अलिफ लैला – पहले फकीर की कहानी
June 17, 2024 द्वारा लिखित nripendra
जुबैदा का इशारा मिलने के बाद पहले फकीर अदीब ने अपनी कहानी सुनाना शुरू किया। फकीर ने बताया कि मैं एक बादशाह का बेटा हूं और मेरे चाचा भी एक राज्य के मालिक थे। सभी अपने राज्य का शासन करते हुए खुशी-खुशी रह रहे थे। मैं हर साल अपने चाचा के घर जाता था और अपने भाई-बहनों के साथ हंसी-खुशी कुछ दिन रहकर अपने राज्य लौट आता था।
इसी तरह पिछले साल भी मैं अपने चाचा के घर गया। उस समय चाचा किसी काम से दूसरे राज्य गए हुए थे, इसलिए वहां मैं ज्यादा दिनों तक रुक गया। तभी चाचा के बेटे ने बताया कि उसने अपने लिए एक महल बनाया है, जिसे वो मुझे दिखाना चाहता है। उसने आगे कहा कि वो मुझे महल तभी दिखाएगा अगर मैं उसके बारे किसी को नहीं बताऊंगा। मैंने भी झट से महल के बारे में किसी को न बताने का वादा कर दिया। तभी मेरा भाई किसी एक लड़की को लेकर आया। हम तीनों ने एक साथ बैठकर कुछ देर बातें की, लेकिन मैंने उससे यह नहीं पूछा कि वो लड़की कौन है।
बातें करते-करते रात हो गई और मैंने अपने भाई को महल दिखाने की बात याद दिलाई। तब भाई ने मुझे कहा कि पास के एक कब्रिस्तान में तुम इस लड़की के साथ जाओ। वहां एक नई कब्र दिखेगी, वो महल का रास्ता है। उसके अंदर जाना और मेरा इंतजार करना। मैंने ऐसा ही किया। उस जगह पर पहुंचते ही हमने देखा कि भाई वहां पहले से ही खड़ा था। उसने तेजी से उस जगह को खोदना शुरू किया, तो मिट्टी के नीचे से एक बड़ा सा लकड़ी का दरवाजा दिखा। उस दरवाजे को खोलने के बाद एक सीढ़ी दिखाई दी।
मेरा भाई उस लड़की के साथ सीढ़ी से नीचे उतरने लगा। तभी उसने पलटकर मेरी तरफ देखा और कहा कि अब तुम यहां से चले जाओ, मैं इस लड़की के साथ अपने महल जा रहा हूं और जाते हुए दरवाजे के ऊपर मिट्टी डाल देना, ताकि महल ऊपर से कब्र जैसी ही दिखे।
मैंने उसकी बात सुनकर वैसा ही किया और चाचा के घर जाकर सो गया। सुबह उठकर मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने कोई सपना देखा हो। मैंने चाचा के दरबान से भाई के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि वो रात से ही घर में नहीं हैं। तब मुझे समझ आया कि वो सपना नहीं, बल्कि सच्चाई थी। फिर मैं जल्दी से उस कब्र वाली जगह में गया, लेकिन वो कब्र मुझे दिखी नहीं जिससे होकर उस महल का रास्ता जाता था। मैं थक हारकर वहां से वापस आ गया।
चाचा के राज्य में सभी लोग परेशान थे। उनके मंत्री यह सोच रहे थे कि चाचा के लौटने के बाद वो उन्हें क्या जवाब देंगे कि उनके महल का शहजादा कहा है। मैं भी उस महल वाली बात से परेशान था, इसलिए मैंने अपने घर लौटने का मन बना लिया। मैंने मंत्री से विदा लेकर मैंने कहा कि चाचा को कह देना कि मैं यहां आया था।
वहां से निकलकर मैं अपने राज्य पहुंचा। वहां पहुंचते ही कुछ सैनिकों ने मुझे पकड़ लिया। उन्होंने बताया कि तुम्हारे पिता के राज्य पर एक मंत्री ने कब्जा कर लिया है और तुम्हें पकड़ने को कहा है। सभी सैनिक मुझे पकड़कर उस मंत्री के पास लेकर गए। वो मंत्री मेरे पिता के सिंहासन पर बैठा हुआ था। मैंने जब उसे पास से देखा, तो मुझे याद आया कि यह वही मंत्री है, जिसकी आंख पर मैंने बचपन में खेल-खेल में गुलेल चला दी थी। उस मंत्री को मुझसे उसी बात का बदला लेना था। उसने मुझे देखते ही अपने हाथों से मेरी आंख फोड़ दी और कहा कि बचपन में मैं तेरे साथ कुछ नहीं कर पाया, लेकिन आज मैंने तुझसे बदला ले लिया।
इतने से भी जब उसका मन नहीं भरा, तो उसने मुझे एक पिंजरे में बंद करके जान से मारने का आदेश सुना दिया। जल्लाद मुझे मारने के लिए घोड़े पर बैठाकर एक जंगल में लेकर आया और तलवार निकालकर मुझे मारने लगा। उस समय मैंने जल्लाद को याद दिलाया कि उसने मेरे पिता का नमक खाया, इसलिए वो मुझे न मारे। इतना सुनकर उसने मुझे छोड़ दिया और कहा आसपास कहीं भी मत दिखना, वरना मुझे तुम्हें मारना पड़ेगा।
जान तो बच गई लेकिन आंखों में बहुत दर्द था और भूख से हालत बहुत बुरी हो गई थी। दिनभर मैं जंगल में छुपा रहता था और रात को उस राज्य से बाहर जाने के लिए एक नया रास्ता ढूंढता था। कुछ दिनों बाद किसी तरह से मैं अपने चाचा के पास पहुंचा और उन्हें सब कुछ बताया। चाचा मेरी बात सुनकर दुखी हो गए और कहने लगे कि मेरा बेटा खो गया, भाई का राज्य चला गया और फिर रोने लगे।
घंटों तक चाचा का रोना सुनकर मेरा दिल पिघल गया और मैंने अपना वादा तोड़कर भाई के उस महल के बारे में उन्हें सब कुछ बता दिया। यह जानकर चाचा को लगा कि वो अपने बेटे को लेकर आ सकते हैं। रात को मैं चाचा के साथ उस कब्रिस्तान गया और वहां पहुंचते ही वह कब्र मिल गई, जिससे भाई के महल का रास्ता जाता था। बहुत मुश्किल से मिट्टी खोदकर लकड़ी का दरवाजा मिला और फिर सीढ़ी दिखी।
सीढ़ी से मैं और चाचा नीचे उतरने लगे। तभी वो जगह धुएं से भर गई। थोड़ा आगे चलने के बाद वहां रोशनी दिखाई दी। वहां एक बड़ा सा हॉल था और उसके बीच में एक गड्ढा था, जिसमें खूब सारा खाना था। उसके बगल में सफेद रंग के परदे से ढका हुआ एक कमरा भी था। चाचा तेजी से उस कमरे की ओर बढ़े, तो देखा कि वहां उनका बेटा और एक लड़की थी।
दोनों को देखकर चाचा और मैं हैरान थे। लड़की वही थी, जिसे मैं उस दिन कब्रिस्तान लेकर गया था, लेकिन दोनों कोयले की तरह जले हुए लग रहे थे। मैं दुखी होकर वही बैठ गया पर चाचा अपने बेटे को डांटने लगे। उन्हें उसपर बहुत गुस्सा आ रहा था। चाचा ने अपने बेटे को कहा तूने अपना ये जन्म बर्बाद कर दिया और उसे मारने लगे।
मैंने तुरंत अपने चाचा को रोका और कहा कि ये कोयले जैसे बन गए हैं, लेकिन फिर भी आप इसे मार रहे हैं और इतना गुस्सा कर रहे हैं। ऐसी क्या वजह है? तब चाचा ने बताया कि उनका बेटा बचपन से ही इस लड़की को पसंद करता था। मैंने उसे बताया था कि वो रिश्ते में इसकी बहन लगती है। फिर भी उसका लगाव कम नहीं हुआ। दोनों को एक दूसरे से दूर करने के लिए उन्हें अलग-अलग महल में रख दिया। मेरे बाहर जाते ही ये उसे लेकर इस महल में आ गया। भगवान ने इसे गलत मानकर इन्हें ये सजा दी है।
इनके कर्म की वजह से इनका यह हाल हुआ है। इसी वजह से मैं बहुत दुखी हूं। उसके बाद चाचा ने मुझे अपने राज्य में हमेशा के लिए रहने के लिए कहा। फिर हम वहां से निकले और उस जगह पर मिट्टी डालकर अच्छी तरह से ढक दिया। उसके बाद हम चाचा मुझे अपने राज्य लेकर गए।
वहां पहुंचते ही पता चला कि उसपर भी मेरे पापा के राज्य पर कब्जा करने वाले मंत्री ने हमला कर दिया है। राज्य को बचाने के लिए चाचा और मैंने खूब लड़ाई की। लड़ते-लड़ते चाचा की मौत हो गई। फिर भी मैं लड़ता रहा। तभी मुझे मंत्री के एक सैनिक ने पहचान लिया। उसने मेरे ऊपर दया करते हुए मुझे वहां से भागने का मौका दिया। मैं किसी तरह से वहां से निकलकर थोड़ा आगे गया और सबसे पहले अपनी दाढ़ी, मूंछें और भौहें साफ कर दी, ताकि मुझे कोई पहचान न सके। उसके बाद मैंने फकीर के कपड़े पहन लिए।
फकीर बनकर कुछ दिन मैं उसी राज्य में रहा और धीरे-धीरे अपना रास्ता ढूंढ कर चाचा के राज्य से निकल गया। दूसरे राज्यों में लोगों से पैसा और मदद मांग कर जीता रहा। एक दिन घूमते-घूमते मैं खलीफा हारूं रशीद के राज्य आ गया। मुझे उन्हें मेरे साथ हुआ किस्सा सुनाना था और न्याय मांगना था, लेकिन यहां पहुंचते-पहुंचते रात हो गई थी। तब रात बिताने का इंतजाम करने के बारे में सोचना पड़ा।
तभी कुछ देर आगे बढ़ने पर मुझे दूसरा फकीर मिला। उसने मुझसे बड़े अच्छे से बात की और मैंने उससे पूछा कि वो इस राज्य से है या नहीं। जवाब में उसने बताया कि वो भी दूसरी जगह से आया है। हम रात बिताने के बारे में कुछ सोच ही रहे थे कि तभी तीसरा फकीर भी वहां आ गया। हमें वो भी परदेसी लगा। हम तीनों ने मिलकर फैसला लिया कि हम सभी एक साथ रहेंगे और एक दूसरे की परेशानी में हमेशा मदद करेंगे। उसके बाद रात के लिए खाना और रहने की जगह ढूंढने के लिए हम तीनों एक साथ निकल गए।
इसी दौरान घूमते-घूमते मैं अन्य फकीरों के साथ जुबैदा आपके दरवाजे में आ पहुंचा। आपने यहां हमें अच्छे से खाना खिलाया, जिसका मैं धन्यवाद करता हूं। बस यही है मेरी कहानी। अब आप मुझे माफ कर दीजिए और मुझे मारने का आदेश वापस ले लीजिए।
पहले फकीर अदीब की कहानी सुनकर जुबैदा ने कहा ठीक है, तुम यहां से जा सकते हो। फकीर को खुशी हुई, लेकिन वो भी अन्य फकीरों का किस्सा सुनना चाहता था। उसने जुबैदा से वहां रूक कर दूसरे फकीरों की कहानी सुनने की इच्छा जाहिर की। जुबैदा ने उसे मजदूर के पास जाकर चुपचाप बैठने की इजाजत दे दी।
उसके बाद जुबैदा ने दूसरे फकीर को अपनी कहानी सुनाने के लिए कहा। हमारी अगली स्टोरी में जानिए दूसरे फकीर की क्या कहानी है।