सत्यनारायण की व्रत कथा – द्वितीय अध्याय | Satyanarayan Vrat Katha (Chapter 2)
June 17, 2024 द्वारा लिखित Sweta Shrivastava
ऋषि मुनियों को नारद और भगवान विष्णु की कहानी सुनाने के बाद श्री सूत जी ने कहा, “हे मुनिगण! जिस व्यक्ति ने सबसे पहले इस व्रत को किया था मैं उसके बारे में भी आप लोगों को बताता हूं, ध्यान से सुनें।”
एक समय की बात है, सुंदर काशीपुरी नामक नगरी में एक बेहद गरीब ब्राह्मण रहता था। भूखे प्यासे वह ब्राह्मण भोजन की इच्छा लिए धरती पर भ्रमण कर रहा था। यह देख एक दिन सत्यनारायण भगवान खुद बूढ़े ब्राह्मण के रूप में धरती पर आए और उन्होंने उस गरीब ब्राह्मण के पास जाकर पूछा, “आप रोजाना इतना उदास मन लेकर इस धरती पर क्यों घूमते रहते हैं?”
ब्राह्मण ने जवाब में कहा, “मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं और भिक्षा की तलाश में धरती पर भ्रमण करने को मजबूर हूं। अगर आपके पास ऐसा कोई उपाय है, जिसका पालन कर मैं अपनी गरीबी दूर कर सकूं, तो मुझे बताइए।”
इस पर बूढ़े ब्राह्मण ने कहा, “तुम भगवान सत्यनारायण की आराधना करो। वह सभी के मन की मुराद को पूरी करते हैं। उनकी पूजा करने वाला हर शख्स दुख और कष्ट से दूर हो जाता है।” इतना कहकर बूढ़े ब्राह्मण का रूप लिए सत्यनारायण भगवान अदृश्य हो गए। उनकी बातें सुनकर निर्धन ब्राह्मण इस व्रत को करने का उपाय सोचने लगा।
रात भर गरीब ब्राह्मण ने इसी के बारे में सोचा और पूरी रात जागने के बाद सत्यनारायण भगवान की पूजा करने के लिए भिक्षा मांगने निकल पड़ा। अन्य दिनों के मुकाबले उस दिन उस ब्राह्मण को काफी ज्यादा भिक्षा मिली। उस भिक्षा से और अपने प्रियजनों के सहयोग से किसी तरह ब्राह्मण ने सत्यनारायण भगवान की पूजा की।
पूजा के बाद उस गरीब ब्राह्मण के सभी दुख दूर हो गए। धीरे-धीरे वह कई संपत्तियों का मालिक हो गया। ब्राह्मण हर महीने नियमित रूप से इस पूजा को करने लगा।
श्री सूत ने कहा, “इस तरह से जो कोई भी सच्ची श्रद्धा के साथ श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा करेगा वह सभी प्रकार के दुखों और पापों से मुक्ति पा सकेगा।”
इस पर ऋषिगण बोले, “हे सर्व ज्ञाता सूत जी! उस ब्राह्मण की बातों को सुनकर और किस-किस ने श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा की? आप इस बारे में भी हमें बताएं।”
फिर सूत जी ने आगे कहा, “इस व्रत को जिन लोगों ने भी किया मैं उन सभी के बारे में आप लोगों को बताता हूं, ध्यान से सुनें।”
एक बार वह गरीब ब्राह्मण धन और संपत्ति की प्राप्ति के बाद अपने परिजनों के साथ इस व्रत को करने की तैयारी कर रहा था। तभी एक बूढ़ा व्यक्ति लकड़ी बेचते हुए वहां आया। उसने लकड़ियों को बाहर रखा और स्वयं ब्राह्मण के घर के अंदर चला गया।
प्यास से तड़पता वह लकड़ी बेचने वाला जब घर के अंदर आया, तो उसने देखा कि ब्राह्मण पूजा पर बैठा हुआ था। उसने ब्राह्मण को नमस्कार किया और पूछा, “हे मुनिवर! आप यह कौन-सा तप कर रहे हैं और इसे करने से क्या फल मिलेगा?
लकड़हारे के सवालों का उत्तर देते हुए ब्राह्मण ने कहा, “यह व्रत श्री सत्यनारायण भगवान का है। इसे करने से मन की इच्छा पूरी होती है। इसी व्रत का पालन करके मुझे धन की प्राप्ति हुई है।ठ
ब्राह्मण से इस व्रत के बारे में सुनकर लकड़हारा बेहद खुश हुआ। उसने चरणामृत व प्रसाद ग्रहण किया और तुरंत अपने घर चला गया। घर पहुंचकर उसने निश्चय किया कि किसी भी हाल में वह भी श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा करेगा। इसके लिए वह लकड़ी बेचने उस नगर जा पहुंचा जहां अधिक संख्या में अमीर लोग रहते थे। वहां उसे पहले के मुकाबले अधिक धन मिला।
इसके बाद उस लकड़हारे ने कमाए हुए धन से गेहूं का आटा, केला, घी, शक्कर, दूध सहित सत्यनारायण व्रत में लगने वाली सभी सामग्रियों को खरीदा। फिर उसने अपने परिजनों को भी आमंत्रित किया और पूरी विधि के साथ श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत किया। इस पूजा को करने के बाद उस लकड़हारे को भी धन और संपत्ति की प्राप्ति हुई और आखिर में उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई।
इस प्रकार सत्यनारायण कथा का दूसरा अध्याय खत्म हुआ।