और जिन्न गुस्से में वहां आ गया। शहजादी ने जिन्न से कहा, “तुम इतने गुस्से में क्यों हो। मैंने तुम्हें यहां प्यार से मंत्र वापस लेने के लिए बुलाया है, लेकिन तुम ऐसा कर रहे हो।” जिन्न ने गुस्से में शहजादी पर हमला किया। दोनों के बीच काफी देर तक लड़ाई हुई। उसके बाद जिन्न ने बंदर रूप में ही मुझपर और बादशाह पर हमला किया। शहजादी ने जिन्न से हमें बचाकर दूसरी जगह पहुंचा दिया।
फिर दोनों ने एक दूसरे पर आग से हमला किया। जिन्न के मुंह से निकली आग से बादशाह का चेहरा जल गया और उसकी चिंगारी मेरी दाईं आंख में चली गई, जिससे मेरी आंख फूट गई। ऐसा होते ही शहजादी ने मंत्र पढ़कर पानी की कुछ बूंदें जिन्न पर फेंक दी, जिससे जिन्न भस्म हो गया। उसके बाद शहजादी ने मुझ पर भी मंत्र पढ़ा और मैं बंदर से दोबारा इंसान बन गया।
फिर शहजादी ने कहा कि भले ही जिन्न मर गया है, लेकिन अब मैं भी ज्यादा देर तक जिंदा नहीं रह पाऊंगी। उसे भस्म करने के लिए इस्तेमाल की गई आग मुझे भी जला देगी। यह सुनते ही बादशाह ने रोते हुए कहा कि बेटी, तुम ऐसा मत कहो। तुम्हारे बिना मैं कैसे रह पाऊंगा। तभी शहजादी जोड़ से चिल्लाई और जलकर खाक हो गई।
जुबैदा को इतनी कहानी सुनाने के बाद दूसरे फकीर सुकेब ने रोते हुए कहा कि मुझे बहुत दुख है कि मेरी वजह से शहजादी की मौत हो गई। मुझे पता होता ऐसा कुछ होगा, तो मैं जिंदगी भर बंदर बनकर रह लेता। उसके बाद आगे की कहानी सुनाते हुए सुकेब ने कहा कि उस समय मैं कई दिनों तक दुख में डूबा रहा। बादशाह खुद दो महीने तक अपनी बेटी की मौत के गम में बीमार रहे।
उसके बाद जैसे ही उन्हें होश आया, तो उन्होंने मुझे अपने पास बुलाकर कहा कि तुम्हारी वजह से मेरी बेटी नहीं रही और मेरी ये हालत हो गई है। पूरे राज्य में दुख के बादल छाए हुए हैं। भले ही इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि तुम जहां भी जाओगे वहां परेशानी रहेगी। इसी वजह से जल्दी से मेरे राज्य से चले जाओ। मैं तुम्हें यहां रहने की इजाजत नहीं दे सकता हूं। अगर मेरे पूरी तरह से स्वस्थ होने पर भी तू यहां रहा, तो मैं तुझे बहुत बड़ी सजा दे दूंगा। यह सुनते ही मैं महल से निकल गया, लेकिन वहां के लोगों ने मुझे माफ नहीं किया था।
सभी ने राज्य के इस हालत का जिम्मेदार मुझे मानते हुए मारने की कोशिश की। किसी तरह से मैं उनके हाथों से बचकर निकला। दोबारा वो मेरी पिटाई न करें, यह सोचकर मैंने अपने सिर के बाल, दाढ़ी और मूंछें सब कटवा दिए। उसके बाद फकीर के कपड़े पहनकर मैं उस राज्य से निकलकर इधर-उधर भटका। अंत में मैंने बगदाद आकर राजा खलीफा हारूं रशीद से मिलने के बारे में सोचा और यहां पहुंच गया। तभी मेरी भेंट पहले फकीर और तीसरे फकीर से हुई।
सारी कहानी सुनने के बाद जुबैदा ने दूसरे फकीर से कहा कि ठीक है, मैंने तुम्हें माफ किया। अब तुम यहां से चले जाओ। फिर जुबैदा से दूसरे फकीर ने कहा कि वो तीसरे फकीर की कहानी सुनना चाहता है कि आखिर उसके साथ क्या हुआ था कि वो फकीर बन गया है। जुबैदा ने इशारे से उसे मजदूर और पहले फकीर के पास बैठने को कहा।
अब जुबैदा ने तीसरे फकीर से अपना किस्सा सुनाने का आदेश दिया। इस कहानी को सुनने के लिए हमारी अगली स्टोरी पढ़ें और जानें तीसरे फकीर ने जुबैदा से क्या कहा।