राधा अष्टमी व्रत की कहानी | Radha Ashtami Vrat Katha In Hindi
June 17, 2024 द्वारा लिखित Sweta Shrivastava
राधा माता गोलोक में श्रीकृष्ण के साथ रहती थीं। एक दफा कृष्ण भगवान को गोलोक में राधा रानी कहीं नजर नहीं आईं। कुछ देर बाद कन्हैया अपनी सखी विराजा के साथ घूमने चले गए। यह बात जब राधा रानी को मालूम हुई, तो उन्हें गुस्सा आया और वो सीधे कन्हैया के पास पहुंची। वहां पहुंचकर उन्होंने श्रीकृष्ण को काफी भला-बुरा कहा।
राधा रानी का यह रवैया भगवान श्रीकृष्ण के प्यारे मित्र श्रीदामा को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। श्रीदामा ने उसी वक्त बिना कुछ सोचे समझे राधा रानी को पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया। राधा को इतने गुस्से में देखकर कृष्ण भगवान की सखी विराजा भी नदी के रूप में वहां से चली गईं।
राधा ने श्रीदामा से श्राप पाने के बाद उन्हें राक्षस कुल में पैदा होने का श्राप दिया। राधा जी द्वारा दिए गए श्राप की वजह से ही श्रीदामा का जन्म शंखचूड़ दानव के रूप में हुआ। आगे चलकर वही दानव, भगवान विष्णु का परम भक्त बना। दूसरी तरफ, राधा रानी ने पृथ्वी पर वृषभानु के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया।
राधा रानी का जन्म वृषभानुजी के घर तो हुआ, लेकिन उनकी पत्नी देवी कीर्ति के गर्भ से नहींं। दरअसल, जिस समय राधा मैया और श्रीदामा ने एक दूसरे को श्राप दिया था, तभी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि राधा आपको वृषभानुजी और देवी कीर्ति की पुत्री बनकर पृथ्वी पर रहना होगा।
मनुष्य के अवतार में आपका एक वैश्य से विवाह होगा। वो मेरे अंशावतारों में से ही एक होगा। इस तरह आप पृथ्वी पर भी मेरी ही बनकर रहेंगी। परंतु, हम दोनों को बिछड़ने का दुख सहना होगा। इसके बाद कृष्ण भगवान ने राधा जी को मनुष्य योनी के रूप में जन्म लेने की तैयारी करने के लिया कहा।
संसार के सामने वृषभानुजी की पत्नी गर्भवती हुईं। जिस तरह एक बच्चा दुनिया में आता है, ठीक वैसे ही देवी कीर्ति का भी प्रसव हुआ, लेकिन असल में राधा माता का जन्म देवी कीर्ति के गर्भ से नहीं हुआ था। भगवान की माया से उनके गर्भ में वायु भर गई थी। देवी कीर्ती ने उसी वायु को जन्म दिया। इस दौरान उन्हें प्रसव पीड़ा हो रही थी और वहां राधा माता के रूप में एक प्यारी सी कन्या ने जन्म लिया।
भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन राधा मैया का धरती पर जन्म हुआ था। तभी से हर साल इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
कहानी से सीख : क्रोध एक बुराई है। क्रोध का जवाब क्रोध में ही देने से बातें और खराब हो जाती हैं। इसके कारण कई दुविधाओं का सामना करना पड़ सकता है।