अलिफ लैला – सिंदबाद जहाजी की चौथी समुद्री यात्रा की कहानी
June 17, 2024 द्वारा लिखित nripendra
अब तक आपने पढ़ा कि सिंदबाद कैसे अपने जहाज से भटक कर एक नरभक्षी दानव और इंसान को जीवित निगलने वाले सांप के चंगुल में फंस जाता है लेकिन सिंदबाद का सब्र, समझदारी और उसका ऊपर वाले पर विश्वास उसे मुश्किल समय से निकाल कर उसके खोए हुए लोगों से मिला देता है। अब आगे सिंदबाद की चौथी जहाजी यात्रा में पढ़िए एक ऐसा वाकया जो सिंदबाद को मौत के मुंह में ले जाता है। क्या सिंदबाद की ये आखिरी यात्रा होगी? क्या सिंदबाद का यही अंत है? जानने के लिए स्क्रोल कीजिए…
सिंदबाद ने कहा, अपने लोगों के बीच आकर मैं पुराने सभी दुःख और तकलीफ भूल गया और फिर कुछ दिनों के आराम के बाद मैंने सोचा कि अब आगे एक और नई यात्रा की तैयारी की जाए। मैंने इसकी तैयारी की और कई ऐसी वस्तुएं खरीदी जिनकी बाहरी देशों में काफी मांग है। मैंने अपनी यात्रा की शुरुआत फारस से की। मैंने वहां के कई नगरों में अपना माल बेचा, खूब व्यापार किया। इसके बाद मैं एक बंदरगाह पहुंचा, यहां भी मैंने अपना माल बेचा और अच्छा धन कमाया।
इसके बाद मैंने आगे कूच किया लेकिन तभी बीच यात्रा में हमारा जहाज तूफ़ान के बवंडर में फंस गया और जहाज तेज पानी, हवा और ऊंची-ऊंची चट्टानों से टकरा कर तिनके जैसा बिखर गया। ये हादसा इतना भयावह था कि मेरे ज्यादातर साथी डूब कर मर गए। अब बस कुछ व्यापारी और मैं ही बचा था। हम लकड़ी के तख्तों की मदद से किसी तरह किनारे तक पहुंचे। मैंने देखा कि हम एक द्वीप पर थे। हमने यहां घूम-घूम कर फल आदि खा कर अपनी भूख मिटाई।
हम दिन भर यहां-वहां भटकते रहे और अपने भाग्य को कोसते रहे लेकिन इससे कुछ नहीं होना था। यही सब सोचते हुए मैं और मेरे साथी सो गए। अगले दिन हमने फिर फल आदि खाए और अपना पेट भरा। इसके बाद हमें हमारे सामने से काले रंग के आदमियों का एक झुंड आता दिखा, जिसने हम सभी को पल भर में घेर कर कैद कर लिया। इन काले लोगों ने हमें रस्सियों से जकड़ लिया और हमें घसीटते हुए अपने कबीले में ले गए।
वहां उन लोगों ने हमारे सामने कुछ अजीब खाने को दिया। मेरे साथी भूखे थे इसलिए उन्होंने जल्दी-जल्दी खाना शुरू कर दिया। वो सभी नशे में झूमने लगे थे। मैंने सभी को देखा तो मैं समझ गया कि ये बहकाने के लिए है, इसलिए मैंने वो बहुत कम खाया और उन काले आदमियों की हरकतों को देखने लगा। इसके बाद उन लोगों ने हमें नारियल तेल में पका हुआ चावल खाने को दिया था। ये चावल हम लोगों को मोटा करने के लिए खिलाए जा रहे थे।
मुझे ये समझने में बिल्कुल भी देर नहीं लगी कि ये जंगली लोग हमें मोटा करके हमारे कबाब बना कर खाने का बंदोबस्त कर रहे हैं। मेरे साथियों ने तो खूब खाया लेकिन मैंने बहुत कम खाया। अब रोज ये कबीले वाले काले लोग हम सभी को ये चावल खाने को देते और मेरे साथी पेट भर कर खाते और सो जाते। मैं कम खाना खाता था और चिंता के कारण बिल्कुल सूख गया, मेरी हड्डियां भी अब नजर आने लगी थीं।
मैं पतला-दुबला था इसलिए उन लोगों के लिए शायद अभी काम का नहीं था इसलिए मैं दिनभर यहां-वहां घूमता रहता था। इसी बीच एक दिन मुझे गांव से भागने का मौका मिल गया और मैं भाग निकला। मुझे खोजने के लिए लोग मेरे पीछे भी आए, लेकिन मैं उनकी पहुंच से काफी दूर चला गया था। बस दिनभर भागता रहता था और रात में किसी जगह छिपकर सो जाता था। कभी रास्ते में कुछ खाने को मिल जाता, तो खा लेता था। इसी तरह करीब सात दिन गुजर गए।
आठवें दिन मुझे समुद्र का किनारा मिला, वहां मैंने सफेद चमड़ी के लोगों को देखा जो काली मिर्च की खेती से मिर्च इकठ्ठा कर रहे थे। मुझे उन्हें देखकर बेहद प्रसन्नता हुई और मैं भाग कर उनके पास पहुंचा। वो लोग मुझे किसी अजूबे की तरह देख रहे थे, उन्होंने मुझसे अपनी भाषा में मेरे बारे में पूछा। मैंने उन्हें सभी कुछ विस्तार से बता दिया। उन लोगों को मेरी बातों पर बेहद आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा कि मैं नरभक्षी लोगों के बीच से बच कर निकल आया हूं ये बड़ी ही हैरानी वाली बात है।
वो लोग मुझे अपने जहाज और अपने बादशाह से मिलाने ले गए। उन लोगों ने मेरा परिचय यह कह कर करवाया कि मैं नरभक्षियों से बच-बचाकर किस तरह आया हूं। मैंने अपनी आप-बीती जब बादशाह को सुनाई तो उन्होंने भी बड़ा ही आश्चर्य और हैरानी जताई। इसके बाद बादशाह ने दयालुता दिखाते हुए मुझे वस्त्र और अन्य सुविधाएं दीं। बादशाह बड़े द्वीप का मालिक था और उसके पास बहुत सारा धन-धान्य था। मुझे उम्मीद हो चली थी कि मैं यहां से अपने देश लौट पाऊंगा।
बादशाह मुझ पर बड़ा ही मेहरबान हुआ और मुझे अपने दरबार में दरबारी बना लिया। फिर मुझे वो सम्मान दिया जैसे कि मैं उन्हीं के देश का निवासी हूं। अब मैं लोगों की मदद करने लगा, उनके छोटे-बड़े काम आने लगा। लोगों ने भी मेरा मान किया। एक दिन मैंने देखा कि लोग बिना जीन-लगाम के घोड़ों की सवारी करते हैं। मैंने इस बारे में लोगों से पूछा तो मुझे हैरानी हुई कि उन लोगों को पता ही नहीं था कि जीन-लगाम होता क्या है। उन लोगों ने हैरानी जताई और मुझे कहा कि मैं उन्हें बना के दिखाऊं।
बस, फिर क्या था मैंने जीन-लगाम बनाने की तैयारी शुरू कर दी। मैंने एक नमूना बनाया और फिर उसे लकड़ी के कारीगर से बनवाया, उसके बाद उसपर चमड़ा मढ़वाया और उसे पूरी तरह से तैयार कराया। इसके साथ ही लोहार से लगाम और लोहे के रकाबे भी बनवाए। इसके बाद पूरी तैयारी कर घोड़े को सजाया और बादशाह के समाने ले गया।
इसके बाद तो जैसे बादशाह के दिल में मैंने गहरी जगह बना ली थी। वो बहुत खुश हुआ, उसके लिए वो सब कुछ नया था और उसे देखकर वो काफी उत्साहित हो गया। उसने मुझे बहुत सराहा। फिर मैंने ये जीन-लगाम राज परिवार के सभी सदस्यों व मंत्रियों को दी, जिससे मुझे अच्छे-खासे पैसे मिले और कई बेशकीमती चीजें मिलीं। अब सभी मेरा बहुत सम्मान करने लगे थे।
फिर एक दिन बादशाह ने मुझे बुलाया और कहा कि वो मुझसे काफी खुश हैं और चाहते हैं कि मैं उनके ही देश में स्थाई रूप से बस जाऊं और अपने देश लौटने के बारे में सोचना छोड़ दूं। उन्होंने मेरा विवाह एक सुंदर कन्या से कराने की बात भी कही, जिसे मैंने हृदय से स्वीकार कर लिया। बादशाह ने मेरा विवाह एक अत्यंत रूपवती, गुनवती नव-यौवना के साथ कराया। जिसका साथ पाकर मैं अपना बगदाद में बसा परिवार भूल गया।
फिर कुछ दिनों बाद मेरे पड़ोसी की बेगम लंबी बीमारी के बाद खुदा को प्यारी हो गईं। मैं मातम के बीच उसके घर उसे हौसला देने गया। मैंने उसे देखा वो जोर-जोर से रोया जा रहा था। मैंने उससे कहा, सब्र रखो, ऊपर वाले ने चाहा तो तुम फिर से दूसरा निकाह करना और खुशी से रहना लेकिन मेरी बातें सुनकर वो और रोने लगा उसने कहा, तुम कुछ जानते नहीं हो इसलिए मुझे तसल्ली देने में लगे हो, तुमको नहीं पता मैं सिर्फ कुछ ही घंटों का मेहमान हूं।
मैं उसकी बातों को सुनकर परेशान हो गया तब उसने कहा, हमारे यहां एक रस्म है कि मरने वाले पति के साथ उसकी पत्नी और मरने वाली पत्नी के साथ उसका पति भी साथ में मरते हैं। इसलिए अब मैं भी अपनी पत्नी के साथ ही मारने के लिए ले जाया जाऊंगा। मैं इससे नहीं बच सकता। ये यहां का रिवाज है और सभी इसे मानते हैं। कोई इसके विरुद्ध नहीं जाता फिर वो बादशाह ही क्यों न हो।
उसकी बात सुनकर तो मेरे होश ही उड़ गए और मैं उसी समय से अपने विवाह और पत्नी को लेकर चिंता करने लगा। तभी मैंने देखा कि उसकी मृत पत्नी को नहला-धुला कर उसे निकाह के जोड़े में सजा कर अर्थी पर रखा गया है और उसके पति को मातम के वस्त्र पहना कर ले जाया जा रहा है। उसका पति रोता, अपनी किस्मत को कोसता हुआ पीछे-पीछे चला जा रहा है।
फिर सभी लोग एक बड़े पहाड़ पर आकर रुक गए, उन लोगों ने एक बड़ी चट्टान हटाई और उसके नीचे बने बड़े, गहरे और अंधेरे गड्ढे में रस्सी से मृत पत्नी की अर्थी को गड्ढे में उतार दिया और उसके बाद उस रोते-बिलखते पति को भी कुछ रोटी और पानी के साथ गड्ढे में उतार कर उसपर चट्टान रखकर गड्ढे का मुंह बंद कर दिया। फिर सभी ने पति-पत्नी के लिए मातम किया, शोक मनाया और फिर सभी वापस लौट आए।
ये सब देखकर मेरे होश उड़ गए थे। मैंने सोचा ये कैसी बेकार की रस्म है जिसका कोई विरोध नहीं करता। काश मैं अपने ही देश में होता। मैं बहुत घबरा गया था और मैंने बादशाह से इस बारे में बात कि लेकिन बादशाह ने भी मेरी बात नहीं सुनी। बल्कि उन्होंने कहा ये सभी पर लागू है, मुझपर भी और इसे देश-विदेश सभी जगह माना जाता है। मैं बहुत घबरा गया था मैंने अब अपनी पत्नी का ज्यादा ख्याल रखना शुरू कर दिया है। लेकिन भाग्य के लिखे को कौन रोक सकता है।
एक दिन मेरी भी बेगम बीमार हुईं और ऐसी लाइलाज बीमारी उनके गले को पड़ी कि उनकी जान लेके छुटी। अब मेरा भी हाल वही था जो मेरे पड़ोसी का था। मैं रोता रहा और सभी से दया करने को कहता रहा। मैंने बादशाह से अपने अच्छे कामों के बदले दया करने की गुहार लगाई लेकिन मेरी एक नहीं सुनी गई। मुझे भी मेरी बेगम के पीछे-पीछे कुछ रोटी और पानी के साथ उस बड़े से पहाड़ के गहरे, अंधेरे गड्ढे में फेंक दिया गया।
ये गड्डा बहुत ज्यादा गहरा था और इसमें जितना ज्यादा अंधेरा था उतनी ज्यादा यहां बदबू भी थी। यहां लाशें सड़ी हुईं थीं, खौफनाक एहसास था। सड़ी-गली लाशों की बदबू इतनी तेज थी कि मेरा सर फट रहा था। मैं अपनी अर्थी को लेकर भागा लेकिन किधर जाना था ये नहीं पता था। वहां हर तरफ लाशें थीं और अंधेरे के साथ फैली बदबू थी।
मैंने इस मंजर को देख खुद को खूब कोसा, अपने परिवार को याद किया। खुदा के इस फैसले पर तोहमते लगाई और घंटों रोता-चिल्लाता रहा। मैं यही सोच रहा था कि क्या जरूरत थी मुझे एक और यात्रा करने की। मेरे सामने कोई रास्ता नहीं था मैं बस खुद को कोस रहा था। फिर घंटों बीते और भूख लगने लगी मैंने भूख को बढ़ता देख सब छोड़कर रोटी खाना सही समझा और वही किया।
कुछ दिनों तक ऐसा चला जब तक रोटियां बची थीं फिर सब खत्म होने जैसा लगा। मैं भूखा प्यासा इस गड्ढे में मरने की नौबत तक आ गई थी कि तभी ऊपर चट्टान के खुलने से उजाला हुआ। लोगों ने इस बार किसी मरे हुए पति के साथ उसकी विधवा को नीचे गड्ढे में उतार दिया था।
जब लोगों ने चट्टान को रख दिया और फिर से अंधेरा हुआ तब मैंने तपाक से एक हड्डी उठा कर उस विधवा के सर पर दे मारी और फिर लगातार उसे मारते हुए उसे मार डाला। मैंने उसकी रोटी और पानी लिया और कुछ दिनों तक ऐसे ही जीवित रहा। इसी तरह आगे भी जब कोई आता तब मैं उसे मार कर उसकी रोटी और पानी ले लेता और जीवित रहता। फिर एक बार महामारी ने उस द्वीप को अपने कब्जे में लिया और रोज ही कुछ लाशें गड्ढे में आने लगीं। मैंने सभी को मारकर उनकी रोटियां छीनी और जीवित रहा।
लेकिन फिर कुछ दिनों के बाद एक दिन मुझे किसी की सांसो की आवाज़ सुनाई दी। अंधेरे में कुछ दिखता तो था नहीं इसलिय मैंने सिर्फ आवाज़ पर ध्यान दिया और उसकी तरफ चल रहा था कि तभी मुझे पांवों की आवाज़ भी सुनाई दी लगा जैसे कोई भाग रहा है। मैंने ध्यान देकर सुना और बस पीछे चलता गया। फिर जैसे मुझे एक तेज चमकता तारा नजर आया। मैंने आगे बढ़कर देखा तो मेरी ख़ुशी हिलोरे मारने लगी, मुझे उम्मीद मिल गई थी।
ये एक बाहर जाने की जगह थी जो शायद किसी जानवर के आने-जाने से बन गई थी। ये छेद पहाड़ की दूसरी तरफ ढाल की तरफ था, जहां लोगों का ध्यान नहीं जाता था। इस पहाड़ के गड्ढे में लाशों को खाने के लिए यहां कोई जानवर आता जाता रहा होगा इसलिए यह इतना बड़ा हो गया था कि मैं इसमें से निकल सकता था। मैंने ऊपर वाले का शुक्र मनाया और बाहर बदबू से निकल कर सोचना शुरू किया। लंबे समय बाद आसमान देखकर और हवा में आकर जैसे मैं फिर से जीवित हो गया था। मैंने सोच लिया था कि मुझे क्या करना है।
फिर, मैं एक बार फिर अंदर गड्ढे में गया और सभी लाशों को टोल-मटोल कर उन पर मौजूद गहने, आभूषण और जेवरात ले आया। वहां पड़ी लाशों से कफन लिया और सब कुछ बांध कर रख लिया। अब मैं बाहर निकल आया और समुद्र की तरफ चलते हुए कुछ दिन फल आदि खा कर बिताए। इस तरह तीन दिन गुजर गए थे।
चौथे दिन की शुरुआत थी कि तभी मुझे सामने से आता एक जहाज दिखाई दिया। मैंने हवा में हाथ हिलाते हुए खूब चिल्लाते हुए उसे बुलाया। मेरी बहुत कोशिशों के बाद मेरी आवाज़ जहाज के कप्तान तक पहुंची उसने रुक कर मेरे लिए नाव भेजी। नाविक ने मुझे नाव में बैठाया और मुझसे मेरे हाल के बारे में पूछा। मैं सकपका गया सोचा सच कहूं या नहीं। फिर मैंने अपने जहाज के डूबने और साथियों से बिछड़ जाने की कहानी उन्हें सुना दी। नाविक मुझे जहाज तक ले आए। अब जब कप्तान ने मुझसे मेरा हाल पूछा तब मैंने फिर वही कहानी उसे सुना दी।
मैंने उसकी कृपा के बदले उसे कुछ रत्न देने को कहा लेकिन उसने इनकार कर दिया और फिर हमने कई द्वीप पार किए। हमने सरान से नील द्वीप का सफर किया। फिर वहां से कली द्वीप पहुंचे जहां कई बेशकीमती वस्तुएं बाजारों में मिलती हैं। वहां हिंदुस्तान की भी कई वस्तुएं मिलती हैं। यहां हर द्वीप पर हमने सामान खरीदा-बेचा और व्यापार करते हुए हम बसरा आ गए जहां से मैं बगदाद आ गया।
मुझे इन सभी जगहों से व्यापार करते हुए असीमित धन मिला जिसको मैंने अच्छे कामों में लगाया। मैंने कई मस्जिदें बनवाई, दान दिया और फिर अपनी जिंदगी मजे से जीने लगा।
इस तरह सिंदबाद ने अपनी चौथी जहाजी यात्रा को भी समाप्त किया और फिर हिंदबाद को चार सौ दीनारें देते हुए अगले रोज फिर आने को कहा। अगले दिन सब एक बार फिर जमा हुए और भोजन के बाद सिंदबाद ने एक बार फिर अपनी हैरतअंगेज पांचवी यात्रा का वर्णन करना शुरू किया, तो क्या होगा सिंदबाद की अगली यात्रा में, कितने रहस्यमयी, रोमाचंक सफर से गुजरेगा सिंदबाद, क्या सिंदबाद हर बार बच कर निकल जाएगा या अगली यात्रा उसकी अंतिम यात्रा होगी। जानने के लिए पढ़ते रहिए।