स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानी – शिक्षा पर विचार

June 17, 2024 द्वारा लिखित

स्वामी विवेकानंद जी का आदर्शों से भरा जीवन हम सभी को प्रेरणा देता है। उनके उच्च विचार न केवल हमारे जीवन में नई ऊर्जा का संचार करते हैं साथ ही हमारा मार्गदर्शन भी करते हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए हमें उनके शिक्षा संबंधी विचार बहुत याद आते हैं। स्वामी जी मानते थे कि सही शिक्षा के अभाव के कारण ही हमारा देश अभी तक पूर्ण विकसित नहीं हो पाया है।

स्वामीजी चाहते थे कि शिक्षा प्रणाली ऐसी हो जो युवाओं के चरित्र का निर्माण करे, उनको जीवन संघर्ष के लिए तैयार करे। उनका मानना था कि सिर्फ किताबें पढ़ना शिक्षा नहीं है, बल्कि उनसे ज्ञान प्राप्त करना और उस ज्ञान का प्रयोग जीवन में करना वास्तविक शिक्षा है।

स्वामी जी के मत अनुसार वर्तमान शिक्षा प्रणाली से सिर्फ मजदूर तैयार हो रहें हैं, जबकि वे चाहते थे कि शिक्षा ऐसी हो जिससे बच्चे आत्मनिर्भर बने और कमाई के साधन स्वयं तैयार करें।

स्वामी जी के शिक्षा पर कुछ मुख्य विचार इस प्रकार हैं:

  1. बच्चों की शिक्षा ऐसी होना चाहिए, जिससे उनका शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास हो।
  1.  शिक्षा बच्चों की बुद्धि का विकास कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने वाली होना चाहिए।
  1. बालक-बालिकाओं को समान रूप से शिक्षा मिलनी चाहिए।
  1. आचरण और संस्कारों के माध्यम से बालकों को धार्मिक शिक्षा भी दी जानी चाहिए।
  1. देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी ज्ञान भी शिक्षा में शामिल किया जाना चाहिए।

स्वामी जी युवओं में अनंत साहस और शक्ति का संचार करना चाहते थे। उनका मानना था कि बेहतर समाज के निर्माण के लिए युवाओं का सही मार्गदर्शन जरूरी है। इसीलिए उन्होंने शिक्षा को बहुत महत्व दिया। उनका मत था कि हर बालक में कुछ न कुछ संभावनाएं अवश्य होती हैं, जरूरत है तो बस उसे पहचानने की और विकसित करने की। जिससे एक निडर, साहसी और आत्मनिर्भर चरित्रवान युवा का निर्माण हो सके। ऐसे में जब देश का युवा शक्तिशाली और बलवान होगा तो अपने आप ही विकासशील और आत्मनिर्भर देश का निर्माण होगा। इसीलिए स्वामी जी का मानना था कि वास्तविक शिक्षा वो है जो व्यक्ति की क्षमताओं को अभिव्यक्त कर उसे कामयाब बनाती है

कहानी से सीख:

तो इस प्रकार स्वामी जी के शिक्षा सम्बंधी विचार ने हमें बताया कि हमारा असल ज्ञान वो है जो हमें जीवन में सफल और स्वतंत्र बनाए, न कि वो जो हमें गुलामी की ओर ले जाए। ये वास्तविक ज्ञान हम में ही मौजूद होता है। बस उसे पहचान कर विकसित करने की जरूरत है।

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