मित्र-द्रोह का फल | Right-Mind and Wrong-Mind Story in Hindi
June 17, 2024 द्वारा लिखित nripendra
बहुत साल पहले हिम्मत नाम के नगर में दो पक्के दोस्त धर्मबुद्धि और पापबुद्धि रहा करते थे। एक दिन पापबुद्धि के मन में ख्याल आया कि क्यों न दूसरे नगर जाकर कुछ पैसा कमाया जाए। इतना सोचते-सोचते पापबुद्धि के मन में हुआ कि वो धर्मबुद्धि को भी साथ लेकर जाएगा, जिससे दोनों खूब सारा पैसा कमाएंगे और फिर लौटते समय वो धर्मबुद्धि से उसका पैसा किसी तरह से हड़प लेगा। अपनी चाल को पूरा करने के लिए उसने धर्मबुद्धि को दूसरे शहर जाने के लिए मना लिया।
दोनों अपने नगर से खूब सारा सामान लेकर दूसरे शहर पहुंच गए। कुछ महीनों तक वहीं रहकर धर्मबुद्धि और पापबुद्धि ने सामान को काफी अच्छी कीमत में बेचा। जब दोनों ने अच्छी-खासी रकम इकट्ठा कर ली, तो दोनों एक दिन अपने नगर की ओर लौटने लगे। पापबुद्धि अपने दोस्त धर्मबुद्धि को जंगल के रास्ते से लेकर आया। रास्ते पर चलते-चलते पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा, “मित्र देखो, अगर हम अपने नगर इतना सारा धन लेकर जाते हैं, तो समस्या हो सकती है। चोर इसे चुरा सकते हैं, लोग हमसे जलन का भाव रखने लगेंगे और कुछ उधार भी मांग लेंगे। ऐसे में बेहतर होगा कि हम आधा धन इसी जंगल में छिपा देते हैं।
धर्मबुद्धि ने पापबुद्धि की बातों पर यकीन करके धन को छुपाने के लिए हां कर दी। पापबुद्धि ने गड्ढा खोदकर धन को जंंगल में एक पेड़ के पास छिपा दिया। फिर कुछ दिनों बाद बिना अपने दोस्त को बताए, पापबुद्धि मौका देखकर अकेले सारा धन उस जंगल से लेकर आ गया। समय बीतता गया और एक दिन धर्मबुद्धि को पैसे की जरूरत पड़ी। तो धर्मबुद्धि सीधे अपने मित्र पापबुद्धि के पास गया और कहने लगा, “मुझे पैसों की जरूरत है, जंगल से पैसे निकालकर ले आते हैं।”
पापबुद्धि राजी हो गया और दोनों जंगल की ओर निकल गए। जैसे ही धर्मबुद्धि ने गड्ढा खोदा, तो वहां पैसा न देखकर चौंक गया। इतने में ही पापबुद्धि ने शोर मचाना शुरू कर दिया और धर्मबुद्धि पर चोरी का आरोप लगाया। हो-हल्ला होने के बाद पापबुद्धि न्यायालय पहुंचा।
न्यायाधीश ने सारा मामला सुना तो सच्चाई का पता लगाने के लिए अपनी दिव्य शक्ति से परीक्षा लेने का निर्णय लिया। इसके बाद न्यायाधीश ने दोनों को आग में हाथ डालने का आदेश दिया। चतुर पापबुद्धि ने कहा, “अग्नि में हाथ डालने की कोई जरूरत नहीं है, खुद वन देव मेरी सच्चाई की गवाही देंगे।” न्यायाधीश ने उसकी बात मान ली।
धूर्त पापबुद्धि पास के ही एक सूखे पेड़ में छिप गया। जैसे ही न्यायाधीश ने वन देवता से पूछा कि आखिर धन की चोरी किसने की तो जंगल से आवाज आई, “धर्मबुद्धि ने चोरी की है।” इतना सुनते ही धर्मबुद्धि ने जिस पेड़ की तरफ से आवाज आई, उसी पेड़ को आग के हवाले कर दिया। आग लगते ही पेड़ से चिल्लाते हुए पापबुद्धि बाहर निकला और झुलसी हालात में सारा सच बयां कर दिया। सच्चाई का पता चलते ही न्यायाशीध ने पापबुद्धि को फांसी की सजा सुना दी और धर्मबुद्धि को उसके पैसे दिलवा दिए।
कहानी से सीख – दूसरे के लिए बुरा सोचने वाले के साथ बुरा ही होता है।