अलिफ लैला – नाई के पांचवें भाई अलनसचर की कहानी
June 17, 2024 द्वारा लिखित nripendra
नाई ने चौथे भई की कहानी सुनाने के बाद अपने पांचवें भाई की कहानी सुनानी शुरू की। उसने कहा कि उसके पांचवें भाई का नाम अलनसचर था और वह बेहद आलसी और निठल्ला था। वो इतना बेशर्म और निकम्मा था कि हर रोज अपने किसी न किसी मित्र के पास जाकर उससे पैसे मांग लेता और खा-पीकर पड़ा रहता था।
नाई ने कहा कि ‘हमारा बाप बूढ़ा हो कर मर गया, लेकिन उसने जाने से पहले हम सात भाईयों के लिए तीन हजार एक सौ पचास रुपए छोड़े थे।’ ‘हमने इन रुपयों को आपस में बराबर-बराबर बांट लिया। इन रुपयों को पाकर मेरे भाई अलनसचर ने कुछ व्यापार करने की सोची थी। उसने अपने हिस्से के साढ़े चार सौ रुपए से कांच के बर्तन खरीद लिए और उन्हें एक टोकरी में रखकर बाजार में बेचने के लिए सड़क किनारे बैठ गया। उसके पास एक दर्जी की दुकान थी, जिस के दुकानदार से उसकी कुछ ही दिनों में अच्छी दोस्ती हो गई।’
फिर नाई ने बताया कि ‘मेरा भाई जितना बड़ा निकम्मा था, उतना ही बड़ा ख्याली पुलाव बनाने वाला मूर्ख भी था। एक दिन मेरा भाई अपने दर्जी दोस्त से कहने लगा, ‘मैं इन साढ़े चार सौ के बर्तनों को नौ सौ रूपये में बेचूंगा और उसके बाद इन रुपयों से और बर्तन लूंगा और उन्हें अठारह सौ में बेचूंगा। फिर इसी तरह में आगे भी करता रहूंगा और फिर मेरे पास तीस हजार रूपये हो जाएंगे।’
आगे अलनसचर ने कहा कि ‘फिर इन तीस हजार रुपयों से मैं बड़ा व्यापार करूंगा और माणिक, मोती आदि खरीदूंगा और उससे मोटा लाभ उठाउंगा। जब मेरे पास खूब धन जमा हो जाएंगे, तब मैं एक बड़ा सा महल खरीदूंगा और उसमें नौकर-चाकर, दास-दसियों को भी रखूंगा। मैं धनवान की तरह जिंदगी बसर करूंगा। मेरी इसी चमक-दमक से सारे नगर में मेरी प्रसिद्धि फैलेगी। मेरे यहां कलाकार, गवैये आया करेंगे और हर रोज खूब जश्न होगा। मेरा व्यापार बढ़ता ही रहेगा और जब मेरे पास पांच लाख से ज्यादा धन इकठ्ठा हो जाएगा, तब मैं यहां के मंत्री के पास उनकी बेटी से मेरे विवाह कराने का संदेश भेजूंगा। अगर उसने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, तो अच्छा होगा नहीं तो मैं उसकी बेटी को उठा कर ले आऊंगा।’
फिर अलनसचर ने बोला कि ‘जब मेरी शादी मंत्री की बेटी से हो जाएगी, तब मैं दस गुलाम खरीदूंगा और बढ़िया महंगे और आभूषणों से सुसज्जित वस्त्र आदि पहन कर अपने हीरों से जड़े जीन लगामवाले घोड़े पर चढ़ कर मंत्री के घर जाऊंगा। उसके घर लोग मुझे देखकर डर से, आदर से मेरा पूरा सम्मान करते हुए मुझे अंदर ले जाएंगे। जब मैं ऊपर जाने लगूंगा, तब सभी मेरे सम्मान में मेरे आस-पास सिर झुका कर खड़े रहेंगे। मंत्री मुझे दामाद का दर्जा देगा और अपने गद्दी पर मुझे बैठा कर खुद मेरे सामने खड़ा रहेगा। मैं सोने के सिक्कों से भरी एक झोली मंत्री को देते हुए कहूंगा कि ‘ये तुम्हारी बेटी का महर है।’ वहीं दूसरा उसको दूंगा और ‘मेरी इस उदारता की खूब चर्चा होगी और फिर में अपने इसी ठाठ के साथ अपने घर आऊंगा।’
‘मेरी पत्नी जब इस बात को सुनेगी, तो वो मेरा एहसान मानेगी और फिर अपने पिता के किसी उच्च कर्मचारी से मेरी महानता के बारे में कहीं प्रकाशन करवाएगी। फिर मैं उस कर्मचारी को अच्छा इनाम दूंगा। मैं ऐसी कृपा अपनी पत्नी पर भी दिखाया करूंगा, जब मैं उसके साथ समय बिताने के लिए उसके महल में जाऊंगा। हालांकि, तब मैं बड़े ही अटलता और गंभीरता के साथ वहां जाऊंगा और वहां किसी दूसरी स्त्री को नहीं देखूंगा।
मेरी बीवी जो बेहद खूबसूरत होगी, वो जब चौदहवीं के चांद की तरह सजी-धजी मेरे सामने आएगी, तब मैं एक आंख उठा करके भी उसकी ओर नहीं देखूंगा। फिर जब उसकी सेविकाएं और सहेलियां मेरे सामने आकर विनती करेंगी कि हे मालिक, आपकी दासी, आपकी पत्नी आपका इंतजार कर रही है। वो आपके सामने खड़ीं हुईं हैं, कृपा करके उनको बैठने के लिए कहिए, लेकिन तब भी मैं उन्हें कोई जवाब नहीं दूंगा। ऐसे में उन्हें बड़ा ही आश्चर्य होगा। वो सोचेंगी कि आखिर मालिक अपनी बीवी की तरफ क्यों नहीं देखते हैं। दासियां और सहेलियां बड़ी देर तक मेरे सामने आकर मुझे मनाती रहेंगी, लेकिन मैं टस-से-मस नहीं होऊंगा।
कुछ देर बाद मैं अपनी कृपादृष्टि अपनी पत्नी पर डालूंगा, लेकिन फिर निगाह फेर भी लूंगा। मेरे इस व्यवहार से मेरी पत्नी की दासियां और सहेलियां शायद यह समझें कि मैं अपनी पत्नी के श्रृंगार से खुश नहीं हूं। इसलिए वो उसे कक्ष में ले जाकर फिर से तैयार करेंगी। इसी बीच मैं भी नए कपड़े पहन लूंगा।
इसके बाद जब मैं कमरे में जाऊंगा, तब भी मैं अपनी पत्नी से अच्छा व्यवहार नहीं करुंगा और रूठा रहूंगा। मैं उसकी तरफ एक बार भी नहीं देखूंगा और न ही उससे कोई बात करूंगा। मैं बस उसकी तरफ पीठ करके सो जाऊंगा। मेरी बीवी मेरे इस व्यवहार से दुखी होकर रोती रहेगी और सुबह होते ही अपनी मां से रो-रोकर रात का पूरा हाल बताएगी। उसकी माता तब उसे दिलासा देगी और फिर वो मेरे महल में आकर सम्मान के साथ मेरा हाथ चूमते हुए कहेगी कि ‘जमाई राजा आप इतना अत्याचार मेरी बेटी मत करो कि आप उसकी तरफ़ देखो ही नहीं। अगर उससे कोई गलती हुई है, तो मुझे बताओ मैं उसे सजा दूंगी। वो तुम्हारी दासी है और तुम्हारी सेवा करना चाहती है, लेकिन मन से उसकी तरफ एक बार देख तो लो।’
हालांकि, उनके इस आग्रह और विनतियों का मुझपर कोई असर नहीं होगा। फिर मेरी सास मेरे पैरों को चूमेगी, पर मैं फिर भी टस-से-मस नहीं होऊंगा। इसके बाद वो मेरी पत्नी को एक शरबत का प्याला भरकर देंगी और कहेगी कि वो मुझे यह पीने को दे। मेरी सास को लगेगा कि मैं इससे खुश हो जाऊंगा, लेकिन जब मेरी पत्नी शरबत लेकर मेरे सामने आएगी, तब मैं उससे गुस्सा हो जाऊंगा और उसे धक्का मारकर शरबत का गिलास जोर से दूर फेंक दूंगा।
अलनसचर मेरा भाई अपने इन ख्यालों में इतना खो गया था कि उसने अपनी सुध-बुध ही जैसे खो दी थी। उसने शरबत की गिलास को जो धक्का मारा था, वो उसने अपनी कांच के बर्तनों से भरी हुई टोकरी पर दे मारा था, जिससे उसके सारे कांच के बर्तन सड़क पर जा गिरे और टूटकर बिखर गए।
उसका दोस्त दरजी, जो उसकी इतनी सारी बकवास सुन रहा था, वो ये सब देखकर खूब जोर-जोर से हंसने लगा। उसने अलनसचर से कहा, ‘तू बड़ा ही मूर्ख है। तुझे पता है तेरी इतनी बड़ी हानि क्यों हुई है, क्योंकि तूने बड़ी ही खुबसूरत और सम्मानित स्त्री का अपमान किया। ये उसी का फल मिला है तुझे। अगर मैं तुम्हारा ससुर होता, तो तेरी इस बदतमीजी और अपमान के बदले तुम्हें सजा ताकि लोग तेरे जैसे अभागे को एक अपराधी के रूप में जान जाए।’
मेरे भाई अलनसचर को अपनी इस हानि और उसके खूब सारे पैसा कमाने के ख्वाब के टूटने का बड़ा दुःख हुआ और वह जोर-जोर से रोने-चिल्लाने लगा। वो जुमे की नमाज का समय था, इसलिए जो लोग नमाज के लिए जा रहे थे, वो उसको रोता देख रुक गए और वहां भीड़ जमा हो गई। सभी लोग पूछने लगे कि आखिर क्या हुआ है तब दरजी ने उन सभी लोगों को मेरे भाई का पूरा हाल सुना दिया और फिर सभी लोग उसका मजाक बनाने लगे और हंसने लगे।
तभी वहां से एक अमीर घराने की स्त्री गुजर रही थी। उसने भीड़ देखर अपनी सवारी रुकवाई और लोगों से भीड़ का कारण पूछा। लोगों ने पूरी बात न बता कर, सिर्फ यही बताया कि एक गरीब बर्तन वाले का टोकरा दालान से ठोकर लगने से जमीन पर गिर गया है और जिससे उसके कांच के सारे बर्तन टूट गए हैं। ये बात सुनकर उस स्त्री को बड़ी दया आई और उसने अपने सेवक से सोने के सिक्कों की एक थैली उस गरीब को देने को बोली। सेवकों ने ऐसा ही किया और थैली मेरे भाई को दे दी। मेरा भाई इससे बड़ा ही खुश हो गया और उस दानी स्त्री को बहुत आशीर्वाद देकर अपने घर चला आया।
मेरा भाई घर पहुंचा ही था कि किसी ने उसका दरवाजा खटखटाया। उसने देखा कि उसके दरवाजे पर एक बूढ़ी औरत खड़ी है। उस बूढ़ी औरत ने कहा कि उसे एक लोटा पानी चाहिए क्योंकि नमाज में जाने से पहले उसे वजू करना है। मेरे भाई ने उसे पानी लाकर दे दिया। फिर बुढ़िया नमाज पढ़ने के बाद मेरे भाई के पास आकर उसका आभार व्यक्त करने लगी। उसके बाद उसने उठ कर मेरे भाई को आशीर्वाद भी दिया। मेरे भाई को उस फटे हाल बुढ़िया पर तरस आया और उसने उसे दो सोने के सिक्के देने का मन बना लिया। जब वह बूढ़ी औरत को सिक्के देने लगा, तो उसने वो नहीं ली। उसने कहा ‘मैं भिखारिन नहीं हूं, बल्कि मैं तो एक बड़ी ही धनवान और सुंदर स्त्री की नौकरनी हूं। वो मुझे सब कुछ देती है, इसलिए मुझे भीख की जरूरत नहीं है।’
मेरा भाई ठहरा बड़ा मूर्ख, वो उस बुढ़िया का धोखा समझ नही पाया और कहने लगा कि मुझे भी अपनी मालकिन से मिलवाओ। बुढ़िया तपाक से खुश हो कर उसे अपने साथ ले गई। वह मेरे भाई को एक बड़े ही सजावटी और विशाल महल में ले गई। वहां दरवाजे पर उसने एक यूनानी दासी को दरवाजा खोलने के लिए कहा और फिर बुढ़िया ने मेरे भाई को एक सुंदर से सजीली जगह पर बैठा कर खुद अंदर चली गई। कुछ देर बाद एक बेहद खूबसूरत महिला वहां आई और मेरे भाई के पास आकर बैठ गई। वो उससे खूब बातें करने लगी। उसने मेरे भाई को आराम से बैठने को कहा और उसके बाद वो स्त्री कुछ देर में आने को कह कर अंदर चली गई।
फिर कुछ देर बाद वहां एक बड़ा ही लंबा चौड़ा दानव जैसा आदमी हाथ में तलवार लेकर आ गया और मेरे भाई पर गरजते हुए बोला कि ‘तू मेरे घर में क्या कर रहा है। मेरे भाई ने उसे देखा तो जैसे उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। मेरा भाई डर से कांपने लगा। फिर उस आदमी ने तलवार से उसपर वार किए जिससे मेरा भाई बेहोश हो कर गिर पड़ा। उसके बाद उस राक्षस जैसे आदमी ने मेरे भाई के सोने की सिक्कों की थैली निकाल ली और वहां खड़ी स्त्री से नमक लाने को कहा। तब वह स्त्री नमक लेकर आई। उसने मेरे भाई पर नमक डाल कर देखा ताकि वो ये जान सके कि वो जिंदा है या मर गया। मेरा भाई उनके इस इरादे को समझ गया था और शरीर पर पड़ते नमक को सहन करता रहा।
जब मेरे भाई के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई, तो उस आदमी और दासी ने उसे मरा समझ लिया और वहां से चले गए। तब वहां वो बुढ़िया आई और मेरे भाई को लाश की तरह घसीट कर घर के कोने में बने गड्डे में फेंक आई। मेरा भाई इतना दर्द में था कि वो बेहोश हो गया, लेकिन जब उसे होश आया तब वो गड्डे से निकल कर छुपते-छिपाते मकान के दरवाजे तक आ गया। दो दिन बाद जब वो बुढ़िया अपने नए शिकार के लिए निकली तब मेरा भाई वहां से निकल कर भाग गया और मेरे पास आ गया। उसने मुझे अपनी सारी मुसीबतें बताई।
मेरे भाई ने महीने भर आराम किया और उसके सभी घाव भर गए तब उसने बदला लेने के लिए योजना बनाई। उसने एक बड़ी थैली में कांच के टुकड़े जमा कर लिए और बुढ़िया जैसा भेष बदलकर तलवार और थैली कपड़ों में छिपा कर निकल गया।
मेरे भाई को संयोग से वो बुढ़िया रास्ते में ही मिल गई। तब उसने उस असली बुढ़िया से कहा, ‘मैं फारस से आई हूं और यहां नई हूं मेरे पास सौ सोने के सिक्के हैं। मैं चाहती हूं उन्हें एक बार तौल कर परख लूं कि वो पूरे हैं या नहीं। क्या तुम मेरी मदद करोगी? क्या तुम कहीं से तराजू ले आओगी?’ तब बुढ़िया बोली, ‘तुम मेरे साथ चलो, मैं यहां सबसे भरोसेमंद हूं और मेरा पुत्र तुम्हारे सिक्कों को तौलने में मदद कर सकता है।’
फिर वो बुढ़िया मेरे भाई को उसी घर में ले गई, जहां वो पहले ले गई थी। सब कुछ पहले की तरह ही था। यूनानी दासी ने दरवाजा खोला फिर बुढ़िया मेरे भाई को अंदर ले गई। उसने उसको बैठने के लिए कहा और बोली, ‘मैं अपने बेटे को लाती हूं। उसके बाद वही राक्षस जैसा आदमी वहां आया और मेरे भाई को साथ चलने के लिए बोलने लगा। फिर बुढ़िया के भेस में मेरे भाई ने उस आदमी के लापरवाह होते ही, उस पर तलवार से जोरदार वार किया और उसे मार डाला।’
तभी वो यूनानी स्त्री आई और पिसा नमक लेकर आगे बढ़ी तभी मेरे भाई ने उसे पकड़ा और उसे भी मार डाला। काफी शोर-शराबा और चीखें सुनकर वो बुढ़िया भी उधर आ गई, लेकिन वह सब कुछ देखकर वहां से भागना चाह ही रही तजी कि मेरे भाई ने उसे पकड़ लिया और बोला, ‘तूने मुझे पहचाना नहीं, मैं वही हूं जिससे तूने गली में नमाज अदा करने के लिए पानी मांगा था और फिर यहां ला कर मारने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन मैं जैसे-तैसे बच निकला।’ वो बुढ़िया ये सुनकर जोर-जोर से रोने लगी और दया की भीख मांगने लगी, लेकिन मेरे भाई ने उसे नहीं बख्शा और उसे भी मार डाला।
अब मेरे भाई ने उस सुंदर स्त्री को तलाशना शुरू किया, जो पहली बार उसके सामने आकर बैठी थी और उसे आराम करने को बोलकर चली गई थी। वो स्त्री उसे अंदर के एक कमरे में मिली और मेरे भाई को देखकर डर के मारे कांपने लगी। मेरे भाई ने उसको कुछ नहीं किया, वो उससे पूछने लगा कि आखिर वो यहां कैसे आ फंसी और वो कौन है? तब उस स्त्री ने अपना सच कह दिया।
उसने बताया कि वो एक धनी व्यक्ति की पत्नी थी। वो बुढ़िया उसके घर आया-जाया करती थी, उसने ही उसे धोखे से दावत पर बुलाया और यहां कैद कर लिया और जबरदस्ती रहने को मजबूर किया। वह तीन साल से यहां कैद थी। वह उनके इन कामों में शामिल नहीं होना चाहती थी, लेकिन उसे मजबूरी में उनका साथ देना पड़ता था।
मेरे भाई ने उस स्त्री से पूछा कि यहां कितने लोगों को मार कर और कितना धन जमा किया गया है। तब उस स्त्री ने बताया कि यहां इतना अधिक धन है कि सारी उम्र बैठ कर खाया जा सकता है। उसने मेरे भाई को वो सारा धन दूसरे कमरे में ले जाकर दिखाया भी। स्त्री ने कहा, ‘तुम बाहर से कुछ मजदूर ले आओ, तो हम ये सब उठाकर अपने साथ ले जा सकते हैं।’
मेरा भाई ये सुनकर दौड़ा चला गया और जब लौटा, तो वो यह देखकर हैरान रह गया कि वो स्त्री वहां से सारा धन ले कर जा चुकी थी। उसने मेरे भाई के लिए एक थैली छोड़ी थी, जिसमें सिर्फ पांच सौ सोने के सिक्के थे। मेरे भाई ने इसके साथ ही संतोष कर लिया और थैली के साथ वहां का सारा सामान लेकर अपने घर आ गया।
घर आने के बाद भी मेरे भाई की खराब किस्मत ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। मेरा भाई उस घर को खुला छोड़ आया था। जिसके कारण उस खुले घर में आसपास के लोग आ गए और उन्होंने देखा कि घर का सामान मजदूर उठा कर ले जा रहे हैं, जिसके बाद लोगों ने काजी को ये सारी खबर दे दी।
रात को जब मेरा भाई अपने घर में सो रहा था, तब सिपाही आए और उसे उठा कर काजी के पास ले गए। तब काजी ने मेरे भाई से पूछा कि ‘यह सारा सामान कहां से आया है?’ तब मेरे भाई ने कहा कि ‘अगर मैं आपको सबकुछ सच बता दूंगा, तो आप मुझे यह वादा करें कि आप मुझे सजा नहीं देंगे।’ तब काजी ने इस बात पर हामी भर दी और कहा, ‘हां मैं तुम्हें सजा नहीं दूंगा।’
तब मेरे भाई ने एक-एक कर सारी घटनाएं काजी को बता दी। सारी बात सुन काजी ने सारा सामान मेरे भाई के घर से उठा कर अपने घर रखवा लिया और मेरे भाई को तीन साल के लिए शहर से बाहर कर दिया, ताकि वो नगर में रहते हुए वह वहां के नेता से काजी की शिकायत न कर सके।
बेचारा मेरा भाई अपना फूटा भाग्य लेकर वहां से चला गया। उसके पास केवल दो-तीन ही सोने के सिक्के थे, लेकिन उसका दुर्भाग्य की उसे कुछ डाकुओं ने लूट लिया और उसके सारे कपड़े भी लूट लिए। मुझे जब यह सब पता लगी, तो मैं उसकी खोज में निकल पड़ा। कुछ दिनों तक खोजने के बाद वो मुझे मिला और फिर मैं उसे छिपाते हुए नगर में ले आया और उसका भरण-पोषण करता रहा।
इसके बाद नाई ने कहा कि दोस्तों ये थी मेरे पांचवे भाई अलनसचर की कहानी। अब मैं तुम्हें अपने छठे भाई की कहानी सुनाता हूं। नाई की छठे भाई की कहानी में क्या खास होगा, ये जानने के लिए जुड़े रहिए मॉमजंक्शन के साथ।