सिंहासन बत्तीसी की चौथी कहानी – कामकंदला पुतली की कथा
June 17, 2024 द्वारा लिखित nripendra
एक बार फिर राजा भोज सिंहासन पर बैठने के लिए पहुंचते हैं। इस बार उन्हें चौथी पुतली रोककर राजा विक्रामादित्य की दानवीरता और त्याग की कहानी सुनाने लगती है।
एक बार की बात है, राजा विक्रमादित्य से दरबार में मिलने के लिए कुछ लोग पहुंचे। तभी एक ब्राह्मण भी भागते हुए वहां आए और कहने लगे कि मुझे आपको कुछ जरूरी बात बतानी है। राजा ने पूछा ऐसा क्या जरूरी है कि आपको इतनी तेजी से भागते हुए आना पड़ा?
जवाब में ब्राह्मण ने कहा कि मानसरोवर में अजीब-सी घटना हो रही है। वहां सूरज उगने के साथ ही एक खंभा भी जमीन से निकलता है। यह खंभा सूरज की रोशनी के साथ-साथ ऊपर बढ़ता है। जैसे ही सूरज की किरणें तेज हो जाती हैं, तो खंभा सूरज को छू लेता है। जब धीरे-धीरे सूरज की रोशनी कम होती है, तो खंभा छोटा हो जाता है। फिर सूरज के ढलते ही खंभा भी गायब हो जाता है।
इन बातों को सुनने के बाद राजा विक्रामादित्य हैरान रह गए। उनके मन में सवाल आया कि आखिर ऐसी कौन सी चीज है, जो सूरज को छू रही है। तभी ब्राह्मण ने बताया कि वह खंभा भगवान इंद्र का रूप है। सूर्य देव को घमंड है कि उनके तेज को कोई सहन नहीं कर सकता, लेकिन इंद्र देव ने उनसे दावा किया है कि धरती का एक राजा उनका तेज सहन कर सकता है।
यह सब सुनकर राजा विक्रमादित्य सारी बात समझ गए। तभी ब्राह्मण ने बताया कि देवराज इंद्र ने ही उन्हें राजमहल भेजा है। महाराज ने ब्राह्मण को ढेर सारी मुद्रा देकर महल से विदा किया। उनके जाते ही विक्रमादित्य ने अपने बेताल को बुलाकर मानसरोवर पहुंचाने को कहा। वहां पहुंचते ही विक्रमादित्य खंभा निकलने वाली जगह पर गए और सुबह होने का इंतजार करने लगे।
सुबह सूरज के उगते ही खंभा भी निकल गया। राजा विक्रमादित्य ने जैसे ही खंभे को देखा, वो उस पर चढ़ गए। धीरे-धीरे सूरज की रोशनी बढ़ने लगी और खंभा भी ऊपर बढ़ता गया। उस खंभे के साथ-साथ राजा विक्रमादित्य भी सूरज के करीब पहुंचते गए। दोपहर होते-होते खंभा सूरज के एकदम नजदीक पहुंच गया, लेकिन तब तक राजा पूरी तरह से जल कर राख हो गए।
जब सूर्य देवता ने खंभे पर जला हुआ मानव शरीर देखा, तो वो समझ गए कि यह राजा विक्रमादित्य ही हैं। उन्होंने भगवान इंद्र के दावे को बिल्कुल सही पाया और तुरंत अमृत की कुछ बूंदे राजा के मुंह में डालकर उन्हें जिंदा कर दिया। सूर्य देवता ने राजा की हिम्मत से खुश होकर उन्हें ऐसे सोने के कुंडल दिए, जो व्यक्ति की हर इच्छा को पूरा करते थे। फिर सूरज की रोशनी कम होने लगी और खंभा भी नीचे आ गया।
नीचे आते ही राजा विक्रमादित्य ने बेताल को बुलाया और अपने महल वापस चले गए। उसी दौरान उन्हें एक ब्राह्मण मिला, जिसने राजा से कुछ दान करने को कहा। महाराज ने खुशी-खुशी उस ब्राह्मण को सूर्य देव से मिले कुंडल दे दिए और बताया कि कुंडल उनकी सभी इच्छा को पूरी कर सकते हैं। इतना कहकर राजा अपने कमरे में चले गए।
यह कहानी सुनाने के बाद चौथी पुतली सिंहासन से उड़ गई।
कहानी से सीख:
इंसान के मन में हमेशा त्याग और दान की भावना होनी चाहिए। जैसे इस कहानी में राजा विक्रमादित्य ने उपहार में मिले कुंडल ब्राह्मण को दान में दे दिए, उसी तरह हमें भी निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करनी चाहिए।