अलिफ लैला – शहरयार और शाहजमां की कहानी
June 17, 2024 द्वारा लिखित nripendra
दशकों पहले भारत और चीन की तरह फारस भी एक देश था, जो अब ईरान के नाम से जाना जाता है। उस समय कई नरेश फारस के अधीन हुआ करते थे। वहां का राजा महाप्रतापी, न्यायप्रिय और तेजस्वी था, जिस कारण जनता उसे काफी पसंद करती थी। राजा के दो बेटे थे। बड़े का नाम शहरयार और छोटे का नाम शाहजमां था। एक रोज राजा की मौत के बाद साम्राज्य संभालने की जिम्मेदारी बड़े शहजादे शहरयार को मिली। शहरयार अपने छोटे भाई शाहजमां से अपार प्रेम करता था। उसने तातार देश का साम्रज्य उसे सौंप दिया। शाहजमां अपने बड़े भाई की बात को मानते हुए तातार पहुंचा और वहां की प्रजा, सेना की देखरेख करने लगा। शाहजमां ने संसार के श्रेष्ठ शहरों में शुमार समरकंद को अपनी राजधानी बनाया और आराम का जीवन व्यतीत करने लगा।
10 साल किसी तरह बीते। एक रोज बड़े भाई शहरयार को अपने छोटे भाई शाहजमां की याद आई, उसने चाहा कि शाहजमां उससे मिलने आए। मन में यह विचार आते ही शहजादे शहरयार ने मंत्री को बुलाया और शाहजमां के पास संदेश लेकर जाने को कहा। मंत्री ने आज्ञा का पालन किया और छोटे शहजादे शाहजमां के राज्य समरकंद पहुंच गया। शहरयार का संदेश पाकर शाहजमां खुशी से फूला नहीं समाया। शाहजमां भी अपने बड़े भाई से बहुत प्यार करता था और उससे मिलने को आतुर था। इसलिए वह फौरन शहरयार के पास आने के लिए मान गया। शाहजमां ने अपनी प्रिय बेगम और मंत्रिमंडल से विदाई ली। उसने रास्ते के लिए सारी व्यवस्थाएं करवाईं और निकलने लगा कि तभी उसे अपनी बेगम से आखिरी बार मिलने की इच्छा हुई। शाहजमां अपनी बेगम से बेइंतहा मोहब्बत करता था, उसी मोहब्बत की खातिर वह बेगम से मिलने उनके कक्ष में पहुंचा।
ज्यों ही शाहजमां ने बेगम के कक्ष में कदम रखा, उसके पांव तले जमीन खिसक गई। कक्ष में बेगम एक तुच्छ सेवक के साथ सो रही थी। यह देख शाहजमां स्तब्ध रह गया। वह आग बबूला हो गया और कमर में रखी तलवार निकालकर एक झटके से दोनों के सिर धड़ से अलग कर दिए। वह मन ही मन सोचने लगा कि अभी उसने शहर से बाहर कदम भी नहीं रखा और ऐसा अनर्थ होने लगा। क्रोध शांत होने पर वह ग्लानि और कुंठा से भर गया। उसने पलंग किनारे गिरे दोनों सिरों को उठाया और महल के पीछे झाड़ियों में फेंक दिया।
शाहजमां डर, क्रोध, आत्मग्लानि के भाव लिए वापस मंत्रियों के खेमे में लौट आया, वहां सभी निकलने के लिए तैयार खड़े थे और शाहजमां का ही इंतजार कर रहे थे। उस समय शाहजमां ने किसी को कुछ नहीं बताया। पौ फटते ही सेना शहरयार के साम्राज्य के लिए प्रस्थान कर गई। शाहजमां रात भर सो नहीं पाया था। उसके मन में कई सवाल उठ रहे थे। उसे अपराधी बोध हो रहा था, जिसे काबू करना उसके लिए असंभव सा था। काफिला हिंदुस्तान की राजधानी के पास पहुंचा, जहां आंखे बिछाए शहरयार अपने छोटे भाई का इंतजार कर रहा था.
शाहजमां को देख शहरयार खुशी से फूला नहीं समाया। उसके चेहरे पर भाई से मिलने की रौनक देखते ही बन रही थी। लेकिन वहीं दूसरी ओर शाहजमां मायूस, रुआंसा और कमजोर जान पड़ रह था। शाहजमां को देख शहरयार उसकी खातिरदारी में लग गया। एक से एक व्यंजन, पकवान, पोशाक, जेवरात और तमाशे उसके लिए परोसे गए लेकिन शाहजमां को इन सब में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह अंदर ही अंदर घुट रहा था। बेगम का छल उससे भुलाए नहीं भूला जा रहा था।
शाहजमां पहले की तरह अपने बड़े भाई शहरयार के साथ बैठता, घूमता या बातें नहीं कर रहा था। शहरयार अपने भाई में हुए बदलाव को महसूस कर रहा था लेकिन उसे लगा कि सालों बाद वह आया है शायद इसलिए उसे घुलने-मिलने में वक्त लग रहा है जबकि बात तो कुछ और ही थी। एक रोज शाहजमां का मन बहलाने के लिए बड़े शहजादे शहरयार ने शिकार का कार्यक्रम रखा। सुबह जब वह छोटे भाई शाहजमां को लेने पहुंचा तो उसने तबीयत ठीक न होने का बहाना दिया। शाहजमां ने कहा कि ‘उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं है इसलिए बड़े भैया सेना के साथ अकेले शिकार पर हो आएं’। शहरयार ने बात नहीं काटी और काफिले के साथ अकेले शिकार के लिए निकल गया। इधर शहरयार की बेगम को इस बात का पता नहीं था कि शाहजमां महल में ही है। उसे लगा कि वह महल में अकेली है।
खुद को महल में अकेला जानकर शहरयार की बेगम अपनी दासियों के साथ महल के बीच बने उद्यान में आ गई। वे सभी उत्तम लिबासों और आभूषणों से सजी हुई थीं। शाहजमां अपने कक्ष की खिड़की से उन्हें निहारने लगा। कुछ क्षण बाद वहां जो हुआ उसे देख शाहजमां को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। कुछ समय पहले तक जो दासियां स्त्रियों की पोशाक में वहां थी वह असल में पुरुष थे, जो मौका पाते ही अपने असली अवतार में आ गए। शाहजमां एक टक यह सब देख रहा था। तभी शहरयार की बेगम ने आवाजा दी ‘मसऊद, मसऊद’। कई बार आवाज लगाने के बाद एक हब्शी युवक वहां आया जो बेगम के करीब आते ही उस पर झपट पड़ा। यह सब कुकृत्य देख शाहजमां समझ नहीं पा रहा था कि वह कैसी प्रतिक्रिया दें। कई घंटों तक खेल चलता रहा फिर वहां मौजूद सभी पुरुषों ने स्त्रियां का रूप धरा और महल के अंदर चले गए।
बिस्तर पर लेटे शाहजमां के दिलो-दिमाग में कई तरह के विचार आ रहे थे।
कुछ घंटों बाद शहरयार शिकार से वापस लौट आया। शाहजमां ने चेहरे पर मुस्कान लिए बड़े भाई का स्वागत किया। उसका व्यवहार बदला हुआ था। शहरयार मन ही मन सोच रहा था कि ‘जिस शाहजमां को मैं शिकार पर जाने से पहले छोड़ गया था, यह वह नहीं है। आखिर क्या हुआ कि शाहजमां बदल गया?’ शहरयार के मन में कई सवाल आने लगे। आखिरकार उसने शाहजमां से कारण पूछ लिया। शहरयार ने शाहजमां को अपनी सौगंध दी और सच्ची बात बताने को कहा। बड़े भाई का आदेश सुन शाहजमां असमंजस में पड़ गया कि जो कुछ उसने अपनी बेगम के साथ किया वह उसे कैसे बता सकता है? लेकिन भाई की सौगंध के कारण उसे सच बताना पड़ा। शाहजमां के दुख की वजह जानकर शहरयार कुछ देर चुप रहा।
अचनाक चुप्पी तोड़ते हुए शहरयार ने कहा कि, ‘शाहजमां तुमने यह अच्छा किया कि ऐसी व्याभिचारिणी और दुराचारी औरत को मार डाला। इस घटना के लिए कोई तुम्हें पापी नहीं कहेगा। अत: तुम कोई अपराध बोध मन में न रखो।’ काफी देर तक समाझने के बाद अचानक शहरयार ने शाहजमां से पूछा ‘भाई मेरे शिकार पर जाने के बाद तुम्हारी तकलीफ कम कैसे हुई?’ बड़े भाई का सवाल सुनकर शाहजमां घोर संकट में पड़ गया। उसे लगा कि महल में आज जो कुछ उसने देखा अगर वह अपने भाई को बताएगा तो उसका संसार उजड़ जाएगा। काफी उधेड़ बुन के बाद शाहजमां ने शहरयार को उसकी बेगम की करतूत बताई। शहरयार को अपनी कानों पर विश्वास न हुआ लेकिन मन ही मन वह जानता था कि शाहजमां उससे झूठ नहीं बोलेगा।
शाहजमां ने अपनी बड़े भाई को विश्वास दिलाने के लिए एक योजना बनाई। अगले दिन उसने शिकार का कार्यक्रम बनाया और फौज को भी उनके साथ चलने का आदेश दिया। काफिला चला गया लेकिन शहरयार और शाहजमां महल में ही रुक गए। वेश बदलकर वह महल में आए और बेगम की करतूत देखने लगे। उस दिन की भांति फिर बेगम अपनी दासियों के साथ उद्यान में आई और वहीं हुआ जो उस दिन हुआ था। शहरयार अपनी आंखों के सामने अपने बेगम को छल करते देख टूट गया। उसने कहा, ‘एक महान नृपति की पत्नी ऐसे दुराचारी कैसे हो सकती है?’ और बिलख कर रोने लगा. शाहजमां बड़े भाई को समझा ही रहा था कि शहयार बोला, ‘मैं इस क्षणभंगुर संसार को छोड़कर कहीं दूर चले जाना चाहता हूं, तुम मेरे साथ चलो.’ शाहजमां बड़े भाई को मना नहीं कर पाया। लेकिन उसने एक शर्त रखी।
शाहजमां ने शर्त रखी कि वह शहरयार के साथ सारा साम्राज्य छोड़कर चलेगा लेकिन ज्यों ही रास्ते में उन्हें कोई ऐसा मिलेगा जिसका दुख, जिसकी पीड़ा उनसे बड़ी और विकराल होगी तो वे वापस राज्य में लौट आएंगे। शहरयार अपने भाई की शर्त से सहमत हो गया। दोनों बिना किसी को बताए वहां से चुपचाप निकल गए। कुछ दूर चलने के बाद रात्रि के समय वे आराम कर रहे थे तभी अचानक जंगलों से अजीब डरावनी आवाज आने लगी। एकाएक दोनों भाइयों की नींद टूटी और वे डर गए। आवाज तेज होती चली गई। डरे-सहमे दोनों भाइयों को कुछ नहीं सूझ रहा था कि वे क्या करें, कहां जाएं। अंत में वे एक घने पेड़ पर चढ़ गए और पत्तियों, टहनियों के बीच छिप गए। वहां छिपकर वे देखने लगे कि आखिर आवाज किस चीज की थी। इतने में नदी से एक अजीब विशालकाय दैत्य प्रकट हुआ।
दैत्य को देख दोनों भाई काफी घबरा गए। उन्होंने देखा कि दैत्य नदी से बाहर आया और उसके हाथ में एक बड़ा पीतल का संदूक है जिसमें चार ताले लटके हुए हैं। दैत्य संदूक को जमीन पर रखता है और उसमें लगे ताले को खोलने लगता है। जैसे ही ताला खुलता है उसे देखकर शहरयार और शाहजमां स्तब्ध रह जाते हैं, उनकी आंखे फटी की फटी रह जाती है। दरअसल संदूक से एक सुंदर, सुरूप नारी निकलती है। उस सुंदरी की आभा ऐसी थी कि कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाए। दैत्य उससे कहता है, ‘प्रिय तुम्हारी सुंदरता और वफादारी का व्याख्यान असंभव है। तुम सैदव मेरी सेवा में तत्पर रही हो। मुझे आज तुम्हारी याद आ रही थी इसलिए तुम्हारे पास आया हूं.’ इतना कहते-कहते दैत्य उस सुंदरी की गोद में सिर टिकाकर सो जाता है।
दैत्य के गहरी निंद्रा में जाते ही सुंदरी इधर-उधर देखने लगती है। तभी उसकी नजर दोनों शहजादों पर पड़ती है। वह इशारे से दोनों को अपनी ओर बुलाती है। डरते-डरते शहरयार और शाहजमां पेड़ से नीचे उतरते हैं और उसके पास आते हैं। सुंदरी दोनों भाइयों को उसके साथ संभोग करने के लिए कहती है लेकिन शहरयार और शाहजमां साफ मना कर देते हैं। इस पर सुंदरी दैत्य को उठाने की धमकी देती है। मजबूरन शहरयार और शाहजमां सुंदरी की बात मान लेते हैं। अपनी इच्छा पूरी करने के बाद सुंदरी कहती है कि ‘तुम दोनों मुझे अपनी एक-एक अंगूठियां दे दो।’ वजह पूछने पर वह बताती है कि शहरयार और शाहजमां की तरह अनेकों पुरुषों से उसके संबंध रह चुके हैं। निशानी के तौर पर वह उनकी अंगूठियां मांग लेती है।
सुंदरी ने बताया कि दैत्य की कड़ी निगरानी के बावजूद उसने अब तक सौ बार ऐसे कृत्य किए हैं। सुंदरी कहती है कि ‘यह दैत्य मुझ पर आशक्त है। इसने मुझे सबसे दूर एकांत में रखा है बावजूद मैं वो सबकुछ करती हूं जो मैं करना चाहती हूं इससे तुम ये अंदाजा लगा सकते हो कि स्त्री जब कामासक्त होती है तो दुष्कर्म से भी पीछे नहीं हटती।’ सुंदरी की बातें सुनकर शहरयार और शाहजमां एक-दूसरे को देखने लगते हैं। सुंदरी उन दोनों से दूर बहुत दूर चले जाने के लिए कहती है और वहां से उठकर दैत्य के करीब आ जाती है। दैत्य के करीब आकर वह उसका सिर अपनी गोद में टिका लेती है।
घंटों बाद जब शहरयार और शाहजमां जंगल से मीलों दूर आ जाते हैं तो छांव देखकर आपस में बात करने लगते हैं। शाहजमां अपने बड़े भाई शहरयार से कहता है कि, ‘भईया इतनी कड़ी सुरक्षा और निगरानी के बावजूद स्त्री अपनी इच्छा पूरी कर रही है। ये भी सोचिए कि उस दैत्य को सुंदरी पर कितना विश्वास है कि वह उसकी वफादारी का बखान नहीं कर पा रहा है। यह कितना बड़ा दुर्भाग्य है।’ शाहजमां अपने भाई से पूछता है कि ‘आप ही बताएं क्या हमारा दुख इस दुख से बड़ा है?’ काफी देर विचार करने के बाद शहरयार के बोल फूटते हैं और जवाब स्वरूप वह बस इतना ही कह पाता है कि ‘नहीं.’
दोनों भाई वापस राज्य लौटते हैं और कभी किसी स्त्री से विवाह न करने की बात कहते हैं। महल में आकर शहरयार ने मंत्री को बुलाया और बेगम को मृत्युदंड देने की आज्ञा दी। शहजादे की आज्ञा का पालन करते हुए बेगम को मृत्युदंड दिया गया। इसके बाद शहरयार ने बेगम की दासियों को अपने हाथों से मार डाला। बेगम की बेवफाई शहरयार के मन में घर कर गई थी। उसने सोचा कि क्यों न कुछ ऐसा करूं कि विवाह के बाद मेरी बेगम छल कर ही न पाए। काफी सोच-विचार के बाद उसने फैसला लिया कि वह रात को विवाह करेगा और अगली सुबह बेगम को मरवा देगा। ऐसा करने से उसे धोखा नहीं मिलेगा. कुछ दिनों बाद उसने अपने छोटे भाई को समरकंद के लिए विदा किया और अपने मन के अनुसार काम करने लगा।
अगले दिन शहरयार ने मंत्री को बुलवाया और कहा कि उसके विवाह के लिए किसी सामंत कन्या को लाया जाए। मंत्री ने उसकी आज्ञा का पालन किया और एक सुंदर नारी को लाकर शहजादे के सामने खड़ा कर दिया। शहरयार ने उस नारी से विवाह किया, उसके साथ रात बिताई और अगले दिन उसे मारने का आदेश दे दिया। शहरयार निरकुंश होता जा रहा था। वह यह सब प्रतिशोध की भावना से कर रहा था। लंबे अरसे तक यह सिलसिला चला। नगरवासियों में शहजादे के इस रवैए से काफी गुस्सा भर गया था। वे अपनी बेटियों को शहरयार के हाथों मरने नहीं देना चाहते थे। ऐसे में कई लोगों ने नगर छोड़कर कहीं और बसने का तय किया। एक रोज जब विवाह के लिए नगर में कोई सामंत कन्या नहीं बची तो शरहयार ने आम नारियों को लाने का आदेश दिया। मंत्री सोच में पड़ गया। नगर में कोई कुवांरी शेष नहीं थी केवल उसकी दो बेटियों को छोड़कर।
मंत्री की दो कुवांरी बेटियां थी। बड़ी शहरजाद और छोटी दुनियाजाद। शहरजाद बेहद सुंदर, बुद्धिमान, गुणी और वाक्पटुता में माहिर थी। लेकिन नगर में जो हो रहा था उससे वह काफी चिंतित रहती थी। इधर मंत्री अलग परेशानी में डूबा हुआ था। पिता को परेशान देख उससे रहा नहीं गया और वह पिता के पास गई। पिता से जो कुछ उसने कहा उसे सुनकर मंत्री भौचक्का रह गया। शहरजाद ने कहा, ‘पिताजी मैं शहजादे शहरयार से विवाह करना चाहती हूं। आप सहमति प्रदान करें। मैं उन्हें इस अन्याय को करने से रोकूंगी ताकि अन्य कन्याओं को भला हो।’ मंत्री उसकी बात को काटते हुए बीच में ही बोल पड़ा ‘शहरजाद तुम क्यों नर्क में जाना चाहती हो? तुम्हें पता है शहजादे तुम्हें मरवा देंगे? मैं जान बूझकर तुम्हें मौत के मुंह में नहीं धकेल सकता।’
पिता की चिंता देख शहरजाद ने कहा, ‘आप मेरी चिंता न करें पिताजी। शहजादे जो अन्याय कर रहे हैं उसे रोकना जरूरी है।’ मंत्री ने पूछा ‘तुम ऐसा कैसे करोगी? इस अन्याय को खत्म करने के लिए तुम्हारे पास क्या तरकीब है।’ इस पर शहरजाद बोली ‘मैं शहजादे शहरयार की जिद जानती हूं पिताजी इसलिए कह रही हूं मेरा विवाह कर दीजिए।’ मंत्री दुविधा में पड़ा था उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसने कहा, ‘ बेटी तू मेरी चिंता समझ, मैं नहीं चाहता कि तेरी स्थिति उस गधे की तरह हो जाए जो सुख से जीवन गुजार रहा था लेकिन अपनी मूर्खता और नासमझी के कारण दुख में पड़ गया। शहरजाद ने उत्सुकता से पूछा, ‘पिताजी आप मुझे वह कहानी सुनाइए।’
मंत्री ने अपनी बेटी को कौन सी कहानी सुनाई? क्या शहजादे से उसका विवाह हुआ? क्या शहजाद शहरयार का अन्याय रोकने में कामयाब हुई? इन सभी सवालों के जवाब के लिए कहानी का अगला अध्याय जरूर पढ़ें: