कौवा और कोयल की कहानी । Kauwa Aur Koyal Ki Kahani
June 17, 2024 द्वारा लिखित Vinita Pangeni
सालों पहले चाँदनगर के पास एक जंगल था। वहाँ एक बड़ा-सा बरगद का पेड़ था, जिसपर एक कौवा और एक कोयल दोनों अपने-अपने घोंसले में रहते थे। एक रात उस जंगल में तेज़ आँधी चलने लगी। देखते-ही-देखते बारिश शुरू हो गई। कुछ ही देर में जंगल का जो भी था सब बर्बाद हो गया।
अगले दिन कौवे और कोयल को अपनी भूख मिटाने के लिए कुछ भी नहीं मिला। तभी कोयल ने कौवे से कहा, “हम इतने प्यार से इस जंगल में रहते हैं, लेकिन अब हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं है। तो क्यों न जब मैं अंडा दूँ, तो तुम उसे खाकर अपनी भूख मिटाना और जब तुम अंडा दोगे, तो उसे खाकर मैं अपनी भूख मिटा लूंगी?”
कौवे ने कोयल की बात पर सहमती जताई। संयोग से सबसे पहले कौवे ने अंडा दिया और कोयल ने उसे खाकर अपनी भूख मिटा ली। फिर कोयल ने अंडा दिया। कौवा जैसे ही कोयल का अंडा खाने लगा तो कोयल ने उसे रोक दिया।
कोयल ने कहा, “तुम्हारी चोंच साफ नहीं है। तुम इसे धोकर आओ। फिर अंडा खाना।”
भागकर कौवा नदी के किनारे गया। उसने नदी से कहा, “तुम मुझे पानी दो। मैं अपनी चोंच धोकर कोयल का अंडा खाऊँगा।”
नदी बोली, “ठीक है! पानी के लिए तुम एक बर्तन लेकर आओ।”
अब कौवा जल्दी से कुम्हार के पास पहुँचा। उसने कुम्हार से कहा, “मुझे घड़ा दे दो। उसमें मैं पानी भर कर अपनी चोंच धोऊंगा और फिर कोयल का अंडा खाऊंगा।”
कुम्हार ने कहा, “तुम मुझे मिट्टी लाकर दो, मैं तुम्हें बर्तन बनाकर दे देता हूँ।”
यह सुनते ही कौवा, धरती माँ से मिट्टी माँगने लगा। वो बोला, “माँ मुझे मिट्टी दे दो। उससे मैं बर्तन बनवाऊंगा और उस बर्तन में पानी भरकर अपनी चोंच साफ करूंगा। फिर अपनी भूख मिटाने के लिए कोयल का अंडा खाऊंगा।”
धरती माँ बोली, “मैं मिट्टी दे दूंगी, लेकिन तुम्हें खुरपी लानी होगी। उसी से खोदकर मिट्टी निकलेगी।”
दौड़ते हुए कौवा लोहार के पास पहुँचा। उसने लोहार से कहा, “मुझे खुरपी दे दो। उससे मैं मिट्टी निकालकर कुम्हार को दूंगा और बर्तन लूंगा। फिर बर्तन में पानी भरूंगा और उस पानी से अपनी चोंच धोकर कोयल का अंडा खाऊंगा।”
लोहार ने गर्म-गर्म खुरपी कौवे को दे दी। जैसे ही कौवे ने उसे पकड़ा उसकी चोंच जल गई और कौवा तड़पते हुए मर गया।
इस तरह चतुराई से कोयल ने अपने अंडे कौवे से बचा लिए।
कहानी से सीख
कौवे और कोयल की कहानी यह सीख देती है कि दूसरों पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए। इससे नुकसान खुद का ही होता है।