अलिफ लैला – गनीम और फितना की कहानी
June 17, 2024 द्वारा लिखित nripendra
बादशाह का आदेश पाकर और दुनियाजाद के कहने पर शहरजाद ने अपनी अगली कहानी, जो गनीम और फितना के जीवन पर आधारित थी, सुनानी शुरू की। गनीम और फितना की कहानी कुछ इस प्रकार शुरू होती है:
शहरजाद ने कहा कि बहुत समय पहले की बात है दमिश्क नाम के शहर में अय्यूब नाम का एक व्यापारी रहता था। अय्यूब के परिवार में उसकी पत्नी और दो बच्चे थे, एक बेटी और दूसरा बेटा। अय्यूब की पत्नी एक साधारण गृहणी थी। अय्यूब की बेटी का नाम अलंकित था, जो बहुत सुंदर और गुणी थी। वहीं, अय्यूब के बेटे का नाम गनीम था, जो नौजवान था और दुनियादारी से अंजान था।
एक बार अय्यूब किसी अज्ञात बीमारी से ग्रस्त हो गया और कई वैद्य-हकीमों से इलाज करवाने पर भी वह ठीक न हो पाया और कुछ दिनों बाद उसका देहांत हो गया। व्यापारी के निधन के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी अय्यूब के बेटे गनीम पर आ गई। पिता के मरने के बाद गनीम ने परिवार की संपत्ति और कारोबार को संभालना शुरू कर दिया।
एक दिन जब गनीम किसी काम से अपने पिता के गोदाम में गया, तो देखा वहां बहुत सारी गठरियां पड़ी हुई थी। उन गठरियों पर बड़े-बड़े अक्षरों में बगदाद लिखा था, जिसे देखकर गनीम सोच में पड़ गया कि आखिर उसके पिता ने गठरियों पर इस प्रकार से शब्द क्यों लिखे हैं। शाम में जब गनीम घर पहुंचा तो उसने अपनी मां से इस संबंध में पूछा। गनीम की मां ने बताया कि अय्यूब अपने काम को लेकर बहुत गंभीर थे और उन्हें हर चीज व्यवस्थित पसंद थी। उसकी मां ने आगे कहा कि जब भी उनके पिता (अय्यूब) व्यापार के लिए जाते, तो हर गठरी में उस जगह का नाम लिख देते जहां उसे पहुंचाना है, ताकि यात्रा के दौरान हर गठरी को खोलना न पड़े और कोई गड़बड़ी न हो।
गनीम की मां यह बताते हुए रुआंसी हो गई कि जिन गठरियों पर बगदाद लिखा था उन गठरियों को लेकर उनके पिता अय्यूब बगदाद जाने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही उन्हें बीमारी ने घेर लिया और उनका देहांत हो गया। अपनी मां को रोता देख गनीम उनसे और सवाल करने की हिम्मत न जुटा पाया, लेकिन उसके मन में पिता की गठरियों वाली बात घर कर गई थी।
कुछ वक्त बीतने के बाद एक दिन गनीम ने अपनी मां से पिता के अधूरे काम को पूरा करने की इच्छा जताई। उसने व्यापार के लिए गठरियों को लेकर बगदाद जाने की बात कही। गनीम ने कहा कि वह बगदाद में गठरियों के सामान को बेचकर धन कमाना चाहता है। गनीम की बात सुनकर उसकी मां दुखी हो गई और कहने लगी, “मैं तुम्हारी इच्छा को समझ सकती हूं, लेकिन तुम्हारी उम्र अभी बहुत कम है और तुम्हारे लिए इतनी लंबी यात्रा करना संभव नहीं है।” गनीम की मां ने कहा, “मैं अब तक तुम्हारे पिता की मौत के सदमे से निकल नहीं पाई हूं और तुम मेरी चिंता को और बढ़ा रहे हो। हम यहीं रहकर कम पैसों में भी गुजारा कर लेंगे, तुम बगदाद जाने का विचार मन से निकाल दो।”
गनीम पर उसकी मां की बातों का बिल्कुल भी असर न हुआ और वह बगदाद जाने की अपनी जिद पर अड़ा रहा। गनीम ने अपनी मां से कहा कि वह बाहर जाकर व्यापार सीखना चाहता है। गोदाम में इतना ज्यादा माल पड़ा है, उसे वहां बेचकर वह अच्छा खासा लाभ उठाना चाहता है। मां की बातों को अनसुना करते हुए गनीम घर से कुछ रुपए लेकर दमिश्क बाजार की ओर निकल पड़ा। अगले कुछ दिनों तक गनीम बगदाद की यात्रा की तैयारी में ही लगा रहा। गनीम ने यात्रा के लिए अपने साथ 2-4 सेवक और करीब 100 ऊंट खरीद लिए। उसी दौरान दमिश्क से कुछ व्यापारियों का समूह व्यापार के लिए बगदाद जा रहा था, तो गनीम भी उनके साथ ही चल दिया। मां का आशीर्वाद लेकर और ऊंटों पर गठरियों को लादकर गनीम बगदाद की ओर निकल पड़ा।
बगदाद की यात्रा बहुत लंबी थी। कई दिनों की यात्रा के बाद सभी व्यापारी थके-हारे और मन में उत्साह लिए बगदाद पहुंच गए। बगदाद शहर में प्रवेश करने के बाद गनीम ने समूह के दूसरे व्यापारियों से विदा ली और एक अच्छा सा मकान किराए पर लेकर अपने माल को उतरवा दिया। इतनी लंबी यात्रा के बाद सभी बहुत थक चुके थे, तो कुछ दिन तक गनीम और उसके सेवकों ने मकान में ही खूब आराम किया। रास्ते की थकान दूर होने पर गनीम तैयार होकर अपने माल के नमूने और आधे माल के साथ सेवकों को लेकर शहर के उस स्थान की ओर चल पड़ा, जहां सभी व्यापारी इकट्ठा होकर व्यापार और व्यवसाय पर चर्चा किया करते थे।
व्यापारियों के बीच पहुंचने पर गनीम ने कुछ व्यापारियों से बात की और अपना परिचय देते हुए माल के नमूने उन्हें दिखाए। गनीम द्वारा अपना परिचय देने पर उसने देखा की वहां के लगभग सभी व्यापारी उसके पिता अय्यूब को अच्छी तरह से जानते थे और उनका सम्मान करते थे। व्यापारियों ने गनीम के माल को देखा और शाम होते-होते उसका पूरा माल बिक गया। पहले दिन ही पूरा माल बिक जाने के बाद गनीम ने मकान पर बाकी बचा माल भी दूसरे दिन बेच दिया और अपने पास केवल एक गठरी बचा कर रखी। बगदाद में अपना पूरा माल बेचने के बाद और उससे हुए लाभ से गनीम बहुत खुश हुआ।
अपने माल की बिक्री करने के बाद गनीम अगले दिन बाजार घूमने के लिए निकल पड़ा। गनीम ने देखा कि उस दिन शहर की सभी दुकानें बंद थीं। गनीम ने आसपास के लोगों से दुकानों को बंद करने का कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि शहर के सभी व्यापारियों में जो व्यापारी सबसे धनी था, उसका देहांत हो गया इसलिए पूरे शहर की दुकानें बंद हैं। गनीम ने व्यापारी की अंतिम यात्रा में शामिल होना उचित समझा। लोगों ने उसे बताया कि शहर की एक बड़ी मस्जिद में नमाज पढ़ने के बाद व्यापारी का जनाजा शहर के बाहर दूर कब्रिस्तान में ले जाया जाएगा।
लोगों से जानकारी लेने के बाद गनीम मस्जिद की ओर निकल पड़ा। मस्जिद पहुंच कर गनीम अन्य लोगों के साथ नमाज में शामिल हुआ और फिर व्यापारी के जनाजे में कब्रिस्तान की ओर चल पड़ा। कब्रिस्तान पहुंच कर गनीम ने देखा कि व्यापारी को दफनाने के लिए कब्र पहले से ही खोद कर रखी हुई है। गनीम ने देखा कि व्यापारी को दफनाने से पहले अन्य व्यापारी कुरान का पाठ करने लगे और सारी विधि के अनुसार व्यापारी के शव को दफनाया गया।
गनीम ने देखा कि शाम ढलने वाली थी, लेकिन किसी ने भी अभी तक कब्रिस्तान से जाने की बात नहीं की थी। ये सब देखकर गनीम को बहुत हैरानी हुई, क्योंकि रात होने को थी और वे सब फिर भी कब्रिस्तान में ही थे। अन्य लोगों से पूछने पर पता चला कि यह शहर की प्रथा है कि जब किसी बड़े व्यापारी या फिर किसी बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति की मौत होती है, तो उसके जनाजे में शामिल सभी लोग कब्रिस्तान में ही रात बिताते हैं और रात के खाने-पीने का प्रबंध भी कब्रिस्तान में ही किया जाता है। उसके बाद अगले दिन सब अपने घर लौट जाते हैं। गनीम को उन लोगों ने बताया कि उनके रीति-रिवाजों के अनुसार जनाजे में शामिल लोगों को मृतक के संस्कार भोज में शामिल होना जरूरी है।
लोगों के कहने पर गनीम रात के संस्कार भोज में शामिल होने के लिए रूक गया, लेकिन शहर में किराए के मकान में रखे अपने धन के चोरी होने की चिंता में वह रात को ही कब्रिस्तान से चुपचाप शहर की ओर निकल गया। रास्ते भर गनीम को यही डर सताता रहा कि कहीं घर में चोर न घुस जाएं या फिर अधिक धन देखकर उसके सेवकों की नीयत में ही खोट न आ जाए। गनीम अपनी सोच में इतना डूब गया कि अंधेरे में रास्ता ही भटक गया। अंधेरे में काफी देर तक भटकने के बाद बड़ी मुश्किल से वह शहर के मुख्य द्वार तक पहुंचा, तो सभी फाटक बंद हो चुके थे। काफी मिन्नतें करने के बाद भी जब किसी ने फाटक नहीं खोला, तो गनीम को पछतावा होने लगा कि उसे कब्रिस्तान से आना ही नहीं चाहिए था।
शहर में प्रवेश न मिलने पर गनीम नगर के बाहर ही रात बिताने के लिए जगह ढूंढने लगा। थोड़ी देर तक जगह तलाशने पर गनीम को कुछ ही दूर एक छोटा सा कब्रिस्तान दिखाई दिया। काफी देर भटकने के बाद गनीम बहुत थक चुका था, तो रात बिताने के लिए वह कब्रिस्तान की ओर ही चल पड़ा। कब्रिस्तान के एक कोने में हरी घास देखकर गनीम वहीं लेट गया, लेकिन डर के मारे उसे नींद ही नहीं आ रही थी। कुछ देर सोने की कोशिश करने के बाद भी जब उसे नींद नहीं आई, तो वह उठकर कब्रिस्तान में ही यहां-वहां टहलने लगा।
कब्रिस्तान में टहलते हुए गनीम को एक रोशनी अपनी ओर आती दिखी। भूत-प्रेत के डर से गनीम जान बचाने के लिए पेड़ पर चढ़कर छिप गया। सामने से आ रहे प्रकाश बिंदु के करीब आने पर गनीम ने देखा कि 3 व्यक्ति जिन्होंने राजमहल के सेवकों जैसे कपड़े पहनें थे, एक बड़ा सा संदूक उठाए कब्रिस्तान की ओर आ रहे थे। गनीम ने सेवकों को आपस में बात करते सुना कि वे उस संदूक को वहां दफनाने आएं थे। उनमें से एक सेवक डर के मारे संदूक वहीं छोड़कर महल लौटने को कहने लगा, लेकिन दूसरे सेवक ने उसे डांटते हुए कहा कि ‘मालकिन ने सख्त आदेश दिया है कि संदूक को कब्र में दफनाकर ही वापस लौटना है, वरना वह उन्हें कड़ी से कड़ी सजा देगी।’
तीनों सेवकों ने संदूक को एक ओर रख कर फावड़ा उठा लिया और देखते ही देखते संदूक को दफनाने के लिए गड्ढा खोद लिया। तीनों ने संदूक को उठाकर कब्र में रख दिया और मिट्टी से उसे ढक कर वापस चले गए। सेवकों के जाने के बाद गनीम पेड़ से नीचे उतरा और सोचने लगा कि जरूर उन सेवकों की मालकिन ने संदूक में खजाना भरकर उसे यहां छिपाने के लिए कहा होगा। यह सोचकर गनीम फावड़ा लेकर कब्र की मिट्टी को हटाने लगा। मिट्टी हटाने के बाद गनीम ने संदूक को बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन संदूक भारी होने के कारण वह उसे गड्ढे से नहीं निकाल पाया। तब गनीम ने एक बड़े से पत्थर से संदूक का ताला तोड़ दिया। संदूक का ढक्कन खोलते ही गनीम को उसके भीतर एक बेहोश युवती पड़ी मिली, जिसे देखकर वह हैरान रह गया।
गनीम ने सबसे पहले संदूक में बंद युवती की सांसें देखी, तो वह चल रही थीं। पहले तो गनीम को लगा कि युवती सो रही होगी, लेकिन फिर उसने सोचा कि गहरी से गहरी नींद भी इतनी हलचल से टूट जाती है, तो उसे लगा वह पक्का बेहोश होगी। पहले तो गनीम ने सोचा कि वह युवती को उसके हाल पर छोड़ कर वहां से चला जाए, लेकिन उसकी सुंदरता देखकर उसका मन बदल गया और उसने उसे कब्र से निकाल कर घास पर लेटा दिया। गनीम ने युवती को गौर से देखा तो पाया कि युवती का चेहरा नकाब से ढका हुआ था और उसने कीमती कपड़े और जेवर पहनें थे। गनीम को ये समझने में देर न लगी कि यकीनन ही वह युवती खलीफा के महल की कोई महिला है।
गनीम उस युवती के पास वहीं घास पर बैठा रहा और उसके होंश में आने का इंतजार करने लगा। युवती को जब ठंड लगने लगी तो उसने अपने हाथ-पांव हिलाने शुरू कर दिए। कुछ देर बाद युवती ने बंद आंखों से ही हल्की सी आवाज में कहा, “दासियों कहां हो तुम सब। यहां आओ। कहां रह गई सब।” युवती की आवाज सुनकर गनीम को साफ हो गया कि वह पक्का अपनी दासियों को आवाज दे रही है, जो उसकी सेवा करती होंगी। युवती आंखें मिचते हुई उठी और अपने आसपास अनजान शख्स और कब्र देखकर डर के मारे चीखने लगी। युवती घबराई हुई आवाज में कहने लगी, “मैं कहां हूं? क्या मैं मर गई हूं? मेरे चारों ओर इतनी सारी कब्र ही कब्र क्यों है? क्या ये कयामत का दिन है? अगर ये कयामत का दिन है, तो रात सा अंधेरा क्यों छाया हुआ है?”
पहले तो गनीम चुपचाप युवती को सुनता रहा, लेकिन जब उस स्त्री का डर कम न हुआ, तो उसने उसे शांत करवाते हुए कहा कि वह घबराए नहीं, क्योंकि वह जिंदा है। गनीम ने उसे बताया कि वह शहर में व्यापार के लिए आया हुआ था और किन्हीं कारणों के चलते वह कब्रिस्तान में रात बिताने आ गया और ये उसकी (युवती की) अच्छी किस्मत है कि भगवान ने उसकी जान बचाने के लिए उसे यहां भेजा। गनीम की बात सुनकर उस स्त्री को मौजूदा स्थिति का पता चला और उसका डर कम हुआ।
गनीम ने युवती को पूरी घटना सुनाई। गनीम की बातें सुनकर स्त्री आश्चर्यचकित रह गई और उसकी जान बचाने के लिए गनीम का शुक्रिया अदा करने लगी। उसने गनीम से कहा कि ‘आपने मेरी जान बचाई है, अब आप मेरी एक विनती भी स्वीकार कर लें।’ युवती ने कहा, “मैं पैदल आपके साथ शहर नहीं जा पाउंगी क्योंकि मेरे गहनें और कपड़ों को देखकर ही लोग पहचान जाएंगे कि मैं महल से हूं और इससे मेरी मुसीबतें और बढ़ सकती हैं। इसलिए आप मुझे सुबह होने से पहले उसी संदूक में डालकर बंद कर दें और खुद शहर जाकर एक खच्चर ले आएं। इसके बाद मुझे संदूक समेत खच्चर पर लादकर अपने घर ले चलें।” युवती ने गनीम से कहा कि ‘आपके घर पहुंचकर मैं आपको पूरी कहानी सुनाउंगी।’
गनीम ने स्त्री के कहने पर सुबह होने से पहले उसे संदूक में बंद कर शहर की ओर खच्चर लाने के लिए चल पड़ा। शहर में गनीम को एक व्यक्ति मिला, तो गनीम ने उससे कब्रिस्तान से संदूक लाने के लिए कहा। गनीम की बात सुनकर वह खच्चर वाला व्यक्ति सवाल करने लगा, तो गनीम ने झुठी मनगढंत कहानी बनाते हुए कहा कि एक दूसरा खच्चर वाला कब्रिस्तान में उसका माल से भरा संदूक छोड़ कर चला गया क्योंकि उसे किसी अन्य व्यक्ति ने अच्छी कीमत देने का लालच दे दिया था। गनीम की बातों पर विश्वास कर वह व्यक्ति अपने खच्चर के साथ गनीम के पीछे-पीछे कब्रिस्तान पहुंचा। दोनों ने बड़ी मशक्कत से घोड़े पर संदूक को चढ़ाया और उसे शहर के भीतर गनीम के किराए के मकान तक पहुंचाया।
घर आकर गनीम ने दास से कहकर दरवाजे को बंद करवाया और फिर संदूक खोलकर उस स्त्री को बाहर निकाला। गनीम ने युवती का हाल जाना, तो उसने कहा कि वह बिल्कुल ठीक है और उसे संदूक में यहां तक आने में कोई तकलीफ नहीं हुई। युवती को घर पर छोड़कर गनीम अपने एक सेवक को लेकर खाने की कुछ चीजें और अन्य सामान खरीदने के लिए बाजार चला गया। गनीम ने बाजार से कई तरह की खाने की चीजें और महंगे पेय पदार्थ खरीदें। घर लौटकर गनीम ने सारा सामान युवती के आगे थालियों में सजा दिया और उससे खाने का आग्रह किया। स्त्री ने गनीम से कहा कि वह तब ही कुछ खाएगी अगर वह साथ बैठ कर खाए। युवती के कहने पर गनीम भी उसके साथ बैठ गया।
युवती ने जब खाना खाने के लिए चेहरे से नकाब उतारा तो गनीम ने देखा कि उसके नकाब के भीतरी ओर रेशमी धागे से लिखा था, ‘मैं खलीफा हारूं रशीद की प्रेमिका हूं और वह मेरे हैं।’ यह देखकर गनीम घबरा गया कि आखिर उसने कौन सी मुसीबत मोल ली है। गनीम ने साथ खाते हुए युवती से पूछा कि वह कौन है? और ऐसा कौन सा कारण है कि उसे संदूक में बंद कर कब्रिस्तान में मरने के लिए छोड़ दिया गया। गनीम का सवाल सुनकर युवती ने अपना परिचय देते हुए बताया कि उसका नाम फितना है और वह खलीफा हारूं रशीद की प्रेमिका है।
फितना ने गनीम को बताया, “मुझे बचपन में ही सेविका के रूप में महल ले आए थे। जहां मैंने शिक्षा के अलावा बहुत सी कलाएं सीखीं और सब में निपुणता हासिल की। मेरे गुणों को देखते हुए खलीफा मुझे पसंद करने लगे और उन्होंने मेरे लिए एक बड़ा मकान बनवा दिया, हीरे-मोती के कीमती गहनों से मुझे लाद दिया और मुझे एक शहजादी की तरह हर शानो-शौकत से नवाजा।” फितना ने आगे कहा कि महल में हर वक्त मेरे आगे पीछे 10-10 सेविकाएं रहती हैं, जो मेरी हर छोटी-बड़ी चीज का ध्यान रखती है।’ उसने आगे बताया कि ‘खलीफा की पत्नी रानी जुबैदा को मेरे और खलीफा की दोस्ती पसंद नहीं और उसे मुझसे जलन होती है इसलिए वह मुझे मरवाना चाहती थी।’
फितना ने गनीम को बताया, “खलीफा किसी युद्ध के लिए महल से बाहर गए हुए हैं, इसलिए उनकी गैर-मौजूदगी का फायदा उठाकर रानी जुबैदा ने मेरी ही एक दासी के जरिए मुझे बेहोशी की दवा पिला दी। इसके बाद बेहोशी में ही मुझे संदूक में बंद कर जान से मारने का प्रयास किया गया।” फितना की बातें सुनकर गनीम घबरा गया उसने फितना से पूछा कि ‘क्या रानी जुबैदा से मेरी जान को भी खतरा है?’ फितना ने कहा कि ‘अगर रानी को पता चलेगा कि तुमने मेरी जान बचाई है, तो वह हम दोनों को मरवा सकती है। वहीं, अगर ऐसा न हुआ और खलीफा युद्ध से लौटकर मेरी कब्र पर जाएंगे और अगर उन्हें वहां मेरी ताबूत न मिली, तो वह घर-घर में मेरी तलाश करवाएंगे। ऐसी स्थिति में अगर खलीफा को पता चला कि तुमने मुझे अपने घर में छिपा रखा है, तो वो तुम्हें मौत के घाट उतार देंगे।’
फितना की बातें सुनकर गनीम परेशान हो गया और कहने लगा कि ‘इसका मतलब मेरी मौत तो पक्की है, रानी नहीं तो खलीफा दोनों में से किसी एक के हाथों मुझे मरना ही पड़ेगा।’ गनीम की बात सुनकर फितना ने कहा कि उसे निराश होने की जरूरत नहीं है दोनों ही स्थिति में रानी और खलीफा केवल तब ही उन तक पहुंच पाएंगे, अगर कोई घर का ही व्यक्ति बाहर बता दे। उसकी बात सुनकर गनीम ने फैसला लिया कि घर का कोई भी सेवक फितना से कम से कम मिलेगा और वह हमेशा घर पर ही रहेगी।
गनीम ने अपने सेवकों को फितना के कमरे से दूर रखा और उन्हें वहां न जाने की सख्त हिदायत दी। इसके बाद गनीम खुद बाजार जाकर फितना के लिए अच्छे कपड़े और जरूरी सामान ले आया। गनीम द्वारा लाए सामान को देखकर फितना बहुत खुश हुई और उसका शुक्रिया अदा करते हुए कहने लगी, “आपका ये एहसान मैं जिंदगी भर नहीं उतार पाउंगी, पहले मेरी जान बचाकर फिर अपने घर में आसरा देकर और मेरी इतनी खातिरदारी कर के आपने मुझे अपना कर्जदार बना लिया है। आप मेरे मालिक से भी बढ़कर हैं।” फितना की बातों का गनीम के पास कोई जवाब नहीं था, तो वह बस मुस्कुराकर रह गया।
एक घर में साथ रहते-रहते गनीम और फितना एक-दूसरे को पसंद करने लगे, लेकिन दोनों ने अपनी मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए कभी एक-दूसरे से प्यार का इजहार नहीं किया। दोनों घर में दिन भर साथ समय बिताते, खूब खाते-पीते और रात होने पर अपने-अपने कमरे में जाकर सो जाते। इसी तरह हंसी खुशी दोनों साथ दिन बिताने लगे।
वहीं, दूसरी ओर रानी जुबैदा को दिन-रात यह चिंता खाए जा रही थी कि फितना जिंदा है या नहीं और खलीफा के लौटने पर उनके सवालों का वह क्या जवाब देगी। जुबैदा ने अपनी विश्वासपात्र और महल की सबसे बुजुर्ग सेविका, जिसने जुबैदा को बचपन से पाल-पोसकर बड़ा किया था उसे अपने पास बुलाया। जुबैदा ने दासी से अपनी चिंता जाहिर करते हुए उसे बताया कि कैसे फितना के कारण उसकी प्रतिष्ठा खतरे में पड़ सकती है और उससे समस्या का समाधान करने के लिए कहा।
बुढ़ी सेविका बेहद चालाक थी। रानी की समस्या सुनने के बाद कुछ देर तक सोचकर उसने कहा कि ‘मेरे पास एक ऐसी तरकीब है, जिससे बादशाह को तुम पर बिल्कुल भी शक नहीं होगा।’ सेविका ने आगे कहा, “जुबैदा रानी, आप कारीगर से युवती के आकार का एक बड़ा सा पुतला बनवा लें। उस पुतले को अच्छे से कपड़े पहनाकर ताबूत में रखवा दें और फिर उस ताबूत को शाही कब्रिस्तान में दफन करवा कर उसके ऊपर आलीशान मकबरा बनवा दें।” दासी ने आगे बताया कि उस मकबरे पर फितना का एक चित्र टंगवा दें और कब्र पर रोज दिए जलवाया करें। जब बादशाह युद्ध से वापस आएंगे तो उन्हें फितना की मृत्यु की खबर दें’
सेविका की बात सुनकर रानी जुबैदा ने कहा कि अगर बादशाह ने कब्र खुदवाने की बात कही तो भेद खुल जाएगा। रानी की बात सुनकर सेविका ने कहा कि ‘जब कोई इंसान मर जाता है और उसे दफना दिया जाता है, तो उसकी कब्र को दोबारा खुलवाया नहीं जा सकता। ऐसा करना अपशगुन माना जाता है और मुझे यकीन है बादशाह ऐसा नहीं करेंगे।’ अपनी बात खत्म करते हुए सेविका ने कहा कि वह एक उम्दा कारीगर को जानती है जो उनका यह काम कर सकता है।
सेविका ने कहा कि ‘इस काम को अंजाम देने के लिए तुम्हें फितना की उस सेविका को बुलाना होगा, जिसने उसे बेहोशी की दवा पिलाई थी और उसके जरिए महल के सेवकों और कर्मचारियों में यह बात फैला देनी होगी कि फितना अपने कमरे में मृत मिली है। इसके बाद फितना की मौत के दुख में राजकीय शोक का आदेश देना और उस ताबूत को रितिरिवाज के साथ दफना देना।
बुढ़ी सेविका की योजना सुनकर रानी जुबैदा को थोड़ी तसल्ली मिली और उसने उसे उचित इनाम देकर उसे विदा किया। इसके बाद रानी ने योजना के अनुसार फितना की कदकाठी का पुतला बनवाया और उसकी मौत की खबर पूरे महल और शहर में फैला दी। रानी ने बड़ी चालाकी के साथ योजना को अंजाम दिया। साथ ही खुद भी फितना के मातम में अपनी सेविकाओं के साथ शामिल हुई।
फितना की मृत्यु की खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई और गनीम को भी इस बात का पता चल गया। गनीम ने घर आकर फितना को पूरी खबर दी और फितना को भी यह सुनकर तसल्ली मिली कि अब उसके कारण गनीम की जान को खतरा नहीं है।
लंबे समय तक दुश्मनों से युद्ध लड़कर जब बादशाह बगदाद वापस पहुंचे, तो उन्हें रानी जुबैदा ने फितना की मौत की खबर दी। फितना की मृत्यु की खबर सुनकर बादशाह बहुत दुखी हुए और उसके मकबरे में जाने की इच्छा जताई। मकबरे के पास पहुंच कर खलीफा ने देखा कि मकबरा बेहद सुंदर बनाया गया है और उसके चारों ओर दिए जलाए गए हैं। फितना के मकबरे पर लगाई गई तस्वीर को ध्यान से देखने पर ही बादशाह को पता लग गया कि चित्र किसी नौसिखिए चित्रकार से बनवाया गया है।
बादशाह को मालूम था कि रानी जुबैदा फितना को पसंद नहीं करती थी, इसलिए उसे शक हुआ कि हो सकता है कि रानी ने ही फितना को मरवाया हो या फिर उसकी मौत का झूठा ढोंग रचकर उसे कहीं भेज दिया हो। बादशाह ने कब्र को दोबारा खुदवाने के लिए धर्मगुरुओं से सलाह ली, लेकिन सभी ने इसे धर्म के खिलाफ बताया। अपने शक को दूर करने का उपाय न सूझने के बाद बादशाह ने भी फितना को मरा जानकर उसके लिए मातम मनाना शुरू कर दिया। करीब 40 दिन तक बादशाह रोज फितना की कब्र में जाकर शोक मनाते और रोते रहते। उसके बाद बादशाह मातम खत्म कर महल में आ गए।
बादशाह के महल में लौटने के कुछ दिन बाद एक दोपहर को जब बादशाह अपने कमरे में आराम कर रहे थे। तभी बादशाह को सोता जान कर उन्हें पंखा दे रही दो सेविकाओं में से एक ने कहा कि ‘मुझसे खलीफा का ये दुख देखा नहीं जाता है, जबकि फितना जिंदा है।’ पहली सेविका की बात सुनकर दूसरी सेविका आश्चर्य से चीख उठी, “क्या वह जिंदा है?” दासी की चीख से बादशाह की नींद टूट गई और उसने दोनों सेविकाओं को जोर से फटकार लगाई। बादशाह का गुस्सा देखकर दोनों सेविकाएं डर गई। दूसरी सेविका ने हिम्मत जुटाकर कहा, “हम आपकी नींद खराब नहीं करना चाहते थे, लेकिन इसने (पहली सेविका ने) बात ही ऐसी कही कि मेरी चीख निकल गई। उसने अभी बताया कि फितना जिंदा है।” फितना के जीवित होने की बात सुनकर बादशाह चौंक कर उठ खड़ा हुआ और उनसे पूरी बात बताने के लिए कहा।
पहली सेविका ने बादशाह को बताया कि आज सुबह जब वह किसी काम से बाजार गई हुई थी, तो एक अंजान शख्स उसके हाथ में पत्र थमा कर भाग गया। पत्र खोलकर पढ़ने पर पता चला कि वह फितना का खत था, जिसमें उसने अपना सारा हाल लिखा है। दासी ने कहा, “मैं आपको पत्र के बारे में बताने वाली थी, लेकिन आप थके हुए थे और सोने की कोशिश कह रहे थे, इसलिए मैं चुप रही। मैं आपके जागने पर आपको खत के बारे में बताने वाली थी।”
इसके बाद सेविका ने फितना का लिखा खत बादशाह को सौंप दिया। बादशाह ने खत खोल कर देखा, तो उसमें फितना ने उसे जिंदा दफनाने, गनीम द्वारा उसे बचाने व अपने घर में पनाह देने की सारी बातें लिखी हुई थीं। फितना का खत पढ़कर पहले तो बादशाह को रानी जुबैदा पर बहुत गुस्सा आया और प्रसन्नता हुई कि फितना जिंदा है, फिर उसे इस बात पर गुस्सा आने लगा कि वह इतने दिन से किसी अनजान व्यक्ति के साथ रह रही है और बादशाह यहां उसके लिए शोक मना रहा है। बादशाह को लगने लगा कि फितना को उससे बिल्कुल लगाव नहीं है।
बादशाह ने खत के संबंध में किसी से कुछ नहीं कहा और अगले ही दिन अपने मंत्री जाफर को बुलाया। बादशाह ने जाफर को आदेश दिया कि वह अपने 4,000 सैनिक लेकर नगर में जाए और वहां से एक घर में रह रहे दमिश्क के व्यापारी को बंधक बनाकर उसके पास ले आए। बादशाह ने यह भी कहा कि उसके साथ रह रही फितना को वे बंधक न बनाएं, बल्कि संभाल कर ले आएं। हालांकि ध्यान रहे कि दोनों भागने न पाए। वह उन दोनों को कठोर सजा देना चाहते हैं। साथ ही उनके घर को तोड़ देने का आदेश भी दिया। बादशाह का आदेश सुनकर ही मंत्री जाफर अपने सैनिकों के साथ नगर की ओर निकल पड़ा।
नगर में सैनिकों की इतनी बड़ी फौज को देखकर सब हैरान रह गए। बादशाह के सैनिक गनीम को खोज रहे हैं, ये बात फितना तक भी पहुंच गई। फितना बादशाह के तौर तरीकों से अच्छी तरह परिचित थी और वह जानती थी कि अगर गनीम बादशाह की कैद में आ गया तो, वो उसे निर्मम मौत दे देंगे। फितना ने गनीम की जान बचाने के लिए उससे कहा कि वह तुरंत दासों के कपड़े पहन ले और अपने शरीर पर धूल व कालिख लगा ले ताकि सैनिक उसे पहचान न पाए।
फितना की बात सुनकर गनीम ने कहा कि उसे अपनी जान से ज्यादा उसकी जान की चिंता है और वह उसे इस तरह संकट में छोड़कर नहीं जाएगा। गनीम की मनोस्थिति समझते हुए फितना ने कहा कि बादशाह को उससे लगाव है, इसलिए हो सकता है कि क्षमा मांगने पर वह उसे बख्श दें। फितना ने कहा कि बादशाह से माफी मिलने के बाद वह उसे (गनीम को) भी माफी दिलवा देगी। गनीम को फितना की बात पर विश्वास नहीं था फिर भी उसके जोर देने पर वह सेवक के वेश में सैनिकों को चकमा देकर निकलने में सफल रहा।
सैनिकों के साथ घर में पहुंचे मंत्री को कीमती सामान, जेवर और रुपयों से भरे एक कमरे में फितना एक कोने में डर से कांपती और रोती दिखाई दी। मंत्री को देखते ही फितना उसके कदमों में गिर गई और माफी मांगने लगी और उसे बादशाह के सामने ले जाने की विनती करने लगी। फितना ने मंत्री से कहा कि गनीम करीब एक महीना पहले ही अपना पूरा सामान, रुपए-पैसे व कीमती चीजें उसे सौंपकर व्यापार करने के लिए दूसरे शहर जा चुका है।
फितना के कहने पर मंत्री जाफर ने सैनिकों के हाथों गनीम का पूरा सामान राजमहल पहुंचा दिया और खुद फितना को लेकर बादशाह के सामने पेश हो गया। बादशाह ने मंत्री से गनीम के बारे में पूछा, तो उसने पूरी कहानी बताई कि पूरे नगर के चप्पे-चप्पे खोजने के बावजूद वो उन्हें नहीं मिला। बादशाह ने डर से कांपती फितना को देखा और गुस्से में उसे अपने निवास स्थान से सटे कारागार में डालने का आदेश दिया।
गनीम के न पकड़े जाने से बादशाह का गुस्सा शांत नहीं हुआ था। उसने दमिश्क के हाकिम जुबैनी को पत्र लिखवाकर भिजवाया कि दमिश्क निवासी अय्यूब के पुत्र गनीम ने राज महल की एक सेविका का अपहरण किया था और उसके बाद से वह फरार है। बादशाह ने पत्र में लिखवाया कि गनीम के पकड़े जाने पर सजा के रूप में उसे बेड़ियां डालकर पूरे शहर में घुमाया जाए और उसे कोड़े मारे जाएं। उसके घर को तोड़ दिया जाए और गनीम के न मिलने पर उसके परिवार के सदस्यों को 3 दिन तक यह सजा मिले। उसके बाद उसे न्याय के लिए बादशाह के पास भेजा जाए।
बादशाह का पत्र पढ़कर आदेश का पालन करने की स्वीकृति देकर कबूतर के जरिए बादशाह को वापस जवाब भिजवाया गया। बादशाह की आज्ञा का पालन करने के लिए हाकिम जुबैनी सैनिकों के साथ गनीम के घर पहुंचा। गनीम के घर पहुंचने पर जुबैनी ने देखा कि घर में उसकी मां और बहन अलंकित गनीम को मरा जानकर उसकी कब्र बनवाकर मातम मना रही हैं। जुबैनी को पता चला कि घर से बगदाद जाने के बाद से गनीम ने अपने परिवार को न तो कोई चिट्ठी भेजी और न ही कभी संपर्क किया, इसलिए उसे मरा जानकर उसकी मां और बहन मातम मना रही हैं। पूरी स्थिति देखने के बाद भी जुबैनी को शक था कि कहीं गनीम को उन्होंने घर में छिपाकर न रखा हो, तो उसने सैनिकों को घर की तलाशी लेने का आदेश दिया। हालांकि, उन्हें पूरे घर में गनीम नहीं मिला।
हाकिम जुबैनी ने गनीम की मां व बहन को बादशाह का दिया आदेश बताया और कहा कि गनीम के न मिलने पर उन दोनों को बादशाह का दंड भोगना होगा। बादशाह के आदेशानुसार जुबैनी ने गनीम की मां और बहन को घर से बाहर निकलने के लिए कहा और घर को तुड़वा दिया। दोनों स्त्रियों को पूरे शहर में कोड़े मारते हुए घुमाया गया। उनकी यह स्थिति देखकर जुबैनी को भी दया आ रही थी, लेकिन वह बादशाह के आदेश की अवहेलना नहीं कर पाया। सजा पूरी करने तक दोनों स्त्रियां दर्द और थकान से बेहोश हो चुकी थीं, तो हाकिम जुबैनी दोनों को अपने महल ले आया।
बादशाह ने अपने पत्र में कड़े शब्दों में लिखा था कि गनीम के परिवार की किसी भी तरह की सहायता करने वालों को भी दंडित किया जाएगा, लेकिन दोनों स्त्रियों की हालत देखकर जुबैनी की पत्नी को उन पर दया आ गई। जुबैनी की पत्नी ने चुपके से अपनी दो सेविकाओं को गनीम की मां और अलंकित के पास उनकी मरहम पट्टी व देखभाल करने के लिए भेज दिया। सेविकाओं द्वारा उनकी मरहम पट्टी करने व शरबत पिलाने पर दोनों को कुछ होंश आया। जब दोनों को पता चला कि जुबैनी की पत्नी ने सेविकाओं को उनकी सेवा के लिए भेजा है, तो उन्होंने सेविकाओं के जरिए जुबैनी की पत्नी का शुक्रिया अदा किया और उसे ढेरों दुआएं दी।
होंश आने पर गनीम की मां ने सेविकाओं से पूछा कि गनीम ने ऐसा कौन सा अपराध किया है, जिसके लिए उन्हें हाकिम ने इतनी कठोर सजा दी है। उनकी बात सुनकर एक सेविका ने उन्हें बताया कि उस पर खलीफा की प्रिय सेविका का अपहरण करने का आरोप है। जिसके चलते बादशाह ने उसे ये कठोर दंड देने का आदेश सुनाया था।
सेविकाओं की बात सुनकर गनीम की मां ने कहा कि गनीम के संस्कार व आचरण ऐसे नहीं है कि वह किसी स्त्री के साथ ऐसा करे, उस पर लगे आरोप गलत हैं। सेविकाओं की बात सुनकर दोनों मां-बेटी आपस में गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगीं। अगले दो दिन भी गनीम की मां और उसकी बहन को दंडित किया गया, लेकिन हाकिम जुबैनी के कहने पर उन पर सिपाहियों की मार कम पड़ी। दंड खत्म होने के बाद बादशाह का आदेश होने के कारण नगर में किसी ने भी गनीम की मां और बहन को सहारा नहीं दिया। दोनों जहां भी जातीं उन्हें लोग दुत्कार कर भगा देते।
नगर में कोई आश्रय न मिलने पर गनीम की मां और बहन ने दूसरे शहर जाने का फैसला लिया, लेकिन बादशाह ने दोबारा आदेश भिजवाया कि उन्हें आसपास के गांवों में भी शरण न मिले। हाकिम जुबैनी ने दोनों स्त्रियों को बादशाह का आदेश बता दिया और उन्हें चुपके से कुछ अशर्फियां पकड़ा दीं, ताकि वे कुछ दिन गुजारा कर सकें। इसके बाद दोनों मां-बेटी फकीरों सी हालत में एक नगर से दूसरे नगर आश्रय की तलाश में भटकती रहीं। दोनों जैसे-तैसे किसी पेड़ के नीचे रात गुजारतीं और दिन भर शहर-शहर भटकती रहती। कईं नगर भटकने पर भी जब दोनों को किसी ने सिर छिपाने तक की जगह नहीं दी, तो दोनों गनीम का पता पूछतीं-पूछतीं बगदाद की ओर चल पड़ीं।
वहीं, दूसरी ओर कारागार में बंद फितना दिन रात रोती रहती। कोठरी बादशाह के निवास स्थान के पास ही थी, तो वहां से गुजरते हुए बादशाह को फितना की रोने की आवाज आती रहती। एक दिन बादशाह ने फितना को रो-रोकर गनीम को निर्दोष बता कर खलीफा हारूं रशीद से शिकायतें करते सुना। फितना का विलाप सुनकर बादशाह को अपने न्याय पर शक होने लगा। बादशाह ने सोचा कि अगर फितना की बात सच है, तो उसके कारण दंड भोगने वाली गनीम की मां व बहन के साथ बहुत ज्यादा अन्याय हुआ है।
बादशाह ने राजमहल के मुख्य अधिकारी मसरूर को अपने कमरे में बुलाया और उसे फितना को अपने सामने पेश करने का आदेश दिया। बादशाह के कहे अनुसार मसरूर फितना को कारागार से निकाल कर बादशाह के पास ले आया। बादशाह ने फितना से पूछा कि क्या सच में उसने किसी निर्दोष को सजा दी है और उससे पूरी बता बताने के लिए कहा।
फितना को पता चल गया कि बादशाह ने जरूर उसे विलाप करते हुए सुन लिया होगा। फितना ने बादशाह के सामने सिर झुकाते हुए उसे बताया कि कैसे गनीम ने उसकी जान बचाई और खलीफा की प्रिय होने का पता चलने पर उसका आदर-सत्कार किया। फितना की बात सुनकर बादशाह ने कहा कि ‘अगर यह सच है, तो तुमने इतने समय बाद ही क्यों पत्र लिखा और पहले क्यों चुप रही।’ इस पर फितना ने कहा कि ‘गनीम को अपनी पूरी संपत्ति मेरे जिम्मे छोड़ कर गए हुए एक महीना बीत गया था और मुझे आपके आने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए जब एक सेविका से मुझे आपके महल लौटने का पता चला तो मैंने तुरंत पत्र भिजवाया।’
बादशाह को फितना की बात पर विश्वास हो गया। बादशाह को अब अपने किए पर पछतावा होने लगा। बादशाह ने कहा कि ‘मैंने गनीम, उसकी मां और बहन के साथ अन्याय किया है, जिसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं अब मैं ऐसा क्या करूं कि वे मुझे माफ कर दें।’ इस पर फितना ने बादशाह से कहा कि सर्वप्रथम आप गनीम और उसकी मां-बहन को माफ करने को लेकर आदेश जारी करें, तो हो सकता है कि वह ये खबर सुनकर लौट आएं।’ खलीफा ने फितना की बात पर हामी भरते हुए तुरंत अपराध माफी की घोषणा करवाई।
बादशाह की घोषणा के कई दिनों बाद भी जब गनीम का कुछ पता नहीं चल पाया, तो फितना ने बादशाह से स्वयं गनीम को खोजने की विनती की, जिसे खलीफा ने स्वीकार कर लिया। बादशाह की अनुमति मिलने के बाद अगले ही दिन फितना अशर्फियों से भरा थैला लेकर गनीम को खोजने निकल पड़ी। फितना ने संतों-फकीरों को दान दिया और आशीर्वाद लिया। इसी दौरान फितना को एक सेवक मिला, जो दिन दुखियों की सेवा और मदद किया करता था। फितना ने उसे अशर्फियां देकर नेक काम में लगाने के लिए कहा।
फितना की वेश-भूषा देखकर ही वह समझ गया था कि वह राजमहल की स्त्री है। उस व्यक्ति ने फितना से कहा कि अगर वो अपने हाथों से दान करेगी, तो उसे पुण्य मिलेगा क्योंकि कल ही दो स्त्रियां उनके पास आई हैं, जिनकी स्थिति बेहद दयनीय है। उसकी बात सुनकर फितना ने उसे उन स्त्रियों के पास ले जाने के लिए कहा। फितना अपनी शाही सवारी के साथ उसके पीछे-पीछे उसके ठिकाने की ओर चल पड़ी।
वह सेवक फितना को अपने घर ले गया। उसके आवाज देने पर उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला। सामने शाही वस्त्रों में फितना को देखकर उसकी पत्नी चौंक गई और उसके सामने सिर झुकाकर उसका अभिवादन करने लगी। फितना ने सेवक की पत्नी की ओर ध्यान न दिया और सीधे उन दो स्त्रियों के पास पहुंची और उनका हाल जानने लगी। फितना ने उनसे कहा कि वह उनकी सेवा करने आई है और पूछा कि वे कौन हैं और उनकी ये हालत कैसे हुई है। फितना ने दोनों को हर संभव मदद का भरोसा भी दिया।
फितना की बात सुनकर दोनों रोने लगीं और रोते-रोते अपनी पूरी कहानी फितना को सुनाने लगी। दोनों स्त्रियों ने बताया कि वह दमिश्क की रहने वाली हैं और उनके बेटे का नाम गनीम है। दोनों ने अपनी पूरी आप बीती फितना को सुनाई। दोनों की सच्चाई जानकर फितना हैरान रह गई। उसने रोते हुए उन्हें बताया कि जिस स्त्री के कारण उनके बेटे और उन्हें इतने दुख झेलने पड़े हैं, वो खुद उनके सामने खड़ी है।
फितना ने गनीम की मां और बहन को बताया कि ‘बादशाह ने उन सभी का अपराध माफ कर दिया है और मेरी जान बचाने के लिए वे गनीम से मिलकर उसे इनाम व सम्मान देना चाहते हैं।’ आगे फितना ने कहा कि बादशाह ने कहा है कि ‘वह गनीम के मिलते ही हम दोनों का विवाह करवा देंगे, इसलिए आप मुझे अपनी बेटी ही समझिए।’ फितना की बात सुनकर गनीम की मां ने उसे रोते-रोते गले से लगा लिया।
तीनों स्त्रियां आपस में बात कर ही रही थीं कि तभी उस सेवक ने आकर बताया कि कुछ देर पहले ऊंटवाले को एक युवक मिला है, जो बहुत कमजोर हैं और बार-बार बेहोश हो रहा है। दलाल ने बताया कि वह ऊंटवाला युवक को उसके औषधालय में लाया है। यह सुनकर फितना ने उसके साथ औषधालय जाने की इच्छा जताई। फितना को संदेह था कि वह शख्स गनीम हो सकता है।
फितना के कहने पर वह सेवक उसे अपने साथ ले गया। औषधालय पहुंच कर फितना ने देखा एक बेहद दुर्बल शरीर का मरीज बिस्तर पर पड़ा है, जिसका चेहरा पीला पड़ चुका है और हड्डियां निकल आई हैं। गौर से देखने पर फितना ने उसे पहचान लिया कि वह गनीम ही था। उसकी ऐसी स्थिति देखकर फितना रोने लगी, तो उस सेवक ने उसे वहां से बाहर भेजकर गनीम का इलाज करना शुरू किया। फितना बाहर आने के बाद सीधा गनीम की मां और बहन के पास पहुंची और उन्हें बताया कि वह युवक गनीम ही है और वह जीवित है। तीनों ने ईश्वर का शुक्रिया अदा किया और उसकी सलामती की दुआएं मांगने लगी।
वहां उस सेवक ने गनीम के होंश आने पर उसे बताया कि बादशाह ने उसे क्षमा कर दिया है और फितना समेत उसकी मां व बहन उसके घर पर हैं। गनीम की मां व बहन से मिलने के बाद फितना बादशाह को संदेश देने के लिए महल की ओर चल दी। महल पहुंच कर फितना ने संदेश भिजवाकर बादशाह से मिलने की इच्छा जताई। फितना का संदेश मिलते ही बादशाह तुरंत उसके पास पहुंचे। फितना ने बादशाह को गनीम, उसकी मां और बहन के मिलने की जानकारी दी।
गनीम और उसकी मां व बहन के मिलने का समाचार सुनकर बादशाह ने चैन की सांस ली। बादशाह ने फितना का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि वह उसकी शादी गनीम से करा देगा और वह बस एक बार तीनों से मिलना चाहता है। अगले ही दिन फितना उस सेवक के घर पहुंची और गनीम की मां व बहन को बादशाह द्वारा कही पूरी बात बताई। गनीम की हालत में हल्का सुधार होने पर उस सेवक ने फितना और उसकी मां-बहन को उससे मिलने की अनुमति दे दी।
सेवक से अनुमति मिलने के बाद सबसे पहले फितना गनीम के पास पहुंची। फितना को देखकर वह बहुत खुश हुआ। फितना ने धीरे-धीरे उसे पूरी बात बताई और यह भी बताया कि बादशाह उन दोनों की शादी कराना चाहते हैं। फितना की बातें सुनकर गनीम बहुत खुश हुआ। उसके बाद फितना ने गनीम की मां और बहन को भी उससे मिलने के लिए बुलवा लिया। गनीम को देखकर दोनों खुशी के आंसू रोने लगीं।
फितना और अपनी मां व बहन का हाल जानने के बाद गनीम ने बताया कि वह बगदाद से भागकर एक गांव में छिप कर बैठा रहा। जहां वह बीमार हो गया और कई दिनों तक मस्जिद में पड़ा रहा। उसके बाद एक किसान ने उस पर दया कर ऊंटवाले को किराया देकर उसे बगदाद भिजवा दिया। गनीम की बात सुनकर उसकी मां, बहन और फितना रोने लगे और उसे जीवित रखने के लिए ईश्वर का धन्यवाद करने लगे।
कुछ दिन बाद औषधियों के असर से गनीम धीर-धीरे स्वस्थ होने लगा। उसके बाद गनीम, उसकी मां व बहन का बादशाह से मिलने का दिन नजदीक आने लगा। हालांकि, उनके पास बादशाह के सामने पेश होने के लिए ढंग के कपड़े तक नहीं थे, तो फितना महल से बहुत सारी अशर्फियां ले आई और कुछ उस सेवक को दी और कुछ अशर्फियों से तीनों (गनीम, उसकी मां व बहन) के लिए कपड़े बनवाएं।
कुछ दिन बाद जब गनीम चलने फिरने के योग्य हो गया, तो बादशाह से मिलने के लिए एक दिन निश्चित किया गया। उस दिन गनीम व उसकी मां और बहन को लेने के लिए महल से खास शाही सवारी उस सेवक के घर भेजी गई। उस दिन पूरा दरबार सजा हुआ था। गनीम, उसकी मां और बहन तीनों फितना के साथ दरबार में बादशाह के सामने उपस्थित हुए।
चारों ने बादशाह का अभिवादन किया। उन्हें देखकर बादशाह ने प्रसन्न होकर अभिवादन स्वीकार किया। बादशाह के कहने पर गनीम ने उन्हें फितना की जान बचाने का पूरा किस्सा सुनाया। जिसे सुनकर बादशाह बहुत खुश हुआ और गनीम को सम्मान व कीमती कपड़े आदि देने का आदेश दिया। साथ ही बादशाह ने गनीम को अपने दरबार में एक उच्च पद पर भी आसीन किया।
उसी शाम बादशाह ने गनीम और फितना को महल में बुलवाया। बादशाह ने गनीम से अपनी मां और बहन को भी साथ लाने के लिए कहा। चारों के महल पहुंचने पर खलीफा ने उनसे कहा कि उनके कारण सभी को कष्ट झेलना पड़ा जिसके लिए वह दुखी हैं। बादशाह ने गनीम से कहा कि वह उससे फितना का विवाह करवाना चाहते हैं। इसके साथ ही वह स्वयं गनीम की बहन से शादी कर उसे रानी का दर्जा देना चाहते हैं। बादशाह ने गनीम की मां से कहा कि ‘आपकी आयु अभी ज्यादा नहीं है, इसलिए आप हमारे मंत्री जाफर से शादी कर लें।’ बादशाह ने सबकी स्वीकृति मिलने पर उसी समय काजी और गवाहों को महल में बुलवाया और तीनों निकाह साथ में पढ़वाए। साथ ही खलीफा ने इस पूरे वृतांत को शाही ग्रंथों में लिखवाकर उसकी नकल सभी बड़े देशों में भिजवाने के आदेश दिए।
इसी के साथ ही मल्लिका शहरजाद ने गनीम और फितना की कहानी खत्म की, जो बादशाह और दुनियाजाद दोनों को खूब पसंद आई। इस पर शहरजाद ने कहा कि ‘इसके बाद वाली कहानी और अच्छी है।’ यह सुनते ही बादशाह ने शहरजाद को अगली कहानी अगले दिन सुनाने को कहा। क्या थी शहरजाद की अगली कहानी, अलिफ-लैला कहानियों की इस श्रृंखला की अगली कहानी पढ़ने के लिए मॉमजंक्शन से जुड़े रहें।