भूत की कहानी : भूत को बनाया बंदी | Bhoot Ko Banaya Bandi Story In Hindi
June 17, 2024 द्वारा लिखित Sweta Shrivastava
एक समय की बात है, एक पंडित अपनी पत्नी को लेने के लिए ससुराल जा रहा था। तभी उसे रास्ते में एक व्यक्ति मिला। उसने पंडित से पूछा, “महाराज कितनी दूर तक जा रहे हैं।” पंडित ने कहा कि मैं अपनी पत्नी को ससुराल से लाने जा रहा हूं। हैरानी से उस व्यक्ति ने पंडित से कहा कि आप पितृपक्ष में पत्नी को लेने के लिए जा रहे हैं। क्या आप जानते नहीं हैं कि इस महीने में किसी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता।
पंडित ने तपाक से कहा, “अरे मैं ब्राह्मण हूं। मुझपर ये सारे नियम लागू बिल्कुल भी नहीं होते।”
उस व्यक्ति को पंडित के मुंह से ऐसी बातें सुनकर बड़ा अजीब लगा, लेकिन वो कर भी क्या सकता था। वो चुपचाप वहां से निकल गया।
पंडित भी अपने रास्ते की ओर चलते चले गए और कुछ देर बाद ससुराल पहुंचे। वहां पहुंचते ही उनका खूब आदर सत्कार हुआ, लेकिन लड़की वालों ने भी पितृपक्ष में बेटी को घर से ससुराल भेजने से मना कर दिया।
ब्राह्मण भी मानने वालों में से थे नहीं। उन्होंने जिद पकड़ ली कि वो अपनी पत्नी को लेकर ही जाएंगे और होते-होते वो अपनी पत्नी को लेकर अपने घर की ओर निकल पड़े।
रास्ते में कुछ देर आगे बढ़ने पर पंडित को जोर से प्यास लगने लगी। सामने ही उन्हें कुआं नजर आया। वो वहां गए और रस्सी को खींचकर पानी निकालने लगे। उसी वक्त एक व्यक्ति भी वहां पहुंचा और उसने पंडित से अपने लिए भी पानी निकालने के लिए कहा। जैसे ही पंडित उसके लिए पानी निकालने लगे, तो उसने पंडित को उठाकर कुए के अंदर डाल दिया और पंडित के भेष में उसकी पत्नी के साथ रास्ते में आगे बढ़ने लगा।
दोनों कुछ देर बाद पंडित के घर पहुंच गए। वो व्यक्ति पंडित का ही रूप बनाकर उस महिला के साथ रहने लगा।
ऐसा होते-होते तकरीबन तीन महीने बीत गए, लेकिन पंडित अभी भी कुएं में ही फंसे थे। कुछ दिनों बाद उसी कुएं के पास से एक व्यक्ति अपनी बैल लेकर गुजर रहा था। बैलों के गले की घंटी की आवाज कुएं के अंदर फंसे पंडित के कानों पर पड़ी। तभी पंडित जोर से चिल्लाया, “बचाओ-बचाओ, कोई है तो मुझे बाहर निकालो।”
बैल लेकर जा रहे आदमी को लगा कि कुएं से कोई भूत बोल रहा है। फिर भी वो हिम्मत करके कुएं के पास गया और पूछा, “कौन हो तुम?”
पंडित ने कुएं के अंदर से ही उस व्यक्ति को अपने साथ हुई पूरी घटना के बारे में बता दिया। सबकुछ सुनकर उस इंसान का दिल भर आया और पंडित को कुएं से बाहर निकाल लिया। कुएं से निकलते ही पंडित फटाफट अपनी पत्नी से मिलने के लिए गांव पहुंच गया। वहां जाते ही उसे पता चला कि उसी के भेष का एक इंसान गांव में रह रहा है।
पंडित ने अपने पिता को बताया कि मैं आपका असली बेटा हूं। इसने मुझे कुएं में धक्का मार दिया था और मेरा रूप लेकर यहां आ गया है। यही बात पंडित पूरे गांव वालों को बोलने लगा, लेकिन किसी ने उसकी बात पर भरोसा नहीं किया।
बात इतनी बढ़ी कि राजा के पास तक पहुंच गई। राजा ने पूरा मामला सुनने के बाद एक बड़ा सा चबूतरा बनवाकर पूरे राज्य के लोगों को बुलाया। साथ ही एक लोटा भी वहां रख दिया।
जब सभी लोग वहां पहुंच गए, तो राजा ने दोनों से पूछा, “तुम में से असली पंडित कौन है?” जवाब में दोनों ने कहा, “मैं असली हूं-मैं असली हूं।”
इस बात को सुनते ही राजा ने कहा कि जो भी जल्दी से इस लोटे में घुसकर बाहर निकलेगा, उसी को मैं असली पंडित घोषित कर दूंगा। इतना सुनने पर झट से एक पंडित लोटे के अंदर घुस गया। इतने में राजा ने लोटे का ढक्कन तेजी से बंद कर दिया। लोटे के अंदर बंद होते ही वो चिल्लाने लगा कि राजा मुझे माफ कर दो मैं आगे से ऐसा कुछ नहीं करूंगा।
इतना सब देखकर लोग समझ गए कि असली पंडित कौन है। सबको पता चल गया कि वो भूत था, जो लोटे में घुस गया था। वह भूत पंडित को सबक सिखाने के लिए उसका रूप बनाकर उसी के घर में रह रहा था, क्योंकि वो पितृ पक्ष में शुभ कार्य कर रहा था।
कहानी से सीख : बड़े-बुजुर्गों द्वारा कही गई बातों के पीछे कोई-न-कोई वजह छिपी होती है, इसलिए शुभ कार्यों को पितृ पक्ष में नहीं किया जाना चाहिए। बुजुर्गों के अनुभव के आधार पर ही कुछ समय के लिए पितृ पक्ष के दौरान शुभ कार्य करने से रुक जाना चाहिए।