अलिफ लैला – मछुवारे की कहानी

June 17, 2024 द्वारा लिखित

रानी शहरजाद ने बादशाह शहरयार को मछुवारे की कहानी सुनाते हुए कहा कि किसी गांव में एक बुजुर्ग मुस्लिम मछुवारा रहता था। मछुवारा रोज नदी में मछली पकड़ने के लिए जाता और उसे बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण करता था। मछुवारे का नियम था कि वो मछली पकड़ने के लिए केवल 4 बार ही नदी में जाल फेंकता था और जितनी भी मछली मिलती केवल उसे ही बेचता।

एक दिन सुबह-सुबह जब मछुवारे ने पहली बार नदी में जाल डाला, तो उसे लगा कि उसके जाल में बहुत सारी मछलियां आ गई हैं, जिससे उसका जाल बहुत भारी हो गया है। जब उसने जाल बाहर निकाला, तो उसमें गधे की लाश फंसी मिली, जिस कारण उसका जाल कई जगहों से फट गया। यह देखकर मछुवारा निराश हो गया।

मछुवारे ने जाल को समेटकर दूसरी बार नदी में फेंका। इस बार उसके जाल में मिट्टी व कंकड़ के अलावा कुछ नहीं फंसा जिसे देखकर और दुखी हो गया। फिर भी इस उम्मीद के साथ कि इस बार तो उसके जाल में मछलियां फंस जाएंगी मछुवारे ने तीसरी बार जाल नदी में फेंका, लेकिन इस बार भी उसके दुर्भाग्य ने उसका साथ नहीं छोड़ा।

मछुवारा बहुत निराश हो गया और ऊपर वाले को याद कर प्रार्थना करने लगा, “मैं रोज सिर्फ 4 बार ही नदी में जाल डालता हूं और अगर अब अंतिम बार भी मुझे मछलियां नहीं मिली, तो मैं अपने परिवार को क्या खिलाउंगा?”। इसके बाद मछुवारे ने अंतिम बार नदी में दोबारा जाल फेंका।

इस बार मछुवारे को लगा कि उसके जाल में कोई बहुत भारी वस्तु फंस गई है। मछुवारे ने जोर लगाकर जाल को बाहर खींचा, जिसमें पीतल की बड़ी-सी गागर के अलावा कुछ नहीं था। गागर का मुंह ढक्कन से बंद था, जिस पर किसी की मुहर लगी हुई थी। गागर के भार को देखकर मछुवारे को लगा कि वह जरूर बेशकीमती हीरे, जवारातों व सोने के सिक्कों आदि से भरी होगी। इसे पाकर वह बहुत धनी हो जाएगा।

मछुवारा अपने जाल को किनारे रखकर गागर के ढक्कन को खोलने की कोशिश करने लगा। काफी देर तक मशक्कत करने के बाद मछुवारे ने अपनी छुरी की मदद से ढक्कन को खोल लिया। ढक्कन खुलते ही उससे धुआं निकलने लगा, जिसने देखते ही देखते एक विशाल राक्षस का रूप ले लिया। राक्षस को देखकर मछुवारा बहुत डर गया और वहां से भागने लगा, लेकिन तभी राक्षस ने हाथ जोड़ लिए और कहने लगा, “ऐ सुलेमान, मुझे माफ कर दो। अब मैं कभी भी आपकी आज्ञा के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाउंगा”। यह सुनकर मछुवारा रुक गया और अपने डर पर काबू पाते हुए कहा, “अरे राक्षस, सुलेमान की मौत हुए 1800 साल से भी ज्यादा हो गए हैं। तुम मुझे बताओ कि तुम इस गागर में कैसे और कब से बंद हो।”

मछुवारे की बात सुनकर राक्षस को गुस्सा आ गया और उसने मछुवारे से कहा, “तेरे मरने में अब ज्यादा समय बाकी नहीं है और तू मुझ से इस तरह बदतमीजी से बात नहीं कर सकता।” यह सुनकर मछुवारा घबरा गया और कुछ हिम्मत जुटाते हुए राक्षस से बोला, “तुम मुझे कैसे मार सकते हो?, क्या तुम भूल गए कि मैंने ही तुम्हें इस गागर की कैद से बाहर निकाला है।”

मछुवारे की बात का जवाब देते हुए राक्षस ने कहा, “मैं जानता हूं, लेकिन ये बात भी तेरी जान नहीं बचा पाएगी। मैं बस तुझे इतनी रियायत दे सकता हूं कि तू ये फैसला खुद करे कि मैं तुझे किस तरह से मारूं।” मछुवारे ने कहा, “ये तो अन्याय है, तुम ऐसा कैसे कर सकते हो।” राक्षस ने कहा, “मैं तुझे बिना किसी कारण के नहीं मार रहा हूं। इसके पीछे भी वजह है।”

राक्षस ने मछुवारे को अपनी आप बीती सुनाते हुए कहा, “मैं और एक अन्य जिन्न साकर दोनों नास्तिक थे, जबकि बाकी के राक्षस सुलेमान को पैगंबर (ईश्वर का दूत) मानते थे।” राक्षस ने बताया कि एक बार बादशाह सुलेमान ने गुस्से में आकर अपने प्रमुख मंत्री आसिफ बिन वरहिया को हमें पकड़ कर उनके सामने पेश करने का आदेश दिया। इसके बाद मंत्री ने मुझे पकड़ लिया और बादशाह के सामने पेश किया।

राक्षस ने बताया, “सुलेमान ने मुझसे कहा कि मैं उन्हें अपना पैगंबर मान कर उनकी आज्ञा का पालन करूं, लेकिन मैंने उसकी बात मानने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद गुस्से में आकर बादशाह ने मुझे गागर में कैद कर लिया और मंत्रों के जरिए गागर का मुंह मुहर लगे ढक्कन से बंद कर दिया। इसके बाद सुलेमान ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि गागर को नदी में फेंक दें।”

राक्षस ने आगे बताते हुए कहा, “गागर में कैद रहते हुए मैंने प्रण लिया था कि अगर 100 साल के अंदर कोई मुझे इस गागर की कैद से मुक्त कराता है, तो मैं उसे इतना धन दूंगा कि उसकी कई पुश्तें बैठकर खा सकेंगी, लेकिन इस दौरान मुझे किसी ने बाहर नहीं निकाला। इसके बाद मैंने दोबारा प्रण लिया कि अगर अगले 100 साल में मुझे कोई बाहर निकालेगा, तो मैं उसे संसार भर के खजानों से लाद दूंगा, लेकिन इन 100 सालों में भी मुझे कोई बाहर निकालने नहीं आया। इसके बाद तीसरी बार में मैंने मुझे बाहर निकालने वाले को राजा बनाकर प्रतिदिन उसकी 3 इच्छाएं पूरी करने का फैसला लिया। जब तीसरी बार भी मुझे बाहर निकालने कोई नहीं आया, तो अंत में मैंने फैसला लिया कि अब जो भी मुझे बाहर निकालेगा मैं उसके प्राण ले लूंगा, लेकिन उसे बस इतनी रियायत होगी कि वो अपने मरने के तरीके का चुनाव खुद कर सके।”

राक्षस की बात सुनकर मछुवारा अपनी किस्मत को कोसने लगा और अपनी पत्नी व बच्चों को याद करते हुए राक्षस से दया की भीख मांगने लगा, जबकि राक्षस अपनी बात पर अडिग रहा। मछुवारे के काफी देर तक गिड़गिड़ाने के बाद भी जब राक्षस नहीं माना, तो मछुवारे ने अपनी जान बचाने के लिए उपाय सोचा।

मछुवारे ने हिम्मत जुटाते हुए राक्षस से कहा, “अगर ऊपर वाले की इच्छा से मेरी मौत तुम्हारे हाथों ही लिखी है, तो मैं इसे स्वीकार करता हूं, लेकिन इससे पहले मैं तुम्हें उस पवित्र नाम की कसम देता हूं, जिसे बादशाह ने गागर की ढक्कन पर लगी मुहर में खुदवाया था कि जब तक मैं अपने मरने का तरीका तय करूं तुम मेरे सवालों का जवाब देना।” मछुवारे की बात सुनकर राक्षस थोड़ा अचरज में पड़ गया और असमंजस में उसने मछुवारे से कहा कि वह उसके हर सवाल का उत्तर देने के लिए तैयार है।

मछुवारे ने समझदारी दिखाते हुए राक्षस से कहा, “तुम इतने विशाल राक्षस हो और कहते हो कि इतने वर्षों तक तुम इस छोटी-सी गागर में कैद रहे, ये बात थोड़ी अजीब है और मुझे इस पर विश्वास नहीं है। मुझे लगता है कि तुम झूठ बोल रहे हो।” इसका जवाब देते हुए मछुवारे ने कहा कि मैं पवित्र नाम की सौगंध खाता हूं कि मैं सचमुच इस गागर में कैद था। इस पर मछुवारे ने कहा, “तुम्हारे कसम खाने पर भी मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं है, मैं जब तक खुद अपनी आंखों से ये देख न लूं कि तुम इस गागर में कैसे समाए, मैं विश्वास नहीं करूंगा।”

मछुवारे के संशय को दूर करने के लिए राक्षस देखते ही देखते दोबारा धुएं के गुब्बार में बदल गया और उस गागर में समा गया। जैसे ही राक्षस पूरी तरह से गागर में प्रवेश कर गया मछुवारे ने एक क्षण भी न गंवाते हुए गागर का मुंह मुहर लगे ढक्कन से बंद कर दिया। गागर में कैद होते ही राक्षस बहुत क्रोधित हो गया और बाहर निकलने के लिए जतन करने लगा, लेकिन ढक्कन लगा होने के कारण वह बाहर नहीं निकल पाया।

कई जतन करने के बाद भी जब राक्षस गागर की कैद से बाहर नहीं निकल पाया, तो वह मछुवारे के सामने गिड़गिड़ाने लगा और बाहर निकालने की विनती करने लगा। जब राक्षस की बातों का मछुवारे पर कोई असर नहीं हुआ, तो वह उसे लालच देने लगा। राक्षस ने कहा कि अगर वो उसे बाहर निकालता है, तो वह उसकी जान नहीं लेगा और उस पर बड़ा उपकार करेगा, लेकिन मछुवारे के सामने उसकी एक न चली।

राक्षस के कई बार विनती करने पर मछुवारे ने उससे कहा, “राक्षस, तू कपटी व धूर्त है। अगर मैं अभी तुझे बाहर निकाल दूं, तो तू मुझे मार देगा और तू मेरे उपकार के बदले वैसा ही करेगा, जैसे गरीक नामी बादशाह ने हकीम दूबां के साथ किया था।” राक्षस के पूछने पर मछुवारे ने उसे ‘गरीक नामी बादशाह व हकीम दूबां’ की कहानी सुनानी शुरू की।

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