करवा चौथ व्रत कथा | Karwa Chauth Vrat Katha In Hindi
June 17, 2024 द्वारा लिखित Sweta Shrivastava
सालों पहले एक शहर में साहूकार रहता था, जिसके सात बेटे और एक बेटी थी। बेटी का नाम करवा था। साहुकार ने अपने बच्चों का पालन-पोषण काफी शाही तरीके से किया था। सभी भाई अपनी इकलौती बहन को बहुत मानते और उस पर अपनी जान छिड़कते थे। उन्होंने उसकी शादी एक अमीर साहूकार के साथ एकदम शाही तरीके से की।
एक दिन करवा ससुराल से अपने मायके आई। सभी भाइयों ने उसका जोरदार स्वागत किया। उन्होंने पहले अपनी बहन को खाना खिलाया और फिर खुद खाया। इसके बाद सभी एक साथ बैठकर बचपन की यादें साझा करने लगें। इसी तरह कुछ दिन बीतते चले गए। एक दिन शाम को जब करवा के सातों भाई अपने काम से घर लौटे, तो उन्होंने देखा की उनकी बहन काफी उदास होकर बाहर बैठी थी।
अपनी बहन करवा को उदास देखकर सभी भाई चिंतित हो गए। वो तुरंत उसके पास गए और उदासी का कारण पूछने लगे। इस पर करवा ने बताया कि उसने अपने पति के लिए करवा चौथ का उपवास रखा है और चांद के इंतजार में सुबह से ही भूखी-प्यासी है। जैसे ही चांद निकलेगा वह उसे देखकर अपना उपवास तोड़ेगी।
यह सुनकर भाइयों का भी मन उदास हो गया। वो सभी करवा के इस कष्ट को नहीं देख पाए। खासकर उसका सबसे छोटा भाई, जिसे करवा से सबसे अधिक स्नेह था। बहन को भूखा-प्यासा देखकर सभी भाई कुछ ऐसा उपाय सोचने लगे, जिससे वो अपनी बहन का कष्ट दूर कर सकें। तभी उन्हें एक तरकीब सूझी।
सभी भाई तुरंत एक पीपल के बड़े से पेड़ के पास पहुंचे। उनमें से सबसे छोटा भाई एक जलता हुआ दीपक लेकर उस पेड़ पर चढ़ गया और उसे एक छलनी में रखकर वहीं छोड़ दिया। इसके बाद पूरे गांव में हल्ला हो गया कि चांद निकल आया।
करवा भी उस जलते दीपक को चांद समझ बैठी और जल्दी से पूजा पूरी कर अपना उपवास खत्म करने के लिए बैठ गई। जैसे ही उसने खाने का पहला निवाला उठाया उसकी नजर भोजन में पड़े बाल पर पड़ी। उसने तुरंत उस निवाले को अपने प्लेट से निकाल कर दूसरी तरफ रख दिया। इसके बाद उसने दूसरा निवाला अपने मुंह में डाला, तभी उसके दांतों में एक कंकड़ आ फंसा। उसने झटपट उस निवाले को भी प्लेट से हटा दिया। इसके बाद उसने तीसरा निवाला अपने मुंह में रखा कि तभी उसे एक बुरी खबर मिली। करवा को पता चला कि उसके पति की मृत्यु हो गई।
यह सुनते ही करवा पूरी तरह से टूट गई और जोर-जोर से रोने लगी। कुछ समय बीतने के बाद उसे अपने पति के मृत्यु की सच्चाई का पता चला। उसे जानकारी मिली कि उसके भाइयों के कारण उसने दीपक को चांद समझ लिया था और अपना उपवास खत्म किया था। इस वजह से देवता नाराज हो गए और उसके पति को मृत्यु दंड की सजा सुनाई।
सच्चाई का पता चलने के बाद करवा ने अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करने का प्रण लिया। देखते-देखते एक साल बीत गए। करवा अपने पति के मृत शरीर के पास ही बैठी रही। वह रोजाना अपने पति के शव को साफ करती और वहां उगने वाली घासों को भी हटाती रहती थी। एक साल के बाद फिर से करवा चौथ का पर्व आया। हमेशा की तरह सभी महिलाएं इस व्रत को करने के लिए एक साथ जुटीं। इसमें उसकी सातों भाभी भी थीं।
शाम के समय पूजा समाप्त करने के बाद जब करवा की सभी भाभी उसके पास पहुंची, तो उन्होंने करवा को आशीर्वाद मांगने को कहा। इस पर करवा ने सभी से एक-एक करके अपने पति को जीवित करने का वरदान मांगा। करवा की यह मांग उसकी भाभी पूरी नहीं कर सकती थीं। उन्होंने करवा को समझाया भी, लेकिन वह नहीं मानी।
फिर उसकी एक भाभी ने बताया कि उसके छोटे भाई के वजह से ही ऐसा हुआ है, तो उसकी छोटी भाभी ही इस स्थिति को ठीक कर सकती है। यह सुनकर करवा अपनी छोटी भाभी के पास गई और उनके पैर पकड़कर अपने पति को जीवित करने का आशीर्वाद मांगने लगी।
पहले तो उसकी छोटी भाभी ने बहुत टाला, लेकिन अंत में उसकी छोटी भाभी ने अपनी तर्जनी उंगली को काटकर उसमें से अमृत की एक बूंद करवा के मृत पति के ऊपर डाल दी। जैसे ही अमृत की बूंद उसके ऊपर गिरी वह जिंदा हो गया और जय श्री गणेश, जय श्री गणेश के नारे लगाने पड़े। इस घटना के बाद से ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत करने से गौरी-शंकर खुश होते हैं और महिलाओं के सुहाग की रक्षा का वरदान देते हैं।
कहानी से सीख
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि इंसान को हमेशा सच्ची भक्ति से पूजा-पाठ करनी चाहिए। अगर इसमें किसी प्रकार की कमी रहती है, तो उसके बुरे परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।