पंचतंत्र की कहानी: शेरनी का तीसरा पुत्र | The Lioness Third Son Story In Hindi
June 17, 2024 द्वारा लिखित Ankita Mishra
किसी घने जंगल में एक शेर और एक शेरनी साथ रहते थे। वे दोनों एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते थे। हर दिन दोनों साथ में ही शिकार करने जाते और शिकार को मारकर साथ में बराबर-बराबर खाते थे। दोनों के बीच में विश्वास और भरोसा भी खूब था। कुछ समय के बाद ही शेर और शेरनी दो पुत्रों के माता-पिता भी बन गए।
जब शेरनी ने बच्चों को जन्म दिया, तो शेर ने उससे कहा कि “अब से तुम शिकार पर मत जाना। घर पर रहकर खुद की और बच्चों की देखभाल करना। मैं अकेले ही हम सब के लिए शिकार लेकर आउंगा।” शेरनी ने भी शेर की बात मान ली और उस दिन से शेर अकेले ही शिकार के लिए जाने लगा। वहीं, शेरनी घर पर रहती और बच्चों की देखभाल करती।
बदकिस्मती से एक दिन शेर को कोई भी शिकार नहीं मिला। थकहार कर जब वह खाली हाथ घर की तरफ जा रहा था, तो उसे रास्ते में लोमड़ी का एक बच्चा अकेले घूमता हुआ दिखाई दिया। उसने सोचा आज उसके पास शेरनी और बच्चों के लिए कोई भोजन नहीं है, तो वह इस लोमड़ी के बच्चे को ही अपना शिकार बनाएगा। शेर ने लोमड़ी का बच्चा पकड़ा, लेकिन वह बहुत छोटा था, जिस वजह से वह उसे मार नहीं सका। वह उसे जिंदा ही पकड़कर घर लेकर चला गया।
शेरनी के पास पहुंचकर उसने बताया कि आज उसे एक भी शिकार नहीं। रास्ते में उसे यह लोमड़ी का बच्चा दिखाई दिया, तो वह उसे ही मारकर खा जाए। शेर की बातें सुनकर शेरनी ने कहा – “जब तुम इसे बच्चे को नहीं मार पाए, तो मैं कैसे इसे मार सकती हूं? मैं इसे नहीं खा सकती है। इसे भी मैं अपने दोनों बच्चों की ही तरह पाल-पोसकर बड़ा करूंगी और यह अब से हमारा तीसरा पुत्र होगा।“
उसी दिन से शेरनी और शेर लोमड़ी के बेटे को भी अपने पुत्रों ही तरह प्यार करने लगें। वह भी शेर के परिवार के साथ बहुत खुश था। उन्हीं के साथ खेलता-कूदता और बड़ा होने लगा। तीनों ही बच्चों को लगता था कि वह सारे ही शेर हैं।
जब वह तीनों कुछ और बड़े हुएं, तो खेलने के लिए जंगल में जाने लगें। एक दिन उन्होंने वहां पर एक हाथी को देखा। शेर को दोनों बच्चें उस हाथी के पीछे शिकार के लिए लग गए। वहीं, लोमड़ी का बच्चा डर के मारे उन्हें ऐसा करने से मना कर रहा था। लेकिन, शेर के दोनों बच्चों ने लोमड़ी के बच्चे की बात नहीं मानी और हाथी के पीछे लगे रहें और लोमड़ी का बच्चा वापस घर पर शेरनी मां के पास आ गया।
कुछ देर बाद जब शेरनी के दोनों बच्चे भी वापस आए, तो उन्होंने जंगल वाली बात अपनी मां को बताई। उन्होंने बताया कि वह हाथी के पीछे गए, लेकिन उनका तीसरा भाई डर कर घर वापस भाग आया। इसे सुनकर लोमड़ी का बच्चा गुस्सा हो गया। उसने गुस्से में कहा कि तुम दोनों जो खुद को बहादुर बता रहे हो, मैं तुम दोनों को पटकर जमीन पर गिरा सकता हूं।
लोमड़ी के बच्चे की सुनकर शेरनी ने उसे समझाया कि उसे अपने भाईयों से इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए। उसके भाई झूठ नहीं बोल रहे, बल्कि वे दोनों सच ही बता रहे हैं।
शेरनी बात भी लोमड़ी के बच्चों को अच्छी नहीं लगी। गुस्से में उसने कहा, तो क्या आपको भी लगता है कि मैं डरपोक हूं और हाथी को देखकर डर गया था?
लोमड़ी के बच्चे की इस बात को सुनकर शेरनी उसे अकेले में ले गई और उसे उसके लोमड़ी होने का सच बताया। हमनें तुम्हें भी अपने दोनों बच्चों की तरह ही बड़ा किया है, उन्हीं के साथ तुम्हारी भी परवरिश की है, लेकिन तुम लोमड़ी वंश के हो और अपने वंश के कारण ही तुम हाथी जैसे बड़े जानवर को देखकर डर गए और घर वापस भाग आए। वहीं, तुम्हें दोनों भाई शेर के वंश के हैं, जिस वजह से वह हाथी का शिकार करने के लिए उसके पीछे भाग गए।
शेरकनी ने आगे कहा कि अभी तक तुम्हारे दोनों भाईयों को तुम्हारे लोमड़ी होने का पता नहीं है। जिस दिन उन्हें यह पता चलेगा वह तुम्हारा भी शिकार कर सकते हैं। इसलिए, अच्छा होगा कि तुम यहां से जल्द ही भाग जाओ और अपनी जान बचा लो।
शेरनी से अपने बारे में सच सुनकर लोमड़ी का बच्चा डर गया, और मौका मिलते ही वह रात में वहां से छिपकर भाग गया।
कहानी से सीख – शेरनी और शेर के तीसरे पुत्र की कहानी हमें यह सीख देती है कि कायर और डरपोक वंशज के लोग अगर बहादुर लोगों के बीच भी रहें, तो भी वह बहादुर नहीं बन सकते हैं। उनकी आदतों में उनकी वंशज की सोच और दक्षता की झलक बनी रह सकती है।