जादुई सोने के कंगन की कहानी | Jadui Sone Ke Kangan Ki Kahani
June 17, 2024 द्वारा लिखित Vinita Pangeni
सालों पहले की बात है, काशी नगरी में रामदास नाम का एक मोची रहता था। वह काफ़ी नेक दिल इंसान था। हर किसी की मदद के लिए हरदम तैयार। उसके पास कोई भी मदद माँगने के लिए आए तो उसे उदास होकर नहीं लौटना पड़ता था।
एक दिन मोची रामदास रोज़ की तरह अपना मोची का सामान लेकर अपनी दुकान में बैठा हुआ था। उसके पास एक ब्राह्मण आया और अपना जूता सिलने के लिए दिया।
जूता सीलते हुए रामदास ने ब्राह्मण से पूछा, “ आप कहाँ से आए हैं?”
ब्राह्मण देव ने जवाब दिया, “मैं कावेरी तट से यहाँ गंगा माँ के दर्शन करने और नहाने आया हूँ।”
एकदम से मोची रामदास ने पूछा, “क्यों, आज कावेरी नदी में पानी ख़त्म हो गया है क्या?”
ब्राह्मण यह बात सुनकर हैरान हो गया। उसने रामदास से कहा, “तुम गंगा तट पर रहते हो और ऐसी बात कर रहे हो। क्या तुम्हें गंगा माँ का महत्व नहीं पता? क्या तुम कभी वहाँ स्नान और दर्शन के लिए नहीं गए?”
रामदास ने जवाब दिया, “ना मुझे महत्व पता है और ना मैंने कभी वहाँ स्नान किया है।”
रामदास आगे कुछ बोलता कि उससे पहले ही ब्राह्मण देव ने कहना शुरू कर दिया, “गंगा तट पर रहकर ना गंगा की शक्ति का पता है और ना कुछ और। तभी तो तुम्हारे भाग फूटे हुए हैं।” उसके बाद ब्राह्मण ने रामदास को गंगा माँ की महिमा सुनाई।
ब्राह्मण की बातें सुनने के बाद रामदास ने कहा, “अपना मन साफ़ हो तो हर तट का पानी गंगा है।”
इतना कहने के बाद रामदास ने जल्दी से जूता सिला और ब्राह्मण से कहा, “आपका जूता ठीक हो गया है। अब गंगा किनारे जाते हुए क्या आप मुझ पर एक एहसान करेंगे?”
ब्राह्मण देव ने कहा, “ज़रूर, बताओ क्या करना है?”
रामदास ने अपने जेब से एक साबुत सुपारी का टुकड़ा निकला और कहा, “आप जब गंगा में स्नान करेंगे तब उन्हें यह साबुत सुपारी अर्पण कर देना।”
ब्राह्मण देव ने रामदास के हाथ से वह सुपारी ली और गंगा के किनारे जाने लगे।
वहाँ स्नान करने के बाद ब्राह्मण देव ने हाथ में सुपारी लेकर गंगा माँ को पुकारते हुए कहा, “माँ, यह रामदास ने आपके लिए भेजा है, इसे स्वीकार कीजिए।”
इतना कहकर ब्राह्मण देव ने उस साबुत सुपारी को गंगा में बहा दिया। थोड़ी ही देर में गंगा में एक हाथ बहते हुए आया और ब्राह्मण के पास रुक गया। उस हाथ में एक सोने का एक कंगन था।
उसी समय एक आवाज़ आयी, “मेरी तरफ़ से यह कंगन रामदास को दे देना।”
गंगा माँ की तरफ़ से रामदास के लिए सोने का कंगन आता देख ब्राह्मण हैरान हो गया। दंग ब्राह्मण ने कंगन को हाथ में उठा लिया। कंगन हाथ में लेते ही ब्राह्मण के मन में लालच आ गया। उसने सोचा कि मैं यह कंगन रामदास को नहीं दूँगा। आख़िर रामदास को पता ही कैसे चलेगा कि माँ गंगा ने उसे कंगन देने के लिए कहा है। इस सोच के साथ ब्राह्मण आगे बढ़ने लगा।
कुछ दूर जाते ही उसके मन में हुआ कि अगर मैंने यह कंगन बेचा, तो पूछताछ होगी और मुझ पर चोरी का इल्ज़ाम लग सकता है। मैं सीधे यह कंगन राजा को देता हूँ, वो ख़ुश हो जाएँगे और ईनाम भी देंगे।
इसी सोच के साथ ब्राह्मण सीधे राजमहल पहुँच गया। वहाँ पहुँचते ही राजा को प्रणाम करके उस ब्राह्मण ने उन्हें कंगन भेंट कर दिया।
उस कंगन की चमक से राजा और वहाँ मौजूद दूसरे लोग दंग रह गए। राजा ने कहा, “ब्राह्मण देव, यह कंगन देखकर तो लग रहा है मानो यह स्वर्गलोक का है।”
राजा ने वह कंगन अपनी पत्नी को दे दिया। पत्नी ने जैसे ही कंगन पहना वह ख़ुश हो गयी। तभी राजा ने ब्राह्मण से कहा, “ यह एक कंगन है, मुझे इसका दूसरा जोड़ा भी चाहिए। रानी दोनों हाथों में यह कंगन पहनेंगी तभी उनकी शोभा और बढ़ेगी।”
यह सुनते ही ब्राह्मण के पसीने छूट गए। राजा ने तुरंत पूछा, “क्या हुआ आप परेशान क्यों हो गये? यह कंगन चोरी का तो नहीं है न?”
तुरंत ब्राह्मण ने जवाब दिया, “नहीं-नहीं राजा साहब, यह चोरी का नहीं है।”
तब राजा बोले, “ठीक है, आप आज शाम तक दूसरा कंगन लाकर मुझे दे दो। तभी मैं मानूँगा कि यह चोरी का नहीं है।”
जी राजा साहब कहते हुए घबराया हुआ ब्राह्मण राजा के दरबार से निकल गया। राजा ने अपने कुछ सिपाही ब्राह्मण के पीछे लगा दिए ताकि उन्हें कंगन का सच पता चल सके।
राजमहल से निकालकर ब्राह्मण सीधा रामदास के पास गया। उसने गंगा माँ द्वारा दिए गए कंगन, उसके मन के लालच, और राजा की फरमाइश सबके बारे में रामदास को बता दिया। उसके बाद रामदास से पूछने लगा कि दूसरा कंगन कैसे हासिल होगा।
रामदास ने ब्राह्मण की सारी बातें सुनने के बाद अपनी दोनों आँखें बंद कर ली। उसके बाद रामदास ने हाथ जोड़कर गंगा माँ से ब्राह्मण को बचाने की विनती की। एक मिनट के बाद रामदास ने अपने सामने रखी एक बाल्टी में हाथ डाला और उससे वैसा ही कंगन निकाल लिया।
ब्राह्मण यह देखकर हैरान हो गया। उसका पीछा कर रहे राजा के सिपाही भी यह चमत्कार देखकर दंग हो गए। यह सब देखकर वो सीधे राजा के पास पहुँच गए और उन्हें सारी बातें बता दीं।
इधर ब्राह्मण भी रामदास को धन्यवाद कहकर कंगन लेकर राजमहल निकल गया। वहाँ पहुँचते ही ब्राह्मण ने राजा को कंगन दे दिया। राजा ने उससे कुछ नहीं पूछा और चुपचाप कंगन ले लिया।
कंगन लेने के बाद राजा खुद अपने सिपाहियों के साथ रामदास की दुकान पर गए और रामदास को गंगा माँ की भक्ति के लिए ईनाम दिया।
कहानी से सीख
इंसान सिर्फ़ दिखावा करके कुछ हासिल नहीं कर सकता। भक्ति, मान-सम्मान सब दिल से होना चाहिए।