सिंहासन बत्तीसी की 24वीं कहानी – करुणावती पुतली की कथा
June 17, 2024 द्वारा लिखित nripendra
सिंहासन पर बैठने के लिए राजाभोज ने जैसे ही अपना कदम आगे बढ़ाया, वैसे ही 24वीं पुतली करुणावती ने उन्हें रोक दिया। 24वीं पुतली ने कहा कि यह सिंहासन तुम्हारे लिए नहीं है। पहले मैं तुम्हें राजा विक्रमादित्य के गुण व कौशल से जुड़ी एक कहानी सुनाती हूं। उसके बाद तय करना कि आप इस सिंहासन पर बैठने योग्य हैं या नहीं। 24वीं पुतली ने कहा..
राजा विक्रमादित्य अक्सर अपनी प्रजा का हालचाल जानने के लिए रात में रूप बदलकर राज्य भर में घूमा करते थे। राज्य के चोर-डाकू भी जानते थे कि महाराज भेष बदलकर घूमते हैं, इसलिए वो अपराध करने से घबराते थे। राजा विक्रमादित्य भी चाहते थे कि उनके राज्य से अपराध पूरी तरह से खत्म हो जाए और उनकी प्रजा रात को चैन से सो सके। इसी प्रकार एक रात महाराज भेष बदलकर अपने राज्य में घूम रहे थे। चलते-चलते उन्हें एक भवन के बाहर रस्सी लटकी हुई नजर आई। उन्होंने सोचा कि जरूर कोई चोर इस रस्सी से लटकर ऊपर गया, इसलिए वो भी रस्सी के सहारे ऊपर पहुंच गए।
उन्होंने अपनी तलवार भी निकाल ली और चोरों को तलाशने लगे, लेकिन तभी किसी महिला की धीमी आवाज सुनाई दी। उन्हें लगा कि यह महिला ही चाेर है। यह सोचकर वो कमरे की दीवार से सटकर खड़े हो गए। उन्होंने सुना कि महिला किसी से साथ वाले कमरे में जाकर किसी की हत्या करने को कह रही है। महिला कह रही थी कि उस आदमी की हत्या किए बिना किसी और के साथ उसका संबंध बनाना मुश्किल है। इसके बाद महाराज को एक पुरुष की आवाज सुनाई दी। पुरुष बोल रहा था कि वह लुटेरा जरूर है, लेकिन किसी निर्दोष व्यक्ति की जान नहीं ले सकता। उसने महिला से कहा कि उसके बाद बहुत धन है। वो दोनों दूर कहीं जाकर सुखी से अपना जीवन काट सकते हैं। इस पर महिला बोली कि तुम दो दिन बाद आना, क्योंकि उसे सारा धन इकट्ठा करने में एक दिन लगेगा।
राजा समझ गए कि पुरुष उस महिला का प्रेमी है और महिला इस घर के मालिक की पत्नी है। इसके बाद राजा उस रस्सी के सहारे नीचे आ गए और महिला के प्रेमी का इंतजार करने लगे। थोड़ी देर बाद जैसे महिला का प्रेमी रस्सी पकड़ कर नीचे आया, तो राजा ने उसकी गर्दन पर अपनी तलवार रख दी और उसे अपना परिचय दिया। महाराज को सामने देखकर आदमी डर गया, लेकिन राजा विक्रमादित्य ने उसे वादा किया कि अगर वो सच बताएगा, तो वो उसे मृत्युदंड नहीं देंगे। इसके बाद उसने अपनी कहानी महाराज को बताई-
“मैं बचपन से ही उस महिला से प्यार करता हूं और शादी भी करना चाहता था। मेरे पिता बहुत बड़े व्यापारी थी, जिस कारण मेरे पास काफी धन था। फिर एक दिन समुद्री डाकुओं ने मेरे पिताजी का कीमती सामान से भरा जहाज लूट लिया, जिस कारण हम कंगाल हो गए और मेरे सारे सपने चकनाचूर हो गए। इससे मेरे पिताजी इतने दुखी हुई कि उनकी मौत हो गई। इसके बाद मैंने समुद्री डाकुओं से बदला लेने का निर्णय लिया। कई सालों तक इधर-उधर धक्के खाने के बाद आखिरकार एक दिन मुझे उनका पता चल ही गया। किसी तरह से मैं उनके गुट में शामिल हुआ और उनका विश्वास जीत लिया। अब जब भी मुझे मौका मिलता मैं गुट के किसी न किसी सदस्य की हत्या कर देता। इस तरह से मैंने पूरे दल को खत्म कर दिया और उन्होंने लूट से जो पैसा इकट्ठा किया था वह लेकर वापस घर लौट आया।”
“घर आने के बाद मुझे पता चला कि जिसे मैं प्यार करता था, उसकी शादी राज्य के किसी धनी सेठ से हो गया है। एक बार फिर मेरे सारे सपने टूट गए। एक दिन मुझे उसके मायके आने के बारे में पता चला। फिर वो रोज मुझसे आकर मिलने लगी। एक दिन मैंने उसने कहा कि मेरे पास बहुत सारी दौलत है, लेकिन उसे मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने कहा कि अगर वो उसे नौलखा हार लाकर दे, तो ही उसे विश्वास होगा। आखिरकार मैं उसकी बात मानकर नौलखा हार ले आया, लेकिन तब तक वो अपने पति के घर लौट गई थी। आज जब मैंने नौलखा हार लाकर उसे पहनाया, तो उसने अपने पति की हत्या करने के लिए मुझे उकसाया, लेकिन मैंने करने से मना कर दिया, क्योंकि किसी निर्दोष की हत्या करना बहुत बड़ा पाप है।
राजा विक्रमादित्य ने सच बोलने पर उसकी तारीफ की और समुद्री डाकुओं का सफाया करने के लिए उसे शाबाशी दी। साथ ही अपनी प्रेमिका की चतुराई नहीं समझ पाने के लिए उसे डांटा। राजा विक्रमादित्य ने कहा कि सच्ची प्रेमिकाएं प्रेमी से प्रेम करती हैं, उसकी दौलत से नहीं। साथ ही नौलखा हार मिलने के बाद अपने पति की हत्या के लिए उसे उकसाया। ऐसी निर्दय तथा चरित्रहीन महिला से प्रेम हमेशा विनाश की ओर ले जाता है।
वह आदमी रोता हुआ महाराज के चरणों में गिर गया तथा अपने अपराध के लिए उसे माफ करने के लिए प्रार्थना करने लगा। राजा ने भी उसे मृत्युदंड नहीं दिया और उसकी वीरता और सच्चाई के लिए ढेरों पुरस्कार दिए।
अगली रात राजा विक्रमादित्य उस महिला के प्रेमी का भेष बनाकर उस महिला के पास पहुंचे। उनके पहुंचते ही महिला ने सोने के आभूषणों से भरी एक थैली उनके सामने रख दी और कहा कि उसने सेठ को विष खिलाकर मार दिया है। जब राजा कुछ नहीं बोले, तो महिला को शक हुआ और उनकी नकली दाढ़ी-मूंछ नोंच ली। अपने प्रेमी की जगह किसी और पुरुष को देखकर महिला जोर-जोर से चोर-चोर चिल्लाने लगी और अपने पति का हत्यारा उन्हें बताकर रोने लगी। वहीं, घर के बाहर खड़े राजा के सिपाही राजा का आदेश मिलते ही दौड़कर आए और महिला को गिरफ्तार कर लिया। अपने सामने राजा विक्रमादित्य को देखकर महिला के हाेश उड़ गए और उसने झट से विष पीकर अपनी जान दे दी।
यह कहानी सुनाकर 24वीं पुलती वहां से उड़ गई और राजा भोज एक बार फिर महाराज विक्रमादित्य की न्यायप्रियता के बारे में सोचने लगे।
कहानी से सीख:
लालच करने वालों के साथ कभी अच्छा नहीं होता। उन्हें एक न एक दिन इसका परिणाम भुगतना ही पड़ता है, जैसे इस कहानी में पैसों के लिए अपने पति की हत्या करने वाली महिला के साथ हुआ।