विक्रम बेताल की बीसवीं कहानी: बालक क्यों हंसा?
June 17, 2024 द्वारा लिखित nripendra
इस बार भी पेड़ पर लटके बेताल को राजा विक्रमादित्य उतारते हैं और कंधे पर लादकर आगे बढ़ते हैं। बेताल हर बार की तरह राजा विक्रमादित्य को फिर से एक कहानी सुनाता है। बेताल कहता है…
एक बार की बात है, चित्रकूट नगर में एक चन्द्रवलोक नाम का राजा राज करता था। उसे शिकार करने का बहुत शौक था। एक बार वो जंगल में शिकार करने निकला, वहां घूमते-घूमते वो रास्ता भटक गया। थककर वो एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा। आराम करते हुए उसने एक खूबसूरत कन्या को देखा। उसकी खूबसूरती राजा की आंखों में बस गई। उस लड़की ने फूलों के गहने पहने हुए थे, राजा उस कन्या के पास पहुंचा। वो कन्या भी राजा को देखकर बहुत खुश हुई। इतने में उस कन्या की सहेली ने राजा से कहा कि यह ऋषि की बेटी है। उसकी सहेली की बात सुनकर राजा खुद ही ऋषि के पास गए, उन्होंने ऋषि को प्रणाम किया। ऋषि ने राजा से पूछा, “राजा आप यहां कैसे?” राजा ने कहा, “मैं यहां शिकार खेलने आया था।” राजा की बात सुन ऋषि ने कहा, “बेटा, तुम क्यों मासूम जीवों को मारकर पाप के भागी बन रहे हो।” ऋषि की बात का राजा पर बहुत असर हुआ। राजा ने कहा, “मुझे आपकी बात समझ आ गई है, अब मैं कभी शिकार नहीं करूंगा।” राजा की बात सुनकर ऋषि बहुत खुश हुए और बोले, “राजा तुम्हें जो मांगना है मांगो।”
राजा ने ऋषि की बेटी के साथ शादी करने का प्रस्ताव रखा। ऋषि ने राजा की बात मान ली और बेटी की शादी राजा के साथ कर दी।
शादी के बाद राजा अपनी पत्नी को लेकर अपने राज्य के तरफ चल पड़ा। रास्ते में जाते-जाते दोनों को एक भयानक राक्षस मिला। वो राक्षस बहुत ही भयानक था, उसने राजा की पत्नी को खाने की धमकी दी। राक्षस ने कहा, “अगर अपनी रानी को बचाना चाहते हो तो सात दिन के अंदर एक ऐसे ब्राह्मण के बेटे की बलि दो, जो खुद की मर्जी से अपने-आपको समर्पित कर दे और उसकी मौत के वक्त उसके माता-पिता उसके हाथ पकडे रहे।”
राजा बहुत डरा हुआ था और उसी डर से उसने राक्षस की बात मान ली। राजा डरते हुए अपने नगर पहुंचा और अपने दीवान को सारी बात बताई। दीवान ने राजा की पूरी बात सुनते हुए राजा को सांत्वना दी और कहा, “आप चिंता मत कीजिये, मैं कुछ उपाय करता हूं।”
फिर दीवान ने सात साल के एक बालक की मूर्ति बनवाई और उसे कीमती गहने और कपड़े पहनाएं। उसके बाद दीवान ने उस मूर्ति गांव-गांव और आस-पास के नगरों में भी घुमवाया। साथ ही उसने यह भी कहलवाया कि अगर किसी ब्राह्मण का सात साल का बेटा अपने आपको अपनी मर्जी से बलिदान देगा और बलि के वक्त उसके माता-पिता हाथ-पैर पकड़ेंगे, उसे यह मूर्ती मिलेगी और साथ ही साथ सौ गांव भी मिलेंगे।
यह खबर सुनकर एक ब्राह्मण का बेटा राजी हो गया। उसने अपने माता-पिता से कहा, “आपको बेटे कई मिल जाएंगे, मेरे बलिदान से राजा का भला हो जाएगा और आप लोगों की गरीबी भी खत्म हो जाएगी।” माता-पिता ने काफी मना किया, लेकिन बेटा जिद पर अड़ा रहा और अंत में माता-पिता को मनवा लिया।
ब्राह्मण माता-पिता अपने बेटे को लेकर राजा के पास गए। राजा सभी को लेकर राक्षस के पास गया। राक्षस के कहे अनुसार, राजा उस बालक की बलि के लिए तैयार हुआ और बलि के वक्त बालक के माता-पिता ने उसके हाथ पकड़े। राजा ने बालक को मारने के लिए जैसे ही तलवार उठाया, बालक जोर से हंस पड़ा।
इतने में ही बेताल ने कहानी बीच में ही रोक दी और विक्रमादित्य से हर बार की तरह सवाल पूछ बैठा कि, “बताओ विक्रमादित्य ब्राह्मण का लड़का क्यों हंसा?”
राजा ने जवाब देते हुए कहा, “ब्राह्मण का बेटा इसलिए हंसा क्योंकि जब भी कोई आदमी डरता है तो वो सबसे पहले अपने माता-पिता को बुलाता है। अगर माता-पिता नहीं हो तो व्यक्ति राजा को मदद के लिए बुलाता है। अगर राजा भी मदद न कर सके तो व्यक्ति भगवान को मदद के लिए याद करता है, लेकिन यहां तो कोई भी ब्राह्मण के बेटे की मदद के लिए नहीं था। माता-पिता बालक के हाथ पकड़े हुए थे, राजा हाथ में तलवार लिए खड़ा था और राक्षस उसके सामने उसे खाने के लिए तैयार था। ब्राह्मण का बेटा किसी और की भलाई के लिए खुद का बलिदान दे रहा था और इसी कारण वो हंस पड़ा।”
इतना सुनकर बेताल खुश हो गया और राजा की तारीफ। फिर तुरंत ही हर बार की तरह उड़कर पेड़ पर जाकर उल्टा लटक गया।
कहानी से सीख :
मुसीबत के समय चाहे जीतने भी लोग आसपास रहें, लेकिन उसका सामना अकेले ही करना होता है।