तीन नन्हें सूअरों की कहानी | The Three Little Pigs Story In Hindi

June 17, 2024 द्वारा लिखित

एक जंगल में तीन नन्हे सूअर अपनी मां के साथ रहते थे। कुछ समय बाद जब वो बड़े हुए तो, उनकी मां ने उन्हें बुलाया और कहा – “मेरे प्यारे बेटों, तुम तीनों अब खुद की देखभाल कर सकते हो और खुद के दम पर अपना जीवन भी जी सकते हो। इसलिए अब मेरी ख्वाहिश है कि तुम तीनों इस जंगल के बाहर जाओ, दुनिया घूमों और अपनी मर्जी से जिंदगी को जियो।”

अपनी मां की बात सुनकर तीनों सूअर अपने घर से निकले और शहर की तरफ जाने लगे। कुछ दूर चलने के बाद वो एक दूसरे जंगल में जा पहुंचे। तीनों सुअर काफी थके हुए थे, उन्होंने सोचा कि क्यों न इसी जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठकर आराम कर लिया जाए। फिर तीनों वहीं आराम करने लगे। थोड़ी देर आराम करने के बाद तीनों भाई एक-दूसरे से अपनी आगे के जीवन की योजना बनाने लगे।

पहले सूअर ने सलाह देते हुए कहा – “मुझे लगता है कि अब हम तीनों को अपने-अपने रास्ते जाते हुए अपनी किस्मत को आजमाना चाहिए।”

दूसरे सूअर को यह बात अच्छी लग गई, लेकिन तीसरे सूअर को यह विचार अच्छा नहीं लगा। तीसरे सूअर ने कहा- “नहीं, मेरे ख्याल से हमें एक-दूसरे के साथ ही रहना चाहिए और एक ही जगह पर जाकर अपना नया जीवन शुरू करना चाहिए। हम एक-दूसरे के साथ रहते हुए भी अपनी-अपनी किस्मत को आजमा सकते हैं।”

उसकी बात सुनते ही पहले और दूसरे सूअर ने कहा – “ भला वो कैसे?”

तीसरे सूअर ने जवाब देते हुए कहा – “अगर हम तीनों एक ही जगह पर ही आस-पास रहेंगे, तो किसी भी मुसीबत में आसानी से एक-दूसरे की मदद कर सकेंगे।”

यह बात दोनों ही सूअरों को अच्छी लग गई। उन दोनों में उसकी बात मान ली और एक ही जगह पर आस-पास घर बनाने जुट गए।

पहले सूअर के मन में विचार आया कि उसे भूसे का घर बनाना चाहिए, जो जल्दी बन जाएगा और उसे बनाने में मेहनत भी कम करनी पड़ेगी। उसने जल्दी-जल्दी कम समय में सबसे पहले अपना भूसे का घर बना लिया और आराम करने लगा।

वहीं, दूसरे सूअर ने पेड़ की सूखी टहनियों से घर बनाने का फैसला किया। उसने सोचा मेरा टहनियों वाला घर भूसे के घर से काफी मजबूत होगा। इसके बाद उसने पेड़ की सूखी टहनियां जुटाईं और थोड़ी मेहनत करके अपने घर को बना लिया। फिर वो भी उसमें आराम करने लगा और खेलने लगा।

दूसरी तरफ तीसरे सूअर ने काफी सोच विचार के साथ ईंट-पत्थरों से घर बनाने का निर्णय किया। उसने सोचा, घर बनाने में बहुत अधिक मेहनत तो लगेगी, लेकिन यह घर मजबूत और सुरक्षित भी होगा।

ईंट का घर बनाने में तीसरे सूअर को सात दिनों का समय लग गया। तीसरे सूअर को एक घर बनाने के लिए इतना मेहनत करते देख बाकी दोनों सूअरों ने उसका खूब मजाक बनाया। उन्हें लगता कि वो एक घर को बनाने के लिए इतनी मेहनत अपनी बेवकूफी की वजह से कर रहा है। वे दोनों उसे अपने साथ खेलने के लिए भी उकसाते थे, लेकिन तीसरा सूअर कड़ी मेहनत से अपना घर बनाता रहा। जब ईंटों से उसका घर बनकर तैयार हो गया, तो वह देखने में बहुत सुंदर और मजबूत लग रहा था।

इसके बाद तीनों सूअर बड़े ही मजे में अपने-अपने घरों में रहने लगे। उस नए स्थान पर उन तीनों को किसी तरह की परेशानी नहीं थी, इस वजह से तीनों अपने-अपने घर में बहुत खुश थे। एक दिन उनके ठिकाने पर एक जंगली भेड़िये की नजर पड़ी। तीन मोटे सूअर देखकर उसके मुंह में पानी आने लगा।

वह तुरंत उनकी घर की तरफ बढ़ा। सबसे पहले वह पहले सूअर के घर पर पहुंचा और दरवाजा खटखटाने लगा। पहला सूअर सो रहा था। दरवाजे की खटखट सुनकर जब वह उठा, तो उसने घर के अंदर से ही पूछा- “कौन है दरवाजे पर?”।

भेड़िया बोला – “मैं हूं, दरवाजा खोलो और मुझे अंदर आने दो।”

भेड़िये की कड़ी आवाज सुनकर सूअर समझ गया कि दरवाजे के बाहर कोई जंगली जानवर खड़ा है। वह डर गया और दरवाजा खोलेने से मन कर दिया।

इसके बाद भेड़िये को गुस्सा आ गया। उसने गुस्से में कहा – “नन्हा सूअर, मैं एक फूंक मारकर तेरा भूसे का घर उड़ा दूंगा और तुझे खा जाऊंगा।”

उसने एक जोरदार फूंक मारी और भूसे का घर उड़ गया। बेचारा पहला सूअर, वहां से किसी तरह वह अपनी जान बचाकर भाग गया और दूसरे सूअर के घर पहुंचा। जैसे ही दूसरे सूअर ने दरवाजा खोला, वह जल्दी से अंदर घुस गया और दरवाजा बंद कर दिया।

पहले सूअर को इतना डरा हुआ देखकर दूसरा सूअर हैरान हो गया। इतने में भेड़िया उसके घर पर भी पहुंच गया और दरवाजा खटखटाने लगा। भेड़िया फिर से बोला – “दरवाजा खोलो, मुझे अंदर आने दो।”

आवाज सुनकर पहला सूअर पहचान गया कि दरवाजे पर भेड़िया ही है। उसने कहा – “भाई, तुम दरवाजा मत खोलना। यह एक जंगली खूंखार भेड़िया है, जो हम दोनों को खा जाएगा।”

जब दूसरे सुअर ने दरवाजा नहीं खोला, तो भेड़िया फिर से गुस्से से लाल हो गया। वह चिल्लाया – “नन्हेसूअरों, तुम्हें क्या लगता है, अगर तुम दरवाजा नहीं खोलेगे, तो क्या तुम दोनों जिंदा बच जाओगे? इस टहनियों से बने घर को मैं एक झटके में ही तोड़ सकता हूं।”

इतना कहते ही भेड़िये ने एक ही झटके में टहनियों से बना दूसरे सूअर का घर तोड़ दिया। अब दोनों सूअर वहां से तेजी से भागे और तीसरे सूअर के घर पहुंच कर उसको सारी बात बता दी।

यह सब सुनकर तीसरे सूअर ने कहा – “तुम दोनों डरो मत। मेरा घर बहुत मजबूत है। वह जंगली भेड़िया इसे नहीं तोड़ सकता है।”

लेकिन, वे दोनों सूअर भेड़िये से काफी डरे हुए थे, इसलिए घर के एक कोने में जाकर छिप गए।

इतने में वहां पर भेड़िया आ गया। वह तीसरे सूअर के घर का दरवाजा खटखटाने लगा। उसने कहा – “दरवाजा खोलो जल्दी से और मुझे घर के अंदर आने दो।”

तभी तीसरे सूअर ने बिना डरे हुए कहा – “नहीं, हम दरवाजा नहीं खोलेंगे।”

यह सुनकर भेड़िया चिल्लाया – “मैं फिर भी तुम तीनों को मारकर खा जाऊंगा। मैं इस घर को भी तोड़ सकता हूं।”

भेड़िये ने तीसरे सूअर के ईंट से बने घर को तोड़ने की कोशिश करने लगा। सबसे पहले उसने फूंक मारी, लेकिन वह ईंट का बना घर नहीं उड़ा। इसके बाद उसने अपने पंजे से से घर को तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन इसमें भी वह असफल रहा।

उस जंगली भेड़िये के बहुत प्रयास करने के बाद भी तीसरे सूअर का ईंट से बना घर नहीं टूटा, लेकिन फिर भी भेड़िये ने हार नहीं मानी। उसने तय किया कि वह घर के अंदर चिमनी के रास्ते में घुसेगा।

पहले वह घर की छत पर चढ़ा फिर चिमनी के रास्ते घर के अंदर घुसने लगा। चिमनी के अंदर से आ रही आवाजों को सुनकर पहला और दूसरा सूअर और ज्यादा डर गए और रोने लगे। तभी तीसरे सूअर को एक तरकीब सूझी। उसने चिमनी के नीचे आग जलाई और एक बर्तन में पानी भरकर वहां पर उबलने के लिए रख दिया।

भेड़िये ने जैसे ही चिमनी के अंदर से नीचे की तरफ छलांग लगाई, वह सीधे उस उबलते पानी में गिरा गया और उसकी मौत हो गई। इस तरह तीसरे सूअर की बुद्धिमानी और निडरता से तीनों सूअरों की जान बच गई।

फिर पहले और दूसरे सूअर को अपनी-अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने कहा, “भाई हमें माफ कर दो। हमें तुम्हारा मजाक नहीं बनाना चाहिए था। तुम बिल्कुल सही थे। आज तुम्हारे कारण ही हम जिंदा हैं।” तीसरे सूअर ने उन दोनों को माफ कर दिया और दोनों को अपने ही घर में रहने के लिए भी कहा। इसके बाद तीनों सूअर खुशहाली से एक साथ ईंट से बने मजबूत घर में रहने लगे।

कहानी से सीख

तीन छोटे सूअर की कहानी, हमें यह सीख देती है कि कभी भी दूसरों की कड़ी मेहनत का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। साथ ही खुद भी कड़ी मेहनत करनी चाहिए और सूझबूझ कर ही कोई फैसला करना चाहिए।

 

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